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फिल्‍म समीक्षा : क्लिक

साउंड से डराने की कोशिश -अजय ब्रह्मात्‍मज किर्र... किर्र... फ्लैश... खींच गई तस्वीर। तस्वीर में उतरती धुएं की लकीर... धुएं की लकीर यानी कोई आत्मा और फिर उस आत्मा के पीछे का रहस्य। इस रहस्य के उद्घाटन में आधी फिल्म निकल जाती है। तब तक संदीप चौटा अलग-अलग ध्वनियों से दृश्यों में डर भरने की कोशिश करते हैं। हर दृश्य धम्म, धड़ाक म, फट-फटाक, थड , च्यूं-च्यूं जैसी किसी ध्वनि और शार्प कट के साथ अकस्मात खत्म होता है। निर्देशक को लगा होगा कि दर्शकों के डर के के लिए यह इफेक्ट कारगर होगा, लेकिन सिनेमाघरों में बैठे दर्शक हंस पड़ते हैं। पर्दे पर दिखाया जा रहा खौफ सिनेमाघर में नहीं पसर पाता। निर्देशक नई युक्ति निकालता है। वह आत्मा के बाद शरीर तक पहुंचता है। शरीर पलटने पर हमें एक विकृत चेहरा दिखता है, जिसे उसकी मां प्यार से चूमती और सो जाने के लिए कहती है। मां को भ्रम है कि उसकी बेटी मरी नहीं है। वह उसे बीमार समझती है। अंतिम संस्कार न हो पाने की वजह से आत्मा भटकती रहती है। इस आत्मा और फिल्म के किरदारों के बीच रिश्ता रहा है। वही अब सता और डरा रहा है। संगीत सिवन की क्लिक साधारण किस्म की डरावनी फिल्म

दरअसल: पा‌र्श्व गायन बढ़ती भीड़, खोती पहचान

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों के पा‌र्श्व गायन में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। अभी फिल्मों में अनेक गीतकार और संगीतकारों के गीत-संगीत के उपयोग का चलन बढ़ गया है। कुछ फिल्मों में छह से अधिक गीतकार और संगीतकार को एक-एक गीत रचने के मौके दिए जाते हैं। गायकों की सूची देखें, तो वहां भी एक लंबी फेहरिस्त नजर आती है। अब किसी फिल्म का नाम लेते ही उसके गीतकार और संगीतकार का नाम याद नहीं आता, क्योंकि ज्यादातर फिल्मों में उनकी संख्या दो से अधिक होने लगी है। अगर भूले से कभी कोई गीत याद आ जाए, तो उसके गीतकार और संगीतकार का नाम याद करने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है। गायकी की बात करें, तो जावेद अली, शाबिर तोषी, शिल्पा राव, मोहित चौहान, कविता सेठ, आतिफ असलम, पार्थिव गोहिल, अनुष्का मनचंदा, बेनी दयाल, श्रद्धा पंडित, जुबीन, हरद कौर, मीका, तुलसी कुमार, नेहा भसीन आदि दर्जनों गायक विभिन्न फिल्मों में एक-दो गाने गाते सुनाई पड़ते हैं। अगर आप हिंदी फिल्म संगीत के गंभीर शौकीन हों, तो भी कई बार आवाज पहचानने में दिक्कत होती है। संगीत का मिजाज बदलने से आर्केस्ट्रा पर ज्यादा जोर रहता है। ऐसे में गायकों की आवाज संगीत म
लंबे गैप के बाद तब्बू तो बात पक्की में दिखेंगी। केदार शिंदे निर्देशित इस फिल्म में उनके साथ शरमन जोशी और वत्सल सेठ भी हैं। बातचीत तब्बू से..। लंबे गैप के बाद आप फिल्म तो बात पक्की केसाथ आ रही हैं? बहुत समय से कॉमेडी करने की इच्छा थी। ऐसी कॉमेडी, जिसमें रोल अच्छा हो और कहानी भी हो। यह चलती-फिरती कॉमेडी फिल्म नहीं है। यह छोटे शहर के मिडिल क्लास फैमिली की कहानी है। कोई मुद्दा या समस्या नहीं है। फिर फिल्म के निर्माता रमेश तौरानी ने साफ कहा कि आप नहीं करेंगी, तो हम फिल्म नहीं बनाएंगे। उनका आग्रह अच्छा लगा। फिर बात पक्की हो गई। नए डायरेक्टर के साथ फिल्म करने के पहले कोई उलझन नहीं हुई? मेरे लिए नए डायरेक्टर के साथ काम करने का सवाल उतना मायने नहीं रखता। मैंने ज्यादातर नए डायरेक्टर के साथ ही काम किया है। मैंने कभी किसी नए डायरेक्टर के साथ काम करने को रिस्क नहीं समझा। कहानी और स्क्रिप्ट पर भरोसा है, तो मैं हां कर देती हूं। क्या स्क्रिप्ट पढ़कर आप डायरेक्टर पर भरोसा कर लेती हैं? हां, इतनी समझ तो हो ही गई है। भरोसा तो आप बड़े डायरेक्टर का भी नहीं कर सकते। मैं इतना नहीं सोचती। मुझे जिन फिल्मों में

फिल्‍म समीक्षा : माय नेम इज खान

साधारण किरदारों की विशेष कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज करण जौहर ने अपने सुरक्षित और सफल घेरे से बाहर निकलने की कोशिश में माय नेम इज खान जैसी फिल्म के बारे में सोचा और शाहरुख ने हर कदम पर उनका साथ दिया। इस फिल्म में काजोल का जरूरी योगदान है। तीनों के सहयोग से फिल्म मुकम्मल हुई है। यह फिल्म हादसों से तबाह हो रही मासूम परिवारों की जिंदगी की मुश्किलों को उजागर करने के साथ धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के गुणों को स्थापित करती है। इसके किरदार साधारण हैं, लेकिन फिल्म का अंतर्निहित संदेश बड़ा और विशेष है। माय नेम इज खान मुख्य रूप से रिजवान की यात्रा है। इस यात्रा के विभिन्न मोड़ों पर उसे मां, भाई, भाभी, मंदिरा, समीर, मामा जेनी और दूसरे किरदार मिलते हैं, जिनके संसर्ग में आने से रिजवान खान के मानवीय गुणों से हम परिचित होते हैं। खुद रिजवान के व्यक्तित्व में भी निखार आता है। हमें पता चलता है कि एस्परगर सिंड्रोम से प्रभावित रिजवान खान धार्मिक प्रदूषण और पूर्वाग्रहों से बचा हुआ है। मां ने उसे बचपन में सबक दिया था कि लोग या तो अच्छे होते हैं या बुरे होते हैं। वह पूरी दुनिया को इसी नजरिए से देखता है।

दरअसल : आ रहे हैं विदेशी तकनीशियन

-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले हफ्ते मैं हेमा मालिनी की फिल्म टेल मी ओ खुदा के सेट पर था। जोधपुर के बालसमंद में शूटिंग चल रही है। मयूर पुरी निर्देशित इस फिल्म की कहानी चार शहरों में प्रवास करती है। जोधपुर में राजस्थान के हिस्से की शूटिंग हो रही थी, जिसमें एषा देओल, अर्जन बाजवा और चंदन सान्याल के साथ मधु और विनोद खन्ना हैं। इस सेट पर रेगुलर इंटरव्यू और कवरेज के दौरान दो व्यक्तियों ने ध्यान खींचा। एपल नामक कैमरामैन राजस्थान के हिस्से की फोटोग्राफी कर रहे थे और एलेक्स फिल्म के मेकअप आर्टिस्ट थे। दोनों विदेशी मूल के हैं। एलेक्स मलेशिया के हैं। मलेशिया में एक भारतीय वीडियो शूटिंग के समय उनका भारतीय यूनिट से संपर्क हुआ। उसके बाद एक-दो छोटे वेंचर में काम करने के बाद उन्होंने विवेक ओबेराय की फिल्म प्रिंस की और अभी टेल मी ओ खुदा का मेकअप डिपार्टमेंट देख रहे हैं। सेट पर मौजूद तमाम भारतीयों के बीच इन विदेशियों को आराम से अपना काम करते देख कर खुशी और गर्व हुआ। हिंदी समेत सभी भारतीय फिल्में अब इस ऊंचाई तक पहुंच गई हैं कि विदेशी आर्टिस्ट और तकनीशियन यहां बेहिचक काम खोज रहे हैं। टेल मी ओ खुदा में चार विदेशी

पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं शाहरुख

-अजय ब्रह्मात्मज शाहरुख खान से मिलना किसी लाइव वायर को छू देने की तरह है। उनकी मौजूदगी से ऊर्जा का संचार होता है और अगर वे बातें कर रहे हों तो हर मामले को रोशन कर देते हैं। कई बार उनका बोलना ज्यादा और बड़बोलापन लगता है, लेकिन यही शाहरुख की पहचान है। वे अपने स्टारडम और पापुलैरिटी को एंजाय करते हैं। वे इसे अपनी मेहनत और दर्शकों के प्यार का नतीजा मानते हैं। उन्होंने इस बातचीत के दरम्यान एक प्रसंग में कहा कि हम पढ़े-लिखे नहीं होते तो इसे लक कहते ़ ़ ़ शाहरुख अपनी उपलिब्धयों को भाग्य से नहीं जोड़ते। बांद्रा के बैंडस्टैंड पर स्थित उनके आलीशान बंगले मन्नत के पीछे आधुनिक सुविधाओं और साज-सज्जा से युक्त है उनका दफ्तर। पूरी चौकसी है। फिल्मी भाषा में कहें तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन फिल्म रिलीज पर हो तो पत्रकारों को आने-जाने की परमिशन मिल जाती है। उफ्फ! ये ट्रैफिक जाम मुंबई में कहीं भी निकलना और आना-जाना मुश्किल हो गया है। मन्नत से यशराज स्टूडियो (12-15 किमी) जाने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं। मैं तो जाने से कतराता हूं। मेरा नया आफिस खार में बन रहा है। लगता है कि यहीं है, लेकिन

फिल्‍म समीक्षा : स्‍ट्राइकर

स्लम लाइफ पर बनी वास्तविक फिल्म -अजय ब्रह्मात्‍मज चंदन अरोड़ा की स्ट्राइकर में प्रेम, अपराध, हिंसा और स्लम की जिंदगी है। सूर्या इस स्लम का युवक है, जो अपने फैसलों और विवेक से अपराध की परिधि पर घूमने और स्वाभाविक मजबूरियों के बावजूद परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकता। वह मुंबई की मलिन बस्ती का नायक है। हिंदी फिल्मों में मुंबइया निर्देशकों ने ऐसे चरित्रों से परहेज किया है। मलिन बस्तियों के जीवन में ज्यादातर दुख-तकलीफ और हिंसा-अपराध दिखाने की प्रवृति रही है। स्ट्राइकर इस लिहाज से भी अलग है। सूर्या मुंबई के मालवणी स्लम का निवासी है। उसका परिवार मुंबई के ंिकसी और इलाके से आकर यहां बसा है। बचपन से अपने भाई की तरह कैरम का शौकीन सूर्या बाद में चैंपियन खेली बन जाता है। कैरम के स्ट्राइकर पर उसकी उंगलियां ऐसी सधी हुई हैं वह अमूमन स्टार्ट टू फिनिश गेम खेलता है। स्थानीय अपराधी सरगना जलील उसका इस्तेमाल करना चाहता है,लेकिन सूर्या उसके प्रलोभन और दबावों में नहीं आता। सूर्या की जाएद से दोस्ती है। सूर्या कमाई के लिए छोटे-मोटे अपराध करने में नहीं हिचकता। दोनों दोस्त एक-दूसरे की मदद किया करते ह

इश्किया : सोनाली सिंह

इश्किया............सोचा था की कोई character होगा लेकिन......पूरी फिल्म में इश्क ही इश्क और अपने-अपने तरीके का इश्क। जैसे भगवान् तो एक है पर उसे अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग रूप में उतार दिया है । जहाँ खालुजान के लिए इश्क पुरानी शराब है जितना टाइम लेती है उतनी मज़ेदार होती है । इसका सुरूर धीरे - धीरे चढ़ता है । वह अपनी प्रेमिका की तस्वीर तभी चाय की मेज़ पर छोड़ पाता है जब उसके अन्दर वही भाव कृष्णा के लिए जन्मतेहै । वहीँ उसके भांजे के लिए इश्क की शुरुआत बदन मापने से होती है उसके बाद ही कुछ निकलकर आ सकता है। कहे तो तन मिले बिना मन मिलना संभव नहीं है। व्यापारी सुधीर कक्कड़ के लिए इश्क केवल मानसिक और शारीरिक जरूरतों का तालमेल है । वह बस घरवाली और बाहरवाली के लिए समर्पित है और किसी की चाह नहीं रखता। मुश्ताक के लिए उसकी प्रेमिका ही सबकुछ है । वह प्रेम की क़द्र करता है । उसे अहसास है " मोहब्बत क्या होती है '। इसी वजह से वह विलेन होने के बाबजूद, मौका मिलने के बाद भी अंत में कृष्ण, खालुजान या फिर बब्बन किसी पर भी गोली नहीं चला पता। विद्याधर वर्मा के लिए प्रेम है पर कर्त्तव्य से ऊपर नहीं

दरअसल : पद्म पुरस्कारों का छद्म

-अजय ब्रह्मात्‍मज सवाल उठ रहा है कि क्या सैफ अली खान को अभी पद्मश्री से सम्मानित करना उचित है, जबकि फिल्म इंडस्ट्री के अनेक सीनियर अभी तक पद्म सम्मानों से वंचित हैं। एक्टिंग के क्षेत्र में ही सैफ से अधिक योगदान कर चुके कलाकारों की लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है। उन्हें क्यों इस सम्मान से दूर रखा गया है? मुमकिन है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों और स्वयं मंत्री के पास इसके जवाब हों, लेकिन आम नागरिकों की बात करें, तो वे इस तुक और तर्क को नहीं समझ पाते। उन्हें लगता है कि यह किसी जोड़-तोड़ का खेल है, एक छद्म है, जिसमें सत्ता के करीब बैठे या गलियारे में भटकते लोगों का प्रभाव काम करता है। सभी प्रदेश की सरकार, केंद्र शासित प्रशासन और विभिन्न संगठनों से भेजे गए नामों पर गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद पद्म पुरस्कारों की अंतिम सूची तय होती है। इस प्रक्रिया से स्पष्ट है कि सत्ताधारी पार्टी और उसके नुमाइंदों की सिफारिश से पद्म पुरस्कारों के काबिल हस्तियों की सूची बनती है। जाहिर सी बात है कि विरोधी पार्टियों के करीबी लोगों को पुरस्कार के योग्य नहीं माना जाता। म

जागने और बदलने की ललकार : रण

एक नई कोशिश चवन्‍नी पर दूसरे समीक्षकों की समीक्षा देने की बात लंबे समय से दिमाग में थी,लेकिन अपने समीक्षक गण कोई उत्‍साह नहीं दिखा रहे थे। पिछले दिनों गौरव सोलंकी से बात हुई तो उन्‍होंने उत्‍साह दिखाया। वायदे के मुताबिक उनका रिव्‍यू आ भी गया।यह तहलका में प्रकाशित हुआ है। कोशिश है कि हिंदी में फि‍ल्‍मों को लकर लिखी जा रही संजीदा बातें एक जगह आ जाएं। अगर आप को कोई रिव्‍यू या लेख या और कुछ चवन्‍नी के लिए प्रासंगिक लगे तो प्‍लीज लिंक या मेल भेज दे।पता है chavannichap@gmail.com फिल्म समीक्षा फिल्म रण निर्देशक राम गोपाल वर्मा कलाकार अमिताभ बान , रितेश देशमुख , सुदीप , गुल पनाग रण कोई नई बात नहीं कहती. यह जिस मिशन को लेकर चलती है , वह कोई खोज या चमत्कार नहीं है और यही बात रण को खास बनाती है. वह सुबह के जितनी नई होने का दावा नहीं करती , लेकिन जागने के लिए आपको उससे बेहतर कोई और ललकारता भी नहीं. यह उन न्यूज चैनलों के बारे में है जो ख़बरों के नाम पर हमारे शयनकक्षों में चौबीस घंटे सेक्स , अपराध और फिल्मी गपशप की सच्ची झूठी , मसालेदार कहानियां सप्लाई कर रहे हैं और उन मनोहर कहानियों का आनंद ले