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फिल्‍म समीक्षा : सोनू के टीटू की स्‍वीटी

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फिल्‍म समीक्षा : सोनू के टीटू की स्‍वीटी -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों में निर्देशक और अभिनेता की जोड़ी ने कमाल किए हैं। परस्‍पर भरोसे से कुछ बेहतरीन फिल्‍में आई हैं। लव रंजन और कार्तिक आर्यन की जोड़ी ने ‘प्‍यार का पंचनामा’(1-2),आकाशवाणी और अब ‘सोनू के टीटू की स्‍वीटी’ जैसी फिल्‍में दी हैं। इन फिल्‍मों को क्‍लासिक के दर्जे में नहीं डाल सकते,लेकिन ये कल्‍ट ब्रांड की फिल्‍में हैं। अकेले लव रंजन ही ऐसी फिल्‍में बना रहे हैं। दरअसल,इस तरह की फिल्‍मों के लिए बात और स्‍वभाव में देसी होना जरूरी है। अगर आप अपने समय और समाज में पगे होंगे,तभी ऐसी फिल्‍में लेकर आ सकते हैं। इन फिल्‍मों में कोई बड़ी बात नही कही गई है। रोजमर्रा की बातों का ही ऐसे नजरिए और एटीट्यूड के साथ पेश किया गया है कि किरदारों में आज के युवक दिखते हैं। लव रंजन की फिल्‍में मुख्‍य रूप से लड़कों के नजरिए से पेश की जाती हैं। उनकी लड़कियां कतई कमजोर नहीं होतीं,लेकिन लड़कों के ज्‍यादा दृश्‍यों और प्रसंगों की वजह से दरकिनार होती नजर आती हैं। गौर करें तो लव रंजन के किरदार शहरी और महानगरीय दिखते हैं,लेकिन उनकी मानसिकता उत

सिनेमालोक : घट रहे हैं सिनेमाघर

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सिनेमालोक घट रहे हैं सिनेमाघर -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों अद्वैत चंदन निर्देशित ‘सीक्रेट सुपरस्‍टार’ चीन में रिलीज हुई और इसने 750 करोड़ रुपए से ज्‍यादा का कारोबार किया। इसे पहले ‘बाहुबली’ और ‘दंगल’ के चीनी कारोबार ने भी चौंका दिया था। इस साल किसी हिंदी फिल्‍म ने इतना कारोबार नहीं किया है। ‘पद्मावत’ अभी तक 300 करोड़ का भी कारोबार नहीं कर पाई है। एक बड़ा कारण अधिक से अधिक स्‍क्रीन में फिल्‍मों का रिलीज होना है। ताजा आंकड़ो के मुताबिक भारत में सिनेमाघरों की संख्‍या घट कर 9000 से भी कम रह गई है। सिंगल स्‍क्रीन लगातार टूट रहे हैं। मल्‍टीप्‍लेक्‍स 3 से 4 प्रतिशत की रु्तार से बढ़ रहे हैं। नतीजा यह है कि हिंदी या अन्‍य भारतीय फिल्‍मों को अपेक्षित रिलीज नहीं मिल पा रही है। एक ‘पद्मावत’ आती है तो बाकी फिल्‍मों को आगे खिसकना पड़ता है। पता करं तो चीन में ‘बाहुबली’ 6000 स्‍क्रीन और ‘दंगल’ 9000 स्‍क्रीन में रिलीज हुई थी। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं भारत में कोई भी फिल्‍म सर्वाधिक करोबार भी करे तो कुल कलेक्‍शन क्‍या होगा ? इसके अलावा टिकट दर भी एक कारण है। भारत में मल्‍टीप्‍लेक

सिनेमालोक : बायोपिक नहीं है पैडमैन

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सिने मा लोक बायोपिक नहीं है पैडमैन - अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते रिलीज हुई अक्षय कुमार की चर्चित फिल्म ' पैडमैन ' अरुणाचलम मुरुगनंतम   के जीवन और कार्य पर आधारित होने के बावजूद उनकी बायोपिक नहीं है। हालांकि रिलीज के पहले के प्रचार में अरुणाचलम के निरंतत उल्लेख और प्रचार अभियान व विशेष शो में उनकी भागीदारी से यह अहसास होता रहा कि यह फ़िल्म उनकी बायोपिक हो सकती है। प्रदर्शन के बाद पता चला कि यह मध्यप्रदेश के मालवा इलाके लक्ष्मीकांत चौहान की कहानी है। फ़िल्म के सारे प्रसंग अरुणाचलम के जीवन से लेकर लक्ष्मीकांत पर आरोपित कर दिए गए हैं। इस प्रयोग या प्रयास के बारे में सही जानकारी निर्देशक आर बाल्की या निर्माता और मूल लेखिका ट्विंकल खन्ना दे सकती हैं। इतना स्पष्ट है कि अरुणाचलम की सहमति और सहयोग के बावजूद फ़िल्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर के उस साहसी व्यक्ति की नहीं है , जिसने सैनिटरी नैपकिन के सस्ते उत्पादन और बिक्री में क्रांति ला दी थी। मालवा के लक्ष्मीकांत की कहानी के रूप में यह अरुणाचलम के महती योगदान का निषेध कर देती है। फिल्में भी इतिहास रचती हैं। पांच-छह दशकों