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पिंक पोएम

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अनिरूद्ध रायचौधरी की फिल्‍म 'पिंक' में यह प्रेरक कविता है। इसे तनवीर क्‍वासी ने लिखा है।फिल्‍म में अमिताभ बच्‍चन ने इसका आेजपूर्ण पाठ किया है। फिल्‍म के संदर्भ में इस कविता का खास महत्‍व है। निर्माता शुजीत सरकार और उनकी टीम को इस प्रयोग के लिए धन्‍यवाद। हिंदी साहित्‍य के आलोचक कविता के मानदंड से तय करें कि यह कविता कैसी है? फिलहाल,'पिंक' वर्तमान समाज के प्रासंगिक मुद्दे पर बनी फिल्‍म है। लेख,निर्माता और निर्देशक अपना स्‍पष्‍ट पक्ष रखते हैं। कलाकारों ने उनके पक्ष को संजीदगी से पर्दे पर पेश किया है। तू ख़ुद की खोज में निकल , तू किस लिये  हताश है । तू चल तेरे वजूद की , समय को भी  तलाश है । जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ, समझ न इन को वस्त्र तू । यॆ बेड़ियाँ पिघाल के , बना ले इन को शस्त्र तू । चरित्र जब पवित्र है , तो कयुँ है यॆ दशा तेरी । यॆ पापियों को हक नहीं , कि ले परीक्षा तेरी । जला के भस्म कर उसे , जो क्रूरता का  जाल है । तू आरती की लौ नहीं , तू क्रोध की मशाल है । चूनर उड़ा के ध्वज बना , गगन भी कपकपाऐगा । अगर तेरी चूनर गिरी , तो एक भूकम्प आएगा

स्‍टार बनाती है हिंदी - आनंद मिश्रा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज लंबे समय तक रंगमंच पर सक्रिय रहे आनंद मिश्रा इन दिनों हिंदी फिल्‍मों के कलाकारों की हिंदी सुधारने और संवारने में लगे हुए हैं। गैरहिंदीभाषी कलाकारों को हिंदी सिखाते हैं और हिंदीभाषी कलाकारों की हिंदी मांजते हैं। वे इस काम को पूरी गंभीरता और तल्‍लीनता से निभाते हैं। 14 सितंबर के हिंदी दिवस के अवसर पर पर उन्‍होंने अपने अनुभव झंकार से शेयर किए.... - हिंदी सीखने के प्रति कलाकारों की ललक क्‍यों बढ़ रही है ? 0 नए कलाकारों में हिंदी के प्रति काफी उत्‍सुकता है। हिंदी फिल्‍मों में आने से पहले उनकी भाषा मुख्‍य रूप से अंग्रेजी या कोई और भाषा रही हो तो हिंदी सीखना जरूरी भी हो जाता है। आप देखें कि ज्‍यादातर कलाकार अंग्रेजी माध्‍यम से पढ़ कर आ रहे हैं। यहां आने पर उन्‍हें अहसास होता है कि हिंदी की प्रैक्टिस छोड़ कर उन्‍होंने सही नहीं किया। आप अगर हिंदी फिल्‍म कर रहे हैं तो हिंदी का ज्ञान तो होना ही चाहिए। -क्‍या दो से तीन महीनों में हिंदी या कोई भी भाषा सीखी जा सकती है ? 0 भाषा सीखने में तो जीवन लग जाता है। बचपन में भाषा नहीं सीखी हो तो ज्‍यादा वक्‍त लगता है। अपन

फिल्‍म समीक्षा : बार बार देखो

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पल पल में दशकों की यात्रा -अजय ब्रह्मात्‍मज नित्‍या मेहरा की फिल्‍म ‘ बार बार देखो ’ के निर्माता करण जौहर और रितेश सिधवानी-फरहान अख्‍तर हैं। कामयाब निर्माताओं ने कुछ सोच-समझ कर ही नित्‍या मेहरा की इस फिल्‍म को हरी झंडी दी होगी। कभी इन निर्माताओं से भी बात होनी चाहिए कि उन्‍होंने क्‍या सोचा था ? क्‍या फिल्‍म उनकी उम्‍मीदों पर खरी उतरी ? पल पल में दशकों की यात्रा करती यह फिल्‍म धीमी गति के बावजूद झटके देती है। 2016 से 2047 तक के सफर में हम किरदारों के इमोशन और रिएक्‍शन में अधिक बदलाव नहीं देखते। हां,यह पता चलता है कि तब स्‍मार्ट फोन कैसे होंगे और गाडि़यां कैसी होंगी ? दुनिया के डिजिटाइज होने के साथ सारी चीजें कैसे बदल जाएंगी ? यह भविष्‍य के भारत की झलक भी देती है। इसके अलावा फिल्‍म में कलाकार,परिवेश,मकान,गाडि़यों समेत सभी चीजें साफ और खूबसूरत हैं। उनमें चमक भी है। जय और दीया एक ही दिन पैदा होते हैं। आठ साल में दोनों की दोस्‍ती होती है। पढ़ाकू जय और कलाकार दीया अच्‍छे दोस्‍त हैं। दीया ज्‍यादा व्‍यावहारिक है। जय पढ़ाई और रिसर्च की सनक में रहता है। बड़े होने पर जय मैथ

फिल्‍म समीक्षा : फ्रीकी अली

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स्‍ट्रीट स्‍मार्ट -अजय ब्रह्मात्‍मज सोहेल खान की ‘ फ्रीकी अली ’ के नायक अली और एक्‍टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की कहानी और चरित्र में समानता है। फिलम का नायक हुनरमंद है। वह छह गेंद पर छह छक्‍के लगा सकता है तो गोल्‍फ में भी बॉल को होल में डाल सकता है। थोड़ी सी ट्रेनिंग के बाद वह गोल्‍फ के चैंपियन के मुकाबले में खड़ा हो जाता है। एक्‍टन नवाजुद्दीन सिद्दीकी हुनरमंद हैं। वे इस फिल्‍म में बतौर हीरो अपने समकालीनों के साथ खड़े हो गए हैं। नवाज ने पहले भी फिल्‍मों में लीड रोल किए हैं,लेकिन वे फिल्‍में मेनस्‍ट्रीम मसाला फिल्‍में नहीं थीं। मेनस्‍ट्रीम की फिल्‍मों में छोटी-मोटी भूमिकाओं से उन्‍होंने पॉपुलर पहचान बना ली है। दर्शक उन्‍हें पसंद करने लगे हैं। लेखक व निर्देश सोहेल खान ने उनकी इस पॉपुलैरिटी का इस्‍तेमाल किया है। उन्‍हें लीड रोल दिया है और साथ में अपने भार्अ अरबाज खान को सपोर्टिंग रोल दिया है। ‘ फ्रीकी अली ’ पर अलग से बात की जाए तो यह नवाजुद्दी सिद्दीकी की भी जीत की कहानी है। स्क्रिप्‍ट की सीमाओं के बावजूद नवाज अपनी प्रतिभा से फिल्‍म को रोचक बनाते हैं। उनकी संवाद अदायगी औ

दरअसल : प्रयोग बढ़ा है हिंदी का,लेकिन...

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-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में हिंदी के चलन पर इस स्‍तंभ में ‘ हिंदी दिवस ’ के अवसर पर लिखे गए रस्‍मी लेखों के अलावा भी हिंदी के चलन पर कुछ तथ्‍य आते रहे हैं। निश्चित ही धीरे-धीरे यह स्थिति बन गई है कि सेट या दफ्तर में चले जाएं तो थोड़ी देर के लिए कोई भी हिंदीभाषी वहां प्रचलित अंग्रेजी से संकोच और संदेह में आ सकता है। फिलमें जरूर हिंदी में बनती हैं,लेकिन फिल्‍मी हस्तियों के व्‍यवहार की आम भाषा अंग्रेजी हो चुकी है। बताने की जरूरत नहीं स्क्रिप्‍ट,पोस्‍टर और प्रचार अंगेजी में ही होते हैं। पिछले दिनों भारत भ्रमण पर आए एक विदेशी युवक ने अपने यात्रा संस्‍मरण में इस बात पर आश्‍चर्य व्‍यक्‍त किया कि शहर के सारे लोग हिंदी बोल रहे हैं,लेकिन दुकानों के नाम और अन्‍य साइन बोर्ड अंग्रेजी में लिखे हुए हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में अंग्रेजी के प्रति झुकाव के संबंध में कटु विचार प्रकट कर रहे हिंदीभाषियों को सबसे पहले अपने गांव,कस्‍बे और समाज में आ रहे परिवर्तन में हस्‍तक्षेप करना चाहिए। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में लगभग दो दशक के अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि

बौना न कहें मेरे हीरो को - आनंद एल राय

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-अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ तनु वेड्स मनु ’ और ‘ रांझणा ’ के निर्देशक आनंद एल राय अपनी नई फिल्‍म की तैयारियों में लगे हैं। इस बीच उनके बैनर ‘ कलर येलो ’ ने ‘ निल बटे सन्‍नाटा ’ और ‘ हैप्‍पी भग जाएगी ’ फिल्‍मों का निर्माण किया। दोनों फिल्‍में सफल रही। इस बैनर की तीसरी फिल्‍म ‘ निम्‍मो ’ भी अगले साल के आरंभ में आ जाएगी। पिछले दिनों शाह रूख खान ने एक ट्वीट से आनंद एल राय के साथ अपनी नई फिल्‍म की जानकारी दी। फिलहाल इस फिल्‍म का टायटल तय नहीं हुआ है। फिर भी कुछ खबरें रिस कर आ रही हैं। मसलन शाह रूख खान इसमें बौने की भूमिका निभाएंगे और यह फिल्‍म फिर से पश्चिम उत्‍तर प्रदेश की पृष्‍ठभूमि में होगी। -आप की अगली फिल्‍म के लिए शाह रूख खान को किस ने चुना ? कहानी ने,फिल्‍म ने,आप ने या शाह रूख ने स्‍वयं यह फिल्‍म चुनी ? 0 डायरेक्‍टर की जिंदगी में हर नई फिल्‍म कहानी से ही शुरू होती है। कहानी ने पहले मुझे चुना और फिर उसी कहानी ने उन्‍हें चुना। उसके बाद हम दोनों साथ आ गए। -शाह रूख खान के प्रति आप के झुकाव की शुरूआत कैसे हुई ? 0 पहली चंद मुलाकातों में ही स्‍पष्‍ट हो गया था कि इतने सालो

सुकून नहीं चाहता-नवाजुद्दीन सिद्दीकी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज नवाजुद्दीन सिद्दीकी ‘ फ्रीकी अली ’ में अली की शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। सोहेल खान निर्देशित इस फिल्‍म में नवाज की शीर्षक और केंद्रीय भूमिका है। उनके साथ अरबाज खान भी हैं। गोल्‍फ के पृष्‍ठभूमि में बनी ‘ फ्रिकी अली ’ एक साधारण नौजवान की कहानी है, जो चुनौती मिलने पर हैरतअंगेज काबिलियत प्रदर्शित करता है। -अली की अपनी दुनिया क्‍या है ? 0 अली की छोटी दुनिया है। उसके कोई बड़े ख्‍वाब नहीं हैं। व‍ह ऐसे माहौल में फंस जाता है कि उसे कुछ कमाल करना पड़ता है। वह साधारण नौजवान है। छोटे-मोटे काम से खुश रहता है। एक संयोग बनता है तो उसे गोल्‍फ खेलना पड़ता है। उसके अंदर टैलेंट छिपा है। वह कुछ भी कर सकता है। गोल्‍फ खेलता है तो वहां भी चैंपियन बन जाता है। -निर्देशक सोहेल खान ने अली के लिए क्‍या दायरा दिया ? 0 वह अनाथ था। एक औरत को वह मिला। उसकी जिंदगी अपनी आई(मां) तक ही महदूद है। दोनों एक-दूसरे को दिल-ओ-जान से चाहते हैं। उसकी आई उससे तंग रहती है। गलत सोहबत में वह गलत काम भी कर लेता है। वह अपने माहौल और दायरे से बाहर नहीं निकलना चाहता। मेरी आई की भूमिका सीमा विश्‍वा

लैंडमार्क धारावाहिक है ‘चाण्‍ाक्‍य’

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-अजय ब्रह्मात्‍मज दूरदर्शन से प्रसारित धारावाहिकों में ‘ चाण्‍क्‍य ’ अपनी गुणवत्‍ता और वैचारिक आस्‍वादन के लिए आज भी याद किया जाता है। पच्‍चीस साल पहले 8 सितंबर,1991 को इसका प्रसारण आरंभ हुआ था। दूरदर्शन का यह धारावाहिक प्रसारण के समय विवादित और चर्चित भी रहा। 47 वें एपीसोड के प्रसारण के बाद इसे रोक दिया गया था। लेखक-निर्देशक अपनी कथा के अंत तक नहीं पहुंच पाए थे। वह अधूरापन आज भी महसूस किया जाता है। चर्चा चलती रहती है कि चाणक्‍य के जीवन पर फिल्‍म बननी चाहिए। ‘ चाणक्‍या ’ के लेखक,निर्देशक और शीर्षक अभिनेता डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी थे। उन्‍होंने उसके बाद ‘ पिंजर ’ , ’ मोहल्‍ला अस्‍सी ’ और ‘ जेड प्‍लस ’ फिल्‍में निर्देशित कीं। इनमें ‘ मोहल्‍ला अस्‍सी ’ अभी रिलीज नहीं हुई है। प्रसारण की पच्‍चीसवीं वर्षगांठ पर डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी साझा कर रहे हैं अपनी यादें ‘ झंकार ’ के साथ.... नए मापदंड का धारावाहिक ‘ चाण्‍क्‍य ’ के प्रसारण के पच्‍चीस साल हो गए। यों मैंने 7 अप्रैल 1986 को ‘ चाणक्‍य ’ पर काम करना शुरू किया था। मैंने दूरदर्शन को कांसेप्‍ट भेजा था,जिसे रिजेक्‍ट कर दिया

दरअसल : पायरेसी,सिनेमा और दर्शक

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पारेसी के खिलाफ जंग छिड़ी है। पिछले महीनों में कुछ फिल्‍में ठीक रिलीज के पहले लीक हुईं। जाहिर है इससे उन फिल्‍मों का नुकसान हुआ। सरकार भी पायरेसी के खिलाफ चौकस है। तमाम कोशिशों के बावजूद पायरेसी का काट नहीं मिल पा रहा है। अभी नियम सख्‍त किए गए हैं। आर्थिक दंड की रकम और सजा की मियाद बढ़ा दी गई,लेकिन पायरेसी बदस्‍तूर जारी है। मुंबई की लोकल ट्रेनों में कुछ सालों पहले तक शाम के अखबार होते थे। किसी जमाने में देश में शाम सबसे ज्‍यादा अखबार मुंबई में निकला करते थे। अभी कुछ के प्रकाशन बंद हो गए। कुछ किसी प्रकार निकल रहे हैं। वे शाम के बजाए सुबह के अखबार हो गए हैं। आप शाम में इन ट्रेनों में सफर करें तो पाएंगे कि सभी अपने स्‍मार्ट फोन में लीन हैं। उनमें से अधिकांश फिल्‍में देख रहे होते हें। ताजा फिल्‍में...और कई बार तो फिलमें रिलीज के पूर्व थिएटर से पहले स्‍मार्ट फोन में पहुंच जा रही हैं। पहले अखबार बांट कर पढ़ते थे। अब फिल्‍में बांट कर देखते हैं। अपरिचितों को भी फिल्‍म फाइल ट्रांसफर करने में किसी को गुरेज नहीं होता। सिर्फ मुंबई में ही नहीं,देश के हर छ

‘अकीरा’ का अर्थ है सुंदर शक्ति - सोनाक्षी सिन्‍हा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अपनी पीढ़ी की कामयाब अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्‍हा में कुढ ऐसी बातें हैं कि वह दूसरी समकालीन अभिनेत्रियों की तरह चर्चा में नहीं रहतीं। ‘ दबंग ’ 2010 में अई थी। पिछले छह सालों में सोनाक्षी सिन्‍हा ने 15 से अधिक फिल्‍में की हैं और उनमें से ज्‍यादातर हिट रही हैं। कल उनकी ‘ अकीरा ’ आ रही है। इस फिल्‍म के पोस्‍टर और प्रचार में वह किक मारती दिखाई पड़ रही हैं। उनसे यह मुलाकात मुंबई के महबूब स्‍टूडियों में उनके वैनिटी वैन में हुई। - ‘ अकीरा ’ साइन करने की वजह क्‍या रही ? 0 मुझे इस फिल्‍म में अपना कैरेक्‍टर अच्‍छा लगा। थ्रिलिंग और एंटरटेनिंग फिल्‍म होने के साथ ही इस फिल्‍म में एक सेदंश भी है। फिल्‍म के डायरेक्टर मुर्गोदास देश के बड़े एक्‍श फिल्‍म डायरेक्‍टर हैं। उन्‍होंने इस फिल्‍म का मुझे ऑफर दिया। मुझ पर उनका विश्‍वास भी प्रेरक रहा। मेरे लिए यह बहुत बड़ी रात रही। -क्‍या बताया था उन्‍होंने ? 0 ‘ हॉलीडे ’ में मेरे काम और एक्‍शन से वे प्रभावित थे। उन्‍होंने तभी कहा था कि वे मेरे साथ अगली हिंदी फिल्‍म बनाएंगे। यह मेरे अभी तक के करिअर का सबसे चैलेंजिंग रोल