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रोज़ाना : हमदर्द शाह रूख खान

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रोज़ाना हमदर्द शाह रूख खान -अजय ब्रह्मात्‍मज कल सायरा बानो ने दिलीप कुमार के ट्वीटर हैंडल पर कुछ तस्‍वीरें शेयर कीं। उनमें शाह रूख खान कृशकाय हो चुके महान अभिनेता को सोफे पर आराम से बिठाने की कोशिश कर रहे हैं। ये तस्‍वीरें आंखें नम कर गईं। पहले तो लगा कि सायरा जी को इन अंतरंग क्षणों की तस्‍वीरें नहीं शेयर करनी चाहिए थी। फिर मर्माहत मन ने कहा कि ऐसी तस्‍वीरें धर-परिवार और देश-समाज के बुजुर्गों के प्रति हमारी हमदर्दी की मिसाल बन सकती हैं। फिल्‍मों के फालोअर और शाह रूख खान के प्रशंसक गाहे-बगाहे अपने जीवन में इसे अपना सकते हैं। दिलीप कुमार के प्रति शाह रूख खान के आदर और प्‍यार से फिल्‍म इंडस्‍ट्री वाकिफ है। सायरा जी कई मौकों पर कह चुके हैं कि दिलीप साहेब उन्‍हें अपनी औलाद की तरह मानते हैं। यह किसी भी बीमार पिता और तीमारदार बेटे की तस्‍वीर हो सकती है। शाह रूख खान के बारे में अनेक गलतफहमियां हैं। अपनी बेरुखी और साफगोई से वे ऐसी इमेज बना चुके हैं कि उन्‍हें किसी की भी नहीं पड़ी है। वे केल खुद और खुद की परवाह करते हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के गलाकाट माहौल में ऐसे मिजाज के

रोज़ाना : ’टॉयलेट...’ से मिली राहत

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रोज़ाना ’ टॉयलेट... ’ से मिली राहत -अजय ब्रह्मात्‍मज अक्षय कुमार और भूमि पेडणेकर की फिल्‍म ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ के कलेक्‍शन से हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री को राहत मिली है। पिछलें कई महीनों से हर हफ्ते रिलीज हो रही फिल्‍में बाक्‍स आफिस पर खनक नहीं रही थीं। सलमान खान और शाह रूख खान की फिल्‍में बिजनेश की बड़ी उम्‍मीद पर खरी नहीं उतरीं। खबर है कि सलमान खान ने वितरकों के नुकसान की भरपाई की है। इस व्‍यवहार के लिए सलमान खान खान की तारीफ की जा सकती है। इक्षिण भारत में रजनी कांत की फिल्‍में अपेक्षित कमाई नहीं करतीं तो वे भी वितरकों का नुकसान शेयर करते हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में महेश भट्ट भी ऐसा करते रहे हैं। इससे लाभ यह होता है कि उम्‍त स्‍टारों या प्रोडक्‍शन हाउस की अगली फिल्‍में उठाने में वितरक आनाकानी नहीं करते। बहरहाल, ’ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ के वीकएंड कलेक्‍शन ने उत्‍साह का संचार किया। रिलीज के पहले ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ के बारे में ट्रेड पंडित असमंजस में थे। फिल्‍म की कहानी की विचित्रता की वजह से वे अक्षय कुमार के होने के बावजूद आशंकित थे। कुछ तो कह रहे थे कि

रोज़ाना : राष्‍ट्रीय भावना के गीत

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रोज़ाना राष्‍ट्रीय भावना के गीत -अजय ब्रह्मात्‍मज इन पंक्तियों को पढ़ने केपहले ही आप के कानों में राष्‍ट्रीय भावना से ओत-प्रोत देशभक्ति के गानों की आवाज आ रही होगी। महानगर,शहर,कस्‍बा और गांव-देहात तक में गली,नुक्‍कड़ और चौराहों पर गूंज रहे गीत स्‍फूर्ति का संचार कर रहे होंगे। अभी प्रभात फेरी का चलन कम हो गया है। स्‍वतंत्रता आंदोलन के समय हर सुबह गली-मोहल्‍लों में प्रभातफेरी की मंडलियां निकला करती थीं। सातवें दशक तक इसका चलन रहा। खास कर 15 अगस्‍त और 26 जनवरी को स्‍कूलों और शिक्षा संस्‍थाओं में इसका आयोजन होता था। तब तक देशभक्त्‍िा और आजादी का सुरूर कायम था। देश जोश के साथ उम्‍मीद में जी रहा था। बाद में बढ़ती गरीबी,असमानता और बदहाली से आजादी से मिले सपने चकनाचूर हुए और मोहभंग हुआ। धीरे-धीरे स्‍वतंत्रता दिवस औपचारिकता हो गई। अवकाश का एक दिन हो गया। याद करें तो हमारे बचपन में स्‍वतंत्रता दिवस के दिन स्‍कूल जाने का उत्‍साह रहता था। यह उत्‍साह आज भी है,लेकिन शिक्षकों और अभिभावकों की सहभागिता की कमी से पहले सा उमंग नहीं दिखता। केंद्र में राष्‍ट्रवादी सरकार के आने के बाद देशभ

दरअसल : यंग एडल्‍ट के लिए फिल्‍में

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दरअसल... यंग एडल्‍ट के लिए फिल्‍में -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ बृजमोहन अमर रहे ’ , ’ अभी और अनु ’ , ’ आश्‍चर्यचकित ’ , ’ अज्‍जी ’ , ’ नोबलमैन ’ , ’ द म्‍यूजिक टीचर ’ , ’ कुछ भीगे अल्‍फाज ’ , ’ हामिद ’ ... उन कुछ फिल्‍मों के नाम हैं,जो अगले महीने से हर महीने रिलीज होंगी। योजना है कि दर्शकों तक ऐसी फिल्‍में आएं,जो कथ्‍य के स्‍तर पर गंभीर हैं। कुछ कहना चाहती हैं। अच्‍छी बात है कि इन सारी फिल्‍मों की योजना 18 से 30 साल के दर्शकों को धन में रख कर बनाई गई है। एक सर्वे के मुताबिक पहले दिन फिल्‍म देखने आए दर्शकों में से 64 प्रतिशत की उम्र 24 साल से कू होती है। सिनेमाघरों में युवा दर्शक जाते हैं। इस समूह के दर्शक विश्‍व सिनेमा से परिचित हैं। अगर उन्‍हें फिल्‍म पसंद नहीं आती है तो बड़े से बड़े लोकप्रिय सितारों की भी फिल्‍में बाक्‍स आफिस पर औंधे मुंह गिरती हैं। ऊपर उल्लिखित सभी फिल्‍मों का निर्माण यूडली फिल्‍म्‍स कर रही है। यूडली फिल्‍म्‍स मूल रूप से सारेगाम म्‍यूजिक कंपनी की नई फिल्‍म निर्माण कंपनी है। एक अर्से की खामोशी के बाद फिल्‍म निर्माण में सारेगामा का उतरना अच्‍छी खबर है। हिंदी फ

रोज़ाना : शिकार हैं तो प्रतिकार करें

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रोज़ाना शिकार हैं तो प्रतिकार करें -अजय ब्रह्मात्‍मज समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता हो तो शोषण और शिकार आम बात हो जाती है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रभावशाली समूह अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए हर तरह के उपाय करते हैं। वे दमन और दबाव की नीति-रणनीति अपनाते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी यह आम है। खास कर बाहर से आये कलाकारों के प्रति फ़िल्म इंडस्ट्री के इनसाइडर का यह रवैया दिखता है। कुछ महीनों से कंगना रनोट के खिलाफ चल रहे बयानों पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाएगा। ज्यादातर तिलमिलाये हुए हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री में जारी वंशवाद को वे दबी जबान से स्वीकार करते हैं। मझोले स्टार तो कंगना के समर्थन करने के बाद कह देते हैं कि क्यों हमें घसीट रहे हैं। हम तो उसके कैम्प के हैं , जो हमें काम दे। कंगना रनोट की बातों में दम है। पिछले दिनों उन्होंने दोहराया कि वह आगे भी कुछ लोगों के अहम पर चोट करती रहेंगी।होता यूं है कि किसी ताकतवर की बात न मानो , प्रतिकार करो या सवाल करो तो उनका अहम घायल हो जाता है।फ़िल्म इंडस्ट्री में भी जी हुजूरी चलती है। हैं में हैं मिलते रहो और

फिल्‍म समीक्षा : टॉयलेट- एक प्रेम कथा

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फिल्‍म रिव्‍यू शौच पर लगे पर्दा टॉयलेट एक प्रेम कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज जया को कहां पता था कि जिस केशव से वह प्‍यार करती है और अब शादी भी कर चुकी है...उसके घर में टॉयलेट नहीं है। पहली रात के बाद की सुबह ही उसे इसकी जानकारी मिलती है। वह गांव की लोटा पार्टी के साथ खेत में भी जाती है,लेकिन पूरी प्रक्रिया से उबकाई और शर्म आती है। बचपन से टॉयलेट में जाने की आदत के कारण खुले में शौच करना उसे मंजूर नहीं। बिन औरतों के घर में बड़े हुआ केशव के लिए शौच कभी समस्‍या नहीं रही। उसने कभी जरूरत ही नहीं महसूस की। जया के बिफरने और दुखी होने को वह शुरू में समझ ही नहीं पाता। उसे लगता है कि वह एक छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही है। दूसरी औरतों की तरह अपने माहौल से एडजस्‍ट नहीं कर रही है। यह फिल्‍म जया की है। जया ही पूरी कहानी की प्रेरक और उत्‍प्रेरक है। हालांकि लगता है कि सब कुछ केशव ने किया,लेकिन गौर करें तो उससे सब कुछ जया ने ही करवाया। ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ रोचक लव स्‍टोरी है। जया और केशव की इस प्रेम कहानी में सोच और शौच की खल भूमिकाएं हैं। उन पर विजय पाने की कोशिश और कामयाबी में ही जया

रोज़ाना : ’चक दे! इंडिया’ के दस साल

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रोज़ाना ’ चक दे ! इंडिया ’ के दस साल -अजय ब्रह्मात्‍मज यह 2007 की बात है। यशराज फिल्‍म्‍स ने एक साल पहले कबीर खान निर्देशित ‘ काबुल एक्‍सप्रेस ’ का निर्माण किया था। फिल्‍म तो अधिक नहीं चली थी,लेकिन उसे अच्‍छी तारीफ मिली थी। उन्‍हें लगा था कि प्रेकानियों से इतर फिल्‍में भी बनायी जा सकती हैं। तब तक जयदीप साहनी यशराज की टीम में शामिल हो चुके थे। वे कुछ दिनों से भारत की महिला हाकी टीम पर रिसर्च कर रहे थे। उन्‍होंने बातों-बातों में आदित्‍य चोपड़ा को अपने विषय के बारे में बताया था। तब तक जयदीप साहनी ने तय नहीं किया था कि वे किताब लिखंगे या फिल्‍म। आदित्‍य चोपड़ा के प्रोत्‍साहन ने जयदीप साहनी को हौसला दिया। उन्‍होंने एक मुश्किल फिल्‍म लिखी। हालांकि फिल्‍म में शाह रूख खान थे,लेकिन उनके साथ कोई एक हीरोइन नहीं बल्कि लड़कियों की जमात थी। उन लड़कियों को लेकर उन्‍हें भारत की महिला हाकी टीम के कोच के रूप में ऐसी टीम तैयार करनी थी,जो जीत कर लौटे। यह आदित्‍य चोपड़ा की हिम्‍मत और शाह रूख खान का विश्‍वास ही था कि लेखक जयदीप साहनी और निर्देशक शिमित अमीन भारत की एक यादगार फिल्‍म पूरी

रोजाना : खारिज करने का दौर

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रोजाना खारिज करने का दौर -अजय ब्रह्मात्‍मज बकवास...बहुत बुरी फिल्‍म है...क्‍या हो गया है शाह रूख को...इम्तियाज चूक गए। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के बारे में सोशल मीडिया की टिप्‍पणियों पर सरसरी निगाह डालें तो यही पढ़ने-सुनने को मिलेगा। हर व्‍यक्ति इसे खारिज कर रहा है। ज्‍यादातर के पास ठोस कारण नहीं हैं। पूछने पर वे दाएं-बाएं झांकने लगते हैं। यह हमारे दौर की खास प्रवृति है। किसी स्‍थापित को खारिज करो। पहले मूर्ति बनाओ। फिर पूजो और आखिरकार विसर्जन कर दो। हम अपने देवी-देवताओं के साथ यही करते हैं। फिल्‍म स्‍टारों के प्रति भी हमारा यही रवैया रहता है। थिति इतनी नकारत्‍मक हो चुकी है कि अगर आप ने फिल्‍म के बारे में कुछ पाम्‍जीटिव बातें कीं तो ये स्‍वयंभू आलोचक(दर्शक) आप से ही नाराज हो जाएंगे और ट्रोलिंग होने लगेगी1 ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ सामान्‍य मनोरंजक फिल्‍म है। सच्‍चाई क्‍या है ? हिंदी फिल्‍मों के ढांचे में जकड़ी यह फिल्‍म किसी सा‍हसिक प्रयोग से बचती है। इम्तियाज अली ने खुद की रोचक शैली विकसित कर ली है। यह उसी शैली की फिल्‍म है। उनके किरदारों(प्रेमियों) का बाहरी विरोध नहीं होता।

रोज़ाना : फिल्‍म प्रचार की नित नई युक्तियां

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रोज़ाना फिल्‍म प्रचार की नित नई युक्तियां -अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में अनुपम खेर ने अपनी नई फिल्‍म ‘ रांची डायरीज ’ के पोस्‍टर जारी किए। इस इवेंट के लिए उन्‍होंने मुंबई के उपनगर में स्थित खेरवाड़ी को चुना। 25-30 साल पहले यह फिल्‍मों में संघर्षरत कलाकारों की प्रिय निम्‍न मध्‍यवर्गीय बस्‍ती हुआ करती थी। कमरे और मकान सस्‍ते में मिल जाया करते थे। मुंबई में अनुपम खेर का पहला ठिकाना यहीं था। यहीं 8 x 10 के एक कमरे में वे चार दोस्‍तों के साथ रहते थे। उनकी नई फिल्‍म ‘ रांची डायरीज ’ में छोटे शहर के कुछ लड़के बड़े ख्‍वाबों के साथ जिंदगी की जंग में उतरते हैं। फिल्‍म की थीम अनुपम खेर को अपने अतीत से मिलती-जुलती लगी तो उन्‍होंने पहले ठिकाने को ही इवेंट के लिए चुना लिया। इस मौके पर उन्‍होंने उन दिनों के बारे में भी बताया और अपने संघर्ष का जिक्र किया। प्रचार के लिए अतीत के लमहों को याद करना और सभी के साथ उसे शेयर करना अनुपम खेर को विनम्र बनाता है। प्रचारकों को अवसर मिल जाता है। इसी बहाने चैनलों और समाचार पत्रों में अतिरिक्‍त जगह मिल जाती है। इन दिनों प्रचारको को हर नई फिल्‍म के साथ

गूगल बता रहा है गंभीर है समस्‍या - अक्षय कुमार

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स्‍वच्‍छता अभियान की पृष्‍ठभूमि में एक प्रेहम कथा -अजय ब्रह्मात्‍मज अक्षय कुमार की टॉयलेट एक प्रेम कथा रिलीज हो रही है। हाल ही में इस फिल्‍म के पांच टीजर रिलीज किए गए,जिनसे फिल्‍म का फील मिल रहा है। यह एहसास बढ़ रही है कि अक्ष्‍य कुमार की यह फिल्‍म मनोरंजक लव स्‍टोरी होने के साथ ही एक जरूरी संदेश भी देगी। संदेश है स्‍वच्‍छता का,संडास का...हम सभी की दैनिक नित्‍य क्रियाओं में सबसे महत्‍वपूर्ण और आवश्‍यक शौचालय की उचित चर्चा नहीं होती। अक्षय कुमार की इस फिल्‍म ने शौचालय की जरूरत और अभियान की तरफ सभी का ध्‍यान खींचा है। रिलीज से पहले अक्षय कुमार इस फिल्‍म के प्रचार के लिए सभी प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। उनसे यह बातचीत फिल्‍मसिटी से जुहू स्थित उनके आवास की यात्रा के दौरान हुई। -देश में अभी स्‍वच्‍छता अभियान चल रहा है। आप की फिल्‍म ‘ टॉयलेट एक प्रेम कथा ’ का विषय भी स्‍वच्‍छता से जुड़ा है। क्‍या उस अभियान और इस फिल्‍म में कोई संबंध है ? 0 स्‍वच्‍छता,क्लीनलीनेस,टॉयलेट...या संडास कह लें। कुछ भी कहें और करें...मकसद एक ही है कि भारत को स्‍वच्‍छ करना है। अभी वह सबसे महत्