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सिनेमालोक : खुश्बू हैं निदा फाजली

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सिनेमालोक खुश्बू हैं निदा फाजली -अजय ब्रह्मात्मज अपनी फिल्म पत्रकारिता में कुछ अफ़सोस रह ही जायेंगे.उनका निदान या समाधान नहीं हो सकता.उसे सुधारा ही नहीं जा सकता. एक समय था कि लगभग हर हफ्ते निदा साहब से मुलाक़ात होती थी.मुंबई के खार डांडा की अम्रर बिल्डिंग के पहले माले के उनके फ्लैट का दरवाज़ा सभी पत्रकारों और साहित्यकारों के लिए खुला रहता था. मुझे अफ़सोस है कि उनके जीते जी मैंने कभी उनसे उनके फ़िल्मी करियर के बारे में विस्तृत बातचीत क्यों नहीं की? या कभी उन पर लिखने का ख्याल क्यों नहीं आया? शायद करीबी और पहुँच में रहने वली हतियों के प्रति यह नाइंसाफी इस सनक में हो जाती है कि उनसे तो कभी भी बात कर लेंगे. फ्रीलांसिंग के दिनों में किसी संपादक या प्रभारी ने उन पर कुछ लिखने के लिए भी नहीं कहा. बहरहाल,पिछले दिनों उनकी पत्नी मालती जोशी और मित्र हरीश पाठक के निमंत्रण पर निदा फाजली पर कुछ पढने और बोलने का मौका मिला.मुझे केवल उनके फ़िल्मी पक्ष पर बोलना था...बतौर गीतकार.पता चला कि उन्होंने फिल्मों के लिए 348 गीत लिखे. निदा साहब ग्वालियर के मोल निवासी थे,जहाँ उनका परिवार कश्मीर से आकर बसा था.

सिनेमालोक : धारावी का ‘गली बॉय’

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सिनेमालोक धारावी का ‘गली बॉय’ -अजय ब्रह्मात्मज जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय’ की खूब चर्चा हो रही है.जावेद अख्तर और हनी ईरानी की बेटी और फरहान अख्तर की बहन जोया अख्तर अपनी फिल्मों से दर्शकों को लुभाती रही हैं.उनकी फ़िल्में मुख्य रूप से अमीर तबके की दास्तान सुनाती हैं.इस पसंद और प्राथमिकता के लिए उनकी आलोचना भी होती रही है.अभि ‘गली बॉय’ आई तो उनके समर्थकों ने कहना शुरू किया कि जोया ने इस बार आलोचकों का मुंह बंद कर दिया. जोया ने अपनी फिल्म से जवाब दिया कि वह निम्न तबके की कहानी भी कह सकती हैं.’गली बॉय’ देख चुके दर्शक जानते हैं कि यह फिल्म धारावी के मुराद के किरदार को लेकर चलती है.गली के सामान्य छोकरे से उसके रैप स्टार बनने की संगीतमय यात्रा है यह फिल्म. इस फिल्म की खूबसूरती है कि जोया अख्तर मुंबई के स्लम धारावी की गलियों से बहार नहीं निकलतीं.मुंबई के मशहूर और परिचित लोकेशन से वह बसची हैं.इन दिनों मुंबई की पृष्ठभूमि की हर फिल्म(अमीर या गरीब किरदार) में सी लिंक दिखाई पड़ता है.इस फिल्म में सीएसटी रेलवे स्टेशन की एक झलक मात्र आती है.फिल्म के मुख्य किरदार मुराद और सफीना के मिलने की

सिनेमालोक : कामकाजी प्रेमिकाएं

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सिनेमालोक कामकाजी प्रेमिकाएं -अजय ब्रह्मात्मज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने इश्क और काम के बारे में लिखा था : वो लोग बड़े खुशकिस्मत थे जो इश्क को काम समझते थे या काम से आशिकी करते थे हम जीते जी मशरूफ रहे कुछ इश्क किया कुछ काम किया काम इश्क के आड़े आता रहा और इश्क से काम उलझता रहा आखिर तंग आकर हम ने दोनों को अधूरा छोड़ दिया. आज की बात करें तो कोई भी लड़की इश्क और काम के मामले में फ़ैज़ के तजुर्बे अलग ख्याल रखती मिलेगी.वह काम कर रही है और काम के साथ इश्क भी कर रही है.उसने दोनों को अधूरा नहीं छोड़ा है.इश्क और काम दोनों को पूरा किया है और पूरी शिद्दत से दोनों जिम्मेदारियों को निभाया है.आज की प्रेमिकाएं कामकाजी हैं.वह बराबर की भूमिका निभाती है और सही मायने में हमकदम हो चुकी है.अब वह पिछली सदी की नायिकाओं की तरह पलट कर नायक को नहीं देखती है.उसे ज़रुरत ही नहीं पडती,क्योंकि वह प्रेमी की हमकदम है. गौर करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी फिल्मों की नायिकाओं के किरदार में भारी बदलाव आया है.अब वह परदे पर काम करती नज़र आती है.वह प्रोफेशनल हो चुकी है.गए वे दिन जब वह प्रेमी के ख्यालों में डूबी

सिनेमालोक : क्यों मौन हैं महारथी?

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सिनेमाहौल क्यों मौन हैं महारथी? -अजय ब्रह्मात्मज सोशल मीडिया के प्रसार और प्रभाव के इस दौर में किसी भी फिल्म की रिलीज के मौके पर फ़िल्मी महारथियों की हास्यास्पद सक्रियता देखते ही बनती है?हर कोई आ रही फिल्म देखने के लिए मर रहा होता है.यह अंग्रेजी एक्सप्रेशन है...डाईंग तो वाच.हिंदी के पाठक पूछ सकते हैं कि मर ही जाओगे तो फिल्म कैसे देखोगे?बहरहाल,फिल्म के फर्स्ट लुक से लेकर उसके रिलीज होने तक फिल्म बिरादरी के महारथी अपने खेमे की फिल्मों की तारीफ और सराहना में कोई कसार नहीं छोड़ते हैं.प्रचार का यह अप्रत्यक्ष तरीका निश्चित ही आम दर्शकों को प्रभावित करता है.यह सीधा इंडोर्समेंट है,जो सामान्य रूप से गलत नहीं है.लेकिन जब फिल्म रिलीज होती है और दर्शक किसी महारथी की तारीफ के झांसे में आकर थिएटर जाता है और निराश होकर लौटता है तो उसे कोफ़्त   होती है.फिर भी वह अगली फिल्म के समय धोखा खाता है. इसके विपरीत कुछ फिल्मों की रिलीज के समय गहरी ख़ामोशी छा जाती है.महारथी मौन धारण कर लेते हैं.वे नज़रअंदाज करते हैं.महसूस होने के बावजूद स्वीकार नहीं करते कि सामने वाले का भी कोई वजूद है.ऐसा बहार से आई प्र

सिनेमालोक : बहुभाषी सिनेमा बेंगलुरु में

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सिनेमालोक बहुभाषी सिनेमा बेंगलुरु में -अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में बेंगलुरु से लौटा हूँ.पिछले शुक्रवार को बेंगलुरु में था.आदतन शुक्रवार को वहां के मल्टीप्लेक्स में ताज़ा रिलीज़ ‘मणिकर्णिका’ देखने गया.आशंका थी कि कन्नड़भाषी प्रान्त कर्णाटक की राजधानी बेंगलुरु में न जाने ‘मणिकर्णिका’ को प्रयाप्त शो मिले हों कि नहीं मिले हों.मुंबई और उत्तर भारत में यह बात फैला दी गयी है कि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री ने राज्य सरकार पर दवाब डाल कर ऐसा माहौल बना दिया है कि हिंदी फिल्मों को सीमित शो मिलें.कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री को बचने और चलाये रखने के लिए यह कदम उठाया गया था.यह स्वाभाविक और ज़रूरी है. महाराष्ट्र में महाराष्ट्र सरकार ने मल्टीप्लेक्स में प्राइम टाइम पर मराठी फिल्मों के शो की अनिवार्यता से स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री को संजीवनी दी है.यह कभी सोचा और लागू किया गया होगा.पिछले हफ्ते का मेरा अनुभव भिन्न और आदर्श रहा.अगर सारे मेट्रो शहरों के मल्टीप्लेक्स में ऐसी स्थिति आ जाये तो भारतीय फिल्मों के लिए वह अतिप्रिय आदर्शवादी बात होगी. मैं पास के मल्टीप्लेक्स में सुबह 10 बजे के शो के लिए गया था.उस मुल्त्प्

सिनेमालोक : एनएम्आईसी सरकार का सराहनीय कदम

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सिनेमालोक : एनएम्आईसी सरकार का सराहनीय कदम  पिछले शनिवार को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेशनल म्यूजियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा का उद्घाटन किया.यह मुबई के पेडर रोड स्थित फिल्म्स डिवीज़न के परिसर में दो इमारतों में आरम्भ हुआ है.पिछले दो दशकों के टालमटोल और कच्छप गति से चल रही प्रगति के बाद आख़िरकार इसका शुभारम्भ हो गया.प्रधान मंत्री ने समय निकाला.वे उद्घाटन के लिए आये.ऐसा नहीं है कि उद्घाटन की औपचारिकता निभा कर वह निकल गए.उन्होंने पहले संग्रहालय का भ्रमण किया.खुद देखा.सराहना की और फिर 50 मिनट लम्बा भाषण दिया.इस भाषण में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री की उपलब्धियों की तारीफ की.उसे उभरते सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने फिल्म व्यवसाय के अनेक आयामों को छूते हुए कुछ घोषनाएँ भी कीं.वे इस अवसर पर प्रफ्फुल्लित नज़र आ रहे थे.उन्होंने भाषण में अपने निजी अनुभवों को शेयर किया और बार-बार कहा कि आप सभी का योगदान प्रसंसनीय है.उन्होंने मंच से कुछ फिल्मकारों और हस्तियों के नाम लिए और उनके व्यापक योगदान को रेखांकित किया. नेशनल म्यूजियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा(एनएमआईसी) के लिए कोई हिंदी पर्याय नहीं

सिनेमालोक : चाहिए कंटेंट के साथ कामयाबी

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सिनेमालोक चाहिए कंटेंट के साथ कामयाबी -अजय ब्रह्मात्मज 2018 में रिलीज हुई फिल्मों के आधार पर ट्रेन और निष्कर्ष उनकी बात करते हुए लगभग सभी समीक्षकों और विश्लेषको ने स्त्री अंधाधुंध और बधाई हो का उल्लेख करते हुए कहा कि दर्शक अब कंटेंट पसंद करने लगे हैं. संयोग ऐसा हुआ कि खानत्रयी(आमिर,शाह रुख और सलमान) की फिल्में अपेक्षा के मुताबिक शानदार कारोबार नहीं कर सकीं.बस,क्या था? खान से बेवजह परेशान विश्लेषकों ने बयान जारी करने के साथ फैसला सुना दिया कि खानों के दिन लद गए.27 सालों के सफल अडिग कैरियर में चंद फिल्मों की असफलता से उनके स्टारडम की चूलें नहीं हिलेंगी.हां, उन्हें अपनी उम्र के अनुसार भूमिकाएं चुनते समय दर्शकों की बदलती अभिरुचि का खयाल रखना होगा.उदीयमान सितारों राजकुमार राव,आयुष्मान खुराना और विकी कौशल को 2019 में रिलीज हो रही फिल्मों से साबित करना होगा कि वे ताज़ा स्टारडम के काबिल हैं. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि कंटेंट प्रधान छोटी फिल्मों का ज़िक्र करते समय हम उन फिल्मों के ही नाम गिनाते हैं,जिन्होंने 100 करोड़ या उसके आसपास का कारोबार किया.इसी लिहाज से 'स्त्री

सिनेमालोक : शहरी दर्शकों के लिए बन रहा है सिनेमा

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सिनेमालोक शहरी दर्शकों के लिए बन रहा है सिनेमा -अजय ब्रह्मात्मज याद करें कि ग्रामीण पृष्ठभूमि की आखिरी फिल्म कौन सी देखी थी? मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि किस आखिरी फिल्म में धोती-कमीज और साडी पहने किरदार दिखे थे.बैलगाड़ी,तांगा और सायकिल भी गायब हो चुके हैं.कुआं,रहट,चौपाल,खेत-खलिहान आदी की ज़रुरत ही नहीं पड़ती.कभी किसी आइटम सोंग में हो सकता है कि यह सब या इनमें से कुछ दिख जाये.तात्पर्य यह कि फिल्म की आवश्यक प्रोपर्टी या पृष्ठभूमि में इनका इस्तेमाल नहीं होता.अब ऐसी कहानियां ही नहीं बनतीं और कैमरे को ग्रामीण परिवेश में जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती.धीरे-धीरे सब कुछ शहरों में सिमट रहा है.किरदार,परिवेश और भाषा शहरी हो रही है. दरअसल,फ़िल्में शहरी दर्शकों के लिए बन रही हैं.हिंदी फ़िल्में कहने को पूरे भारत में रिलीज होती हैं,लेकिन हम जानते है कि दक्षिण भारत में हिंदी फिल्मों की मौजूदगी टोकन मात्र ही होती है.तमिल और तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री हिंदी के समकक्ष खड़ी है.कन्नड़ और मलयालम के अपने दर्शक हैं.कर्णाटक में हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन पर हदबंदी रहती है.दक्षिण के राज्य अपनी भाषा की फिल्मों के लिए स

सिनेमालोक : कार्तिक आर्यन

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सिनेमालोक कार्तिक आर्यन -अजय ब्रह्मात्मज इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. दस महीने पहले 23 फ़रवरी को ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ रिलीज हुई थी. लव रंजन की इसी फिल्म के शीर्षक से ही प्रॉब्लम थी. कुछ को यह टंग ट्विस्टर लग रहा था तो अधिकांश का यही कहना था कि यह भी कोई नाम हुआ? फिल्म रिलीज हुई और सभी को पसंद आई. इस तरह के विषय की फिल्मों पर रीझ रहे दर्शक टूट पड़े तो वहीँ खीझ रहे समीक्षक इसे दरकिनार नहीं कर सके.समीक्षकों ने फिल्म के विषय की स्वाभाविक आलोचना की, लेकिन उसके मनोरंजक प्रभाव को स्वीकार किया.नतीजा यह हुआ कि खरामा-खरामा यह फिल्म 100 करोड़ के क्लब में पहुंची. फिल्म के कलाकारों में सोनू यानि कार्तिक आर्यन को शुद्ध लाभ हुआ. छह सालों से अभिनय की दुनिया में ठोस ज़मीन तलाश रहे कार्तिक आर्यन को देखते ही देखते दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री ने कंधे पर बिठा लिया. उन्हें फ़िल्में मिलीं,एनडोर्समेंट मिले और कार्तिक ग्लैमर

सिनेमालोक : राधिका आप्टे

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सिनेमालोक राधिका आप्टे -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स ने एक ट्विट किया कि ‘अंधाधुन की स्ट्रीमिंग चल रही है.यह इसलिए नहीं बता रहे हैं कि इसमें राधिका आप्टे हैं,लेकिन हाँ इसमें राधिका आप्टे हैं.’ इस ट्विट की एक वजह है.कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर मीम चल रही थी और दर्शक सवाल कर रहे थे कि नेटफ्लिक्स के हर हिंदी प्रोग्राम में राधिका आप्टे ही क्यों रहती है? संयोग कुछ ऐसा हुआ कि ‘लस्ट स्टोरीज’,’सेक्रेड गेम्स’ और ‘गुल’ में एक के बाद एक राधिका आप्टे ही दिखीं.मान लिया गया है कि डिजिटल शो में राधिका का होना लाजिमी है. करियर के लिहाज से देखें तो राधिका आप्टे की पहली फिल्प्म 2005 में ही आ गयी थी.उन्होंने महेश मांजरेकर के निर्देशन में ‘वह लाइफ हो तो ऐसी’ फिल्म की थी,जिसमे शहीद कपूर और अमृता राव मुख्या भूमिकाओं में थे.उस फिल्म की आज किसी को याद भी नहीं है.हिंदी,बंगाली मराठी और तेलुगू फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकायें करने के बाद एक तरीके से ऊब कर राधिका लंदन चली गयीं.वहां उन्होंने कंटेम्पररी डांस सीखा.वहीँ उनके लाइफ पार्टनर बेनेडिक्ट टेलर भी मिल गए.कु

सिनेमालोक : तापसी पन्नू

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सिनेमालोक तापसी पन्नू दिसंबर आरभ हो चुका है.इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. हम शुरुआत कर रहे हैं तापसी पन्नू से.2012 की बात है.तापसी पन्नू की पहली हिंदी फिल्म ‘चश्मेबद्दूर ’ रिलीज होने वाली थी. चलन के मुताबिक तापसी के निजी पीआर ने उनके साथ एक बैठक तय की.पता चला था कि दक्षिण की फिल्मों से करियर आरम्भ कर दिल्ली की यह पंजाबी लड़की हिंदी में आ रही है.पहली फिल्म के समय अभनेता/अभिनेत्री थोड़े सहमे और डरे रहते हैं.तब उनकी चिंता रहती है कि कोई उनके बारे में बुरा न लिखे और उनका ज़रदार स्वागत हो.तापसी भी यही चाहती रही होंगी या यह भी हो सकता है कि पीआर कंपनी ने उन्हें भांप लिया हो.बहरहाल अंधेरी के एक रेस्तरां में हुई मुलाक़ात यादगार रही थी.यादगार इसलिए कह रहा हूँ की , उसके बाद तापसी ने हर मुलाक़ात में पहली भेंट का ज़िक्र किया.हमेशा अच्छी बातचीत की.अपनी तैरियों और चिंताओं को शेयर किया.अपना हमदर्द समझा.कामयाबी के साथ आ

सिनेमालोक : ठगे गए दर्शक,लुट गए निर्माता

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सिनेमालोक ठगे गए दर्शक , लुट गए निर्माता -अजय ब्रह्मात्मज दीवाली के मौके पर रिलीज हुई ‘ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान’ ने पहले दिन ही 50 करोड़ से अधिक का कलेक्शन कर एक नया रिकॉर्ड बना दिया.फिर तीन दिनों में 100 करोड़ क्लब में फिल्म आ गयी. चार दिनों के वीकेंड में 123 करोड़ के कुल कलेक्शन की विज्ञप्ति आ चुकी है.कमाई के इन पड़ावों के बावजूद ‘ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान’ के बारे में आम धारणा बन चुकी है कि इस फिल्म को दर्शकों ने नापसंद कर दिया है.यह फिल्म अपेक्षा के मुताबिक दर्शकों को लुभा नहीं सकी. नतीजतन फिल्म का कारोबार लगातार नीचे की ओर फिसल रहा है.ट्रेड पंडित हैरान नहीं हैं.उनहोंने तो पहले दिन ही घोषणा कर दी थी.उसके बाद शायद ही किसी समीक्षक ने फिल्म की तारीफ की हो.फिल्म देख कर निकले दर्शक सोशल मीडिया और लाइव रिव्यू में फिल्म से निराश दिखे.. पहली बार तो ऐसा नहीं हुआ है , लेकिन हाल-फिलहाल की यह बड़ी घटना है जब किसी फिल्म ने दोनों पक्षों को निराश किया.’ठग्स ऑफ़ हिंदोस्तान’ की घोषणा के समय से दर्शकों की उम्मीदें अमिताभ बच्चन और आमिर खान की जोड़ी से बंध गयीं.हिंदी फिल्मों के सन्दर्भ में यह बड़ी घटना है.दो

सिनेमालोक : लोकप्रियता का नया पैमाना

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सिनेमालोक लोकप्रियता का नया पैमाना -अजय ब्रह्मात्मज सोशल मीडिया के विस्तार से फिल्मों के प्रचार को नए प्लेटफार्म मिल गए हैं.फेसबुक , इंस्टाग्राम , ट्विटर और यूट्यूब....सोशल मीडिया के चरों प्लेटफार्म किसी भी फिल्म के प्रचार के लिए मह्त्वपूर्ण हो गए हैं.उनके लिए खास रणनीति अपनाई जा रही है.कोशिश हो रही है कि ज्यादा से ज्यादा यूजर और व्यूअर इन प्लेटफार्म पर आयें.जितनी ज्याद तादाद , निर्माता-निर्देशक और स्टार की उतनी बड़ी संतुष्टि.आरंभिक ख़ुशी तो मिल ही जाती है.ख़ुशी होती है तो जोश बढ़ता है और फिल्म के प्रति उत्सूकता घनी होती है.इन दिनों फिल्मों की कमाई और कामयाबी के लिए वीकेंड के तीन दिन ही थर्मामीटर हो गए हैं.वीकेंड के तीन दिन के कलेक्शन से पता चल जाता है कि फिल्म का लाइफ टाइम बिज़नस क्या होगा ? शायद ही कोई फिल्म सोमवार के बाद नए सिरे से दर्शकों को आकर्षित कर पा रही है. पिछले हफ्ते ‘जीरो’ और ‘2.0’ के ट्रेलर जारी हुए.मुंबई के आईमैक्स वदला में प्रशंसकों और मीडिया के बीच ट्रेलर जरी कर निर्देश आनद एल राय ने अपने स्टार श रुख खान , अनुष्का शर्मा और कट्रीना कैफ के साथ मीडिया को संबोधित क

सिनेमालोक : मुंबई में फिल्मों की फुहार

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सिनेमालोक मुंबई में फिल्मों की फुहार   -अजय ब्रह्मात्मज मुंबई में इन दिनों फिल्मों की बहार है.खास कर पश्चिमी उपनगर के तीन मल्टीप्लेक्स में चल रही फिल्मों की फुहार से सिनेप्रेमी भीग रहे हैं. वे सिक्त हो रहे हैं.देश-विदेश से लायी गयी चुनिन्दा फिम्लें देखने के लिए उमड़ी दर्शकों की भीड़ आश्वस्त करती है कि इन्टरनेट प्रसार के बाद फिल्मों की ऑन लाइन उपलब्धता के बावजूद दर्शक सिनेमाघरों के स्क्रीन पर फ़िल्में देखना पसंद करते हैं.फेस्टिवल सिनेमा का सामूहिक उत्सव है.दर्शकों को मौका मिलता है कि वे अपनी रिची और पसंद के मुताबिक फ़िल्में देखें और सह्दर्शक के साथ उस पर बातचीत करें.ज्यादातर नयी फिल्मों के निर्माता , निर्देशक और कलाकार फिल्मों के प्रदर्शन के बाद दर्शकों से मुखातिब होते हैं. वे उनकी जिज्ञासाओं के जवाब देते हैं.यह सुखद अनुभव होता है.फेस्टिवल के मास्टरक्लास से अंतर्दृष्टि मिलती है और विमर्शों से सिनेमहौल की दिशा और दृष्टि मिलती है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने आज़ादी के बाद देश में विभिन्न कला माध्यमों के विकास के लिए अनेक संस्थाओं का गठन किया,जिनके तहत कला चेतना के

सिनेमालोक दीपिका-रणवीर की शादी

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सिनेमालोक दीपिका-रणवीर की शादी -अजय ब्रह्मात्मज दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की शादी की ट्विटर पर की गयी संयुक्त घोषणा ने मीडिया की संडे की शांति में खलबली मचा दी. धडाधड अपडेट होने लगे और उनकी पंक्तियों को दोहराया और उद्धृत किया जाने लगा.हाल-फिलहाल में शादी की घोषणा कर रही किसी फिल्म स्टार जोड़ी ने पहली बार हिंदी में भी अपना सन्देश जारी किया.इस बात के लिए हिंदी फिल्मों के दोनों स्टार बधाई के पात्र हैं.ठीक है कि वर्तनी और व्याकरण की कुछ गलतियाँ हैं.जैसे कि दीपिका का नाम ही दीपीका लिखा गया है.फिर भी जिस इंडस्ट्री में अंग्रेजी का बोलबाला है,वहां पॉपुलर स्टार की ऐसी पहल के दूरगामी प्रभाव होते हैं. बताते हैं कि 2012 में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला ’ की शूटिंग के दरम्यान दोनों करीब आये.संजय लीला भंसाली की अगली दो फिल्मों में वे फिर से साथ रहे.शूटिंग के दिनों के लम्बे साथ में दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ सके.पहली फिल्म की रिलीज के बाद से ही दोनों की नजदीकियां नज़र आने लगी थीं , लेकिन शुरू में इसे रणवीर सिंह का हाइपर अंदाज माना गया.रणवीर मौके-बेमौके अप