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तरह-तरह के प्रचार!

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-अजय ब्रह्मात्मज फिल्म ओम शांति ओम और सांवरिया दोनों फिल्में दीवाली में आमने-सामने आ रही हैं। सच तो यह है कि दर्शकों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास में लगी दोनों फिल्में प्रचार के अनोखे तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। कहना मुश्किल है कि इन तरीकों से फिल्म के दर्शकों में कोई इजाफा होता भी है कि नहीं? हां, रिलीज के समय सितारों की चौतरफा मौजूदगी बढ़ जाती है और उससे दर्शकों का मनोरंजन होता है। सांवरिया का निर्माण सोनी ने किया है। सोनी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मशहूर कंपनी है। सोनी एक एंटरटेनमेंट चैनल भी है। सोनी के कारोबार से किसी न किसी रूप में हमारा संपर्क होता ही रहता है। सांवरिया की रिलीज के मौके पर सोनी उत्पादों की खरीद के साथ विशेष उपहार दिए जा रहे हैं। अगर आप भाग्यशाली हुए, तो प्रीमियर में शामिल हो सकते हैं और सितारों से मिल सकते हैं। उधर एक एफएम चैनल शाहरुख खान की फिल्म ओम शांति ओम के लिए प्रतियोगिता कर रहा है। विजेताओं को शाहरुख के ऑटोग्राफ किए टी-शर्ट मिलेंगे। टीवी के कार्यक्रमों, खेल संबंधित इवेंट और सामाजिक कार्यो में दोनों ही फिल्मों की टीमें आगे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं। कोशिश है

बलराज साहनी की नज़र में फिल्मों की पंजाबियत

चवन्नी यह बात जोर-शोर से कहता रहा है कि हिन्दी फिल्मों में पंजाब और पंजाबियत का दबदबा है.कुछ लोग इसे चवन्नी की उत्तर भारतीयता से जोड़ कर देखते हैं.आप खुद गौर करें और गिनती करें कि अभी तक जितने हीरो हिन्दी फिल्मों में दिखे हैं ,वे कहाँ से आये हैं.आप पाएंगे कि ज्यादातर हीरो पंजाब से ही आये हैं.बलराज साहनी भी इस तथ्य को मानते हैं। बलराज साहनी की पुस्तक मेरी फिल्मी आत्मकथा के पृष्ठ २४ पर इसका उल्लेख हुआ है.बलराज साहनी के शब्द हैं: और यह कोई अनहोनी बात भी नहीं थी. पंजाब प्राचीन काल से ही आर्यों, युनानी, तुर्की और अन्य गोरी हमलावर कौमों के लिए भारत का प्रवेश-द्वार रहा है। यहां कौमों और नस्लों का खूब सम्मिश्रण हुआ है। इसी कारण इस भाग में आश्चर्यचकित कर देने की सीमा तक गोरे, सुन्दर लोग देखने में आते हैं. इसकी पुष्टि करने के लिए केवल इतना ही कहना पर्याप्त है कि पंजाब सदैव से हीरो-हीरोइनों के लिए फिल्म-निर्माताओं की तलाशगाह रहा है. दिलीप कुमार, राजकपूर, राजकुमार, राजिन्दर कुमार, देव आनन्द, धर्मेन्द्र, शशि कपूर, शम्मी कपूर, तथा अन्य कितने ही हीरो इसी ओर के लोग हैं. इस लिहाज से हमारा पिंडी-पिशौर त

शुक्रवार,२ नवम्बर ,२००७

ब्लॉग की दुनिया में पोस्टदेखी चलती है.आप का पोस्ट दिखता है तो लोग पढ़ते हैं और टिपण्णी भी करते हैं.आप पोस्ट न करें तो किसी को याद भी नही रहता कि आप ब्लॉग पर सक्रिय थे.बोधिसत्व अपवाद है,क्योंकि वे अभय तिवारी को याद करते हैं.चवन्नी किसी ग़लतफ़हमी में नही है कि उसका पोस्ट खूब पढ़ जाता है या कोई इंतज़ार करता है. शुक्रवार का यह पोस्ट २ नवम्बर को नही लिखा गया। चवन्नी आप को याद रहे न रहे ...वह लिखता रहेगा.पिछले शुक्रवार को चवन्नी शहर से दूर था और पोस्ट लिखने कि स्थिति में नही था.अब इसे संयोग ही कहें कि २ नवम्बर को कोई फिल्म रिलीज नही हुई.एक तरह से अच्छा ही रहा।वैसे आपको चवन्नी बता दे कि सांवरिया और ओउम शांति ओउम के दर से कोई निर्माता इस हफ्ते फिल्म रिलीज करने कि हिम्मत नही कर सका.किसी ने बताया कि दीवाली के पहले के हफ्ते में पिछले पच्चीस सालों से फिल्में रिलीज नही होती.अगर आप लोगों में से किसी को जानकारी हो तो बताएं. चलिए थोडी बासी खबरें ही जान लें.पिछले हफ्ते ऐश्वर्या राय और शाहरुख़ खान का जन्मदिन था.चवन्नी उन्हें बधाई देता है... देर से ही सही.उम्मीद है कि आप ने उन्हें बधाई भेज दी होगी.दोनों

'नो स्मोकिंग' का के काफ्का नहीं कश्यप है ... अनुराग कश्यप

हिंदी फिल्मों के अंग्रेजी समीक्षकों पर चवन्नी की हैरानी बढ़ती ही जा रही है. एक अंग्रजी समीक्षक ने तो 'नो स्मोकिंग' के बजाए अनुराग कश्यप की ही समीक्षा कर दी. वे अनुराग से आतंकित हैं. उनके रिव्यू में यह बात साफ झलकती है. क्यों आतंकित हैं? क्योंकि अनुराग उन्हें सीधी चुनौती देते हैं कि आप खराब लिखते हो और हर लेखन के पीछे निहित मंशा फिल्म नहीं ... कुछ और रहती है. 'नो स्मोकिंग' को लेकर बहुत कुछ लिखा और कहा जा रहा है. अनुराग कश्यप की यह फिल्म कुछ लोगों की समझ में नहीं आई, इसलिए निष्कर्ष निकाल लिया गया कि फिल्म बुरी है. इस लॉजिक से तो हमें जो समझ में न आए, वो सारी चीजें बुरी हो गई. समझदारी का रिश्ता उपयोगिता से जोड़कर ऐसे निष्कर्ष निकाले जाते हैं. आज की पीढ़ी संस्कृत नहीं समझती तो फिर संस्कृत में लिखा सब कुछ बुरा हो गया. और संस्कृत की बात क्या करें ... आज तो हिंदी में लिखा भी लोग नहीं पढ़ पाते, समझ पाते ... तो फिर मान लें कि हम सभी हिंदी में लिखने वाले किसी दुष्कर्म में संलग्न हैं. कला और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में वह तुरंत पॉपुलर और स्वीकृत होता है, जो प्रचलित रूप और फॉर्म अपना

रतलाम की गलियां

चवन्नी तो रवि रतलामी की वजह से रतलाम को जानता था.उसने अभी जब वी मेट फिल्म देखी.इसमें शाहिद कपूर के पीछे उतरी करीना की ट्रेन छोट जाती है तो वह शहीद पर ट्रेन पकड़वाने का दवाब डालती है.दोनों टैक्सी से रतलाम स्टेशन पहुँचते हैं.सामने प्लेटफॉर्म पर ट्रेन खड़ी है ,लेकिन करीना पानी के बोतल की ज्यादा कीमत के लिए उलझ जाती है और कंज्यूमर कोर्ट में जाने तक की बात करती है.इस बहस में उसकी ट्रेन फिर से छोट जाती है.फिर रतलाम रात की बाँहों में दिखाई पड़ता है.कुछ मनचले दिखते हैं.ऐसे मनचले हर शहर में प्लेटफॉर्म और बस स्टैंड पर मिल जायेंगे.चवन्नी को याद है कि कॉलेज के दिनों में उसके कुछ दोस्तों की शामें स्टेशन पर ही गुजरती थीं.उन्हें ट्रेन के आने-जाने का पूरा आईडिया रहता था.यहाँ तक तो सब सही लगता है। करीना प्लेटफॉर्म से बाहर आती है तो स्टेशन के बाहर उन औरतों के बीच अनजाने में खड़ी हो जाती है ,जो रात के ग्राहकों के इंतज़ार में हैं.तभी एक युवक मोटर साइकिल पर आता है और करीना से सौदा करता है.करीना उसे समझती है कि वह उस टाइप की नही है.वह युवक पीछे ही पड़ जाता है तो भागती है.संयोग से उसे फिर से शाहिद कपूर दिखता ह

चांद और हिन्दी सिनेमा

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चवन्नी ने हाल में ही सबसे बड़ा चांद देखा.हिन्दी फिल्मों में शुरू से चांद दिखता रहा है.फिल्मी गीतों चांद का प्रयोग बहुतायत से होता रहा है।गुलजार की हर फिल्म चांद के गीत से ही पूरी होती है.चवन्नी को कुछ गीत याद आ रहे हैं.कुछ आप याद दिलाएं. -चंदा ओ चंदा... -चंदा है तू मेरा सूरज है तू -चांद आहें भरेगा... -चांद को क्या मालूम... माफ करें आज कीबोर्ड नाराज दिख रहा है।मैं अपनी सूची नहीं दे पा रहा हूं. क्या आप सभी एक -एक गीत टिप्पणियों में देंगे?

अभिमान निषेध

हाल ही में गोवा की एक गैर सरकारी संस्था ने शाहरुख़ खान को नोटिस भेजी है.शाहरुख़ खान को १५ दिनों के अन्दर सफ़ाई भेजनी है की वे सार्वजनिक जगहों पर क्यों धूम्रपान करते हैं.सही सवाल उठाया गया है की उनके इस उच्छृंखल व्यवहार का किशोरों पर बुरा असर पड़ता है। फिल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों पर किसी भी प्रकार का निषेध लगाने से पहले ज़रूरी है कि उन पर अभिमान निषेध लगाया जाये.चवन्नी को इन स्टारों से मिलने के कई मौके मिले हैं और आगे भी मिलेंगे.बातचीत के दरम्यान थोडा बेतक़ल्लुफ़ होने पर इनका अभिमान जाग पड़ता है. अहम् सिर उठता है.लगभग सारे ही सितारे आत्मरति,आत्ममोह,आत्ममुग्धता और अंहकार के शिकार हैं.शाहरुख़ खान की बातचीत देखें और सुनें तो जाम की तरह छलकते उनके अहम् से आप गीले तक हो सकते हैं.सिर्फ शाहरुख़ ही क्यों ...हर स्टार केवल अपनी ही बात करता नज़र आता है। अभिमान होना या स्वाभिमानी होना गलत नही है,लेकिन अभिमान हद से बढे तो अंहकार बनता है और अहंकारी व्यक्ति अनजाने में अपना ही नुकसान करता रहता है.फिल्म जगत के लोगों को अपने अंहकार में नष्ट होते चवन्नी ने देखा,पढा और सुना है.चवन्नी की सिफारिश है क

दर्शनीय व विमर्श योग्य है नो स्मोकिंग

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-अजय ब्रह्मात्मज अनुराग कश्यप की इस फिल्म को कृपया जॉन अब्राहम की फिल्म समझ कर देखने न जाएं। हिंदी में स्टार केंद्रित फिल्में बनती हैं, जिनमें निर्देशक का हस्ताक्षर पहचान में ही नहीं आता। अनुराग कश्यप युवा निर्देशकों में एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फिल्में अभी तक स्टारों पर निर्भर नहीं करतीं। ऊपरी तौर पर यह के (जान अब्राहम) की कहानी है। उसे सिगरेट पीने की बुरी लत है। चूंकि वह बेहद अमीर है, इसलिए उसे लगता है कि उसकी लतों और आदतों को बदलने की सलाह भी उसे कोई नहीं दे सकता। एक स्थिति आती है, जब उसकी बीवी उसे आखिरी चेतावनी देती है कि अगर उसने सिगरेट नहीं छोड़ी तो वह उसे छोड़ देगी। वह घर से निकल भी जाती है। के अपनी बीवी से बेइंतहा प्यार करता है। बीवी को वापस लाने के लिए वह सिगरेट छोड़ने की कोशिश में बाबा बंगाली से मिलता है। यहां से उसकी जिंदगी और लत को बाबा बंगाली नियंत्रित करते हैं। इसके बाद एक ऐसा रूपक बनता है, जिसमें हम इस संसार में रिश्तों की विदू्रपताओं को देखते हैं। स्वार्थ के वशीभूत दोस्त भी कितने क्रूर और खतरनाक हो सकते हैं। फिल्म के अंत में हम देखते हैं कि के भी उसी विद्रूपता का शिक

जब वी मेट: भारतीयता का रसीला टच

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-अजय ब्रह्मात्मज इम्तियाज अली की जब वी मेट शुद्ध मनोरंजक रोमांटिक कामेडी है। फिल्म पहले ही दृश्य से बांधती है। मुंबई से भटिंडा तक के सफर में यह फिल्म आपको हंसाती, गुदगुदाती और रिझाती हुई ले जाती है। शाहिद कपूर और करीना कपूर की रोमांटिक जोड़ी फिल्म का सबसे मजबूत और प्रभावशाली आधार है। आदित्य (शाहिद) अपने कंधों पर अचानक आ गई जिम्मेदारी से घबराकर यूं ही निकल जाता है। उसका यह निष्क्रमण गौतम बुद्ध की तरह नहीं है। वस्तुत: वह अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करता है। ट्रेन में उसकी मुलाकात गीत (करीना कपूर) से होती है। बक-बक करने में माहिर गीत के दिल से खुशी लगातार छलक-छलक पड़ती है। जिंदगी को अपने ढंग से जीने पर आमादा गीत अपनी मुश्किलों में आदित्य को ऐसा फंसाती है कि उसे भटिंडा तक जाना पड़ता है। जब वी मेट एक स्तर पर दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का भारतीय और अल्प बजट संस्करण है। मुंबई से मध्यप्रदेश, फिर राजस्थान और पंजाब होते हुए हिमाचल तक की यात्रा में हम विभिन्न प्रसंगों में ऐसे दृश्य देखते हैं, जो मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के फिल्मकारों के अनुभव और कल्पना के परे हैं। इम्तियाज अली के सटीक संवाद और दृश

अनुराग कश्यप का पक्ष

(चवन्नी ने अनुराग कश्यप के ब्लॉग का एक अंश तीन दिनों पहले पोस्ट किया तह.तभी वादा किया था कि पूरा पोस्ट जल्दी ही आप पढेंगे.पेश है सम्पूर्ण पोस्ट...आप पढें और अपनी राय ज़रूर दें.एक विमर्श शुरू हो तो और अच्छा... ) कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता ॥ बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है … हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्‌दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने