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रोज़ाना : इस्‍तेमाल होते फिल्‍म स्‍टार

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रोज़ाना इस्‍तेमाल होते फिल्‍म स्‍टार -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों हालिया रिलीज फिल्‍म के एक स्‍टार मिले। थोड़े थके और नाराज। उत्‍त्‍र भारत के किसी शहर से लौटे थे। फिल्‍म की पीआर और मार्केटिंग टीम उन्‍हें वहां ले गई थी। उद्देश्‍य था कि मीडिया के कुछ लोगों से मिलने के साथ मॉल और स्‍कूल के इवेंट में शामिल हो लेंगे। अगले दिन अखबार और चैनलों पर खबरें आ जाएंगी। इन दिनों ज्‍यादातर फिल्‍मों के प्रचार की मीडिया प्‍लानिंग ऐसे ही हो रही है। किसी को नहीं मालूक कि इस प्रकार के प्रचार और उपस्थिति फिल्‍मों को क्‍या फायदा होता है ? फिल्‍म स्‍आर को देखने आई भीड़ दर्शकों में तब्‍दील होती है या नहीं ?   मेरा मानना है कि इसमें कयास लगाने की कोई जरूरत ही नहीं है। इवेंट में मौजूद भीड़ और सिनेमा के टिकट खरीदे दर्शकों का जोड़-घटाव कर लें तो आंकड़े सामने आ जाएंगे। उक्‍त स्‍टार की भी यही जिज्ञासा थी कि हम जो शहर-दर-शहर दौड़ते हैं,क्‍या उससे फिल्‍म को कोई लाभ होता है ? स्‍पष्‍ट जवाब किसी के पास नहीं है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री प्रचार के नए तौर-तरीके खोजती रहती है। पीआर कंपनियों की सक्रियता क

रोज़ाना : चीन में ‘दंगल’ के 420 करोड़

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रोज़ाना चीन में ‘ दंगल ’ के 420 करोड़ -अजय ब्रह्मात्‍मज 5 मई 2017 को नितेश तिवारी निर्देशित और आमिर खान अभिनीत ‘ दंगल ’ चीन में रिलीज हुई। ‘ दंगल ’ भारत की पहली फिल्‍म है,जो इतने व्‍यापक स्‍तर पर चीन में रिलीज हुई है। 9000 से अधिक स्‍क्रीन में एक साथ चल रही ‘ दंगल ’ के लिए चीन के दर्शक दीवाने हो गए हैं। चीनी भाषा में इस फिल्‍म का नाम ‘ श्‍वाएच्‍याओ पा ! पापा ’ रखा गया है,जिसका सीधा अर्थ होगा ‘ कुश्‍ती करें,पापा ’ । ‘ दंगल ’ पसंद आने की वजह उसका विषय और बाप-बेटी के रिश्‍तों का इमोशनल कनेक्‍शन है। इस फिल्‍म के प्रति दर्शकों की रुचि का अंदाजा इसी तथ्‍य से लगाया जा सकता है कि पिछले 11 दिनों में ‘ दंगल ’ ने चीन में 400 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन किया है। ट्रेड पंडित मान रहे हैं कि 500 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन होगा। भारतीय फिल्‍मों का एक नया बाजार पड़ोस में तैयार हो गया है। पिछले कुछ सालों में भारतीय फिल्‍मों ने चीन में अच्‍छा कारोबार किया है। टॉप बिजनेस कर चुकी छह फिल्‍मों में से चार आमिर खान की हैं। चीनी अखबारों के मुताबिक पिछले महीने जब आमिर खान पेइचिंग इंटरनेशनल

रोज़ाना : 'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना

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'सिमरन' किरदार से 'सिमरन' फ़िल्म तक कंगना कंगना रनोट फिर से सिमरन के किरदार के रूप में आ रही हैं। हंसल मेहता की की ताजा फ़िल्म में वह शीर्षक किरदार निभा रही हैं। कंगना के प्रशंसकों और और फ़िल्मप्रेमियों को याद होगा कि उनकी पहली फ़िल्म 'गैंगस्टर' में भी उनका नाम सिमरन था। अनुराग बसु निर्देशित इस फ़िल्म से कंगना ने जोरदार दस्तक दी थी और हिंदी फिल्मों में खास पहचान के साथ प्रवेश किया था। कंगना सफलता की अद्भुत कहानी हैं। गिरती-संभालती वह आज जिस मुकाम पर हैं,वह खुद में प्रेरक कहानी है। मुमकिन है कल कोई उनके इस सफर पर बायोपिक बनाए की बात सोचे। 'शाहिद' और 'अलीगढ़' जैसी चर्चित फिल्में बना चुके हंसल मेहता के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म के पहले टीज़र ने झलक दी है कि हम कंगना को फिर से एक दमदार किरदार में देखेंगे। 'तनु वेड्स मनु' के दोनों भाग और 'क्वीन' की रवानगी और ऊर्जा का एहसास देता टीज़र भरोसा दे रहा है कि किरदार और कंगना का फिर से मेल हुआ है। हंसल मेहता संवेदनशील फिल्मकार हैं। वे अपने नायकों को भावाभिव्यक्ति के दृश्य

सात सवाल : कृति सैनन

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कृति सैनन -अजय ब्रह्मात्‍मज सात सवाल -यहां आने से पहले हिंदी फिल्‍मों के प्रति क्‍या परसेप्‍शन था ? 0 बिल्‍कुल आम दर्शकों की तरह ही मेरा परसेप्‍शन था। मीडिया के जरिए जो पढ़ती और सुनती थी,वही जानती थी। इसका ग्‍लैमर आकर्षित करता था। लगता था कि स्‍टारों के लिए सब मजेदार और आसान होगा। बस,डांस करना है। -परसेप्‍शन क्‍या बदला ? 0 आने के बाद पता चला कि बहुत मेहनत है। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के हर डिपार्टमेंट में काम करनेवालों के लिए रेसपेक्‍ट बढ़ गई है। एक छोटे से सीन के लिए भी सौ चीजें सोचनी पड़ती हैं। कई बार दर्शक उन पर ध्‍यान भी नहीं देते,लेकिन वही सिंक में न हो तो खटकेगा। - कहते हैं यह टीमवर्क है ? 0 बिल्‍कुल। हर डिपार्टमेंट मिल कर ही फिल्‍म पूरी करता है। फिल्‍मों में काम करने के बाद ही यह सब पता चला। मुझे लगता है कि क्रिटिक और दर्शकों को भी सभी के काम पर गौर करना चाहिए। - हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री की क्‍या खासियत है ? 0 विविधता है। हर तरह की प्रतिभाएं हैं। फिल्‍मों के विषयों की विविधता तो गजब की है। मैं देखती हूं कि अलग-अलग कारणों से सभी जुड़े हैं। एक बात समान है क

फिल्‍म समीक्षा : मेरी प्‍यारी बिंदु

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फिल्‍म रिव्‍यू परायी बिंदु मेरी प्‍यारी बिंदु थिएटर से निकलते समय कानों में आवाज आई...फिल्‍म का नाम तो ‘ मेरी परायी बिंदु ’ होना चाहिए था। बचपन से बिंदु के प्रति आसक्‍त अभिमन्‍यु फिल्‍म के खत्‍म होने तक प्रेमव्‍यूह को नहीं भेद पाता। जिंदगी में आगे बढ़ते और कामयाब होते हुए वह बार-बार बिंदु के पास लौटता है। बिंदु के मिसेज नायर हो जाने के बाद भी उसकी आसक्ति नहीं टूटती। ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ की कहानी लट्टू की तरह एक ही जगह नाचती रहती है। फिर भी बिंदु उसे नहीं मिल पाती। इन दिनों करण जौहर के प्रभाव में युवा लेखक और फिल्‍मकार प्‍यार और दोस्‍ती का फर्क और एहसास समझने-समझाने में लगे हैं। संबंध में अनिर्णय की स्थिति और कमिटमेंट का भय उन्‍हें दोस्‍ती की सीमा पार कर प्‍यार तक आने ही नहीं देता है। प्‍यार का इजहार करने में उन्‍हें पहले के प्रेमियों की तरह संकोच नहीं होता,लेकिन प्‍यार और शादी के बाद के समर्पण और समायोजन के बारे में सोच कर युवा डर जाते हैं। ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ में यह डर नायिका के साथ चिपका हुआ है। दो कदम आगे बढ़ने के बाद सात फेरे लेने से पहले उसका डर तारी होता

शिक्षा पद्धति बदलने की दरकार : इरफान

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शिक्षा पद्धति बदलने की दरकार : इरफान एडुकेशन के क्षेत्र में चामात्‍कारिक काम करने वालों को मिड डे सराहता है। अपने ‘ एक्‍सलेंस इन एडुकेशन सम्‍मान ’ मुहिम के जरिए। ‘ हिंदी मीडियम ’ भाषाई विभेद और स्‍क्‍ूली शिक्षा की मौजूदा व्‍यवस्था पर एक टेक लेती हुई फिल्म है। इरफान इसमें मुख्‍य भूमिका में हैं। वे मिड डे की इस मुहिम को सपोर्ट करने खास तौर पर सम्‍मान समारोह में आए। इस मौके पर उनसे दैनिक जागरण के फिल्म एडीटर अजय ब्रह्मात्‍मज से खुलकर बातें कीं :   -मिड डे इस इनीशिएटिव को आप किस तरह से देखते हैं ? साथ ही शिक्षा का कितना महत्व मानते हैं आप किसी की जिंदगी में ? वह बहुत ज्यादा है , लेकिन उसकी पद्धति पर गौर फरमाने की दरकार है। उसका तरीका क्या है। यह अजीब सा है कि दो से पांच साल के बच्चों पर स्‍कूली बस्ते का बोझ लाद दिया जाता है। 14-15 तक का होने तक ही उन पर करियर डिसाइड करने का भारी बोझ डाल दिया जाता है। यह सही नहीं है।   - ‘ हिंदी मीडियम ’ का जो विषय है , उससे यकीनन हर कोई जुड़ाव महसूस क र रहा है। बच्‍चों के एडमिशन का इंटरव्‍यू एक तरह से मां-बाप के भी इंटरव्‍यू का समय होत

फिल्‍म समीक्षा : सरकार 3

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फिल्‍म रिव्‍यू निराश करते हैं रामगोपाल वर्मा सरकार 3 -अजय ब्रह्मात्‍मज रामगोपाल वर्मा की ‘ सरकार 3 ’ उम्‍मीदों पर खरी नहीं उतरती। डायरेक्‍टर रामगोपाल वर्मा हारे हुए खिलाड़ी की तरह दम साध कर रिंग में उतरते हैं,लेकिन कुछ समय बाद ही उनकी सांस उखड़ जाती है। फिल्‍म चारों खाने चित्‍त हो जाती है। अफसोस,यह हमारे समय के समर्थ फिल्‍मकार का भयंकर भटकाव है। सोच और प्रस्‍तुति में कुछ नया करने के बजाए अपनी पुरानी कामयाबी को दोहराने की कोशिश में रामगोपाल वर्मा और पिछड़ते जा रहे हैं। अमिताभ बच्‍चन,मनोज बाजपेयी और बाकी कलाकारों की उम्‍दा अदाकारी,रामकुमार सिंह के संवाद और तकनीकी टीम के प्रयत्‍नों के बावजूद फिल्‍म संभल नहीं पाती। लमहों,दृश्‍यों और छिटपुट परफारमेंस की खूबियों के बावजूद फिल्‍म अंतिम प्रभाव नहीं डाल पाती। कहानी और पटकथा के स्‍तर की दिक्‍कतें फिल्‍म की गति और निष्‍पत्ति रोकती हैं। सुभाष नागरे का पैरेलल साम्राज्‍य चल रहा है। प्रदेश के मुख्‍यमंत्री की नकेल उनके हाथों में है। उनके सहायक गोकुल और रमण अधिक पावरफुल हो गए हैं। बीमार बीवी ने बिस्‍तर पकड़ लिया है। तेज-तर्रार देशप

संगीत के जरिए हुई दोस्‍ती : आयुष्‍मान परिणीति

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संगीत के जरिए हुई दोस्‍ती -अजय ब्रह्मात्‍मज आयुष्‍मान खुराना और परिणीति चोपड़ा दोनों ही यशराज फिल्‍म्‍स के बैनर तले आ रही ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ में पहली बार साथ नजर आएंगे। यह फिल्‍म कोलकाता की पृष्‍ठभूमि पर बनी है। रोमांस की नई जमीन तलाशती इस फिल्‍म में आयुष्‍मान और परिणीति बिल्‍कुल नए मिजाज के किरदारों में दिखेंगे। सप्‍तरंग के लिए उन दोनों से बातचीत करते समय हम ने औपचारिक सवालों को दरकिनार कर दिया। दोनों कलाकारों को खुद के साथ अपने किरदारों के बारे में बताने की आजादी दी। आयुष्‍मान- तीन साल पहले सौमिक सेन ने मुझे इस फिल्‍म की कहानी सुनाई थी। उसी समय वे परिणीति से भी बात कर रहे थे। तब यह फिल्‍म यशराज के पास नहीं थी। बाद में पता चला कि यशराज के लिए इसे अक्षय राय डायरेक्‍ट कर रहे हैं। मेरी खुशी गहरा गई इस जानकारी से। परिणीति- मुझे लगता है कि हर स्क्रिप्‍ट की अपनी डेस्टिनी होती है। मेरी ‘ इश्‍कजादे ’ के साथ भी यही हुआ था। ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ मैंने भी पहले सौमिक दा से सुनी थी। तब किसी और फिल्‍म में व्‍यस्‍त होने की वजह से मैंने मना कर दिया था। बाद में यह फिल्‍म लौट कर

दरअसल : सिनेमा के शोधार्थी

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दरअसल... सिनेमा के शोधार्थी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों ट्वीटर पर एक सज्‍जन ने राज कपूर की 1951 की   ‘ आवारा ’ के बारे में लिखा कि यह 1946 में बनी किसी तुर्की फिल्‍म की नकल है। सच्‍चाई यह है कि ‘ आवारा ’ से प्रेरित होकर तुर्की की फिल्‍म ‘ आवारे ’ नाम से 1964 में बनी थी। राज कपूर की ‘ आवारा ’ एक साथ तत्‍कालीन सोवियत संघ,चीन,अफ्रीका,तुर्की और कई देशों में लोकप्रिय हुई थी। जन्‍म और परिवेश से व्‍यक्तित्‍व के निर्माण के बारे में रोचक तरीके से बताती यह फिल्‍म वास्‍तव में इस धारणा को नकारती है कि व्‍यक्ति पैदाइशी गुणों से संचालित होता है। अभी तक ‘ आवारा ’ के विश्‍वव्‍यापी प्रभाव पर विश्‍लेषणात्‍मक शोध नहीं हुआ है। अगर कोई विश्‍वद्यालय,संस्‍थान या चेयर पहल करे तो भारतीय फिल्‍मों के प्रभाव की उम्‍दा जानकारी मिल सकती है। सही जानकारी के अभाव में ‘ आवारा ’ के बारे में फैली सोशल मीडिया सूचना को सही मान कर लोग आगे बढ़ा रहे हैं। एक तो मानसिकता बन गई है कि हम केवल चोरी ही कर सकते हैं। हीनभावना से ग्रस्‍त समाज किसी प्रतिमा के टूटने पर भी गर्व महसूस करता है। उसे बांटता और फैलात

रोज़ाना : रामगोपाल वर्मा की शेखी

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रोज़ाना रामगोपाल वर्मा की शेखी -अजय ब्रह्मात्‍मज रामगोपाल वर्मा ने सुर्खियों में रहना सीख लिया है। आए दिन अपने ट्वीट और अनर्गल बातों से वे मीडिया और फिर लोगों का ध्‍यान खींचत हैं। उनके कई ट्वीट बेमानी,संदर्भहीन और उटपटांग होते हैं। उन पर खबरें बनती हैं। बात बिगड़ती है। फिर रामगोपाल वर्मा माफी मांग लेते हैं। अगले अनर्गल ट्वीट या बयान तक चुप रहते हैं। जैसे ही खबर आई कि शेखर कपूर जल्‍दी ही ब्रूस ली की बेटी शैनन ली के साथ मिल कर उन पर बॉयोपिक बनाएंगे,वैसे ही रामगोपाल वर्मा का ट्रवीट आ गया कि वे भी ब्रूस ली के जीवन पर बॉयोपिक बनाएंगे। उनका दावा है कि वे ब्रूस ली के भक्‍त हैं और उनके बारे में बेटी शैनन ली और शेख कपूर से ज्‍यादा जानते हैं। वे इस फिल्‍म को उसी समय रिलीज करेंगे,जब शेखर कपूर की फिल्‍म रिलीज होगी। इस प्रसंग पर क्‍या कहेंगे ? यह रामगोपाल वर्मा की शेखी नहीं है तो और क्‍या है ? रामगोपाल वर्मा उम्‍दा फिल्‍मकार थे। ‘ थे ’ लिखते हुए तकलीफ हो रही है,क्‍योंकि हैदराबाद से आए रामगोपाल वर्मा ने एक समय मुंबई के फिल्‍मी संविधान को तोड़ दिया था। नए आयडिया और टैलेंट के साथ उ

रोज़ाना : जस्टिन बीबर का जादू

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रोज़ाना जस्टिन बीबर का जादू -अजय ब्रह्मात्‍मज जस्टिन बीबर को सुनने और देखने के लिए देश के किशोर और युवा मुबई की ओर मुखातिब हैं। भारत की पहली यात्रापर आए जस्टिन बीबर के लिए गजब का उत्‍साह है। जस्टिन बीबर इन दिनों पर्पस वर्ल्‍ड टूर पर हैं। 10 मई को मुंबई के डीवाई पाटिल स्‍टेडियम केशे के तुरंत बाद उन्‍हें 14 मई को दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग और 17 मई को केप टाउन में हिस्‍सा लेना है। जून महीने में वे नीदरलैाड,डेनमार्क,नार्वे,स्‍वीडन,स्विटजरलैंड,इटली,आयरलैंड,फ्रांस,जर्मनी,इंग्‍लैंड और कनाडा के दस शहरों में इसवर्ल्‍ड टूर के तहत वे परफार्म करेंगे। माइकल जैक्‍सन के बाद किसी इंटरनेशनल पॉपसिंगर का यह पहला शो है,जिसके प्रति इतनी जिज्ञासा और जोश है। इस बार इंटरनेट से टिकट बुक्रिग की सुविधा के कारण दूसरे शहरों के युवा और किशोरों ने महीनों पहले से अपनी सीट रिजर्व करा ली है। पॉप सिंगर जस्टिन बीबर सोशल मीडिया की खोज और पैदाइश हैं। कभी उनकी मां यूट्यूब पर उनके वीडियो डाला करती थीं। धीरे-धीरे वे वीडियो इतने लोक‍प्रिय हुए कि उसने ऐ टैलेंट एजेंट का ध्‍यान खींचा। उसके कुछ पहले अपने शहर के

दरअसल : नारी प्रधान फिल्‍मों पर उठते सवाल

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दरअसल... नारी प्रधान फिल्‍मों पर उठते सवाल -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी में हर साल बन रही 100 से अधिक फिल्‍मों में ज्‍यादातर नहीं चल पातीं। उन असफल फिल्‍मों में से ज्‍यादातर पुरुष्‍ प्रधान होती हैं। वे नायक केंद्रित होती है। उनकी निरंतर नाकामयाबी के बावजूद यह कभी लिखा और विचारा नहीं जाता कि नायकों या पुरुष प्रधान फिल्‍मों का मार्केट नहीं रहा। ऐसी फिल्‍मों की सफलता-असफलता पर गौर नहीं किया जाता। इसके विपरीत जब को कथित नारी प्रधान या नायिका केंद्रित फिल्‍म असफल होती है तो उन फिल्‍मों की हीरोइनों के नाम लेकर आर्टिकल छपने लगते हैं कि अब ता उनका बाजार गया। उन्‍होंने नारी प्रधान फिल्‍में चुन कर गलती की। उन्‍हें मसाला फिल्‍मों से ही संतुष्‍ट रहना चाहिए। हाल ही में ‘ बेगम जान ’ और ‘ नूर ’ की असफलता के बाद विद्या बालन और सोनाक्षी सिन्‍हा को ऐसे सवालों के घेरे में बांध दिया गया है। इन दिनों नारी प्रधान फिल्‍में फैशन में आ गई हैं। हर अभिनेत्री चाहती है कि उसे ऐसी कुछ फिल्‍में मिलें,जिन्‍हें उनके नाम से याद किया जा सके। ‘ डर्टी पिक्‍चर ’ , ’ क्‍वीन ’ , ’ मैरी कॉम ’ , ’ पीकू ’ , ’ पिं