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शबाना नाम है जिसका- तापसी पन्‍नू

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शबाना नाम है जिसका - तापसी पन्‍नू -अजय ब्रह्मात्‍मज तापसी पन्‍नू की ‘ नाम शबाना ’ भारत की पहली ‘ स्पिन ऑफ ’ फिल्‍म है। यह प्रीक्‍वल नहीं है। ‘ स्पिन ऑफ ’ में पिछली फिल्‍म के किसी एक पात्र के बैकग्राउंड में जाना होता है। तापसी पन्‍नू ने ‘ नीरज पांडेय ’ निर्देशित ‘ बेबी ’ में शबाना का किरदार निभाया था। उस किरदार को दर्शकों ने पसंद किया था। उन्‍हें लगा था कि इस किरदार के बारे में निर्देयाक को और भी बताना चाहिए था। तापसी कहती हैं, ’ दर्शकों की इस मांग और चाहत से ही ‘ नाम शबाना ’ का खयाल आया। नीरज पांडेय ने ‘ बेबी ’ के कलाकारों से इसे शेयर किया तो सभी का पॉजीटिव रेस्‍पांस था। इस फिल्‍म में पुराने लीड कलाकार अब कैमियो में हैं। दो नए किरदार जोड़े गए है,जिन्‍हें मनोज बाजपेयी और पृथ्‍वी राज निभा रहे हैं। ‘ मनोज बाजपेयी ही मुझे स्‍पॉट कर के एस्‍पीनोज एजेंसी के लिए मुझे रिक्रूट करते हैं। ‘ ’ नाम शबाना ’ की शबाना मुंबई के भिंडी बाजार की निम्‍नमध्‍यवर्गीय मुसलमान परिवार की लड़की है। उसके साथ अतीत में कुछ हुआ है,जिसकी वजह से वह इस कदर अग्रेसिव हो गई है। तापसी उसके स्‍वभाव के

बार- बार नहीं मिलता ऐसा मौका - राजकुमार राव

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राजकुमार राव -अजय ब्रह्मात्‍मज राजकुमार राव के लिए यह साल अच्‍छा होगा। बर्लिन में उनकी अमित मासुरकर निर्देशित फिल्‍म ‘ न्‍यूटन ’ को पुरस्‍कार मिला। अभी ‘ ट्रैप्‍ड ’ रिलीज हो रही है। तीन फिल्‍मों ’ बरेली की बर्फी ’ , ’ बहन होगी तेरी ’ और ‘ ओमेरटा ’ की शूटिंग पूरी हो चुकी है। जल्‍दी ही इनकी रिलीज की तारीखें घोषित होंगी। -एक साथ इतनी फिल्‍में आ रही हैं। फिलहाल ‘ ट्रैप्‍ड ’ के बारे में बताएं ? 0 ‘ ट्रैप्‍ड ’ की शूटिंग मैंने 2015 के दिसंबर में खत्‍म कर दी थी। इस फिल्‍म की एडीटिंग जटिल थी। विक्रम ने समय लिया। पिछले साल मुंबई के इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल ‘ मामी ’ में हमलोगों ने फिल्‍म दिखाई थी। तब लोगों को फिल्‍म पसंद आई थी। अब यह रेगुलर रिलीज हो रही है। -रंगमंच पर तो एक कलाकार के पेश किए नाटकों का चलन है। सिनेमा में ऐसा कम हुआ है,जब एक ही पात्र हो पूरी फिल्‍म में... 0 हां, फिल्‍मों में यह अनोखा प्रयोग है। यह एक पात्र और एक ही लोकेशन की कहानी है। फिल्‍म के 90 प्रतिशत हिस्‍से में मैं अकेला हूं। एक्‍टर के तौर पर मेरे लिए चुनौती थी। ऐसे मौके दुर्लभ हैं। फिलिकली और म

दरअसल : विरोध के नाम पर हिंसा और बयानबाजी क्‍यों?

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दरअसल... विरोध के नाम पर हिंसा और बयानबाजी क्‍यों ? -अजय ब्रह्मात्‍मज गनीमत है कि कोल्‍हापुर में संजय लीला भंसाली की ‘ पद्मावती ’ के सेट पर हुई आगजनी में किसी की जान नहीं गई। देर रात में हुड़दंगियों ने तोड़-फोड़ के बाद सेट को आग के हवाले कर दिया। संजय लीला भंसाली की टीम को माल का नुकसान अवश्‍य हुआ। कॉस्‍ट्यूम और जेवर खाक हो गए। अगली शूटिंग में कंटीन्‍यूटी की दिक्‍कतें आएंगी। फिर से सब कुछ तैयार करना होगा। ऐसी परेशानियों से हुड़दंगियों को क्‍या मतलब ? उन पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं होती तो उनका मन और मचलता है। वे फिर से लोगों और विचारों को तबाह करते हैं। देश में यह कोई पहली घटना नहीं है,लेकिन इधर कुछ सालों में इनकी आवृति बढ़ गई है। किसी भी समूह या समुदाय को कोई बात बुरी लगती है या विचार पसंद नहीं आता तो वे हिंसात्‍मक हो जाते हैं। सोशल मीडिया पर गाली-गलौज पर उतर आते हैं। सेलिब्रिटी तमाम मुद्दों पर कुछ भी कहने-बोलने से बचने लगे हैं। कोई भी नहीं चाहता कि उसके घर,परिजनों और ठिकानों पर पत्‍थर फेंके जाएं। खास कर क्रिएटिव व्‍यक्ति ऐसी दुर्घटनाओं की संभावना से बचने के लि

फिल्‍म समीक्षा : ट्रैप्‍ड

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फिल्‍म रिव्‍यू जिजीविषा की रोचक कहानी ट्रैप्‍ड -अजयं ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍मों की एकरूपता और मेनस्‍ट्रीम मसाला फिल्‍मों के मनोरंजन से उकता चुके दर्शकों के लिए विक्रमादित्‍य मोटवाणी की ‘ ट्रैप्‍ड ’ राहत है। हिंदी फिल्‍मों की लीक से हट कर बनी इस फिल्‍म में राजकुमार राव जैसे उम्‍दा अभिनेता हैं,जो विक्रमादित्‍य मोटवाणी की कल्‍पना की उड़ान को पंख देते हैं। यह शौर्य की कहानी है,जो परिस्थितिवश मुंबई की ऊंची इमारत के एक फ्लैट में फंस जाता है। लगभग 100 मिनट की इस फिल्‍म में 90 मिनट राजकुमार राव पर्दे पर अकेले हैं और उतने ही मिनट फ्लैट से निकलने की उनकी जद्दोजहद है। फिल्‍म की शुरूआत में हमें दब्‍बू मिजाज का चशमीस शौर्य मिलता है,जो ढंग से अपने प्‍यार का इजहार भी नहीं कर पाता। झेंपू,चूहे तक से डरनेवाला डरपोक,शाकाहारी(जिसके पास मांसाहारी न होने के पारंपरिक तर्क हैं) यह युवक केवल नाम का शौर्य है। मुश्किल में फंसने पर उसकी जिजीविषा उसे तीक्ष्‍ण,होशियार,तत्‍पर और मांसाहारी बनाती है। ‘ ट्रैप्‍ड ’ मनुष्‍य के ‘ सरवाइवल इंस्टिंक्‍ट ’ की शानदार कहानी है। 21 वीं सदी के दूसरे दशक में

फिल्‍म समीक्षा : बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया

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फिल्‍म रिव्‍यू दमदार और मजेदार बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया -अजय ब्रह्मात्‍मज शशांक खेतान की ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ खांटी मेनस्‍ट्रीम मसाला फिल्‍म है। छोटे-बड़े शहर और मल्‍टीप्‍लेक्‍स-सिंगल स्‍क्रीन के दर्शक इसे पसंद करेंगे। यह झांसी के बद्रीनाथ और वैदेही की परतदार प्रेमकहानी है। इस प्रेमकहानी में छोटे शहरों की बदलती लड़कियों की प्रतिनिधि वैदेही है। वहीं परंपरा और रुढि़यों में फंसा बद्रीनाथ भी है। दोनों के बीच ना-हां के बाद प्रेम होता है,लेकिन ठीक इंटरवल के समय वह ऐसा मोड़ लेता है कि ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ महज प्रेमकहानी नहीं रह जाती। वह वैदेही सरीखी करोड़ों लड़कियों की पहचान बन जाती है। माफ करें,वैदेही फेमिनिज्‍म का नारा नहीं बुलंद करती,लेकिन अपने आचरण और व्‍यवहार से पुरुष प्रधान समाज की सोच बदलने में सफल होती है। करिअर और शादी के दोराहे पर पहुंच रही सभी लड़कियों को यह फिल्‍म देखनी चाहिए और उन्‍हें अपने अभिभावकों   को भी दिखानी चाहिए। शशांक खेतान ने करण जौहर की मनोरंजक शैली अपनाई है। उस शैली के तहत नाच,गाना,रोमांस,अच्‍छे लोकेशन,भव्‍य सेट और लकदक परिधान से सजी इ

दरअसल : वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा

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दरअसल... वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा -अजय ब्रह्मात्‍मज वैदेही,अनारकली,शशि,शबाना और पूर्णा...पांच लड़कियों के नाम है। सभी अपनी फिल्‍मों में मुख्‍य किरदार है। उन्‍हें नायिका या हीरोइन कह सकते हैं। इनमें से तीन अनारकली,शबाना और पूर्णा का नाम तो फिल्‍म के टायटल में भी है। कभी हीरो के लिए ‘ इन ’ और ‘ ऐज ’ लिखा जाता था,उसी अंदाज में हम स्‍वरा भास्‍कर को ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ ,तापसी पन्‍नू को ‘ नाम शबाना ’ और अदिति ईनामदार को ‘ पूर्णा ’ की शीर्षक भूमिका में देखेंगे। वैदेही ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ की नायिका है,जिसे पर्दे पर आलिया भट्ट निभा रही हैं। शशि ‘ फिल्‍लौरी ’ की नायिका है,जिसे वीएफएक्‍स की मदद से अनुष्‍का शर्मा मूर्त्‍त रूप दे रही हैं। संयोग है कि ये सभी फिल्‍में मार्च में रिलीज हो रही है। 8 मार्च इंटरनेशनल महिला दिवस के रूप में पूरे विश्‍व में सेलिब्रेट किया जाता है। महिलाओं की भूमिका, महत्‍व और योगदान पर बातें होती हैं। हिंदी फिल्‍मों के संदर्भ में इन पांचों फिल्‍मों की नायिकाओं से परिचित होना रोचक होगा,क्‍योंकि अभी कुछ दिनो पहले ही कुख्‍यात सीबीएफसी ने ‘ लि

युवाओं के सपने और प्रेमकहानी - शशांक खेतान

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शशांक खेतान -अजय ब्रह्मात्‍मज कोलकाता में जन्‍मे और नासिक में पल-बढ़े शशांक खेतान बड़े होने पर मुंबई आ गए। यहां उन्‍होंने ह्विस्लिंग वूड इंटरनेशनल से अभिनय की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही उनकी समझ में आ गया था कि उन्‍हें लेखन और डायरेक्‍शन पर ध्‍यान देना चाहिए। पढ़ाई खत्‍म होने पर शशांक ने सुभाष घई को ‘ ब्‍लैक एंड ह्वाइट ’ और ‘ युवराज ’ में असिस्‍ट किया। कुछ समय तक वे नसीरूद्दीन शाह के साथ भी रहे। फिर यशराज की फिल्‍म ‘ इश्‍कजादे ’ में ऐ छोटी सी भूमिका निभा ली। ‘ हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया ’ कर स्क्रिप्‍ट करण जौहर को भेजी। वह उन्‍हें पसंद आ गई। इस तरह जुलाई,2014 में ‘ हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया ’ रिलीज हुई। उसमें वरुण धवन और आलिया भट्ट की जोड़ी थी। लगभीग तीन सालों के बाद फिर से उन दोनों के साथ ही वे धर्मा प्रोडक्‍शन के बैनर तले ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ लेकर आ रहे हैं। इसे वे लव फ्रेंचाइजी कह रहे हैं। शशांक खेतान को पहली फिल्‍म में ही कामयाबी और शोहरत मिली। उसके बाद के तीन सालों में कुछ तो बदला होगा। शशांक नहीं मानते कि कुछ विशेष बदला है, ’ मैं वही इंसान हूं। उसी प

हिट है हमारी जोड़ी - वरुण धवन

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हिट है हमारी जोड़ी - वरुण धवन -अजय ब्रह्मात्‍मज कायदे से अभी उन्‍हें एक्टिंग करते हुए पांच साल भी नहीं हुए हैं। अक्‍टूबर 2012 में करण जौहर के निर्देशन में बनी ‘ स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर ’ मेकं लांच हुए। तब से यह उनकी आठवीं फिल्‍म होगी। 2014 में आई शशांक खेतान की फिल्‍म ‘ हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया ’ की फ्रेंचाइजी फिल्‍म ‘ बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया ’ में वे फिर से आलिया भट्ट के साथ दिखेंगे। उनकी आठ में से तीन फिल्‍मों की हीरोइन आलिया भट्ट हैं। कह सकते हैं कि दोनों की जोड़ी पसंद की जा रही है। इध हिंदी फिल्‍मों में जोडि़यां बननी बंद हो गई हैं। वरुण व्‍यस्‍त हैं और पांच सालों में ही स्‍क्रीन पर उन्‍होंने परफारमेंस में वैरायटी दिखाई है। बातचीत की शुरूआत में सोशल मीडिया का जिक्र आ जाता है। वरुण ट्वीटर पर काफी एक्टिव हैं। वे उसका सही उपयोग करते हैं। इसके बावजूद वे कुछ अनग सोचते हैं, ’ मुझे लगता है कि सोशल मीडिया हमें एंटी सोशल बना रहा है। लोग हर बात और घटना को इंटरनेट पर डालना चाहते हैं। हमारी पूरी जिंदगी इंटरनेट तक सिमट गई है। हालांकि एक्‍टर के तौर पर पब्लिसिटी के लिए मैं भी इसका इ

वक्‍त के साथ बदला है सिनेमा - विक्रमादित्‍य मोटवाणी

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 विक्रमादित्‍य मोटवाणी -अजय ब्रह्मात्‍मज विक्रमादित्‍य मोटवाणी की ‘ लूटेरा ’ 2010 में आई थी। प्रशंसित फिल्‍में ‘ उड़ान ’ और ‘ लूअेरा ’ के बाद उम्‍मीद थी कि विक्रमादित्‍य मोटवाणी की अगली फिल्‍में फआफट आएंगी। संयोग कुछ ऐसा रहा कि उनकी फिल्‍में समाचार में तो रहीं,लेकिन फलोर पर नहीं जा सकीं। अब ‘ ट्रैप्‍ड ’ आ रही है। राजकुमार राव अभिनीत यह अनोखी फिल्‍म है। सात सालों के लंबे अंतराल की एक वजह यह भी रही कि विक्रमादित्‍य मोटवाणी अपने मित्रों अनुराग कश्‍यप,विकास बहल और मधु मंटेना के साथ प्रोडक्‍शन कंपनी ‘ फैंटम ’ की स्‍थापना और उसकी निर्माणाधीन फिल्‍मों में लगे रहे। वे अपना पक्ष रखते हैं, ’ मैं कोशिशों में लगा था। ‘ लूटेरा ’ के बाद ‘ भावेश जोशी ’ की तैयारी चल रही थी। लगातार एक्‍टर बदलते रहे और फिर उसे रोक देना पड़ा। बीच में एक और फिल्‍म की योजना भी ठप्‍प पड़ गई। प्रोडक्‍शन के काम का दबाव रहा। इन सगकी वजह से वक्‍त निकलता गया और इतना गैप आ गया। ‘ ‘ ट्रैप्‍ड ’ जैसी अपारंपरिक फिल्‍म का आयडिया कहां से आया ? हिंदी की आम फिल्‍मों से अलग संरचना और कथ्‍य की इस फिल्‍म की योज

दरअसल : क्‍यों बचते और बिदकते हैं एक्‍टर?

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दरअसल.... क्‍यों बचते और बिदकते हैं एक्‍टर ? -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म पत्रकारिता के दो दशक लंबे दौर में मुझे कई एक्‍टरों के साथ बैठने और बातें करने के अवसर मिले। पिछले कुछ सालों से अब सारी बातचीत सिर्फ रिलीज हो रही फिल्‍मों तक सीमित रहती है। एक्‍टर फिल्‍म और अपने किरदार के बारे में ज्‍यादा बातें नहीं करते। वे सब कुछ छिपाना चाहते हैं,लेकिन कम से कम पंद्रह-बीस मिनट बात करनी होती है। जाहिर सी बात है कि सवाल-जवाब की ड्रिब्लिंग चलती रहती है। अगर कभी किरदार की बातचीत का विस्‍तार एक्टिंग तक कर दो तो एक्‍टर के मुंह सिल जाते हैं। बड़े-छोटे,लोकप्रिय-नए सभी एक्‍टर एक्टिंग पर बात करने से बचते और बिदकते हैं। अगर पूछ दो कि किरदार में खुद को कैसे ढाला या कैसे आत्‍मसात किया तो लगभग सभी का जवाब होता है...हम ने स्क्रिप्‍ट रीडिंग की,डायरेक्‍टर की हिदायत पर ध्‍यान दिया,रायटर से किरदार को समझा,लेखक-निर्देशक ने रिसर्च कर रखा था...मेरा काम आसान हो गया। अमिताभ बच्‍चन से लकर वरुण धवन तक अभिनय प्रक्रिया पर बातें नहीं करते। हाल ही में ‘ सरकार3 ’ का ट्रेलर लांच था। ट्रेलर लांच भी एक शिगूफा बन क