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‘3 इडियट’ के तीनों इडियट ही ला रहे हैं ‘पीके’

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आमिर खान ने आगामी फिल्म ‘पीके’ के प्रचार के लिए इस बार नया तरीका अनपाया है। वे इस फिल्म की टीम के साथ सात शहरों की यात्रा पर निकले हैं। आज पटना से इसकी शुरुआत हो रही है। इस अभियान में वे ‘3 इडियट’ का प्रदर्शन करेंगे और फिर आमंत्रित दर्शकों से बातचीत करेंगे। पटना के बाद वे बनारस, दिल्ली, अहमदाबाद, हैदराबाद, जयपुर और रायपुर भी जाएंगे। पटना के लिए उड़ान भरने से पहले उन्होंने अजय ब्रह्मात्माज से खास बातचीत की। प्रचार के इस नए तरीके के आयडिया के बारे में बताएं ? हमलोग ‘3 इडियट’ दिखा रहे हैं। मकसद यह बताने का है कि ‘3 इडियट’ की टीम एक बार फिर आ रही है। इस बार वही टीम ‘पीके’ ला रही है। ‘3 इडियट' के तीनो इडियट राजू,विनोद और मैं अब ‘पीके’ लेकर आ रहे हें। हमलोग तयशुदा सात शहरों में ‘3 इडियट’ की स्क्रीनिंग करेंगे। इस स्क्रीनिंग में आए लोगों के साथ फिल्म खत्म होने के बाद हमलोग बातचीत करेंगे। कोशिश है कि हमलोग ग्रास रूट के दर्शकों से मिलें। पटना से शुरूआत करने की कोई खास वजह...? पटना से शुरूआत करने की यही वजह है कि ‘पीके’ में मेरा किरदार भोजपुरी बोलता है। वास्तव में हमलो

दरअसल: किताब के रूप में 3 इडियट्स की मूल पटकथा

-अजय ब्रह्मात्‍मज विधु विनोद चोपड़ा ने एक और बढि़या काम किया। उन्होंने 3 इडियट्स की मूल पटकथा को किताब के रूप में प्रकाशित किया है। मूल पटकथा के साथ फिल्म के लेखक और स्टारों की सोच और बातें भी हैं। अगर कोई दर्शक, फिल्मप्रेमी, फिल्म शोधार्थी 3 इडियट्स के बारे में गहन अध्ययन करना चाहता है, तो उसे इस किताब से निश्चित रूप से मदद मिलेगी। 20-25 साल पहले हिंद पॉकेट बुक्स ने गुलजार और राजेन्द्र सिंह बेदी की लिखी पटकथाओं को किताबों के रूप में छापा था। उसके बाद पटकथाएं छपनी बंद हो गई। पाठक और दर्शकों को लग सकता है कि प्रकाशकों की पटकथाओं में रुचि खत्म हो गई होगी। सच्चाई यह है कि एक लंबा दौर ऐसी हिंदी फिल्मों का रहा है, जहां कथा-पटकथा जैसी चीजें होती ही नहीं थीं। यकीन करें, हिंदी फिल्मों में फिर से कहानी लौटी है। पटकथाएं लिखी जा रही हैं। उन्हें मुकम्मल करने के बाद ही फिल्म की शूटिंग आरंभ होती है। इधर हिंदी सिनेमा पर चल रहे शोध और अध्ययन का विस्तार हुआ है। लंबे समय तक केवल अंग्रेजीदां लेखक और पश्चिम के सौंदर्यशास्त्री और लोकप्रिय संस्कृति के अध्येता ही हिंदी फिल्मों पर शोध कर रहे थे। उनकी छिटपुट क

दरअसल:वर्चुअल पब्लिसिटी

-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्मों की रिलीज तक निर्माता, निर्देशक और उसके कलाकार फिल्म के प्रचार का हर कारगर तरीका अपनाते हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के जरिए अपने इंटरव्यू में दर्शकों को फिल्म के बारे में बताते हैं। शहरों में होर्डिग और पोस्टर लगाए जाते हैं। ऑनलाइन पब्लिसिटी की जाती है। टीवी पर प्रोमो चलते हैं और सिनेमाघरों में चल रही फिल्मों के साथ आगामी फिल्मों के ट्रेलर दिखाए जाते हैं। इन दिनों फिल्मों की रिलीज के पहले अनेक तरह के प्रोमोशनल इवेंट होते हैं, जिनमें कंज्यूमर प्रोडक्ट कंपनियां फिल्मी सितारों के साथ कार्यक्रम करती हैं। ताजा तरीका आमिर खान का रहा। उन्होंने दर्शकों को चुनौती दी कि वे उन्हें खोजें या पकड़ लें। लुकाछिपी के इस खेल से उन्होंने 3 इडियट्स को प्रचारित किया। फल सामने दिख रहा है। यह फिल्म बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स के साथ छोटे-बड़े शहरों के सिंगल स्क्रीन थिएटरों में भी संतोषजनक व्यवसाय कर रही है। उन्हें अपनी फिल्मों के नए प्रचारक भी मिले हैं। अभी तक ट्रेड पंडित और फिल्म पत्रकारों से आपने सुना होगा कि फलां फिल्म की अच्छी ओपनिंग नहीं लगी है, लेकिन उम्मीद है कि माउथ पब्

कामयाबी तो झ;ा मार का पीछे आएगी-राज कुमार हिरानी

-अजय ब्रह्मात्‍मज युवा पीढ़ी के संवेदनशील निर्देशक राज कुमार हिरानी की फिल्म '3 इडियट' 25 दिसंबर को रिलीज हो रही है। उनकी निर्देशन प्रक्रिया पर खास बातचीत- [फिल्मों की योजना कैसे जन्म लेती है? अपनी फिल्म को कैसे आरंभ करते हैं आप?] मेरी फिल्में हमेशा किसी थीम से जन्म लेती हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस के समय विचार आया कि डाक्टरों के अंदर मरीज के प्रति करुणा हो तो बीमारियों का इलाज आसान होगा। लगे रहो मुन्नाभाई के समय मैंने गांधीगिरी की प्रासंगिकता का थीम लिया। 3 इडियट में मैं कहना चाहता हूं कि आप कामयाबी के पीछे न भागें। काबिलियत के पीछे भागें तो कामयाबी के पास कोई चारा नहीं होगा, वह झख मार कर आएगी। [क्या पहले एक्टर के बारे में सोचते हैं और फिर कैरेक्टर डेवलप करते हैं या पहले कैरेक्टर गढ़ते हैं और फिर एक्टर खोजते हैं?] मैं स्क्रिप्ट लिखने के बाद एक्टर के बारे में सोचता हूं। सिर्फ थीम पर फिल्म बनेगी तो बोरिंग हो जाएगी, कैरेक्टर उसे इंटरेस्टिंग बनाते हैं, फिर माहौल और उसके बाद सीन बनते हैं। स्क्रिप्ट लिखने की राह में जो दृश्य सोचे जाते हैं, उनमें से कुछ अंत तक जाते हैं और कुछ मर जाते हैं

पक्का इडियट का इकबालिया बयान

साताक्रूज में स्थित विधु विनोद चोपड़ा के दफ्तर की पहली मंजिल का विशाल कमरा...दरवाजे के करीब तीन कुर्सियों के साथ लगी है छोटी-सी टेबल और उसके ठीक सामने रखा है आधुनिक शैली का सोफा। लाल टीशर्ट,जींस और स्लीपर पहने आमिर कमरे में प्रवेश करते हैं। उनके हाथों में मोटी-सी किताब है। [दिल से चुनता हूं फिल्में] फिल्म साइन करते समय यह नहीं सोचता हूं कि मुझे यूथ से कनेक्ट करना है या कोई मैसेज देना है। फिल्म की कहानी सुनते समय मैं सिर्फ एक आडियंस होता हूं। देखता हूं कि कहानी सुनते समय मुझे कितना मजा आया? मजा अलग-अलग रीजन से आ सकता है। या तो बहुत एंटरटेनिंग कहानी हो या इमोशनल कहानी हो या फिल्म कोई ऐसी चीज कह रही हो, जो सोचने पर मजबूर कर रही हो। मतलब यह है कि कहानी सुनते समय मेरा पूरा ध्यान उसी में घुसा रहे। केवल उसी के लिए हा करता हूं जिसकी कहानी मेरे दिल को छू लेती है। ['सरफरोश' के बाद का सफर] पिछले दस सालों के अपने करिअर का रिव्यू करने पर मैं पाता हूं कि मेरी सारी फिल्में एक्सपेरिमेंटल किस्म की हैं। मेनस्ट्रीम से अलग हैं। अगर सोच-समझ कर फैसला लेता तो मैं ये फिल्में कर ही नहीं पाता। मैं अपने