Posts

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:चौथा दशक

चौथे दशक के क्रांतिकारी फिल्मकार थे वी शांताराम .उनहोंने १९३४ में 'अमृत मंथन' नाम की फ़िल्म बनाई थी और हिंदू रीति-रिवाजों में प्रचलित हिंसा पर सवाल उठाये थे.१९३६ में बनी उनकी फ़िल्म'अमर ज्योति' में पहली बार नारी मुक्ति की बात सुनाई पड़ी.इस फ़िल्म की नायिका दुर्गा खोटे थीं.यह फ़िल्म वेनिस के इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में भी दिखाई गई थी.१९३१ में आर्देशर ईरानी की पहली बोलती फ़िल्म 'आलम आरा' आई थी.इस फ़िल्म की हीरोइन जुबैदा थीं.जुबैदा देश की पहली महिला निर्माता और निर्देशक बेगम फातिमा सुल्ताना की बेटी थीं.इस दौर की हंटरवाली अभिनेत्री को कौन भूल सकता है? नाडिया ने अपने हैरतअंगेज कारनामों और स्टंट से सभी को चकित कर दिया था. उनका असली नाम मैरी एवंस था.'बगदाद का जादू','बंबईवाली','लुटेरू ललना' और 'पंजाब मेल' जैसी फिल्मों से उन्होंने अपना अलग दर्शक समूह तैयार किया.एक तरफ नाडिया का हंटर चल रहा था तो दूसरी तरफ़ रविंद्रनाथ ठाकुर की पोती देविका रानी का फिल्मों में पदार्पण हुआ.उन्होंने बाद में हिमांशु राय से शादी कर ली.दोनों ने मिलकर बांबे टॉ

हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:तीसरा दशक

Image
ललिता पवार कानन देवी आज ८ मार्च है.पूरी दुनिया में यह दिन महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों न सिनेमा के परदे की महिलाओं को याद करने साथ हीउन्हें रेखांकित भी किया जाए.इसी कोशिश में यह पहली कड़ी है.इरादा है कि हर दशक की चर्चित अभिनेत्रियों के बहाने हम हिन्दी सिनेमा को देखें.यह एक परिचयात्मक सीरीज़ है। तीसरा दशक सभी जानते हैं के दादा साहेब फालके की फ़िल्म 'हरिश्चंद्र तारामती' में तारामती की भूमिका सालुंके नाम के अभिनेता ने निभाई थी.कुछ सालों के बाद फालके की ही फ़िल्म 'राम और सीता' में उन्होंने दोनों किरदार निभाए।इस दौर में जब फिल्मों में अभिनेत्रियों की मांग बढ़ी तो सबसे पहले एंगलो-इंडियन और योरोपीय पृष्ठभूमि के परिवारों की लड़कियों ने रूचि दिखाई.केवल कानन देवी और ललिता पवार ही हिंदू परिवारों से आई थीं.उस ज़माने की सबसे चर्चित अभिनेत्री सुलोचना थीं.उनका असली नाम रूबी मेयेर्स था.कहा जाता है कि उनकी महीने की क

ब्लैक एंड ह्वाइट:दुनिया और भी रंगों में जीती और मुस्कराती है

-अजय ब्रह्मात्मज चलिए पहले तारीफ करें शोमैन सुभाष घई की। उन्होंने अपनी ही लीक छोड़कर कुछ वास्तविक सी फिल्म बनाई है। आतंकवाद को भावुक दृष्टिकोण से उठाया है। उनकी शैली में खास बदलाव दिखता है, चांदनी चौक की रात और दिन के दृश्यों में उन्होंने दिल्ली को एक अलग रंग में पेश किया है। सुभाष घई की इस कोशिश से दूसरे फार्मूला फिल्मकार भी प्रेरित हों तो अच्छी बात होगी। नुमैर काजी (अनुराग सिन्हा) नाम का युवक अफगानिस्तान से भारत आता है। वह जेहादी है, उसका मकसद है दिल्ली के लाल किले में बम विस्फोट। उसे चांदनी चौक के निवासी गफ्फार नजीर के गुजरात के दंगों में उजड़ गए भाई के बेटे की पहचान दी गई है। अपने मकसद को पूरा करने के लिए नुमैर के पास हैं महज 15 दिन। दिल्ली में उसकी मदद के लिए कई लोगों का इंतजाम किया जाता है। नुमैर काजी की मुलाकात उर्दू के प्रोफेसर राजन माथुर (अनिल कपूर) से हो जाती है। राजन को नुमैर से सहानुभूति होती है। नुमैर सहानुभूति का फायदा उठाता है और उनके दिल और घर दोनों में अपनी जगह बना लेता है। उन्हीं के साथ रहने लगता है। राजन माथुर की फायरब्रांड बीवी रोमा (शेफाली शाह) पहले उसे पसंद नहीं क

बारबरा मोरी:पहला परिचय

Image
राकेश रोशन की कंपनी फिल्मक्राफ्ट ' काइट्स' नाम की फ़िल्म बना रही है.इस फ़िल्म के निर्देशक अनुराग बासु हैं.अनुराग बासु की ' गैंगग्स्टर' और 'मेट्रो' मशहूर फिल्में रही हैं.अनुराग बासु ने सीरियल निर्देशन से शुरूआत की थी.उन्हें फ़िल्म निर्देशन का पहला मौका महेश भट्ट ने दिया.फ़िल्म थी 'साया' ,जो बुरी तरह फ्लॉप हुई थी.लेकिन महेश भट्ट ने हिम्मत नहीं हरी.दोनों ने एक और फ्लॉप फ़िल्म बनाई.उस फ़िल्म की समाप्ति के समय अनुराग बासु को ब्लड कैंसर हो गया था.पत्नी की सेवा और अपने आत्मबल से वह इस जानलेवा बीमारी की गिरफ्त से बाहर आया.भट्ट कैंप से बहर आकर उनहोंने 'मेट्रो' बनाई.यह फ़िल्म खूब पसंद की गई.उसके बाद ही राकेश रोशन ने उन्हें अपनी कंपनी की फ़िल्म बनने के लिए निमंत्रित किया। यह तो तय था कि फ़िल्म के हीरो रितिक रोशन होंगे,लेकिन फ़िल्म की कहानी के लायक हीरोइन नहीं मिल पा रही थी.अनुराग ने राकेश रोशन से कहा कि क्यों न हॉलीवुडकी हीरोइनों में से चुना जाए.राकेश रोशन ने अनुराग को खुली छूट दी.कई सारी हीरोइनों से मिलने के बाद आखिरकार अनुराग बासु ने बारबरा मोरी को पसंद क

बारबरा मोरी:रितिक रोशन की नई हीरोइन

Image
बारबरा मोरी रितिक रोशन की नई हीरोइन हैं.उरुग्वे की बारबरा मोरी रितिक रोशन के साथ अनुराग बासु के निर्देशन में 'काइट्स' फ़िल्म में काम करेंगी.इसके निर्माता राकेश रोशन ही हैं.बारबरा मोरी ke बारे में विशेष जानकारी कल सुबह पढ़ें.

फिल्मों में वैचारिकता

Image
-अजय ब्रह्मात्मज कला और व्यावसायिक फिल्मों के बीच की दीवार अब ढह चुकी है, क्योंकि धीरे-धीरे कला फिल्मों के दर्शक और निर्देशक सिकुड़ते जा रहे हैं। दरअसल, समय के दबाव के कारण ही उनकी रुचि में बदलाव आया है और सच तो यह है कि अब वह दौर भी नहीं है, जब कला और व्यावसायिक सिनेमा के पार्थक्य को महत्व दिया जाता था! कला फिल्मों की टीम अलग होती थी और व्यावसायिक फिल्मों का अलग संसार था। कला फिल्मों को मिल रहा सरकारी संरक्षण बंद हो चुका है। आश्चर्य की बात तो यह है कि छोटे-मोटे निर्माता भी अब कला फिल्मों में धन निवेश नहीं करते! कला फिल्मों का सीधा रिश्ता है वैचारिकता और सामाजिकता से। हिंदी सिनेमा के इतिहास पर नजर डालें, तो हम पाएंगे कि कला फिल्मों का उद्भव घनघोर व्यावसायिकता के दौर में हुआ था। दरअसल, हिंदी फिल्मों की समृद्ध परंपरा में एक ऐसा मोड़ भी आया था, जब मुख्य रूप से प्रतिहिंसा और बदले की भावना से प्रेरित फिल्में ही बन रही थीं। सलीम-जावेद में से जावेद अख्तर ने बखूबी उस दौरान लिखी अपनी फिल्मों को समाज की बौखलाहट से जोड़ दिया, लेकिन अमिताभ बच्चन को लेकर बनी प्रमुख फिल्मों का विश्लेषण करने पर हम य

अनुराग सिन्हा:उदित हुआ एक सितारा

Image
दूर-दूर तक अनुराग सिन्हा का फ़िल्म इंडस्ट्री से कोई रिश्ता नहीं है.वे हिन्दी फिल्मों के मशहूर सिन्हा के रिश्तेदार भी नहीं हैं.हाँ,फिल्मों से उनका परिचय पुराना है.अपने परिवार के साथ पटना के अशोक और मोना में फिल्में देख कर वे बड़े हुए हैं.मन के एक कोने में सपना पलता रहा कि फिल्मों में जाना है... एक्टिंग करनी है.आज वह सपना पूरा हो चुका है.अनुराग सिन्हा कि पहली फ़िल्म ७ मार्च को देश-विदेश में एक साथ रिलीज हो रही है.इस फ़िल्म में उनहोंने नाराज़ मुसलमान युवक नुमैर काजी की भूमिका निभाई है और फ़िल्म का नाम है ब्लैक एंड ह्वाइट . यह हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री की एक ऐतिहासिक घटना है.लंबे समय के बाद हिन्दी प्रदेश से आया कोई सितारा हिन्दी फिल्मों के आकाश में चमकने जा रहा है.गौर करें तो पायेंगे कि हिन्दी फिल्मों में हिन्दी प्रदेशों से सितारे नहीं आते.चवन्नी तो मानता है कि उन्हें आने ही नहीं दिया जाता.अगर कभी कोई मनोज बाजपेयी या आशुतोष राणा आ भी जाता है तो उसे किसी न किसी तरह किनारे करने या उसकी चमक धूमिल करने की कोशिश की जाती है.हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गलियारों में कुचले गए सपनों की दास्ताँ आम है.

सामाजिक मुद्दे मुझे छूते हैं: सुभाष घई

Image
-अजय ब्रह्मात्मज चर्चा है कि शोमैन सुभाष घई एक छोटी फिल्म ब्लैक एंड ह्वाइट लेकर आ रहे हैं? मैं छोटी नहीं, एक भिन्न फिल्म लेकर आ रहा हूं। वैसे, फिल्म छोटी या बड़ी रिलीज के बाद होती है। तारे जमीं पर को लोग छोटी फिल्म समझ रहे थे, लेकिन आज वह सबसे बड़ी हिट है। दर्शकों की स्वीकृति से फिल्म छोटी या बड़ी होती है। दरअसल, जब हम किसी फिल्म को छोटी फिल्म कहते हैं, तो उसका मतलब होता है रिअल लाइफ जैसी फिल्म, जिसमें आम जिंदगी के तनाव, संघर्ष और द्वंद्व रहते हैं। मेरी ज्यादातर फिल्में लार्जर दैन लाइफ थीं। उनमें ग्लैमर रहा, बड़े-बड़े स्टार रहे और बड़ी फिल्में रहीं। फिर इस बदलाव की वजह? जब मैंने इस फिल्म की कहानी सुनी, तो मुझसे कहानी ने कहा कि अगर आप रिअल में शूट करोगे, तो मैं चलूंगा। दरअसल, एक सच्चाई यह भी है कि हर फिल्म की कहानी ही भाषा, शैली, बजट, विस्तार, गहराई और भव्यता तय करती है। कुछ फिल्में भव्य होती हैं और कुछ गहरी होती हैं। ब्लैक ऐंड ह्वाइट गहरी फिल्म है। गहरी फिल्म को अगर आप छोटी कहेंगे, तो मुझे ऐतराज होगा। यह गहरी और विचारधारा की फिल्म है। इसे देखकर लोग कहेंगे कि घई ने ऐसी फिल्म क्यों बनाई

अमिताभ और वहीदा एक साथ

Image
यह ख़बर दो दिन पुरानी हो चुकी है.अदालत और कभी-कभी में वहीदा रहमान और अमिताभ बच्चन को एक साथ देख चुके और दिनों के मुरीद रहे दर्शक उन्हें फिर से एक साथ देख सकेंगे.यह सम्भव किया है राकेश मेहरा ने.राकेश मेहरा की फ़िल्म दिल्ली-६ में दोनों एक साथ नज़र आयेंगे। ख़बर के मुताबिक दिल्ली-६ में अभिषेक बच्चन के दादा-दादी को दिखाने की ज़रूरत थी.राकेश मेहरा सोच नहीं पा रहे थे कि किन दो सीनियर स्टार को पकड़ें,जो परदे पर सही लगें और अभिषेक के दादा-दादी भी दिखें.पिछले दिनों अभिषेक बच्चन के जन्मदिन पर अमिताभ बच्चन जयपुर गए थे.तभी राकेश मेहरा को ख्याल आय कि गोदी में बच्चा और गली में ढिंढोरा... उनहोंने अमिताभ बच्चन को राजी कर लिया,उसके बाद वहीदा रहमान को राजी किया गया.बस बन गई जोड़ी.वैसे पिता अमिताभ बच्चन को उनके दादा के रोल में देखना रोचक होगा। अमिताभ और वहीदा को लंबे समय के बाद बड़े परदे पर एक साथ देखना उनके प्रशंसक दर्शकों को निश्चित ही अच्छा लगेगा.

आमिर खान 'गजनी' में

Image
कुछ इस शक्ल और कुछ गंजे सिर के साथ दिखेंगे आमिर खान अपनी आगामी फ़िल्म गजनी में.इस फ़िल्म का निर्देशन दक्षिण के मुर्गुदास कर रहे हैं.यह फ़िल्म दक्षिण में सुपरहिट रही है.आमिर की इस फ़िल्म में दो नायिकाएं हैं-एक असिन और दूसरी जिया खान। अपनी हर फ़िल्म की तरह इस फ़िल्म में भी आमिर खान अपना १००% दे रहे हैं.मनोवैज्ञानिक रोमांच के तौर पर बन रही इस फ़िल्म में दर्शक आमिर खान को बिल्कुल अलग अंदाज में देखेंगे.वैसे आमिर के लिए अब यह कोई नई बात नहीं रह गई है.