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दरअसल : पहचान का संकट है चेतन जी

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दरअसल... पहचान का संकट है चेतन जी -अजय ब्रह्मात्‍मज चेतन जी, जी हमारा नाम माधव झा है। हमें मालूम है कि आप हिंदी बोल तो लेते हैं,लेकिन ढंग से लिख-पढ़ नहीं सकते। आप वैसे भी अंगेजी लेखक हैं। बहुते पॉपुलर हैं। हम स्‍टीवेंस कालिज में आप का नावेल रिया के साथ पढ़ा करते थे। खूब मजा आता था। प्रेमचंद और रेणु को पढ़ कर डुमरांव और पटना से निकले थे। कभी-कभार सुरेन्‍द्र मोहन पाठक और वेदप्रकाश शर्मा को चोरी से पढ़ लेते थे। गुलशन नंदा,कर्नल रंजीत और रानू को भी पढ़े थे। आप तो जानबे करते होंगे कि गुलशन नंदा के उपन्‍यास पर कैगो ना कैगो फिल्‍म बना है। अभी जैसे कि आप के उपन्‍यास पर बनाता है। हम आप के उपन्‍यास के नायक हैं माधव झा। हम तो खुश थे कि हमको पर्दा पर अर्जुन कपूर जिंदा कर रहे हैं। सब अच्‍छा चल रहा था। उस दिन ट्रेलर लांच में दैनिक जागरण के पत्रकार ने मेरे बारे में पूछ कर सब गुड़-गोबर कर दिया।  उसने आप से पूछ दिया था कि झा लोग तो बिहार के दरभंगा-मधुबनी यानी मैथिल इलाके में होते हैं। आप ने माधव झा को डुमरांव,बक्‍सर का बता दिया। सवाल तो वाजिब है। आप मेरा नाम माधव सिंह या माधव उपाध्‍या

फिल्‍म समीक्षा : बेगम जान

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फिल्‍म रिव्‍यू बेगम जान अहम मुद्दे पर बहकी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म की शुरूआत 2016 की दिलली से होती है और फिल्‍म की समाप्ति भी उसी दृश्‍य से होती है। लगभग 70 सालों में बहुत कुछ बदलने के बाद भी कुछ-कुछ जस का तस है। खास कर और तों की स्थिति...फिल्‍म में बार-बार बेगम जान औरतों की बात ले आती है। आजादी के बाद भी उनके लिए कुछ नहीं बदलेगा। यही होता भी है। बाल विधवा हुई बेगम जान पहले रंडी बनती है और फिर तवायफ और अंत में पंजाब के एक राजा साहब की शह और सहाता से कोठा खड़ी करती है,जहां देश भर से आई लड़कियों को शरण मिलती है। दो बस्तियों के बीच बसा यह कोठा हमेशा गुलजार रहता है। इस कोठे में बेगम जान की हुकूमत चलती है। दुनिया से बिफरी बेगम जान हमेशा नाराज सी दिखती हैं। उनकी बातचीत में हमेशा सीख और सलाह रहती है। जीवन के कड़े व कड़वे अनुभवों का सार शब्‍दों और संवादों में जाहिर होता रहता है। कोइे की लड़कियों की भलाई और सुरक्षा के लिए परेशान बेगम जान सख्‍त और अनुशासित मुखिया है। आजादी मिलने के साथ सर सिरिल रेडक्लिफ की जल्‍दबाजी में खींची लकीर से पूर्व और पश्चिम में देश की विभाज

रोज़ाना : धरम जी समझ सकते हैं...

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रोज़ाना धरम जी समझ सकते हैं... -अजय ब्रह्मात्‍मज कल सभी अखबारों में खबर थी कि सलमान खान अपनी आत्‍मकथा नहीं लिखेंगे या यों कहें कि नहीं लिख सकते। आशा पारेख की खालिद मोहम्‍मद लिखित आत्‍मकथा ‘ द हिट गर्ल ’ के विमोचन के अवसर पर सलमान खान ने यह बयान दिया। उन्‍होंने आशा पारेख जैसी सेलिब्रिटी की तारीफ की। उन्‍होंने कहा कि आत्‍मकथा लिखना बहादुरी का काम है। मुझ से तो लाइफ में ना हो। धरम जी समझ सकते हैं.... इसके बाद हॉल में तालियां बजीं। लोग हंसे और खिलखिलाए। सलमान खान शरमाए। होंठ पोंछे और शरारती निगाहों से हॉल में मौजूद लोगों को देखा। फिर से तालियां बजीं। लगभग 20 सेकेंड के इस अंतराल में सलमान खान ने कुछ नहीं कहा,लेकिन लोगों ने सब कुछ समझ लिया। दरअसल,सलमान खान जैसी सेलिब्रिटी जब वाक्‍य अधूरा छोड़ते हैं तो आगे के शब्‍द और उनका आशय भी लोग समझ लेते हैं। आत्‍मकथा किसी भी व्‍यक्ति का वस्‍तुनिष्‍ट और निष्‍पक्ष जीवन इतिहास है,जिसे वह खुद लिखता या लिखवाता है। पहले के कवि और शायर अपनी रचनाओं में खुद के बारे में लिख देते थे। हिंदी में आत्‍मकथा की शुरूआत साहित्‍य की अन्‍य विधाओं की तरह भ

रोज़ाना : शीघ्र सेहतमंद हों अमित जी

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रोज़ाना / अजय ब्रह्मात्‍मज शीघ्र सेहतमंद हों अमित जी हर रविवार की शाम को प्रशंसक और दर्शक खिंचे चले आते हैं। धीरे-धीरे व्‍यक्तियों का समूह बढ़ता और और एक भीड़ में तब्‍दील हो जाता है। यह भीड़ अपने प्रिय अभिनेता की एक झलक और विनम्र नमस्‍कार पाने के लिए उतावली रहती है। मुंबई के उपनगर जुहू के इलाके में हर रविवार को लोगों का हुजूम अमिताभ बच्‍चन के नए आवास ‘ जलसा ’ के सामने एकत्रित होता है। पिछले कई सालों से यह सिलसिला चल रहा है। अगर अमिताभ बच्‍चन मुंबई में हों तो वे बिना नागा हाजिर होते हैं। लकड़ी के बने अस्‍थायी चबूतरे पर खड़े होकर वे सभी का अभिवादन स्‍वीकार करते हैं। पिछले रविवार 9 अप्रैल को अस्‍वस्‍थ होने की वजह से वे अपने प्रशंसकों से मुखातिब नहीं हो सके। उन्‍हें इसका अफसोस रहा और उन्‍होंने ट्वीटर,ब्‍लॉग और फेसबुक पर अपने विस्‍तारित परिवार(एक्‍सटेंडेड फमिली) से माफी मांगी। इस साल अक्‍तूबर में 75 के हो रहे अमिताभ बच्‍चन कई पहलुओं से मिसाल हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के सक्रिय कलाकारों में से एक अमिताभ बच्‍चन के दायित्‍व,कर्तव्‍य और मंतव्‍य को देख-सुन कर अचरज ही होता है

रोज़ाना : मॉडर्न क्लासिक ‘ताल’ का खास शो

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रोज़ाना / अजय ब्रह्मात्‍मज     मॉडर्न क्लासिक ‘ ताल ’ का खास शो महानगर मुंबई और इतवार की शाम। फिर भी सुभाष घई का निमंत्रण हो तो कोई कैसे मना कर सकता है ? उत्‍तर मुंबई के उपनगर से दक्षिण मुंबई मुखय शहर में जाना ही पहाड़ चढ़ने की तरह है। इसके बावजूद खुद को रोकना मुश्किल था,क्‍योंकि सुभाष धई ने अपन फिल्‍म ‘ ताल ’ देखने का निमंत्रण दिया था। सुभाष घई अब सिनेमाघर के बिजनेस में उतर आए हैं। वे पुराने सिनेमाघरों का जीर्णोद्धार कर उन्‍हें नई सुविधाओं से संपन्‍न कर रहे हें। उन्‍हें मुंबई के फोर्ट इलाके में स्थित न्‍यू एक्‍स्‍लेसियर सिंगल स्‍क्रीन में आधुनिक प्रोजेकशन और साउंड सिस्‍टम बिठा दिया है। उसयकी सज-धज भी बदल दी है। इसी सिनेमाघर में वे 1999 में बनी अपनी फिल्‍म ‘ ताल ’ दिखा रहे थे। इस खास शो में उनके साथ म्‍यूजिक डायरेक्‍टर एआर रहमान, कैमरामैन कबीर लाल, कोरियोग्राफर श्‍यामक डावर, संवाद लेखक जावेद सिद्दीकी व गायक सुखविंदर सिंह भी मौजूद रहेथ। फिल्‍ममेकिंग की रोचक और खास प्रक्रिया है। एक डायरेक्टर अपने विजन के अनुसार कलाकारों और तकनीशियन की टीम जमा करता है और फिर महीनों, क

अलहदा है बेगम का फलसफा’ : महेश भट्ट

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज श्रीजित मुखर्जी का जिक्र मेरे एक रायटर ने मुझ से किया था। उन्‍होंने कहा कि वे भी उस मिजाज की फिल्‍में बनाते रहे हैं ,   जैसी  ‘ अर्थ ’, ‘ सारांश ’ व  ‘ जख्‍म ’  थीं। उनके कहने पर मैंने  ‘ राजकहानी ’  देखी। उस फिल्‍म ने मुझे झिझोंर दिया। मैंने सब को गले लगा लिया। मैंने मुकेश ( भट्ट )  से कहा कि  ‘ राज ’ व   ‘ राज रीबूट ’  हमने बहुत कर लिया। अब  ‘ राजकहानी ’  जैसी कोई फिल्‍म करनी चाहिए। मुकेश को भी फिल्‍म अच्छी लगी। श्रीजित ने अपनी कहानी भारत व पूर्वी पाकिस्‍तान में रखी थी। रेडक्लिफ लाइन बेगम जान के कोठे को चीरती हुई निकलती है। यह प्लॉट ही अपने आप में बड़ा प्रभावी लगा। हमें लगा कि इसे पश्विमी भारत में शिफ्ट किया जाए तो एक अलग मजा होगा। हमने श्रीजित को बुलाया। फिर उन्होंने 32 दिनों में दिल और जान डालकर ऐसी फिल्‍म बनाई की क्या कहें।      मेरा यह मानना है कि हर सफर आप को आखिरकार अपनी जड़ों की ओर ले जाता है। बीच में जरूर हम ऐसी फिल्‍मों की तरफ मुड़े़ ,   जिनसे पैसे बनने थे। पैसा चाहिए भी। फिर भी लगातार फिल्‍म बनाने के लिए ,   पर रूह को छूने वाली आवाजें सुन

कॉमन मैन अप्रोच है अक्षय कुमार का - सुभाष कपूर

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कॉमन मैन अप्रोच है अक्षय कुमार का -सुभाष कपूर सबसे पहले तो मैं अक्षय कुमार को बधाई दूंगा। उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिलना खुशी की बात है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में अक्षय कुमार ऐसे अभिनेता रहे हैं,जो बार-बार ‘ राइट ऑफ ’ किए जाते रहे हैं। फिल्‍मी पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी घोषणाएं होती रही हैं। समय-समय पर कथित एक्‍सपर्ट उनके अंत की भविष्‍यवाणियां करते रहे हैं। उनके करिअर की श्रद्धांजलि लिखी गई है। अक्षय कुमार अपनी बातचीत में इसका जिक्र करते हैं। इन बातों को याद रखते हुए वे आगे बढ़ते रहे हैं। अच्‍छा है कि एक मेहनती और अच्‍छे अभिनेता की प्रतिभा को राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार ने रेखांकित किया है। अभी वे जैसी फिल्‍में कर रहे हैं,जैसे किरदार चुन रहे हैं,जैसे नए विषयों पर ध्‍यान दे रहे हैं,वैसे समय में उनको यह पुरस्‍कार मिलना बहुत मानी रखता है। अक्षय कुमार बहुत ही सरल अभिनेता हैं। वे मेथड नहीं अपनाते। वे नैचुरल और नैसर्गिक अभिनेता हैं। ‘ जॉली एलएलबी 2 ’ के अनुभव से कह सकता हूं कि वे किरदार और फिल्‍म पर लंबे विचार-विमर्श में नहीं फंसते। अपने किरदार को द

विद्या से मिलता है बेगम का मिजाज - विद्या बालन

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बेगम जान के निर्देशक श्रीजित मुखर्जी -अजय ब्रह्मात्‍मज 2010 से फिल्‍म मेकिंग में सक्रिय श्रीजित मुखर्जी ने अभी तक आठ फिल्‍में बांग्‍ला में निर्देशित की हैं। हिंदी में ‘ बेगम जान ’ उनकी पहली फिल्‍म है। जेएनयू से अर्थशास्‍त्र की पढ़ाई कर चुके श्रीजित कहानी कहने की आदत में पहले थिएटर से जुड़े। हबीब तनवीर की भी संगत की और बाद में फिल्‍मों में आ गए। बांग्‍ला में बनी उनकी फिल्‍मों को अनेक राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिल चुके हैं। महेश भट्ट से हुई एक चांस मुलाकात ने हिंदी फिल्‍मों का दरवाजा खोल दिया। वे अपनी आखिरी बांग्‍ला फिल्‍म ‘ राजकाहिनी ’ को हिंदी में ‘ बेगम जान ’ नाम से ला रहे हैं। फिल्‍म की मुख्‍य भूमिका में विद्या बालन है। मूल फिल्‍म भारत-बांग्‍लादेश(पूर्वी पाकिस्‍तान) बोर्डर की थी। अग यह भारत-पाकिस्‍तान बोर्डर पर चली आई है। पढ़ाई के बाद नौकरी तो मिडिल क्‍लास के हर लड़के की पहली मंजिल होती है। श्रीजित को बंगलोर में नौकरी मिल गई,लेकिन कहानी कहने की आदत और थिएटर की चाहत से वे महेश दत्‍तनी और अरूंधती नाग के संपर्क में आए। फिर फिल्‍मों में हाथ आजमाने के लिए मन कुलबुलाने लगा।

दरअसल : बंद हो रहे सिंगल स्‍क्रीन,घट रहे दर्शक

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दरअसल... बंद हो रहे सिंगल स्‍क्रीन,घट रहे दर्शक -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले साल की सुपरहिट फिल्‍म ‘ दंगल ’ के प्रदर्शन के समय भी किसी सिनेमाघर पर हाउसफुल के बोर्ड नहीं लगे। पहले हर सिनेमाघर में हाउसफुल लिखी छोट-बड़ी तख्तियां होती थीं,जो टिकट खिड़की और मेन गेट पर लगा दी जाती थीं। फिल्‍म निर्माताओं के लिए वह खुशी का दिन होता था। अब तो आप टहलते हुए थिएटर जाएं और अपनी पसंद की फिल्‍म के टिकट खरीद लें। लोकप्रिय और चर्चित फिल्‍मों के लिए भी एडवांस की जरूरत नहीं रह गई है। लंबे समय के बाद हाल में दिल्‍ली के रीगल सिनेमाघर में हाउसफुल का बोर्ड लगा। रीगल के आखिरी शो में राज कपूर की ‘ संगम ’ लगी थी। दिलली के दर्शक रीगल के नास्‍टेलजिया में टूट पड़े थे। आज के स्‍तंभ का कारण रीगल ही है। दिल्‍ली के कनाट प्‍लेस में स्थित इस सिंगल स्‍क्रीन के बंद होने की खबर अखबारों और चैनलों के लिए सुर्खियां थीं। गौर करें तो पूरे देश में सिंगल स्‍क्रीन बंद हो रहे हैं। जिस तेजी से सिंगल स्‍क्रीन सिनेमाघरों के दरवाजे बंद हो रहे हैं,उसी तेजी से मल्‍टीप्‍लेक्‍स के गेट नहीं खुल रहे हैं। देश में मल्‍टीप्‍लेक्‍

दरअसल : कंगना के आरोप से फैली तिलमिलाहट

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दरअसल... कंगना के आरोप से फैली तिलमिलाहट -अजय ब्रह्मात्‍मज कल कंगना रनोट का जन्‍मदिन था। रिकार्ड के मुताबिक वह 30 साल की हो गई। उनकी स्‍क्रीन एज 13 साल की है। 2004 में आई अनुराग बसु की ‘ गैंगस्‍टर ’ से उन्‍होंने हिंदी फिल्‍मों में धमाकेदार एंट्री की। 13 सालों में 31 फिल्‍में कर चुकी कंगना को तीन बार अभिनय के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिल चुके हें। अपने एटीट्यूड और सोच की वजह से वह पॉपुर फिल्‍म अवार्ड की चहेती नहीं रहीं। वह परवाह नहीं करतीं। उन अवार्ड समारोहों में वह हिस्‍सा नहीं लेतीं। मानती हैं कि ऐसे सामारोहों और इवेंट में जाना समय और पैसे की फिजूलखर्ची है। अपनी बातों और बयानों से सुर्खियों में रही कंगना रनोट ने हिंदी फिल्‍मों में खास मुकाम हासिल किया है। कह सकते हैं कि हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में बाहर से आकर अपनी ठोस जगह और पहचान बना चुकी अभिनेत्रियों में वह सबसे आगे हैं। उनकी आगामी फिल्‍म हंसल मेहता निर्देशित ‘ सिमरन ’ है। पाठकों को याद होगा कि पहली फिल्‍म ‘ गैंगस्‍टर ’ में उनका नाम सिमरन ही था। सिमरन से सिमरन तक के इस सफर से एक चक्र पूरा होता है। एक दिन देर से ही