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प्रियंका चोपड़ा के संग अंतरंग बातें और पल

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फिल्‍म समीक्षा : ओह माय गॉड

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प्रपंच तोड़ती, आस्था जगाती -अजय ब्रह्मात्मज परेश रावल गुजराती और हिंदी में 'कांजी वर्सेस कांजी' नाट सालों से करते आए हैं। उनके शो में हमेशा भीड़ रहती है। हर शो में वे कुछ नया जोड़ते हैं। उसे अद्यतन करत रहते हैं। अब उस पर 'ओह माय गॉड' फिल्म बन गई। इसे उमेश शुक्ला ने निर्देशित किया है। फिल्म की जरूरत के हिसाब से स्क्रिप्ट में थोड़ी तब्दीली की गई है। नाटक देख चुके दर्शकों को फिल्म का अंत अलग लगेगा। वैसे नाटक में इस अंत की संभावना जाहिर की गई है। उमेश शुक्ल के साथ परेश रावल और अक्षय कुमार के लिए 'ओह माय गॉड' पर फिल्म बनाना साहसी फैसला है। धर्मभीरू देश केदर्शकों के बीच ईश्वर से संबंधित विषयों पर प्रश्नचिह्न लगाना आसान नहीं है। फिल्म बड़े सटीक तरीके से किसी भी धर्म की आस्था पर चोट किए बगैर अपनी बात कहती है। फिल्म का सारा फोकस ईश्वर के नाम पर चल रहे ताम-झाम और ढोंग पर है। धर्मगुरू बने मठाधीशों के धार्मिक प्रपंच को उजागर करती हुई 'ओह माय गॉड' दर्शकों को स्पष्ट संदेश देती है कि ईश्वर की आराधना की रुढि़यों और विधि-विधानों से निकलने की जरूरत है।

ईश्वर है तो झगड़े-फसाद क्यों?

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-अजय ब्रह्मात्मज भावेश मांडलिया के नाटक ‘कांजी वर्सेज कांजी’ नाटक पर आधारित उमेश शुक्ला की फिल्म ‘ओह माय गॉड’ में परेश रावल और अक्षय कुमार फिर से साथ आ रहे हैं। दोनों ने अभी तक 32 फिल्मों में एक साथ काम किया है। दोनों की केमिस्ट्री देखते ही बनती है। ‘ओह माय गॉड’ के संदर्भ में अक्षय कुमार ने स्वयं परेश रावल से इस फिल्म के बारे में बात की। कुछ सवाल परेश ने भी अक्षय से पूछे। अक्षय- परेश, आप को इस नाटक में ऐसी क्या खास बात दिखी कि आपने इसके इतने मंचन किए और अब फिल्म आ रही है? परेश-बहुत कम मैटेरियल ऐसे होते हैं, जो सोचने पर मजबूर करते हैं। मनोरंजन की दुनिया में हमलोग लोगों को हंसाने-रूलाने का काम करते रहते हैं। यह नाटक और अब फिल्म लोगों को उससे आगे जाकर सोचने पर मजबूर करेगी। इस नाटक के मंचन में मैंने हमेशा कुछ नया जोड़ा है। अभी पिछले शो में एक महत्वपूर्ण दर्शक ने कहा कि मंदिर का मतलब क्या होता है? जो मन के अंदर है, वही मंदिर है। अक्षय- सही कह रहे हो। जो मन के अंदर है वही मंदिर है। भगवान तो हमारे अंदर बैठा हुआ है। परेश, आप का नाटक देखने के बाद मैंने भगवान को ज्यादा अच्छी तरह समझा। अ

धार्मिक प्रतीकों को दोहन

-अजय ब्रह्मात्मज गणेश भक्त मधुर भंडारकर हमेशा मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर और गणपति पूजा के समय पंडालों में नजर आते हैं। इस बार ‘हीरोइन’ की रिलीज के पहले करीना कपूर के साथ गणपति का आशीर्वाद लेने वे कुछ पंडालों में गए। उन्होंने अपनी फिल्म का म्यूजिक भी सिद्धिविनायक मंदिर में रिलीज किया था। किसी निर्माता-निर्देशक या कलाकार की धार्मिक अभिरुचि से कोई शिकायत नहीं हो सकती, लेकिन जब उसका इस्तेमाल प्रचार और दर्शकों को प्रभावित करने के लिए किया जाने लगे तो कहीं न कहीं इस पूरी प्रक्रिया का पाखंड सामने आ जाता है। सिर्फ मधुर भंडारकर ही नहीं, दूसरे निर्माता-निर्देशक और कलाकार भी आए दिन अपनी निजी धार्मिक भावनाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं। साथ ही उनकी कोशिश रहती है कि ऐसे इवेंट की तस्वीरें मुख्य पत्र-पत्रिकाओं में जरूर छपें। अभी तक किसी ने धार्मिक प्रतीकों और व्यवहार से प्रभावित हुए दर्शकों का आकलन और अध्ययन नहीं किया है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि देश के धर्मभीरू दर्शक ऐसे प्रचार से प्रभावित होते हैं।     फिल्मों के प्रचार-प्रसार और कंटेंट में धार्मिक प्रतीकों का शुरू से ही इस्तेमाल होता र

रानी मुखर्जी का दिलखोल इंटरव्‍यू

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-अजय ब्रह्मात्मज -‘अय्या’के फर्स्‍ट   लुक को लोगों ने काफी पसंद किया है।आप को कैसी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं? 0 फर्स्‍ट लुक आने के बाद से मेरे दोनों मोबाइल फोन लगातार बज रहे हैं। फिल्म इंडस्ट्री और देश-विदेश से दोस्तों और परिचितों के फोन आ रहे हैं। वे चीख-चीखकर बता रहे हैं कि उन्हें बहुत हंसी आई। बहुत कम ऐसा होता है कि ट्रेलर देखकर इतना आनंद आए। मेरे दोस्तों ने तो कहा कि उन्होंने लुप में ‘अय्या’ के ट्रेलर देखे। मुझे अभी तक काफी पॉजीटिव रिस्पॉन्स मिले हैं। मीडिया बिरादरी के कई लोगों ने फोन किया। मैंने देखा है कि जब मीडिया के लोग पॉजीटिव रिस्पॉन्स देते हैं, तो फिल्म में कुछ खास बात होती है। ऐसा लग रहा है कि सभी मेरी फिल्म के इंतजार में थे। सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी मैंने आम दर्शकों के रिएक्शन देखे। दो प्रतिशत लोगों ने मेरी आलोचना की है। बाकी 98 प्रतिशत को फस्र्ट लुक अच्छा लगा। - इस पॉजीटिव रिएक्शन की वजह क्या मानते हैं? यह सिर्फ फर्स्‍ट  लुक का कमाल है या रानी मुखर्जी के प्रति लोगों का प्रेम? सलमान खान ने एक बार कहा था कि मेरी फिल्म की झलक देखते समय भी दर्शकों के दिमागमें मेरी पू

सिनेमा सोल्यूशन नहीं सोच दे सकता है: टीम चक्रव्यूह

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- दुर्गेश सिंह निर्देशक प्रकाश झा ताजातरीन मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाने के लिए जाने जाते रहे हैं। जल्द ही वे दर्शकों के सामने नक्सल समस्या पर आधारित फिल्म चक्रव्यूह लेकर हाजिर हो रहे हैं। फिल्म में अर्जुन रामपाल पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं तो अभय देओल और मनोज वाजपेयी नक्सल कमांडर की भूमिका में। फिल्म की लीड स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक प्रकाश झा से पैनल बातचीत: अभय देओल मैं अपने करियर की शुरुआत से ही ऐक्शन भूमिकाएं निभाना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कोई किरदार मुझे नहीं मिला। यदि मिला भी तो उसमें ऐक्शन भूमिका का वह स्तर नहीं था। हिंदी सिनेमा में अक्सर ऐसा होता है कि लोग ऐक्शन के बहाने में कहानी लिखते हैं और उसको ऐक्शन फिल्म का नाम दे देते हैं। मुझे ऐसा किरदार बिल्कुल ही नहीं निभाना था। चक्रव्यूह में कहानी के साथ ऐक्शन गूंथा हुआ है। मुझे अभिनय का स्केल भी यहां अन्य फिल्मों से अलग लगा। मुझे यह नहीं पता था कि मेरा लुक कैसा होने वाला है। मैंने कई बार सोचा कि अगर नक्सल बनने वाला हूं तो कौन सी वर्दी पहनूंगा और कितनी फटी हुई होगी। फिर यहीं पर प्रकाश जी अन्य निर्देशकों से

फिल्‍म समीक्षा : हीरोइन

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-अजय ब्रह्मात्‍मज कल तक हीरोइन की हर तरफ चर्चा थी। निर्माण के पहले हीरोइनों की अदला-बदली से विवादों में आ जाने की वजह से फिल्म के प्रति जिज्ञासा भी बढ़ गई थी। और फिर करीना कपूर जिस तरह से जी-जान से फिल्म के प्रचार में जुटी थीं, उस से तो यही लग रहा था कि उन्होंने भी कुछ भांप लिया है। रिलीज के बाद से सारी जिज्ञासाएं काफूर हो गई हैं। मधुर भंडारकर की हीरोइन साधारण और औसत फिल्म निकली। हीरोइन उनकी पिछली फिल्मों की तुलना में कमजोर और एकांगी है। मधुर भंडारकर के विषय भले ही अलग हों,पर उनकी विशेषता ही अब उनकी सीमा बन गई है। वे अपनी बनाई रुढि़यों में ही फस गए हैं। सतही और ऊपरी तौर पर हीरोइन में भी रोमांच और आकर्षण है,लेकिन लेखक-निर्देशक ने गहरे पैठने की कोशिश नहीं की है। हीरोइनों से संबंधित छिटपुट सच्चाईयां हम अन्य फिल्मों में भी देखते रहे हैं। यह फिल्म हीरोइन पर एकाग्र होने के बावजूद हमें उनसे ज्यादा कुछ नहीं बता या दिखा पाती। हीरोइन कामयाब स्टार माही अरोड़ा की कहानी है। माही मशहूर हैं। शोहरत, ग्लैमर और फिल्मों से भरपूर माही की जिंदगी में कायदे से उलझनें नहीं होनी चाहिए। हमें एक फिल्म पत्

सिंगर प्रियंका चोपड़ा

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- अजय ब्रह्मात्मज फिल्म पत्रकारिता में स्टारों, निर्देशकों और तकनीशियनों से बार-बार की मुलाकात में कुछ आप के प्रिय हो जाते हैं। प्रियंका चोपड़ा उनमें से एक हैं। राज कंवर ने मिस वल्र्ड प्रियंका चोपड़ा और मिस यूनिवर्स लारा दत्ता के साथ ‘अंदाज’ शुरू की थी। उसमें उनके हीरो अक्षय कुमार थे। फिल्मालय स्टूडियो में इस फिल्म के सेट पर उन दिनों प्रियंका चोपड़ा अपने माता-पिता के साथ आती थीं। उनके माता-पिता ने बेटी के करियर के लिए बड़ा फैसला लिया था। वे बेटी को सहारा और आसरा देने के लिए सब कुछ छोडक़र मुंबई आ गए थे।     उस पहली मुलाकात में ही प्रियंका चोपड़ा ने प्रभावित किया था। एक लगाव सा महसूस हुआ  था। मिडिल क्लास मूल्यों की प्रियंका चोपड़ा की बातों में छोटे शहरों में बिताए दिनों की प्रतिध्वनि सुनी जा सकती थी। मिस वल्र्ड खिताब से मिले एक्सपोजर और अमेरिका में स्कूल की पढ़ाई करने के बाद भी प्रियंका चोपड़ा में एक कस्बाई लडक़ी थी। इसे आप देख सकते हैं। बातें करने, इठलाने, मुस्कुराने, झेंपने, खिलखिलाने और एहसास में उत्फुल्लता नजर आती है। प्रियंका चोपड़ा ने गिरते-पड़ते और आगे बढ़ते हुए ‘बर्फी’ तक का

आइटम नंबर भी गाएंगे : रूना लैला व आबिदा परवीन

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-अमित कर्ण बांग्लादेश की प्रख्यात गायिका रूना लैला और पाकिस्तान की अजीमो-शान आबिदा परवीन अगले कुछ महीनों तक भारत में नजर आने वाली हैं। कलर्स के सिंगिंग रिएलिटी शो ‘सुर-क्षेत्र’ में दोनों आशा भोंसले के संग जज की भूमिका में हैं। इस शो में भारत और पाकिस्तान के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। दोनों का मानना है कि इन दिनों आइटम नंबर का जलवा है, लेकिन लंबी रेस में मेलोडी ही सस्टेन करेगी। -संगीत क्या है? रूना:- यह इबादत का, प्यार का पैगाम फैलाने का सबसे नायाब जरिया है। यह समाज, राष्ट्र और दुनिया को जोडऩे वाली कड़ी है। म्यूजिक प्रिचेज लव। इस शो में भी हम वही रखने की कोशिश कर रहे हैं। मौसिकी के जरिए हम सब एक हो सकते हैं। इसकी मिसाल भी क्रॉस-बॉर्डर शो में देखने को मिलते हैं। वहां विभिन्न मुल्कों के प्रतिभागी साथ गा रहे हैं। खाना खा रहे हैं। हंसी-मजाक करते हैं। कोई अंतर महसूस नहीं होता। मेरे ख्याल से संगीत के जरिए हम आपसी कड़वाहट कम कर सकते हैं। सियासी लोगों से एक ही दरख्वास्त है कि संगीत को संगीत ही रहने दें, इसे सियासत का नाम न दें। आबिदा:- यह मेरे लिए परवरदिगार की ईजाद है। इसके चलते पूरी

मुझे फिल्मों में ही आना था- राज कुमार

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-अजय ब्रह्मात्मज उन्होंने अपने नाम से यादव हटा दिया है। आगामी फिल्मों में राज कुमार यादव का नाम अब सिर्फ राज कुमार दिखेगा। इसकी वजह वे बताते हैं, ‘पूरा नाम लिखने पर नाम स्क्रीन के बाहर जाने लगता है या फिर उसके फॉन्ट छोटे करने पड़ते हैं। इसी वजह से मैंने राज कुमार लिखना ही तय किया है। इसके अलावा और कोई बात नहीं है।’ राज कुमार की ताजा फिल्म ‘शाहिद’ इस साल टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई। पिछले दिनों अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर-2’ में उन्होंने शमशाद की जीवंत भूमिका निभाई। उनकी ‘चिटगांव’ जल्दी ही रिलीज होगी। एफटीआईआई से एक्टिंग में ग्रेजुएट राज कुमार ने चंद फिल्मों से ही, अपनी खास पहचान बना ली है। इन दिनों वे ‘काए पो चे’ और ‘क्वीन’ की शूटिंग कर रहे हैं।     -आप एफटीआईआई के ग्रेजुएट हैं, लेकिन आप की पहचान मुख्य रूप से थिएटर एक्टर की है। ऐसा माना जाता है कि आप भी एनएसडी से आए हैं? 0 इस गलतफहमी से मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। दरअसल शुरू में लोग पूछते थे कि आप ने फिल्मों से पहले क्या किया है, तो मेरा जवाब थिएटर होता था। फिल्मों में लोग थिएटर का मतलब एनएसडी ही समझते हैं, इसल