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फिल्‍म समीक्षा : आल द बेस्ट

हीरो और डायरेक्टर के बीच समझदारी हो और संयोग से हीरो ही फिल्म का निर्माता भी हो तो देखने लायक फिल्म की उम्मीद की जा सकती है। इस दीवाली पर आई ऑल द बेस्ट इस उम्मीद पर खरी उतरती है। हालांकि रोहित शेट्टी गोलमाल और गोलमाल रिटंर्स से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। लेकिन जब हर तरफ हीरो और डायरेक्टर फिसल रहे हों, उस माहौल में टिके रहना भी काबिले तारीफ है। आगे बढ़ने के लिए रोहित शेट्टी और अजय देवगन को अब बंगले की कॉमेडी से बाहर निकलना चाहिए। वीर म्यूजिशियन है। वह खुद का म्यूजिक बैंड बनाना चाहता है। वीर विद्या से प्यार करता है और अपनी बेकारी के बावजूद दोस्त प्रेम की मदद भी करता है। प्रेम का सपना कांसेप्ट कार बनाना है। वीर का एनआरआई भाई उसे हर महीने एक मोटी रकम भेजता है। भाई से ज्यादा पैसे लेने के लिए प्रेम की सलाह पर वीर भाई को झूठी जानकारी देता है कि उसने विद्या से शादी कर ली है। इस बीच वीर और प्रेम एक और मुसीबत में फंस जाते हैं। रेस के जरिए रकम को पचास गुना करने के चक्कर में वे मूल भी गंवा बैठते हैं। पैसे लौटाने के लिए वे बंगला किराए पर देते हैं। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है कि अचानक विदेश में रह रहा

दरअसल:बिग बॉस अमिताभ बच्चन

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-अजय ब्रह्मात्मज लोकप्रियता की ऊंचाई के दिनों में अमिताभ बच्चन की औसत और फ्लॉप फिल्में भी दूसरे हीरो की सफल फिल्मों से ज्यादा बिजनेस करती थीं। शो बिजनेस का पुराना दस्तूर है। यहां जो चलता है, खूब चलता है। अगर कभी रुक या ठहर जाता है, तो फिर उसे कोई नहीं पूछता। अमिताभ बच्चन के करियर में ऐसा दौर भी आया था। अमिताभ बच्चन नाम से फिल्म इंडस्ट्री को एलर्जी हो गई थी, लेकिन मोहब्बतें और कौन बनेगा करोड़पति के बाद वे फिर केंद्र में आ गए। उन्होंने करियर के उत्तरा‌र्द्ध में धमाकेदार मौजूदगी से फिल्म और टीवी के मनोरंजन की परिभाषा बदल दी। मानदंड ऊंचे कर दिए हैं। आज भी उनके व्यक्तित्व का चुंबकीय आकर्षण दर्शकों को अपनी ओर खींचता है। इसीलिए बिग बॉस तृतीय की टीआरपी ने पिछले दोनों सीजन के रिकॉर्ड तोड़ दिए। अब समस्या होगी कि बिग बॉस चतुर्थ की योजना कैसे बनेगी? अमिताभ बच्चन की लोकप्रिय मौजूदगी और टीआरपी के बावजूद बिग बॉस तृतीय में जोश और रवानी की कमी महसूस हो रही है। 68 साल के हो चुके अमिताभ बच्चन की प्रस्तुति में ढलती उम्र की थकान झलक रही है। टीवी शो में मेजबान का स्वर थोड़ा ऊंचा रहता है और ओवर द बोर्ड परफार

हिन्‍दी टाकीज-सिनेमा ने मुझे कुंठाओं से मुक्‍त किया-श्रीधरम

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हिन्‍दी टाकीज-49 श्रीधरम झंझारपुर के मूल निवासी हैं। इन दिनों दिल्‍ली में रहते हैं । हिन्‍दी और मैथिली में समान रूप से लिखते हैं। उनकी कुछ किताबें आ चुकी हैं। कथादेश और बया जैसी पत्रिकाओं के संपादन से भी जुड़े हैं। बात-व्‍यवहार में स्‍पष्‍ट श्रीधरम मानते हैं कि सिनेमा ने उन्‍हें बचा लिया और नया स्‍वरूप दिया । मेरा बचपन गाँव में बीता और तब तक गाँवों में सिनेमा हॉल नहीं खुले थे। अब तो गाँव में भी बाँस की बल्लियों वाले सिनेमा हॉल दिखाई पड़ते हैं। बचपन में पहली फिल्म पाँच-सात साल की उम्र में ‘ क्रांति ’ देखी थी जिसकी धुंधली तस्वीर बहुत दिनों तक मेरा पीछा करती रही , खासकर दौड़ते हुए घोड़े की टाप...। यह फिल्म भी गंगा मैया की , कृपा से देख पाया था। घर की किसी बुजुर्ग महिला ने मेरे धुँघराले बालों को गंगा मैया के हवाले करने का ‘ कबुला ’ किया था और इसीलिए माता-पिता हमें लेकर ‘ सिमरिया ’ गए थे। वहाँ से लौटते हुए दरभंगा में अपनी मौसी के यहाँ हम लोग रुके और उन्हीं लोगों के साथ हमने क्रांति देखी थी। मेरे लिए यह ऐतिहासिक दिन था जब मेरे मन में फिल्म-दर्शन-क्रांति का बीज बोया गया। तब ‘ दरभंगा ’ मेरे लि

अमरपक्षी अमिताभ बच्‍चन

-अजय ब्रह्मात्‍मज मादाम तुसाद के लंदन स्थित संग्रहालय में अमिताभ बच्चन का मोम का पुतला मौजूद है। इस पुतले को सुरक्षित रखने के लिए विशेष तापमान की जरूरत होती है। मोम के पुतले तो सुरक्षित रखे जा सकते हैं, लेकिन जिंदगी की तीखी और कड़ी धूप में हर तरह के पुतले पिघल जाते हैं। फिर भी हमारे साथ सभी मनुष्यों की तरह हाड़-मांस का बना एक ऐसा चलता-फिरता पुतला है, जो कई बार टूटता, गिरता, बिखरता और पिघलता दिखाई दिया ़ ़ ़ ऐसा लगा कि अब इस पुतले को नहीं बचाया जा सकता। आलोचकों ने श्रद्वांजलियां भी लिख डालीं, लेकिन एक अंतराल के बाद अपनी ही जीवनी शक्ति से यह पुतला अधिक ऊर्जा के साथ उठ खड़ा हुआ। पहले से ज्यादा वेगवान और ताकतवर नजर आया। हम जिस पुतले की बात कर रहे हैं, वे हम सभी के चहेते अमिताभ बच्चन हैं, जो सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के दम पर अपने नाम को चरितार्थ कर रहे हैं। उम्र के साथ उनकी ऊर्जा बढ़ती जा रही है। हम चाहेंगे कि वे यों ही बढ़ते, दमकते और चमकते रहें। [तीन चित्रात्मक प्रतीक] पिछले हफ्ते ही उनका नया शो बिग बॉस आरंभ हुआ है। इसके विज्ञापन में उनकी तीन तस्वीरों की होर्डिग पूरे देश में लगी है। एक तस्व

फिल्‍म समीक्षा एसिड फैक्ट्री

विदेशी प्रेरणा (चोरी) से बनी फिल्म रेटिंग- ** -अजय ब्रह्मात्‍मज विदेशी फिल्मों की थीम, प्रस्तुति और शैली से प्रेरित संजय गुप्ता ने समान स्वभाव के निर्देशक सुपर्ण वर्मा को एसिड फैक्ट्री के निर्देशन का मौका दिया। उनकी पिछली फिल्मों की तरह ही यह भी डार्क, स्पीड, थ्रिलर और एक्शन से भरी फिल्म है। ऐसी फिल्मों का एक दर्शक समूह भी है। इन्हें बड़े पर्दे पर एक्शन, चेज और एक्सीडेंट देखने में मजा आता है। एसिड फैक्ट्री ऐसे दर्शकों को ही ध्यान में रखते हुए बनायी गयी है। यह विदेशी फिल्म अननोन की भारतीय नकल है। केपटाउन में एकत्रित भारतीयों की इस कहानी में कोई अंडरव‌र्ल्ड सरगना है तो कोई पुलिस अधिकारी है। एक समृद्ध नागरिक भी है। विदेशी पृष्ठभूमि में बनी ऐसी फिल्मों में सारे पात्र बखूबी हिंदी बोलते हैं, जबकि अपने ही देश के पात्र अब अंग्रेजी बोलने लगे हैं। बहरहाल, एसिड फैक्ट्री में छह किरदार बेहोशी के आलम से जागते हैं तो अपनी याददाश्त खो बैठते हैं। उन्हें याद नहीं कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन? हमारी याददाश्त ही शायद हमें भला-बुरा बनाती है और दुश्मनी सिखाती है। अन्यथा हर इंसान सिर्फ जिंदा रहना चाहता है

मांगी थी एक गाड़ी,मिली छह गाडियां-अक्षय कुमार

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-अजय ब्रह्मात्मज अक्षय कुमार लगातार फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं। समय मिलते ही बीच-बीच में मीडिया से भी बातें कर रहे हैं। उनकी आने वाली नई फिल्म है ब्लू, इसलिए उन्होंने सारी बातचीत इसी पर केंद्रित रखी। ब्लू के प्रोमोशन से ऐसा लग रहा है कि यह अंडर वाटर सिक्वेंस वाली ऐक्शन फिल्म है। क्या यह सच है? ब्लू एक एडवेंचर फिल्म है। लोगों ने अंग्रेजी में इंडियाना जोंस, बॉण्ड की फिल्में और दूसरी एडवेंचर फिल्में देखी होंगी। ऐसी फिल्मों में ऐक्शन और एडवेंचर होता है। कहानी का बस एकपतला धागा रहता है। इस फिल्म की बात करूं, तो मुझे मालूम है कि समुद्र के अंदर कहीं खजाना छिपा हुआ है। उस खजाने की जानकारी सिर्फ संजय दत्त के पास है। मुझे वह खजाना चाहिए। खजाना मुझे मिलता है कि नहीं, यह अंत में पता चलेगा। खजाने की खोज में आई मुश्किलों पर ही यह एक घंटे पचास मिनट की फिल्म है। एडवेंचर फिल्म में बाकी मसाले तो होंगे? इसमें गाने जरूर हैं, लेकिन इमोशनल ड्रामा नहीं है। इस फिल्म में लोगों को अंडर वाटर के अनोखे विजुअल्स देखने को मिलेंगे। दर्शक फिल्म में एक नई दुनिया का दर्शन करेंगे। किसी भारतीय फिल्म में उन्होंने ऐसा एडव

दरअसल:ह्वाट्स योर राशि? के बहाने

-अजय ब्रह्मात्मज आशुतोष गोवारीकर ने लगान के बाद लगातार नए विषय पर फिल्में बनाई। उनमें कोई दोहराव नहीं है। स्वदेस और जोधा अकबर जैसी सार्थक और महत्वपूर्ण फिल्में बनाने के बाद आशुतोष ने पहली बार रोमांटिक कॉमेडी में हाथ आजमाया। अगर चंद फिल्म समीक्षकों की राय मानें, तो इस कोशिश में उनके हाथ जल गए हैं। उन समीक्षकों को यह फिल्म पसंद नहीं आई। उन्होंने फिल्म की आलोचना के साथ निर्देशक आशुतोष की भी भ‌र्त्सना की है। उन्होंने उनकी पुरानी फिल्मों लगान, स्वदेस और जोधा अकबर का उदाहरण देकर सवाल उठाया है कि ऐसी कल्ट और क्लासिक फिल्मों के निर्देशक से कैसे चूक हो गई? ह्वाट्स योर राशि? और आशुतोष के बारे में फैल रही भ्रांतियों के बारे में कुछ बातों को समझना जरूरी है। मुंबई में अंग्रेजी समीक्षकों का एक प्रखर समूह है, जो भारतीयता, भारतीय परंपरा, भारतीय मूल्य और भारतीय शैली की हिंदी फिल्मों से बिदकता है। उन्हें विदेशी शैली की नकल या प्रेरणा से बनी हिंदी फिल्मों में नवीनता दिखती है। वे उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते। अगर इन समीक्षकों का गहरा अध्ययन करें, तो पाएंगे कि वे हमारे कथित पॉपुलर फिल्म मेकर की तरह भारतीय

एहसास:नैतिक मूल्य जगाने वाली बाल फिल्में बनें-महेश भट्ट

कुछ समय पहले इंग्लैंड के एक पत्रकार ने मुझसे पूछा था, भारत में बच्चों की फिल्में क्यों नहीं बनतीं? जिस देश में दुनिया की सबसे ज्यादा फिल्में बनती हैं, हर प्रकार की फिल्में बनती हैं, वहां दिखाने या गर्व करने लायक बच्चों की फिल्में नहीं हैं। क्या यह शर्म की बात नहीं है? इस सवाल ने मुझे सोचने पर मजबूर किया। मेरे दिमाग में बचपन में सुनी हुई परीकथाएं घूमने लगीं। अगर मेरी नानी और मां ने बचपन में किस्से नहीं सुनाए होते तो बचपन कितना निर्धन होता? उनकी कहानियों ने मेरी कल्पना को पंख दिए और मेरे फिल्म निर्देशक बनने की नींव रख दी गई। परीकथाओं के दिन गए समय के साथ भारतीय समाज में टेलीविजन के प्रवेश ने मध्यवर्गीय परिवारों में किस्सा-कहानी की परंपरा को खत्म कर दिया। मांओं के पास वक्त नहीं है कि बच्चों को कहानियां सुनाएं और बच्चे भी किताबें कहां पढते हैं? कितना आसान हो गया कि बटन दबाओ, टीवी पर स्पिल्टविला, इंडियन आइडल, बुगी वुगी समेत कई घिसे-पिटे सीरियलों में खो जाओ। मेरी चेतना में जगजीत सिंह के गाए गीत वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी.. के शब्द तैरने लगे हैं। इच्छा हो रही है कि मैं घडी की सूइयां उ

हिन्दी टाकीज-जिंदगी है तो सिनेमा है और सिनेमा ही जिंदगी है-सोनाली सिंह

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हिन्दी टाकीज-४८ सोनाली से चवन्नी की मुलाक़ात नहीं है। तस्वीर से ऐसा लगता है कि वह खूबसूरत और खुले दिल की हैं। जुगनुओं के पीछे भागती लड़की के हजारों सपने होंगे और उनसे जुड़ी लाखों ख्वाहिशे होंगी। चवन्नी चाहेगा कि रोज़ उनकी कुछ खेअहिशें पूरी हों.वैसे सोनाली कम से कम २२-२३ चीजों पर पक्का यकीं करती हैं। यकीनयाफ्ता सोनाली निश्चित ही ज़िन्दगी को भरपूर अंदाज़ में जीती होंगी। चवन्नी ने उनकी कहानियाँ नहीं पढ़ी हैं,पर भरोसे के करीबियों से उनकी तारीफें सुनी है। उनके लेखन का एक नमूना यहाँ लिखे शब्द भी है...आप उनसे संपर्क करना चाहें तो पता है... sonalisingh.smile@gmail.com चवन्‍नी के हिन्‍दी टाकीज का कारवां जल्‍दी ही 50वे पड़ाव पर पहुंच जाएगा। सफर जार रहेगा और आप के संस्‍मरण ही चवन्‍नी के हमसफ़र होंगे। आप भी लिखें और पोस्‍ट कर दें ... chavannichap@gmail.com यूं तो मैं जब तीन माह की थी, मैंने अपनी मौसी के साथ सिनेमा देखने जाना शुरू कर दिया था। मौसी बताती हैं कि मैं बिना शोरगुल किये चुपचाप बड़े शौक से तीन घंटे तक पिक्‍चर देख लिया करती थी। कुछ बड़ी हुई तो चाचा लोगों के साथ सिनेमा हॉल जाना शुरू कर दिय

दरअसल:नवोदित नही है प्रकाश राज

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-अजय ब्रह्मात्मज यह प्रसंग वांटेड से जुड़ा है। पिछले दिनों प्रदर्शित हुई इस फिल्म में प्रकाश राज ने खलनायक की भूमिका निभाई है। गनी भाई के रूप में वे दर्शकों को पसंद आए, क्योंकि उस किरदार को उन्होंने कॉमिक अंदाज में पेश किया। इस फिल्म को देखने के बाद मुंबई में एक मनोरंजन चैनल के पत्रकार की टिप्पणी थी कि इस नए ऐक्टर ने शानदार काम किया है। मुझे हंसी आ गई। कुछ ही दिनों पहले प्रकाश राज का नाम लेकर सभी चैनलों ने खबर चलाई थी कि उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार में आमिर खान और शाहरुख खान को पछाड़ा। पिछले दिनों प्रकाश राज को कांजीवरम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। दरअसल, हम अपने ही देश की दूसरी भाषा की फिल्में और फिल्म स्टारों से नावाकिफ रहते हैं। चूंकि सभी भाषा की फिल्में हिंदी में डब होकर नहीं आतीं, इसलिए हिंदी फिल्मों के सामान्य दर्शक समेत फिल्म पत्रकार भी उन फिल्मों से अपरिचित रहते हैं। अगर हम तमिल के मशहूर ऐक्टर रजनीकांत और कमल हासन को जानते हैं, तो उसकी वजह हिंदी फिल्मों से उनका पुराना संबंध है। दोनों ने ही करिअर के आरंभिक दौर में हिंदी फिल्में की थीं। इन दोनों के अल