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अब तक गुलजार

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        गुलजार साहब से कई बार मिलना हुआ। उनके कई करीबी अच्‍छे दोस्‍त हैं। गुलजार से आज भी अपरिचय बना हुआ है। अक्‍सरहां कोई परिचित उनसे मिलवाता है और वे तपाक से मिलते हैं। हर बार लगता है कि पहला परिचय हो रहा है। इस लिहाज से मैं वास्‍तव में गुलजार से अपरिचित हूं। यह उम्‍मीद खत्‍म नहीं हुई है कि उनसे कभी तो परिचय होगा।           आज उनका जन्‍मदिन है। गुलजार के प्रशंसकों के लिए उनसे संबंधित सारी एंट्री यहां पेश कर रहा हूं। चवन्‍नी के पाठक अपनी मर्जी से चुनें और पढ़ें। टिप्‍पणी करेंगे तो अच्‍छा लगेगा।         अतृप्‍त,तरल और चांद भावनाओं के गीतकार गुलजार को नमन। वे यों ही शब्‍दों की कारीगरी करते रहें और हमारी सुषुप्‍त इच्‍छाओं का कुरेदते और हवा देते रहें।  हमें तो कहीं कोई सांस्कृतिक आक्रमण नहीं दिखता - गुलजार  एक शायर चुपके चुपके बुनता है ख्वाब - गुलजार निराश करती हैं गुलजार से अपनी बातचीत में नसरीन मुन्‍नी कबीर सोच और सवेदना की रंगपोटली मेरा कुछ सामान कुछ खास:पौधा माली के सामने इतराए भी तो कैसे-विशाल भारद्वाज श्रीमान सत्यवादी और गुलजार        

छह लूजर्स का ख्वाब है ‘हैप्पी न्यू ईयर’- शाह रुख खान

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  - आजादी की पूर्व संध्या पर ट्रेलर लाने का कोई खास मकसद है क्या? 0 इसके टेक्निकल कारण हैैं। ‘सिंघम रिटर्न्‍स’ 15 अगस्त को रिलीज हो रही है। इसी के साथ ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का ट्रेलर आ रहा है। वितरक और मार्केटिंग टीम ही यह फैसला करती है। फिल्म का एक अलग पहलू भी है, इसमें कमर्शियल हैप्पी पैट्रियटिक फील है। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ बहुत बड़ी फिल्म है। इसमें फन, गेम और फुल एंटरटेनमेंट है। आमतौर पर बॉलीवुड की फिल्मों के बारे में दुष्प्रचार किया जाता है कि वे ऐसी होती हैैं, वैसी होती हैैं। फराह खान ने जब इस फिल्म की स्टोरी सुनाई, तभी यह तय किया गया कि बॉलीवुड के बारे में जो भी अच्छा-बुरा कहा जाता है, वह सब इस फिल्म में रहेगा। बस इसे इंटरनेशनल स्तर का बनाना है। पूरे साहस के साथ कहना है, जो उखाडऩा है, उखाड़ लो। हम यहीं खड़े हैैं। इस फिल्म में गाना है, रिवेंज है, फाइट है, डांस है... अब चूंकि समय बदल गया है, इसलिए सभी चीजों के पीछे लॉजिक भी है। उन्हें थोड़ा रियल रखा गया है। अब ऐसा नहीं होगा कि कमरा खोला और स्विटजरलैैंड पहुंच गए। हमने ऐसा विषय चुना, जिसमें बॉलीवुड के सभी तत्व डाले

फिल्‍म समीक्षा : सिंघम रिटर्न्‍स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज              रोहित शेट्टी एक बार फिर एक्शन ड्रामा लेकर आ गए हैं। तीन सालों के बाद वे 'सिंघम रिटर्न्‍स' में बाजीराव सिंघम को लेकर आए हैं। इस बीच बाजीराव सिंघम मुंबई आ गया है। उसकी पदोन्नति हो गई है। अब वह डीसीपी है, लेकिन उसका गुस्सा, तेवर और समाज को दुरुस्त करने का अभिक्रम कम नहीं हुआ है। वह मुंबई पुलिस की चौकसी, दक्षता और तत्परता का उदाहरण है। प्रदेश के मुख्यमंत्री और स्वच्छ राजनीति के गुरु दोनों उस पर भरोसा करते हैं। इस बार उसके सामने धर्म की आड़ में काले धंधों में लिप्त स्वामी जी हैं। वह उनसे सीधे टकराता है। पुलिस और सरकार उसकी मदद करते हैं। हिंदी फिल्मों का नायक हर हाल में विजयी होता है। बाजीराव सिंघम भी अपना लक्ष्य हासिल करता है।              रोहित शेट्टी की एक्शन फिल्मों में उनकी कामेडी फिल्मों से अलग कोशिश रहती है। वे इन फिल्मों में सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को पिरोने की कोशिश करते हैं। उनकी पटकथा वास्तविक घटनाओं और समाचारों से प्रभावित होती है। लोकेशन और पृष्ठभूमि भी वास्तविक धरातल पर रहती है। उनके किरदार समाज का हिस्सा होने के साथ

भारतीयता का आधुनिक अहसास - शाह रुख खान

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मेरी आगामी फिल्म ' हैप्पी न्यू इयर ' में छह किरदार हैं। फिल्म के अंदर हम खुद को इंडिया वाले बोलते हैं। मुझे यह शब्द अच्छा लग रहा है। अपनी फिल्म के लिए हमने इसे गढ़ा है। देशवासी , भारतीय , हिंदुस्तानी , इंडियन ये सब पहले से प्रचलित हैं। हम इनका इस्तेमाल करते रहे हैं। मुझे लग रहा है कि अब सब कुछ बदल रहा है तो ये शब्द भी बदल सकते हैं। भारतीय होने के मॉडर्न अहसास को यह शब्द सही तरीके से व्यक्त करता है। देशभक्ति पर मॉडर्न टेक है इंडिया वाले। हम देश के प्रति जो गर्व महसूस करते हैं वह समय के साथ आधुनिक हो गया है। पुराने समय के लोग कुछ अलग तरीके से सोचते थे। उनके लिए देशभक्ति का जो मतलब था , वह आज भी है। लेकिन अभी एक्सप्रेशन बदल गया है। मेरी हर फिल्म कामर्शियल होने के साथ कुछ अच्छी बातें भी करती हैं। मैंने कभी भी संदेश को मनोरंजन से बड़ा स्थान नहीं दिया , लेकिन मेरी हर फिल्म के आधार में नेक संदेश रहता है। उसी की वजह से मैं फिल्म करता हूं। अगर उसे कोई समझ ले तो बहुत अच्छा , जिसको अच्छा लगे वह अपना ले , जिसको बुरा लगे वह जाने दे। ' हैप्पी न्यू इयर Ó में माडर्न देशभक्ति है

...तब ज्यादा मेहनत करता हूं-रोहित शेट्टी

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दबाव में ज्यादा मेहनत करता हूं-रोहित शेट्टी -अजय ब्रह्मात्मज     रोहित शेट्टी इस दौर के कामयाब निर्देशक हैं। ‘सिंघम रिटन्र्स’ उनकी दसवीं फिल्म है। अजय देवगन और अभिषेक बच्चन के साथ उनकी पहली फिल्म ‘जमीन’ 2003 में आई थी। फिल्म को दर्शकों ने अधिक पसंद नहीं किया था। तीन सालों की तैयारी और सोच-विचार के बाद उन्होंने अजय देवगन के साथ ‘गोलमाल’ बनाई तो सभी सशंकित थे। अजय देवगन उसके पहले एक्शन स्टार या फिर इंटेस एक्टर के तौर पर जाने जाते थे। संदेह यही था कि क्या कॉमिक रोल में रोहित अजय देवगन अपने प्रशंसको और दर्शकों को संतुष्ट कर पाएंगे? आशंका तो रोहित और अजय के भी मन में थी,लेकिन उन्होंने नाप-तौल कर जोखिम उठाने की हिम्मत की थी। फिल्म चलीइ और खूब चली। इतनी चली कि अब ‘गोलमाल 4’ की बात चल रही है। उसके बाद दो और फिल्मों में रोहित को जबरदस्त कामयाबी नहीं मिली। ‘संडे’ और ‘आल द बेस्ट’ ने भी सामान्य बिजनेस किया। अभी तक रिलीज हुई उनकी नौ फिल्मों में से छह ने दर्शकों को खुश किया है। इस बीच 2011 में उन्होंने ‘सिंघम’ बना कर यह साबित कर दिया के वह केवल कॉमेडी में ही कामयाब नहीं हैं। एक्शन पर भी उनकी पकड

संग-संग : तिग्‍मांशु घूलिया-तूलिका धूलिया

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-अजय ब्रह्मात्मज तिग्‍मांशु और तूलिका की यह कहानी अत्‍यंत रोचक और रोमैंटिक है। इलाहाबाद शहर की पृष्‍ठभूमि में पनपे उनके संग-संग चलने का यह सफर प्रेरक भी है। साथ ही विवाह की संस्‍था की प्रांसिगकता भी जाहिर होती है।  तूलिका - पहली मुलाकात की याद नहीं। तब तो हमलोग बहुत छोटे थे। छोटे शहरों में लड़कियों को बाहर के लडक़ों से बात नहीं करने दिया जाता है। कोई कर ले तो बड़ी बात हो जाती है। मुद्दा बन जाता है। हम दोनों की इधर-उधर मुलाकातें होती रहती थीं। कोई ऐसी बड़ी रुकावट कभी नहीं रही। उस समय तो सबकुछ एडवेंचर लगता था। एडवेंचर में ही सफर पूरा होता चला गया। पलटकर देखूं तो कोई अफसोस नहीं है। मुझे सब कुछ मिला है। कभी कुछ प्लान नहीं किया था तो सब कुछ सरप्राइज की तरह मिलता गया। हमारा संबंध धीरे-धीरे बढ़ा। पता ही नहीं चला। हमलोग बाद में मुंबई आकर रम गए। हमारे थोड़े-बहुत दोस्त थे। उन सभी के साथ आगे बढ़ते रहे। मां-बाप की यही सलाह थी कि पहले कुछ कर लो। हर मां-बाप यही सलाह देते होंगे। अब हम भी ऐसे ही सोचते हैं। परिवार वालों को सीधी पढ़ाई और सीधी नौकरी समझ में आती है। तिग्माुशु की पढ़ाई और करिअर का

इतना तो हक़ बनता है - करीना कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज     करीना कपूर ने दस दिन पहले ‘सिंघम रिटन्र्स’ के लिए योयो हनी सिंह और अजय देवगन के साथ एक गाने की शूटिंग पूरी की है। सब की तरह उन्हें भी हनी सिंह पसंद हैं। क्यों? क्रेज है। सभी उनसे गाने गवा रहे हैं। रोति शेट्टी के साथ उन्होने ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के लिए लुंगी डांस गाना किया था। उस गाने से वे बहुत पॉपुलर हुए? करीना बताने से ज्यादा पूछ लेती हैं। वह सलमान खान की ‘किक’ के बारे में भी जानना चाहती हैं। वह मानती हैं कि सलमान खान की फिल्मों के मामले में रिव्यू बेमानी हो जाते हैं। वह सुपरस्टार हैं। वह रिव्यू के बारे में परेशान भी नहीं रहते। जिन फिल्मों को अच्छे रिव्यू मिलते हैं,उन्हें दर्शक थिएटर में देखने नहीं जाते। रिव्यू के संबंध में उनकी राय पूछने पर करीना कपूर कहती हैं,‘सभी की अपनी ओपिनियन होती है। जिन फिल्मों को पब्लिक पसंद कर लेती है,वे चलती हैं। रोहित की फिल्में खूब चलती हैं। उनको अच्छे रिव्यू नहीं मिलते। जरूरी तो नहीं है कि हर कोई क्लासी (खास रुचि) फिल्में बनाए। कुछ को मासी (जन रुचि) फिल्में बनानी चाहिए।’ करीना कपूर की धारणा में रोहित शेट्टी की फिल्मों की खास स्टायल

सरहदें लाख खिंचे दिल मगर एक ही है -महेश भट्ट

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महेश भट्ट     पूजा की मां किरण भट्ट एंगलो इंडियन खातून हैं। उन्होने कहा कि जिंदगी कमाल का चैनल है। उस पर आ रहे पाकिस्तानी सीरियल दिल को छूते हैं। इस चैनल पर आ रहे शोज के कंटेंट भारतीय चैनलों पर आ रहे सीरियल से कई गुना बेहतर हैं। यह सुन कर एहसास हुआ कि चाहे जितना वक्त लगा,लेकिन आखिरकार पाकिस्तानी कंटेंट हमारे टीवी पर आ ही गया। म्यूजिक वगैरह तो पहले से घरों में बजता रहा है।     किरण की बात से याद आया कि 2003 में हम पाकिस्तान गए थे। तब देश में एनडीए सरकार थी। एक माहौल था कि पाकिस्तान शत्रु देश है। पाकिस्तान जाना तो बहुत दूर की बात थी,उसके बारे में सकारात्मक सोच रखना भी गलत माना जाता था। बहुत लोगों ने कहा था कि क्या कर रहे हो? वहां जाओगे तो गृह मंत्रालय की निगाहों में आ जाओगे। जिंदगी को जोखिम में डाल रहे हो। मैंने यही कहा था कि क्या बम बनाना सीखने जा रहा हूं? मैं तो फिलमों के मंच पर जा रहा हूं। वहां की अवाम और फिल्ममेकर से मिलने जा रहा हूं। निडर होकर वहां जाने का मेरा संवैधानिक अधिकार है। जाने पर वहां जो ऊर्जा और प्यास देखी,वह उस वक्त यहां पर नजर नहीं आती थी। वक्त के साथ पिछड़ गए देश में

फिल्‍म समीक्षा : एंटरटेनमेंट

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कौए क किलकारी  -अजय ब्रह्मात्‍मज          फरहाद-साजिद ने रोहित शेट्टी की फिल्में लिखी हैं। अब्बास-मस्तान की तरह वे दोनों भी सहोदर भाई हैं। वे लतीफों को दृश्य बनाने में माहिर हैं, जिन्हें रोहित शेट्टी रोचक, रंगीन और झिलमिल तरीके से चित्रित करते हैं। 'गोलमाल' से 'चेन्नई एक्सप्रेस' तक के कामयाब सफर वे इस प्रकार के मनोरंजन में सिद्धहस्त हो गए हैं। फरहाद-साजिद ने रोहित शेट्टी के काम को करीब से देखा है, क्योंकि वे उस टीम का अविभाज्य हिस्सा हैं। फिल्मों से जुड़े सभी व्यक्तियों की अंदरूनी ख्वाहिश रहती है कि वह किसी दिन निर्देशक की कुर्सी पर बैठे। फरहाद-साजिद की इस ख्वाहिश को अक्षय कुमार ने हवा दी। फरहाद-साजिद ने सीने से लगा कर रखी स्क्रिप्ट निकाली और नतीजा 'एंटरटेनमेंट' के रूप में सामने आया। 'एंटरटेनमेंट' देखते हुए लग सकता है कि यह रोहित शेट्टी और साजिद खान की शैली की किसी पुरानी फोटोस्टेट मशीन से मिश्रित जेरोक्स कॉपी है, जिसमें स्याही की काली लकीर आ गए हैं और कुछ टेक्स्ट गायब हैं। यह अखिल की कहानी है। वह अपने बीमार पिता के इलाज और आजीविक

दरअसल : ईद ने पूरी की उम्मीद

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-अजय ब्रह्मात्मज     इस साल भी सलमान खान को दर्शकों ने ईदी दी। उनकी फिल्म ‘किक’ को अपेक्षा के मुताबिक पर्याप्त दर्शक मिले। इस फिल्म के साथ सलमान खान सबसे आगे निकल गए हैं। ‘किक’ 100 करोड़ क्लब में आने वाली उनकी सातवीं फिल्म है। ‘दबंग’,‘दबंग 2’,‘एक था टाइगर’,‘बॉडीगार्ड’,‘रेडी’,‘जय हो’ और अब ‘किक’ की कामयाबी ने सलमान खान को अलग और ऊंचे मुकाम पर पहुंचा दिया है। हालांकि सबसे ज्यादा बिजनेस करने का रिकार्ड अब ‘धूम 3’ के साथ है,लेकिन सलमान ने संख्या के लिहाज से बाकी दोनों खानों (आमिर और शाहरुख) को पीछे छोड़ दिया है। शाहरुख खान 4 और आमिर खान 3 100 करोड़ी फिल्मों के साथ उनसे पीछे हैं। सलमान खान ने वफादार प्रशंसकों की वजह से यह बढ़त हासिल की है। माना जाता है कि उनकी ‘जय हो’ फ्लाप फिल्म है,जबकि उसका भी कारोबार 116 करोड़ रहा। वह 100 करोड़ क्लब में 14 वें स्थान पर है। यह लगभग वही स्थिति है,जब अमिताभ बच्चन की फ्लॉप फिल्में भी दूसरे स्टारों की हिट फिल्मों से ज्यादा बिजनेस करती थीं।     पिछले कुछ सालों से सलमान खान की एक फिल्म ईद के मौके पर जरूर रिलीज होती है। ट्रेड पंडित मानते हैं कि सलमान खान के प्