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रिश्तों से वजूद है चुलबुल पांडे का - सलमान खान

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-अजय ब्रह्मात्मज     सलमान खान की लोकप्रियता  का अंदाजा इस से भी लगाया जा सकता है कि वे मुंबई में जहां मौजूद रहें, उस इमारत के बाहर खबर लगते ही भीड़ लगने लगती है। मुंबई में बाकी स्टार भी हैं, लेकिन उनके साथ हमेशा ऐसा नहीं होता। भाई (मुंबई और इंडस्ट्री में सभी उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं) की एक झलक पाने के लिए बेचैन इस भीड़ को उनकी एक मुस्कान या हाथ हिलाने से ही सुकून मिल जाता है। बहरहाल, ‘दबंग 2’ की रिलीज के ठीक पहले हुई उनसे हुई बातचीत ... -  क्या कहेंगे ‘दबंग 2’ के बारे में? 0 ‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ एक ही फिल्म है। पहली फिल्म फस्र्ट हाफ थी, यह सकेंड हाफ हे। बड़ी जगह,  बड़ा विलेन, बड़ा एक्शन और हीरोइज्म ...हमने तगड़ी नजर रखी है कि यह ओवर बोर्ड न चली जाए। चुलबुल पांडे अपना ही कैरीकेचर न बन जाए। इस बार चुलबुल पांडे के इनहेरेंट हयूमर पर ज्यादा प्ले नहीं किया है। उसकी रियल लाइफ क्वालिटी को सुपर हीरो में नहीं बदलना था। फर्स्‍ट दबंग में चुलबुल पांडे के साथ अनेक परेशानियां थी। सेकेंड दबंग में सब ठीक हो गया है। भाई से सुलह हो गई है, पिता से सहज हो गए हैं चुलबुल और उनकी शादी हो चुकी है। ऐ

हिंदी फिल्में इंग्लिश मीडिया

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों मोरक्को में मराकेश इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भारतीय सिनेमा के सौ साल के सफर पर केंद्रित इवेंट आयोजित किया गया था। नाम भारतीय सिनेमा का था। मुख्य रूप से वहां हिंदी फिल्में दिखाई गई। साथ ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कुछ स्टारों को निमंत्रित किया गया था। इस इवेंट की कवरेज के लिए भारत से केवल इंग्लिश मीडिया को आमंत्रित किया गया था। माराकेश इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के आयोजक भी जानते हैं कि हिंदी फिल्मों के लिए गैर-इंग्लिश मीडिया की कोई जरूरत नहीं है। विदेश में विदेशियों द्वारा आयोजित समारोह के अधिकारियों के फैसले की क्यों शिकायत करें? सभी जानते हैं कि भारत या अपने देश में सभी राष्ट्रभाषाओं और इंग्लिश की क्या स्थिति है? फिल्में हिंदी में बनती हैं। राजनीति हिंदी में की जाती है। सारा कंज्यूमर कारोबार हिंदी में होता है, लेकिन सभी क्षेत्रों में कामकाज की भाषा इंग्लिश हो चुकी है। इंग्लिश को मिल रही प्राथमिकता से अनेक तरह की दिक्कतें भी बढ़ती जा रही हैं। यहां हम हिंदी फिल्मों की बात करें, तो हमें आए दिन इंग्लिश में बोलते स्टार टीवी में दिखाई प

सोनाक्षी सिन्‍हा से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्मज     एक ‘जोकर’ को भूल जाएं तो सोनाक्षी की अभी तक रिलीज हुई हर फिल्म ने बाक्स आफिस पर अच्छी कमाई की है। ‘दबंग’, ‘राउडी राठौड़’ और ‘सन ऑफ सरदार’ इन तीनों फिल्मों ने 100 करोड़ से अधिक का कारोबार किया। अब उनकी ‘दबंग 2’ आ रही है। इस फिल्म के वितरण अधिकार ही 180 करोड़ में बेचे गए हैं। इसकी कामयाबी भी सुनिश्चित है। लगातार सफल फिल्में दे रही सोनाक्षी सिन्हा सफलता के नए अध्याय लिख रही हैं। इस कामयाबी के बावजूद शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी सिन्हा में गुरूर नहीं आया है। वह अब भी पहली फिल्म के समय की की तरह सहज, चुलबुली और सामान्य हैं। दिन हो या रात मुंबई हो या बंगाल  ़ ़ ़ हर समय हर जगह अपनी फिल्मों की शूटिंग में मशगूल सोनाक्षी अपनी आगे-पीछे की पीढ़ी की हीरोइनों के लिए ईष्र्या का कारण बन गई हैं। पिछले दिनों ‘वन्स अपऑन अ टाइम इन मुंबई 2’ की शूटिंग के दरम्यान उन से कुछ बातें हुईं। - एक और कामयाबी ़ ़ ़ सारी आशंकाओं के बावजूद ‘सन ऑफ सरदार’ 100 करोड़ क्लब में आ ही गई। कैसा महसूस कर रही हैं? 0 हम सभी ने बहुत मेहनत और दिल लगा कर काम किया था। ‘सन ऑफ सरदार’ के लिए फिल्म इंडस्ट्री

दबंग 2 की धमक

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;अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान की 'दबंग 2' 21 दिसंबर को रिलीज होगी। इसके निर्माता-निर्देशक उनके भाई अरबाज खान हैं, लेकिन 'दबंग 2' शुरू से आखिर तक सलमान खान की ही फिल्म रहेगी। अभी की स्थिति में आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अजय देवगन और अक्षय कुमार की फिल्मों का निर्देशक गौण हो जाता है। इन स्टारों का स्टार पॉवर इतना तगड़ा और जोरदार है कि दर्शक परवाह नहीं करते। उन्हें निर्देशकों के नाम और उनके पुराने काम की सुध नहीं रहती। उनके लिए स्टार ही काफी होता है। अपना चहेता स्टार..। स्टारडम और स्टार पॉवर की बात करें, तो अभी सलमान की टक्कर में कोई नहीं है। 'वांटेड' के बाद निरंतर सफलता का स्वाद चख रहे सलमान खान पर दर्शकों की मेहरबानी बनी हुई है। उनकी नई फिल्मों का निर्देशक कोई भी हो, नाम उन्हीं की दांव पर लगता है। 'दबंग 2' के मामले में यह दांव कुछ बड़ा और जोखिमपूर्ण हो गया है। 'दबंग' के लगभग दो साल बाद आ रही 'दबंग 2' के रिस्क फैक्टर की बात करें, तो सबसे पहला जोखिम अरबाज खान का निर्देशक बनना है। पहली 'दबंग' के निर्माता अरबाज

सिनेमा और गांधी जी

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-अजय ब्रह्मात्मज जयप्रकाश चौकसे समर्पित, प्रतिबद्ध और नियमित लेखक हैं। हिंदी फिल्मों पर उनकी टिप्पणियां रोजाना एक अखबार में छपती हैं। लाखों-करोड़ों पाठकों को उन टिप्पणियों से हिंदी फिल्मों की अंतरंग जानकारियां मिलती हैं। जयप्रकाश चौकसे पिछले 40 सालों से हिंदी फिल्मों से जुड़े हुए हैं। वे एक साथ हिंदी फिल्मों के अध्येता और व्यवसायी हैं। राजकपूर से लेकर सलीम खान तक के वे नजदीक रहे। फिल्मों की दुनिया को वे अंदर से देखते और बाहर से समझते हैं। तात्पर्य यह कि एक दर्शक की जिज्ञासा और फिल्मकार की समझदारी से लैस चौकसे हिंदी फिल्मों के सितारों, घटनाओं, प्रसंगों और उपलब्धियों का किस्सा गांव या परिवार के किसी बुजुर्ग की तरह बयान करते हैं। आप कुछ भी पूछ लें.., उनके पास रोचक जानकारियां रहती हैं। इन जानकारियों में एक तारतम्य रहता है। अगर आप उनके नियमित पाठक नहीं हैं और उनका लिखा अचानक पढ़ लें, तो संभव है उनका लेखन संश्लिष्ट न लगे। उन्हें रोज पढ़ना जरूरी है। सीमित शब्दों में कॉलम लिखने की यह चुनौती रहती है कि कई बार एक विचार या संवेदना पूरी तरह से उद्घाटित नहीं हो पाती। जयप्रकाश चौकसे पर सिनेमा

दिलीप साब! आप चिरायु हों- अमिताभ बच्चन

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जन्मदिन विशेष हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता दिलीप कुमार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के रुप में एक प्रिय प्रशंसक प्राप्त हैं. दिलीप कुमार को अमिताभ बच्चन अपना आदर्श मानते हैं. 11 दिसंबर को दिलीप कुमार जीवन के 89 बसंत पूरे कर रहे हैं. इस विशेष अवसर पर अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार के बारे में रघुवेन्द्र सिंह ने बातचीत की. अमिताभ बच्चन के शब्दों में उस बातचीत को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. मेरे आदर्श हैं दिलीप साहब दिलीप साहब को मैंने कला के क्षेत्र में हमेशा अपना आदर्श माना है, क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी जो अदाकारी रही है, उनकी जो फिल्में रही हैं, जिनमें उन्होंने काम किया है, वो सब सराहनीय हैं. मैंने हमेशा उनके काम को पसंद किया है. बचपन में जब मैं उनकी फिल्में देखा करता था, तबसे उनका एक प्रशंसक रहा हूं. मुझे उनकी सभी फिल्में पसंद हैं, लेकिन गंगा जमुना बहुत ज्यादा पसंद आई थी. जब भी मैं दिलीप साहब को देखता हूं तो मैं ऐसा मानता हूं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अगर कला को लेकर, अदाकारी को लेकर, जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो यदि किसी युग या दशक का वर्

फिल्‍म समीक्षा : खिलाड़ी 786

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  एक्शन से हंसाता -अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान की तरह अक्षय कुमार ने भी मनोरंजन का मसाला और फार्मूला पा लिया है। लग सकता है कि वे सलमान खान की नकल कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि अभी हर स्टार और डायरेक्टर एक-दूसरे की नकल से कामयाबी हासिल करने की जल्दबाजी में हैं। इस दौर में मुख्यधारा की फिल्मों में मौलिकता की चाह रखेंगे तो थिएटर के बाहर ही रहना होगा। आशीष आर. मोहन की 'खिलाड़ी 786' की प्रस्तुति में हाल-फिलहाल में सफल रही मसाला फिल्मों का सीधा प्रभाव है। जैसे कोई पॉपुलर लतीफा हर किसी के मुंह से मजेदार लगता है, वैसे ही हर निर्देशक की ऐसी फिल्में मनोरंजक लगती हैं। 'खिलाड़ी 786' का लेखन हिमेश रेशमिया ने किया है। वे इसके निर्माताओं में से एक हैं। सेकेंड लीड में वे मनसुख भाई के रूप में भी दिखाई पड़ते हैं। पिछली कुछ फिल्मों में दर्शकों द्वारा नापसंद किए जाने के बाद पर्दे पर आने का उन्होंने नया पैंतरा अपनाया है। फिल्म के प्रचार में दावा किया गया कि यह अक्षय कुमार की 'खिलाड़ी' सीरिज की फिल्म है, लेकिन यह दावा फिल्म के टायटल और एक संवाद तक ही सीमित है। '

संग-संग : विवेक ओबेराय-प्रियंका अल्‍वा ओबेराय

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-अजय ब्रह्मात्मज  फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय की पत्नी हैं प्रियंका अल्वा। दो साल पहले उनकी शादी हुई। प्रियंका गैरफिल्मी परिवार से हैं। दोनों की पहली मुलाकात में किसी फिल्मी संयोग की तरह रोमांस जगा और वह जल्दी ही शादी में परिणत हो गया। आरंभ में विवेक ओबेरॉय के प्रति प्रियंका थोड़ी सशंकित थीं कि फिल्म स्टार वास्तव में असली प्रेमी और पति के रूप में न जाने कैसा होगा? फिल्म सितारों के रोमांस और प्रेम के इतने किस्से गढ़े और पढ़े जाते हैं कि प्रियंका की आशंका को असहज नहीं माना जा सकता। इस मुलाकात में दोनों ने दिल खोलकर अपनी शादी, रोमांस और दांपत्य जीवन पर बातें की हैं।   विवेक : अमेरिका के फ्लोरेंस में एक सेतु है। उसका नाम है सांटा ट्रीनीटा, जिसे सामान्य अंग्रेजी में होली ट्रीनीटी कहेंगे। हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति है। वैसे ही वह एक पवित्र त्रिमूर्ति सेतु है। हम पहली बार वहां मिले। उस सेतु ने हमे जोड़ दिया। सूर्यास्त के पहले हम दोनों बातें करने बैठे। यही कोई साढ़े पांच बजे का समय रहा होगा। इन्हें आते देखकर मन में एक अहंकार जागा कि यार मम्मी-पापा ने कहां फंसा द

प्रदेशों के ब्रांड एंबेसडर बनते फिल्म स्टार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  जिस रफ्तार और प्रभाव से फिल्म स्टार को प्रदेशों के ब्रांड एंबेसडर बनाने की रुचि बढ़ रही है, उससे लगता है कि जल्दी ही हर प्रदेश का अपना एक ब्रांड एंबेसडर होगा। जरूरी नहीं है कि वह ब्रांड एंबेसडर उसी प्रदेश का मूल निवासी हो। हम देख रहे हैं कि अमिताभ बच्चन गुजरात के और शाहरुख खान बंगाल के ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। आंकड़े बताते हैं कि इन फिल्म स्टारों के ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किए जाने के बाद संबंधित प्रदेशों के पर्यटन में बढ़ोतरी हुई है। खासकर गुजरात ने नियोजित और व्यवस्थित तरीके से अमिताभ बच्चन की लोकप्रिय छवि का इस्तेमाल किया और देशवासियों समेत विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित किया। इस बात ने अन्य प्रदेशों को फिल्म स्टार की तरफ मुखातिब किया। ममता बनर्जी ने पहल की। उन्होंने कोलकाता की आईपीएल टीम के मालिक शाहरुख खान को ऑफर दिया। शाहरुख खान ने उस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। दरअसल, स्थिरता, सुरक्षा, शांति के बाद हर प्रदेश समृद्धि के लिए प्रयासरत और अग्रसर होता है। गुजरात में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रदेश की विवादास

रीमा कागती से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्मज - फिल्म इंडस्ट्री में पहली फिल्म थोड़ी आसानी से मिल जाती है। दिक्कत दूसरी फिल्म में होती है। क्योंकि पहले के प्रदर्शन के आधार पर सारी चीजें तय होती है। आपकी दूसरी फिल्म ‘तलाश’ है, जो हर लिहाज से बड़ी फिल्म है। कैसे मुमकिन हुआ यह? 0 मेरी पहली फिल्म ‘हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड’ छोटी और खास फिल्म थी। उसे सीमित सफलता मिली थी। वह पसंद भी की गई थी। ऐसा नहीं था कि उसके बाद मैंने किसी बड़ी फिल्म की प्लानिंग की। दूसरी फिल्म की मुश्किलों के बारे में आपकी राय सही है, लेकिन कई बार उल्टा भी होता है। इसी प्रोडक्शन में जोया अख्तर पहली फिल्म बनाने में सालों लग गए, लेकिन दूसरी फिल्म फटाफट बन  गई। मुझे पहली फिल्म में कोई मुश्किल नहीं हुई। ‘तलाश’ को फ्लोर पर लाने में समय लग गया। - क्या ‘तलाश’ की प्लानिंग में शुरू से आमिर खान थे? 0 जोया के साथ जब हमने यह फिल्म लिखनी शुरू की तो आमिर खान ही हमारे दिमाग थे। स्क्रिप्ट तैयार होने पर रितेश ने आमिर खान को फोन किया तो उन्होंने इसे सुनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अभी मैं ‘गजनी’ कर रहा हूं। उसके बाद एक छोटी फिल्म ‘धोबी घाट’ करूंगा।