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जारी है भेदभाव

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-अजय ब्रह्मात्मज न जाने कहां से चले आते हैं? हिंदी फिल्मों में कुछ करने और हुनर से कुछ हासिल करने के लिए आए हजारों महात्वाकांक्षियों को रोजाना यह सवालिया वाक्य सुनाई पड़ता है। इसके साथ ही उनकी इच्छा-आकांक्षा को कुचलने की मुहिम चालू हो जाती है। समाज के सभी क्षेत्रों में पहली पीढ़ी पांव जमाने और जगह पाने में संषर्ष,अपमान,तिरस्कार और अवहेलना से गुजरती है। विडंबना है कि दूसरी पीढ़ी के सदस्यों का रवैया नयों के प्रति बदल जाता है। उन्हें लगता है कि उनकी अर्जित और अधिकृत भूमि में कोई और क्यों आए? हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह भेदभाव अघोषित रूप से जारी रहता है। सभी नए किसी न किसी रूप में इस भेदभाव के शिकार होते हैं। पिछले दिनों एक लोकप्रिय फिल्म पत्रिका में ऋषि कपूर ने अपेक्षाकृत युवा अभिनेता को लताड़ते हुए उनकी औकात पर प्रश्नचिह्न लगाए। उनके बाप-दादा का नाम लेते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल किया। फिल्म पत्रकारिता में सारी बातों और घटनाओं को रसदार और मनोरंजक समझने वाले पत्रकारों ने इसे पुराने और नए स्टार की व्यक्तिगत लड़ाई के रूप में पेश किया। सच्चाई यह है कि ऋषि कपूर में यह अहंन्यता हिंदी फ

फिल्‍म समीक्षा : जल

कच्छ की पृष्ठभूमि में बनी गिरीश मलिक की फिल्म 'जल' रेगिस्तान के बाशिंदों की कहानी है। फिल्म का नायक बक्का को उसके गांव के लोग जल का देवता कहते हैं। वह पारंपरिक यंत्रों और अनुमान से बता सकता है कि धरती के गर्भ में कहां पानी है। जाहिर सी बात है कि वह गांव का प्यारा है। गांव की एक लड़की उससे प्रेम करती है, लेकिन उसका दिल तो पड़ोसी गांव की लड़की केसर पर आ गया है। पानी की वजह से दोनों गांवों के बीच दुश्मनी है। तपते रेगिस्तान में कछ की जिंदगी में तब हलचल आती है जब विदेश से एक टीम अप्रवासी पक्षी फ्लेमिंग के बचाव के लिए जल की मात्रा बढ़ाने के इंतजाम में वहां आती है। विदेशी टीम आरंभिक प्रयासों में विफल रहती है। स्थानीय राकला के सुझाव पर वे बक्का की मदद लेते हैं। उसके बताए स्थान पर खुदाई होती है तो पानी निकल आता है। बक्का के भाव बढ़ जाते हैं। उसे कांट्रैक्ट पर सरकारी नौकरी मिल जाती है। वह जींस-शर्ट पहनने लगता है। बाद में अपने गांव में पानी के लिए कुएं की खुदाई के दरम्यान वह मुश्किलों में फंसता है। उसकी नीयत पर शक किया जाता है। अचानक वह सभी की आंखों में खटकने लगता है। उसे ग

फिल्‍म समीक्षा : मैं तेरा हीरो

डेविड धवन, गोविंदा और सलमान खान मिल कर कामेडी, सेक्स और डबल मीनिंग डायलॉग खास किस्म की मसाला फिल्में परोसते रहे थे। सच यही है कि उनकी फिल्मों को दर्शकों ने खूब पसंद भी किया। समय के साथ तीनों तीन दिशा में बढ़ गए। इस बीच डेविड धवन के बेटे वरुण धवन को करण जौहर ने 'स्टूडेंछ आफ द ईयर' में लॉन्च किया। रिलीज के बाद सभी ने फिल्म के दूसरे हीरो सिद्धार्थ मल्होत्रा को लपक लिया। डैडी डेविड धवन मौके पर फिर से डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने वरुण धवन को फिल्म में लिया। कोई पॉपुलर हीरोइन साथ आने को तैयार नहीं हुई तो नरगिस फाखरी और और इलियाना डिक्रूज को साथ में लिया और मसाला मनोरंजन 'मैं तेरा हीरो' पेश किया। इस पृष्ठभूमि के बाद फिल्म से कोई शिकायत नहीं रहती। 'मैं तेरा हीरो' उन दर्शकों के लिए ही बनाई गई है, जो हिंदी में मसाला फिल्में देखते रहे हैं। इधर ऐसा लगने लगा था कि दर्शकों की रुचि का खयाल रखते हुए फिल्मकार नए फॉर्मूले आजमा रहे हैं। फिल्म देखते हुए कभी सलमान खान के लटकों तो कभी गोविंदा के झटकों की याद आती है। सीनु पढ़ने के लिए बेंगलुरु आता है। पहले

अनुप्रिया वर्मा के स्‍फुट विचार

चवन्‍नी के पाठकों के लिए ये विचार अनुप्रिया वर्मा के ब्‍लॉग अनुख्‍यान से लिए गए हैं। चेहरे से डर जरीन खान ने हाल ही में कुछ बातें खुल कर सामने रखीं. उन्होंने कहा कि उन्हें बॉलीवुड में काम मिलने में परेशानी इसलिए हुई. चूंकि उनके बॉलीवुड में कदम रखने से पहले ही उनकी तुलना कट्रीना कैफ से होने लगी थी. लोगों को लगने लगा कि वह एंटी कट्रीना हैं. चूंकि उन्हें लांच करनेवाले सलमान खान थे और उस वक्त सलमान और कट्रीना में अनबन चल रही थी. पहली बार किसी अभिनेत्री ने अपने मन की भड़ास निकाली है. सलमान खान ने स् नेहा उलाल को भी उस वक्त लांच किया था, जब उनकी ऐश्वर्य राय से अनबन चल रही थी और लोगों ने स्रेहा की तुलना ऐश्वर्य से कर दी थी. बाद में वे गायब सी हो गयीं. जरीन तो फिर भी कभी कभी किसी इवेंट्स में नजर आ जाती हैं. जरीन ने अपने मन की यह भी बात रखी कि उन्हें लोग कैट की डुप्लीकेट मानने लगे थे और कई बार तो उनके पास इस बात के भी आॅफर आये कि वह डुप्लीकेट किरदार निभा लें. दरअसल, जरीन जैसी कई अभिनेत्रियां इस बात की मार झेल रही हैं कि उन्हें किसी स्थापित चेहरे के पीछे अपना अस्तित्व तलाश

हीरोपंथ्‍ाी में टायगर श्राफ

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दोस्‍तों आप हैं जैकी श्राफ के सुपुत्र टायगर श्राफ। पिता ने हीरो से करिअर आरंभ किया। पुत्र की शुरुआत हीरोपंथी से हो रही है। फिल्‍म के निर्माता साजिद नाडियाडवाला और निर्देशक सब्‍बीर खान हैं।आप क्‍या साेचते हैं इस नवजात स्‍टारपुत्र के बारे में...

अंकिता के साथ जिंदगी बीतना चाहता हूं- सुशांत सिंह राजपूत

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चवन्‍नी के पाइकों के लिए यह इंटरव्‍यू रघुवेन्‍द्र सिंह के ब्‍लॉग अक्‍स से लिया गया है। सुशांत सिंह राजपूत के जीवन में टर्निंग पॉइंट रहा. काय पो चे और शुद्ध देसी रोमांस की कामयाबी ने उन्हें एक हॉट फिल्म स्टार बना दिया. रघुवेन्द्र सिंह ने की उनसे एक खास भेंट सुशांत सिंह राजपूत के आस-पास की दुनिया तेजी से बदली है. इस साल के आरंभ तक उनकी पहचान एक टीवी एक्टर की थी, लेकिन अब वह हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय फिल्म निर्माण कंपनी यशराज के हीरो बन चुके हैं. शुद्ध देसी रोमांस के बाद वह अपनी अगली दोनों फिल्में ब्योमकेष बख्शी और पानी इसी बैनर के साथ कर रहे हैं. उन पर आरोप है कि आदित्य चोपड़ा का साथ पाने के बाद उन्होंने अपने पहले निर्देशक अभिषेक कपूर (काय पो चे) से दोस्ती खत्म कर ली. डेट की समस्या बताकर वह उनकी फिल्म फितूर से अलग हो गए.  हमारी मुलाकात सुशांत सिंह राजपूत के साथ यशराज के दफ्तर में हुई. काय पो चे और शुद्ध देसी रोमांस की कामयाबी को वह जज्ब कर चुके हैं. वैसे तो इस हॉट स्टार के दिलो-दिमाग को केवल उनकी गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे ही बखूबी समझती हैं. औरों के सा

फिल्‍म समीक्षा : यंगिस्‍तान

नई सोच की प्रेम कहानी -अजय ब्रह्मात्मज     निर्माता वासु भगनानी और निर्देशक सैयद अफजल अहमद की ‘यंगिस्तान’ राजनीति और चुनाव के महीनों में राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म पेश की है। है यह भी एक प्रेम कहानी, लेकिन इसका राजनीतिक और संदर्भ सरकारी प्रोटोकोल है। जब सामान्य नागरिक सरकारी प्रपंचों और औपचारिकताओं में फंसता है तो उसकी अपनी साधारण जिंदगी भी असामान्य हो जाती है।     देश के प्रधानमंत्री का बेटा अभिमन्यु कौल सुदूर जापान की राजधानी टोकियो में आईटी का तेज प्रोफेशनल है। वहां वह अपनी प्रेमिका के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहता है। वह पूरी मस्ती के साथ जी रहा है। एक सुबह अचानक उसे पता चलता है कि उसके पिता मृत्युशय्या पर हैं। अंतिम समय में वह पिता के करीब तो पहुंच जाता है, लेकिन अगले ही दिन उसे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। पार्टी की तरफ से उसे पिता का पद संभालना पड़ता है। इस कार्यभार के साथ ही उसकी जिंदगी बदल जाती है। उसे नेताओं, अधिकारियों और जिम्मेदारियों के बीच रहना पड़ता है। वह अपनी सहचर प्रेमिका के साथ पहले की तरह मुक्त जीवन नहीं जी पाता।     जिम्मेदारी मिलने पर अभिमन्यु कौल स्थिति

फिल्‍म समीक्षा : ओ तेरी

फिल्म रिव्यू रोचक विषय का मखौल ओ तेरी -अजय ब्रह्मात्मज     उमेश बिष्ट की ‘ओ तेरी’ देखते हुए कुंदन शाह निर्देशित ‘जाने भी दो यारो’ की याद आ जाना स्वाभाविक है। उसी फिल्म की तरह यहां भी दो बेरोजगार युवक हैं। वे नौकरी और नाम के लिए हर यत्न-प्रयत्न में विफल होते रहते हैं। अखबार की संपादिका अब चैनल की हेड हो गई है। ‘ओ तेरी’ में भी एक पुल टूटता है और एक लाश के साथ दोनों प्रमुख किरदारों की मुश्किलें बढ़ती हैं।     अगर ‘ओ तेरी’ आज के सामाजिक माहौल की विसंगतियों को ‘जाने भी दो यारो’ की चौथाई चतुराई और तीक्ष्णता से भी पकड़ती तो 21 वीं सदी की अच्छी ब्लैक कामेडी हो जाती। लेखक-निर्देशक इस अवसर का इस्तेमाल नहीं कर पाते। उन्होंने अपनी कोशिश में ‘जाने भी दो यारो’ का मखौल उड़ाया है। फिल्म के प्रमुख किरदारों में पुरानी फिल्म जैसी मासूमियत नहीं है, इसलिए उनके साथ हुए छल से हम द्रवित नहीं होते। जरूरी नहीं है कि वे दूध के धूले हों लेकिन उनके अप्रोच और व्यवहार में ईमानदारी तो होनी ही चाहिए।     पुलकित सम्राट और बिलाल अमरोही दोनों प्रमुख किरदारों को जीने और पर्दे पर उतारने की कोशिश में असफल रहे हैं। समस्या

फिल्‍म समीक्षा : ढिश्‍क्‍याऊं

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  शिल्पा शेट्टी के होम प्रोडक्शन की पहली फिल्म 'ढिश्क्याऊं' पूरी तरह से क्राइम और एक्शन पर टिकी है। सनमजीत सिंह तलवार के लेखन-निर्देशन में बनी यह फिल्म मुंबई के अंडरव‌र्ल्ड को एक नए अंदाज में पेश करने की कोशिश करती है। इस बार अंडरव‌र्ल्ड को सरगना हमेशा की तरह कोई मुंबईकर नहीं है। अमूमन हम देखते रहे हैं कि सारी लड़ाई मुंबई के खास संप्रदायों से आए अपराधियों के बीच होती है। आदर्शवादी पिता के साथ रहते हुए विकी घुटन महसूस करता है। हमेशा महात्मा गांधी की दुहाई देने वाले विकी के पिता की सलाहों को अनसुना कर अपराधियों की राह चुन लेता है। बचपन की चंद घटनाओं से उसे एहसास होता है कि यह वक्त आदर्शो पर चलने का नहीं है। वह बचपन से ही गैंगस्टर बनना चाहता है। बचपन में ही उसकी मुलाकात अपराधी टोनी से होती है। टोनी पहली शिक्षा सही देता है कि कोई मारे तो उसे पलट कर मारो। इस शिक्षा पर अमल करने के साथ ही विकी खुद में तब्दीली पाता हे। टोनी उसके बारे में कहता ही है कि वह ऐसा छर्रा है, जो ट्रिगर दबाने पर कारतूस बन कर निकलेगा। 'ढिश्क्याऊं' एक भटके हुए

दरअसल : चौदहवीं का चांद की स्क्रिप्ट

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दरअसल ़ ़ ़ -अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते इस स्तंभ में फिल्मों की स्क्रिप्ट की किताबों की चर्चा की गई थी। प्रकाशकों को लगता है कि यह लाभ का धंधा नहीं है। कविता,कहानी और अन्य विषयों पर घोषणा के मुताबिक 500-1000 प्रतियां छाप कर संतुष्ट होने वाले प्रकाशकों का मानना है कि स्क्रिप्ट के खरीददार नहीं होते,जबकि छात्रों,लेखकों और शोधार्थियों की हमेशा जिज्ञासा रहती है कि उन्हें फिल्मों की स्क्रिप्ट कहां से मिल सकती है। फिल्में देखना और स्क्रिप्ट पढऩा रसास्वादन की दो अलग क्रियाएं हैं। हमें स्क्रिप्ट के महत्व को समझना चाहिए। फिल्मकारों को भी इस दिशा में ध्यान देना चाहिए। विदेशों में ताजा फिल्मों की स्क्रिप्ट भी ऑन लाइन उपलब्ध हो जाती है। इस साल ऑस्कर से सम्मानित सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट आसानी से पढ़ी जा सकती हैं। भारत में नई तो क्या पुरानी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी अध्ययन और शोध के लिए नहीं मिल पातीं।     दिनेश रहेजा और जितेन्द्र कोठारी के संपादन में ‘चौदहवीं का चांद’ की स्क्रिप्ट प्रकाशित हुई है। इसे ओम बुक्स के स्पॉटलाइट और विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन के सहयोग से छापा गया है। विनोद चोपड़ा प्रोडक्शन