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सामाजिक सरोकार की फिल्म है समर 2007

-अजय ब्रह्मात्मज आयटम सांग, कामेडी, एक्शन और मल्टीस्टारर फिल्मों के इस दौर में सुहैल तातारी ने सामाजिक सरोकार की फिल्म निर्देशित की है। सालों बाद किसी फिल्म में गांव, किसान और किसानों की आत्महत्या के पहलू सामने आए हैं। यह डाक्यूमेंट्री, उपदेशात्मक या महज बोलवचन की फिल्म नहीं है। फिल्म अपनी बात कह जाती है। अगर आप कान एवं ध्यान लगाएं तो बात समझ में भी आती है। अमीर परिवारों के पांच बच्चे कैपिटेशन फी देकर मेडिकल कालेज में दाखिला लेते हैं। उन सभी का ध्यान पढ़ाई से ज्यादा दूसरी चीजों में लगा रहता है। उनकी अपनी एक समृद्ध, काल्पनिक और निरपेक्ष दुनिया है। सच से उनका सामना पहली बार तब होता है, जब छात्र संघ के चुनाव का समय आता है। प्रकाश नाम का छात्र नेता अपने स्वतंत्र सोच से उन्हें चुनौती देता है और राजनीति के लिए उकसाता है। पांचों युवक चुनाव की चपेट में आते हैं और फिर एक दबाव के कारण कैंपस से पलायन करते हैं। वे बचने का आसान रास्ता चुनते हैं और गांव के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र पर सेवा देने के बहाने निकल जाते हैं। गांव पहुंचते ही उनका यथार्थ से साक्षात्कार होता है। कुछ समय तक वे निरपेक्ष और उदास

चार जुलाई को चमकेंगे दो स्टार!

-अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए पहली छमाही कोई सुखद समाचार नहीं ला सकी। न तो कोई फिल्म जबर्दस्त सफलता हासिल कर सकी और न ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से आए स्टारसन में कोई चमक दिखी। हाल ही में रिलीज हुई वुडस्टॉक विला में आए सिकंदर खेर को ढेर होते हमने देखा। उसके पहले मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह चक्रवर्ती अपनी पहली फिल्म जिम्मी में फुस्स साबित हुए। आश्चर्य की बात तो यह है कि दोनों ही नवोदित स्टारों को दर्शकों ने नोटिस नहीं किया। हालांकि दोनों के पास अभी एक-एक फिल्म है, लेकिन कहना मुश्किल है कि दूसरी फिल्मों में वे कोई जलवा बिखेर पाएंगे! हां, चार जुलाई को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दो स्टार चमकने को तैयार हैं। लव स्टोरी 2050 से हैरी बावेजा के पुत्र हरमन बावेजा और जाने तू या जाने ना से आमिर खान के भतीजे इमरान खान की फिल्मों में एंट्री हो रही है। चार जुलाई को एक साथ रिलीज हो रही इन दोनों फिल्मों के मुख्य कलाकारों को फिलहाल भविष्य के स्टार के रूप में देखा जा रहा है। उनकी पहली फिल्म की रिलीज के पहले ही उनकी आने वाली फिल्में भी लगभग पूरी हो गई हैं। दोनों को लगातार फिल्मों के ऑफर मिल

बॉक्स ऑफिस:१३.०६.२००८

दोनों को पिटा ही मानिए बाक्स आफिस पर भले ही सरकार राज का राज कायम नहीं हो सका, लेकिन राम गोपाल वर्मा के नाम पर आग और अन्य फ्लाप एवं बुरी फिल्मों के कारण जमी धूल थोड़ी साफ हुई। रामू सरकार राज में सरकार से आगे नहीं बढ़ सके। हां, उन्होंने यह जता दिया कि अभी वह चुके नहीं हैं और फिर से लौट सकते हैं। सरकार राज के प्रति फिल्म ट्रेड सर्किल में गर्माहट थी। बच्चन परिवार के तीन सदस्यों के कारण माना जा रहा था कि फिल्म को अच्छी ओपनिंग मिलेगी। पर हकीकत यह रही कि मुंबई में ओपनिंग का प्रतिशत दूसरे शहरों की तुलना में बेहतर रहने के बावजूद उम्मीद से कम था। आरंभिक दिनों में 50-60 प्रतिशत कलेक्शन साधारण फिल्म के लिए बेहतर कहा जा सकता है। सरकार राज के लिए यह प्रतिशत कम है। मुंबई में मानसून की पहली बौछार से भी दर्शकों में कमी आई। अगले दिन शनिवार को दर्शक बढ़े, लेकिन रविवार से गिरावट आरंभ हो गई। फिर भी माना जा रहा है कि फिल्म मुंबई और महाराष्ट्र में औसत व्यापार कर लेगी। राजकुमार गुप्ता की आमिर छोटी फिल्म थी। समीक्षकों ने उसकी खूब सराहना की। निर्माताओं ने फिल्म के प्रचार पर समुचित ध्यान नहीं दिया था, इसलिए दर्

प्रचलित परंपरा से जरा हट कर है आमिर

-अजय ब्रह्मात्मज यूटीवी स्पाटब्वाय की पहली फिल्म आमिर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय परंपरा में नहीं है। यह निर्देशक राज कुमार गुप्ता और अभिनेता राजीव खंडेलवाल की पहली फिल्म है। उन्होंने साबित किया है कि बेहतर फिल्म बनाने के लिए स्टार, नाच-गाने और लटके-झटकों की जरूरत नहीं है। अगर आपका कथ्य मजबूत है और आपके कलाकार उसे सही संदर्भ में अभिव्यक्त कर देते हैं तो फिल्म प्रभावित करती है। आमिर डा. आमिर अली के जीवन के एक दिन की कहानी है। लंदन से तीन साल बाद भारत लौटे डा. आमिर अली का जीवन एयरपोर्ट से निकलते ही एक कुचक्र में फंसता है। उनके परिवार को किसी ने किडनैप कर लिया है और वह व्यक्ति उनसे कुछ ऐसे काम करवाना चाहता है, जिसके लिए वह तैयार नहीं हैं। परिजनों की सुरक्षा के दबाव में वह मजबूरन अनचाहे काम को अंजाम देने के लिए बढ़ते हैं। आखिरकार एक ऐसी घड़ी आती है, जब वह फैसला लेते हैं और वह फैसला उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देता है। आमिर की पृष्ठिभूमि में मुंबई है, लेकिन यहां न तो ताज होटल है और न गेट वे आफ इंडिया है, न क्वीन नेकलेस और न ही हाजी अली की दरगाह। मुंबई के नाम पर जो प्रतीक हम फिल्मों में देखत

फिर असफल रहे रामू

-अजय ब्रह्मात्मज क्लोज अप, फुसफुसाहट, साजिश, हत्या..सरकार की काली लुंगी, बगैर कालर की काली शर्ट, माथे पर लाल टीका, रीमलेस चश्मा और पूरे माहौल में धुआं-धुआं ़ ़ ़यह सब कुछ हम सभी ने राम गोपाल वर्मा की पिछली फिल्म सरकार में देखा था। इन सब के साथ इस बार थोड़ा बदलाव है। सरकार यानी सुभाष नागरे के बेटे शंकर ने शूट पहन लिया है और विदेश से एक लड़की अनीता राज आ गई है। कहानी मुंबई से पसर कर ठाकुरवाड़ी तक गई और हमने राव साहब के भी दर्शन किए। एक नया किरदार सोम भी आया। कुछ नए खलनायक दिखे- काजी, वोरा, कांगा और पाला बदलता वफादार चंदर ़ ़ ़ रामू ने सरकार की तकनीक ही रखी। उन्होंने अमिताभ, अभिषेक और ऐश्वर्या को भावपूर्ण दृश्य दिए ताकि वे चेहरे और आंखों से अभिनय की बारीकियां प्रदर्शित करें। इस संदर्भ में कई क्लोजअप में बुरे लगने के बावजूद अमिताभ तो भाव प्रदर्शन में सफल रहे, लेकिन अभिषेक और ऐश्वर्या में अपेक्षित ठहराव नहीं दिखा। हां, कैमरे के आगे छोटे कलाकार अवश्य टिके रहे और उन्होंने ही इस फिल्म की नाटकीयता बनाए रखने में मदद की। फिल्म की कहानी राजनीति, विदेशी निवेश, औद्योगिकीकरण की समस्याओं को इंटरवल के

कॉमेडी का कन्फ्यूजन कन्फ्यूजन में कॉमेडी

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्मों में कॉमेडी का चलन पूरी तरह से बढ़ा है, क्योंकि इसे सफलता का फार्मूला माना जा रहा है। कह सकते हैं कि यही ताजा ट्रेंड है, लेकिन चंद वर्षो और चंद फिल्मों के बाद अब यह ट्रेंड दम तोड़ता नजर आ रहा है। हाल की असफल कॉमेडी फिल्मों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अभी के निर्माता-निर्देशक कॉमेडी के नाम पर पूरी तरह से कंफ्यूजन के शिकार हैं! कॉमेडी फिल्मों का एक इतिहास रहा है। दरअसल, जब शुद्ध रूप से कॉमेडी फिल्में नहीं बनती थीं, तो फिल्मों में कॉमेडी का पैरलल ट्रैक रहता था। दरअसल, एक सच यह भी है कि जॉनी वॉकर और महमूद सरीखे कलाकारों को उन दिनों हीरो जैसा दर्जा हासिल था। उनके लिए गाने रखे जाते थे और कई रोचक प्रसंग भी कहानी में जोडे़ जाते थे। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। सच तो यह है कि उन दिनों हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कॉमेडियन की एक अलग जमात हुआ करती थी। अमिताभ बच्चन के आगमन के बाद जिन फिल्मी तत्वों का नुकसान हुआ, उनमें कॉमेडी भी रही। एंग्री यंग मैन के अवसान के बाद फिर से फिल्मों की कहानी बदली और जॉनी लीवर, डेविड धवन और गोविंदा का उदय हुआ। डेविड धवन

ऐश्वर्या राय से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

ऐश्वर्या राय की यह बातचीत उनके व्यक्तित्व के ऐसे पहलुओं को सामने लाती है, जिनकेबारे में वे कम बातें करती हैं। यहां हम एक बेटी, बहू और बीवी ऐश्वर्या राय साथ ही ऐक्ट्रेस ऐश्वर्या राय से मिलते हैं॥ ऐश्वर्या राय की कई पहचान है। वह मिस व‌र्ल्ड रही हैं। एक्ट्रेस हैं। एक ब्रांड हैं। बेटी हैं और अब पत्नी एवं बहू भी हैं। बहू होते ही जब आप नए घर में जाती हैं तो बहुत कुछ छूटता या छोड़ना पड़ता है ़ ़ ़ मैं भगवान की शुक्रगुजार हूं। उनका आशीर्वाद है। मैं एक घर से ब्याह कर दूसरे घर में आई हूं तो फिर से वही मां-बाप का प्यार, वही अपनापन मिला ़ ़ ़ यह सिर्फ इंटरव्यू के लिए नहीं कह रही हूं। दिल की बात कह रही हूं। अभिषेक और हम हमेशा कहते हैं कि अब हमें दो मां-पिता मिल गए हैं। इसके लिए मैं उन्हें भी धन्यवाद दूंगी, क्योंकि हमारे अंदर अगर यह भावना है तो यह उनकी ही देन है। शायद हमारी परवरिश में ही था। हमें कुछ अलग से नहीं सिखाया गया। हमारे अंदर पहले से ही था। दोनों ही परिवारों में कई संभावनाएं हैं। मैं जिस परिवार से आई और जिस परिवार में व्याही गई-दोनों लगभग एक जैसे ही हैं। किसी भी लड़की के लिए यह बहुत बड़ा एह

बॉक्स ऑफिस:०६.०५.२००८

अगले ही दिन ढेर हुई वुडस्टॉक विला सिर्फ प्रचार से फिल्में चल जातीं तो सिकंदर खेर अभिनीत वुडस्टॉक विला को बॉक्स आफिस पर कीर्तिमान स्थापित करना चाहिए था। सच है कि संजय गुप्ता की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पहले ही दिन दम तोड़ दिया। सिकंदर खेर का आकर्षण काम नहीं कर सका। दर्शक नहीं आए और फिल्म अगले ही दिन ढेर हो गयी। वुडस्टॉक विला को आरंभिक दिनों में पंद्रह प्रतिशत दर्शक भी नहीं मिले। दर्शकों के आरंभिकरुझान से ही स्पष्ट हो गया था कि फिल्म सिनेमाघरों में टिक नहीं पाएगी। सोमवार से दर्शकों में भारी गिरावट आयी। हंसते हंसते का प्रदर्शन और भी बुरा रहा। उसे दस प्रतिशत ही दर्शक मिले। हंसते हंसते के निर्माताओं को रोते-रोते अगली फिल्म की तैयारी करनी होगी। ट्रेड विशेषज्ञों के मुताबिक दोनों ही फिल्में बुरी थीं, इसलिए उनका यह हाल हुआ। ताज्जुब है कि फिल्म इंडस्ट्री के अनुभवी निर्माता-निर्देशक कैसे इस तरह की फिल्मों को लेकर आश्वस्त रहते हैं और कुछ यों प्रचार करते हैं कि उनकी फिल्म नए मानदंड स्थापित कर देगी। पिछले हफ्तों में फिल्में न चलने की वजह आईपीएल को माना जा रहा है। अब तो आईपीएल खत्म हुआ। देखें, इस हफ

जोधा अकबर के १०० दिन और उसके कटे दृश्य

जोधा अकबर के १०० दिन हो गए.इन दिनों हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में १०० दिनों और ५० दिनों की भी पार्टियाँ होती हैं.पहले फिल्में सिल्वर जुबली और गोल्डेन जुबली मनाती थीं.२१ वीं सदी में सिल्वर और गोल्डेन जुबली सपना हो गई हैं.आजकल तो पहले दिन की अच्छी शुरूआत हो जाए तो अल दिन या रविवार तक सुपर हित के पोस्टर लग जाते हैं.जन्नत के साथ ऐसा हुआ है। बहरहाल,जोधा अकबर के १०० दिन पूरे होने के अवसर पर निर्देशक और निर्माता आशुतोष गोवारिकर ने पार्टी दी.चवन्नी भी वहाँ गया था.इस पार्टी में उन्होंने फ़िल्म के कटे हुए दृश्य दिखाए.आशुतोष ने बताया की उन्होंने पहले सब कुछ स्क्रिप्ट के मुताबिक शूट कर लिया था.बाद में फ़िल्म संपादित करते समय उन्होंने दृश्य काटे. इस मौके पर उन्होंने सारे कटे दृश्य दिखाए.कुछ अत्यन्त मार्मिक और महत्वपूर्ण दृश्य थे,लेकिन फ़िल्म की लम्बाई की वजह से उन्हें रखने का मोह आशुतोष को छोड़ना पड़ा। अकबर के दरबार में बीरबल की एंट्री का दृश्य रोचक और जानदार था.कैसे महेश दास नाम का व्यक्ति अकबर को अपनी हाजिरजवाबी से खुश करता है और दरबार में जगह पाता है.कैसे मुल्ला दो प्याजा उसे दरबार में आने से रोकने

अभिषेक बच्चन से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत

अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म से लेकर आज तक जितनी भी फिल्में आयीं है सभी में उनका अलग अंदाज देखने को मिला। प्रस्तुत है अभिषेक से बातचीत- अभिषेक इन दिनों क्या कर रहे हैं? शूटिंग कर रहा हूं। दिल्ली-6 की शूटिंग कर रहा था। उसके बाद करण जौहर की फिल्म कर रहा हूं, जो तरूण मनसुखानी निर्देशित कर रहे हैं। फिर रोहन सिप्पी की फिल्म शुरू करूंगा। काम तो है और आप लोगों के आर्शीवाद से काफी काम है। सरकार राज आ रही है। उसके बारे में कुछ बताएं? सरकार राज, सरकार की सीक्वल है। इसमें फिर से नागरे परिवार को देखेंगे। सरकार जहां खत्म हुई थी, उससे आगे की कहानी है इसमें। नयी कहानी है और नयी समस्या है। इसमें ऐश्वर्या राय भी हैं। मैं तो बहुत एक्साइटेड हूं। ऐश्वर्या इस फिल्म में बिजनेस वीमैन का रोल निभा रही हैं। वह नागरे परिवार के सामने एक प्रस्ताव रखती हैं और बाद में उस परिवार के साथ काम करती हैं। द्रोण के बारे में क्या कहेंगे? सुपरहीरो फिल्म है? सब लोग द्रोण को सुपरहीरो फिल्म समझ रहे हैं। वह सुपरहीरो फिल्म नहीं है। हां, मैं फिल्म का हीरो हूं, लेकिन सुपरहीरो नहीं हूं। द्रोण एक फैंटेसी फिल्म है। उस फिल्म का थोड़ा सा का