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स्वानंद किरकिरे से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

- आपको राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। राष्ट्रीय पुरस्कार एक तरीके से बहुत बड़ी पहचान होती है। आप किस रूप में देखते हैं इसे ? 0 हर पुरस्कार के बारे में बातें होती है कि ये पुरस्कार ठीक नहीं है , वो पुरस्कार ठीक नहीं है , लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार के बारे में ऐसा कुछ नहीं कह सकते। यह बड़ी प्रतिष्ठा की बात होती है कि किसी काम को राष्ट्रीय पहचान मिले। राष्ट्रीय पंरस्कार मिलता है तो उसका सुख अलग है। सुख से ज्यादा एक संतुष्टि की भावना होती है। मैं चला था इंदौर से और यहां आकर मैंने काम करना शुरू किया था। इतनी जल्दी इस कैरियर में इतना बड़ा पुरस्कार मिल जाए , इसकी उम्मीद भी नहीं थी और न कभी आकांक्षा थी। घर-परिवार के लिए बहुत खुशी की बात है। सभी लोगों को लगा कि स्वानंद सही जगह पर गया हुआ है। दूसरी बात यह होती है कि राष्ट्रीय पुरस्कार में पूरे हिंदुस्तान की फिल्में रहती हैं। उनके साथ आपकी प्रतियोगिता रहती है। यह किसी और फिल्म पुरस्कार की तरह नहीं है कि आपकी फिल्म कितनी चली है या गाना कितना हिट हुआ है ? या आप किस लॉबी में बैठे हुए हैं या किसके साथ आपने काम किया है ? असके साथ किया है तो आपको अवार

दरअसल : म्यूजिकल फिल्म पंचम अनमिक्स्ड

-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्मों की पत्रकारिता ही नहीं, इतिहास, शोध और विश्लेषण में भी हम ज्यादातर हीरो-हीरोइनों पर ही फोकस करते हैं। कभी-कभी ही ऐसी कोशिश होती है, जिसमें निर्देशक और गायकों पर ध्यान दिया जाता है। इनके बाहर हम जा ही नहीं पाते। ऐसा माना जाता है कि पाठकों की रुचि तकनीकी विषय और तकनीशियनों में नहीं है। वे सिर्फ अपने स्टारों के बारे में ही पढ़ना चाहते हैं। इस माहौल में ब्रह्मानंद सिंह की अपारंपरिक कोशिश सराहनीय है। उन्होंने आर डी बर्मन पर पंचम अनमिक्स्ड नाम की फिल्म बनाई है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में ब्रह्मानंद हमें आर डी बर्मन के सुरीले जादुई संसार में ले जाते हैं। हम संगीतकार आर डी बर्मन से परिचित होते हैं। उनके समकालीन गीतकार, संगीतकार, गायक और संगीतज्ञों की बातचीत और नजरिए को एक सोच के साथ संपादित कर ब्रह्मानंद सिंह ने इतनी सटीक फिल्म बनाई है कि हम आर डी बर्मन यानी पंचम दा की सांगीतिक प्रतिभा को समझ पाते हैं। यह फिल्म दूसरे वृत्तचित्रों की तरह श्रेष्ठ संगीतकार की रचनाओं का सामान्य आकलन भर नहीं करती। हम उनके सहकर्मी और शार्गिदों के सौजन्य से उनके संगीत की बारीकियों को

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

- अजय ब्रह्मात्मज सिस्टम खास कर एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती और उसके अंतर्विरोधों का मखौल उड़ाती राजकुमार हिरानी की 3 इडियट्स शिक्षा और जीवन के प्रति एक नजरिया देती है। राजकुमार हिरानी की हर फिल्म किसी न किसी सामाजिक विसंगति पर केंद्रित होती है। यह फिल्म ऊंचे से ऊंचा मा‌र्क्स पाने की होड़ के दबाव में अपनी जिंदगियों को तबाह करते छात्रों को बताती है कि कामयाबी के पीछे भागने की जरूरत ही नहीं है। अगर हम काबिल हो जाएं तो कामयाबी झख मार कर हमारे पीछे आएगी। 3 इडियट्स अनोखी फिल्म है, जो हिंदी फिल्मों के प्रचलित ढांचे का विस्तार करती है। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी इस फिल्म में नए कथाशिल्प का प्रयोग करते हैं। राजू रस्तोगी,फरहान कुरैशी और रणछोड़ दास श्यामल दास चांचड़ उर्फ रैंचो इंजीनियरिंग कालेज में आए नए छात्र हैं। संयोग से तीनों रूममेट हैं। रैंचो सामान्य स्टूडेंट नहीं है। सवाल पूछना और सिस्टम को चुनौती देना उसकी आदत है। वह अपनी विशेषताओं की वजह से अपने दोस्तों का आदर्श बन जाता है, लेकिन प्रिंसिपल वीरू सहस्रबुद्धे उसे फूटी आंखों पसंद नहीं करते। यहां तक कि वे फरहान और राजू के घरव

फिल्‍म समीक्षा अवतार

कल्पना की तकनीकी उड़ान -अजय ब्रह्मात्‍मज जेम्स कैमरून की फिल्म अवतार 3डी का डिजिटल जादू है। 3डी का स्पेशल चश्मा लगाकर सिनेमाघरों में बैठने के बाद अंधेरा होते ही पर्दे पर मायावी दुनिया आकार लेने लगती है। यहां दैत्याकार रोबोट हैं और सुपर तकनीक से चल रहा मिशन है। दुनिया की अब तक की सबसे महंगी फिल्म अवतार पहले ही फ्रेम से भव्यता का एहसास देती है। इस फिल्म में सिर्फ मनुष्य ही स्वाभाविक और सामान्य कद के हैं। बाकी सब कुछ विशाल है। इस अनोखी प्रेम कहानी में दो ग्रहों के जीवों का प्रेम है। कहानी आज से 145 साल आगे 2154 की है। पृथ्वी पर ऊर्जा की कमी है। ऊर्जा की तलाश में पृथ्वीवासी पंडोरा पहुंचते हैं। उन्हें पंडोरा यूनोबटैनियम चाहिए। इस कार्य के लिए वे मनुष्य के डीएनए से एक हाइब्रिड तैयार करते हैं और उसे पंडोरावासी का रूप देकर पंडोरा भेजते हैं। मरीन से रिटायर जेक सली को मिशन के लिए चुना जाता है। जेक पैराप्लेजिक रोग से ग्रस्त है। वह जिंदगी में कुछ करने की ख्वाहिश से इस मिशन में शामिल होता है। पंडोरा के निवासी प्रकृति के साथ तालमेल बिठा कर जीते हैं। उनके जीवन में मशीन नहीं है। जेक जाता तो है पंडोराव

कामयाबी तो झ;ा मार का पीछे आएगी-राज कुमार हिरानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज युवा पीढ़ी के संवेदनशील निर्देशक राज कुमार हिरानी की फिल्म '3 इडियट' 25 दिसंबर को रिलीज हो रही है। उनकी निर्देशन प्रक्रिया पर खास बातचीत- [फिल्मों की योजना कैसे जन्म लेती है? अपनी फिल्म को कैसे आरंभ करते हैं आप?] मेरी फिल्में हमेशा किसी थीम से जन्म लेती हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस के समय विचार आया कि डाक्टरों के अंदर मरीज के प्रति करुणा हो तो बीमारियों का इलाज आसान होगा। लगे रहो मुन्नाभाई के समय मैंने गांधीगिरी की प्रासंगिकता का थीम लिया। 3 इडियट में मैं कहना चाहता हूं कि आप कामयाबी के पीछे न भागें। काबिलियत के पीछे भागें तो कामयाबी के पास कोई चारा नहीं होगा, वह झख मार कर आएगी। [क्या पहले एक्टर के बारे में सोचते हैं और फिर कैरेक्टर डेवलप करते हैं या पहले कैरेक्टर गढ़ते हैं और फिर एक्टर खोजते हैं?] मैं स्क्रिप्ट लिखने के बाद एक्टर के बारे में सोचता हूं। सिर्फ थीम पर फिल्म बनेगी तो बोरिंग हो जाएगी, कैरेक्टर उसे इंटरेस्टिंग बनाते हैं, फिर माहौल और उसके बाद सीन बनते हैं। स्क्रिप्ट लिखने की राह में जो दृश्य सोचे जाते हैं, उनमें से कुछ अंत तक जाते हैं और कुछ मर जाते हैं