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फिल्‍म समीक्षा : सोनाली केबल

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  बड़ी मछलियां तालाब की छोटी मछलियों को निगल जाती हैं। अपना आहार बना लेती हैं। देश-दुनिया के आर्थिक विकास के इस दौर में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्थानीय उद्यमियों के व्यापार को निगलने के साथ नष्ट कर रही हैं। इस व्यापक कथा की एक उपकथा 'सोनाली केबल' में है। अपने इलाके में सोनाली केबल चला रही सोनाली ऐसी परिस्थितियों में फंसती है। फिल्म में सोनाली विजयी होती है। वास्तविकता में स्थितियां विपरीत और भयावह हैं। निर्देशक चारूदत्त आचार्य ने अपनी सुविधा से किरदार गढ़े हैं। उन्होंने प्रसंगों और परिस्थितियों के चुनाव में भी छूट ली है। तर्क और कारण को किनारे कर दिया है। सिर्फ भावनाओं और संवेगो के आधार पर ही आर्थिक आक्रमण का मुकाबला किया गया है। हम अपने आसपास देख रहे हैं कि सभी प्रकार के उद्यमों में किस प्रकार रिटेल व्यापारी मल्टीनेशनल के शिकार हो रहे हैं। सोनाली का मुकाबला मल्टीनेशनल कंपनी से है। इस मल्टीनेशनल कंपनी की नीति और समझ में सारे मनुष्य उसके ग्राहक हैं। अपने उत्पादों को उनकी जरूरत बनाने के बाद वह उनसे लाभ कमाएगी। इस

बापू की लकी बेटी श्रद्धा कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज     इस साल आई ‘एक विलेन’ और ‘हैदर’ की कामयाबी में पिछले साल की ‘आशिकी 2’ की कामयबी जोडऩे से हैटट्रिक बनती है। किसी नई अभिनेत्री के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। अब लोग का भूल गए हैं कि उन्होंने ‘तीन पत्ती’ और ‘लव का द एंड’ जैसी फिल्मों में भी काम किया था। श्रद्धा इस सफलता के साथ यह भी जानती हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हर नई रिलीज के साथ शुक्रवार को नया अध्याय आरंभ होता है। कभी कोई चढ़ता है तो कोई फिसलता है। वह कहती हैं,‘मैं फिल्म परिवार से हूं। मैंने बापू का करिअर देखा है। मेरे परिवार में और भी आर्टिस्ट हैं। फिल्में नहीं चली थीं तो परिवार ने ही ढाढस और साहस दिया। मैंने अपना ध्यान काम पर रखा। आज नतीजा सभी के सामने है। इसके लिए मैं अपने निर्देशकों और को-स्टार को सारा श्रेय देना चाहूंगी। हां,इसमें दर्शकों का प्यार भी शामिल है।’ श्रद्धा अपने पिता शक्ति कपूर को बापू पुकारती हैं।     इस बातचीत के दरम्यान अचानक शक्ति कपूर हॉल में आए तो श्रद्धा ने इतरा कर बताया,‘बापू,इंटरव्यू दे रही हूं।’ पिता के चेहरे पर खुशी,संतुष्टि और गर्व की त्रिवेणी तैर गई। चमकती आंखों से उन्होंने बेटी

बहुत अलग है लेखन और अभिनय -स्वानंद किरकिरे

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-अजय ब्रह्मात्मज     एनएसडी से डिजाइन और डायरेक्शन में डिप्लोमा लेकर मुंबई पहुंचे स्वानंद किरकिरे की आज मुख्य पहचान गीतकार की है। थिएटर के सभी विभागों से परिचित स्वानंद किरकिरे इन दिनों अभिनय पर फोकस कर रहे हैं। पिछले दिनों मुंबई की रिमझिम बारिश में यारी रोड के एक कैफे में उनसे लंबी बातचीत हुई। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की इस अनोखी प्रतिभा से हुई बातों के अंश ़ ़ ़ -इन दिनों आप का ध्यान अभिनय पर लगा है? 0 एक्टर बनने की कभी मेरी ख्वाहिश नहीं रही। अगर ऐसा होता तो मैं उसके लिए भी स्ट्रगल करता। संयोग से अभिनय के ऑफर आए तो मना करने का मन नहीं हुआ। इधर कुछ फिल्में करने के बाद मेरी ख्वाहिशें जागी हैं। मुझे अच्छा लग रहा है। पहले नाटकों में अभिनय किया ही है,इसलिए एकदम से नई बात नहीं है। -एनएसडी के दिनों के किसी नाटक का नाम बताएं? 0 रॉबिन दास के साथ मैंने ‘बाकी इतिहास’ किया था। उसमें मैं और नवाजुद्दीन सिद्दिकी हुआ करते थे। हमलोगों को पहले रोल नहीं मिला था। हम दोनों ने इम्प्रूवाइज कर अपने लिए रोल बना लिया था। रॉबिन दास आज भी उसकी तारीफ करते हैं। मुझे लगता है एक्टिंग को बोझ की तरह न लें तो आसानी स

फिल्म ‘हैदर’ पर - अरुण माहेश्वरी

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-अरुण माहेश्वरी आज सचमुच हिन्दी की एक एपिक राजनीतिक फिल्म देखी - हैदर। राजनीतिक यथार्थ और व्यक्तिगत त्रासदियों के अंतरसंबंधों की जटिलताओं की एक अनोखी कहानी। हिन्दी फिल्मों की हदों के बारे हमारी अवधारणा को पूरी तरह से धराशायी करती एक जबर्दस्त कृति। राष्ट्रवादी उन्माद की राजनीति की भारी-भरकम चट्टानों के नीचे दबे जीवन के अंदर ईर्ष्या, द्वेष, डर, आतंक, साजिशों, हत्याओं और लगातार हिंसा से विकृत हो रहे मानवीय रिश्तों का ऐसा सुगठित आख्यान, हिन्दी फिल्मों की मुख्यधारा में मुमकिन है, हम सोच नहीं सकते थे। ‘हैमलेट’ का अवलंब और कश्मीर की अंतहीन त्रासदी - मानवीय त्रासदी के महाख्यान को रचने का शायद इससे सुंदर दूसरा कोई मेल नहीं हो सकता था। विशाल भारद्वाज की इस फिल्म को देखकर तो कम से कम ऐसा ही लगता है। जब हम यह फिल्म देखने गये, उसके पहले ही सुन रखा था कि यह शेक्सपियर के ‘हैमलेट’ पर अवलंबित एक कश्मीरी नौजवान की कहानी है। हैमलेट और कश्मीर का नौजवान - इन दोनों के बारे में सोच-सोच कर ही काफी रोमांचित था। कितना सादृश्य है दोनों में! कश्मीर खुद ही हैमलेट से किस मायने में कम है ! अपनी

‘हेमलेट’ का प्रतिआख्यान रचती ‘हैदर’ - डाॅ. विभावरी.

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-डाॅ. विभावरी. पिछले दिनों में ' हैदर ' पर काफी कुछ लिखा गया...लेकिन कुछ छूटा रह गया शायद! एक ऐसे समय में जब विशाल भारद्वाज यह घोषित करते हैं कि वामपंथी हुए बिना वे कलाकार नहीं हो सकते, ‘ हैदर ’ का स्त्रीवादी-पाठ एक महत्त्वपूर्ण नुक्ता बन जाता है| अपनी फिल्म में कश्मीर को ‘ हेमलेट ’ का प्रतीक बताने वाले भारद्वाज दरअसल अपने हर पात्र में कश्मीर को टुकड़ों-टुकड़ों में अभिव्यक्त कर रहे हैं| ऐसे में गज़ाला और अर्शी की ‘ कश्मीरियत ’ न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बन जाती है बल्कि प्रतीकात्मकता के एक स्तर पर वह कश्मीर समस्या की ‘ मैग्निफाइंग इमेज ’ के तौर पर सामने आती है| ' डिसअपीयरेड ( disappeared) लोगों की बीवियां , आधी बेवा कहलाती हैं! उन्हें इंतज़ार करना होता है...पति के मिल जाने का...या उसके शरीर का... ' फिल्म में गज़ाला का यह संवाद दरअसल इस सामाजिक व्यवस्था में समूची औरत जाति के रिसते हुए घावों को उघाड़ कर रख देता है | वहीँ अपनी माँ को शक की नज़र से देखते हैदर का यह संवाद कि ' मुझे यकीन है कि आप खुद को नहीं मारतीं |' इस बात को रेखांकित करता है कि एक औरत को ही प

अमिताभ बच्‍चन : 78 सोच

अमिताभ बच्‍चव के 70वें जन्‍मदिन पर यह कोशिश की गई थी। अखबार में पूरा छाप पाना संभव नहीं हुआ था। आप पढ़ें।  १: राकेश ओमप्रकाश मेहरा २: आशुतोष राणा ३: सुरेश शर्मा ४: मनोज बाजपेयी ५: विद्या बालन ६: तिग्मांशु धूलिया ७: संजय चौहान ८: सोनू सूद ९: जयदीप अहलावत १०: राणा डग्गुबाती ११: अविनाश १२: कमलेश पांडे १३: जावेद अख्तर १४: शाजान पद्मसी १५: जरीन खान १६: शक्ति कपूर १७: श्रेयस तलपड़े १८: सोनाली बेंद १९: असिन २०: ओमी वैद्य २१: सतीश कौशिक २२: कुणाल खेमू २३: रूमी जाफरी २४: अर्चना पूरन सिंह २५: मुग्धा गोडसे २६: गौरव सोलंकी २७: गुलशन देवैया २८: रजत बरमेचा २९: रुसलान मुमताज ३०: रानी मुखर्जी ३१: सौरभ शुक्ला ३२: कल्कि ३३: सलमान खान ३४: सुजॉय घोष ३५: विवेक अग्निहोत्री ३६: रजा मुराद ३७: वरुण धवन ३८: जॉनी लीवर ३९: यशपाल शर्मा ४०: रणदीप हुड्डा ४१: ऋचा चड्ढा ४२: के के मेनन ४२: मनु ऋषि ४४: चित्रांगदा सिंह ४५: संगीत सिवन ४६: राहुल ढोलकिया ४७: राम गोपाल वर्मा ४८: मैरी कॉम ४९: जे डी चक्रवर्ती ५०: गौरी श्ंिादे ५१: करण जौहर ५२: अक्षय कुमार ५३: परेश रावल ५४: प्रीति जिंटा ५५: अर्जुन रामपाल ५६: विपुल शाह ५७: कु