सिनेमालोक
कामकाजी प्रेमिकाएं
-अजय ब्रह्मात्मज
वो
लोग बड़े खुशकिस्मत थे
जो
इश्क को काम समझते थे
या
काम से आशिकी करते थे
हम
जीते जी मशरूफ रहे
कुछ
इश्क किया कुछ काम किया
काम
इश्क के आड़े आता रहा
और
इश्क से काम उलझता रहा
आखिर
तंग आकर हम ने
दोनों
को अधूरा छोड़ दिया.
आज
की बात करें तो कोई भी लड़की इश्क और काम के मामले में फ़ैज़ के तजुर्बे अलग ख्याल
रखती मिलेगी.वह काम कर रही है और काम के साथ इश्क भी कर रही है.उसने दोनों को
अधूरा नहीं छोड़ा है.इश्क और काम दोनों को पूरा किया है और पूरी शिद्दत से दोनों
जिम्मेदारियों को निभाया है.आज की प्रेमिकाएं कामकाजी हैं.वह बराबर की भूमिका
निभाती है और सही मायने में हमकदम हो चुकी है.अब वह पिछली सदी की नायिकाओं की तरह
पलट कर नायक को नहीं देखती है.उसे ज़रुरत ही नहीं पडती,क्योंकि वह प्रेमी की हमकदम
है.
गौर
करेंगे तो पाएंगे कि हिंदी फिल्मों की नायिकाओं के किरदार में भारी बदलाव आया
है.अब वह परदे पर काम करती नज़र आती है.वह प्रोफेशनल हो चुकी है.गए वे दिन जब वह
प्रेमी के ख्यालों में डूबी रहती थी.प्रेमी के आने की आहट से लरजती और प्रेमी के
जाने से आहत होकर तडपती नहीं है.21 वीं सदी की पढ़ी-लिखी लड़कियां सिर्फ प्रेम नहीं
करतीं,वे प्रेम के साथ और कई बार तो उसके पहले काम कर रही होती हैं.जिंदगी में
लड़कियां लड़कों से दोस्ती रखती हैं,लेकिन उन्हें प्रेमी के तौर पर स्वीकार करने के
पहले अपने करियर के बारे में सोचती हैं.उन्हें बहु बन कर घर में बैठना मंज़ूर नहीं
है.परदे पर जिंदगी का विस्तार नहीं दिखाया जा सकता,लेकिन यह परिवर्तन दिखने लगा है
कि वे अपने प्रेमियों की तरह बोर्ड रूम की मीटिंग से लेकर २६ जनवरी की परेड तक में
पुरुषों/प्रेमियों के समक्ष नज़र आती हैं.
नए
सितारों में लोकप्रिय आयुष्मान खुराना की फिल्मों पर नज़र डालें तो उनकी प्रेमिकाएं
ज्यादातर स्वतंत्र सोच की आत्मनिर्भर लड़कियां हैं.आयुष्मान को हर फिल्म में निजी
समस्याओं को सुलझाने के साथ उनके काम के प्रति भी संवेदनशील रहना पड़ता है.कभी ऐसा
नहीं दिखा कि वे अपनी कामकाजी प्रेमिकाओं की व्यस्तता से खीझते दिखे हों.वास्तव
में यह जिंदगी का सर है.शहरी प्रेमकहानियों में कामकाजी प्रेमिकाओं की तादाद बढती
जा रही है.और यह अच्छी बात है.
इधर
की फिल्मों के प्रेमी-प्रेमिकाओं(नायक-नायिकाओं) का चरित्र बदल गया है.गीतकार
इरशाद कामिल कहते हैं कि अब जिंदगी में रहते हुए ही प्रेम किया जा रहा है.उन्हें
वीराने,चांदनी रात,झील और खयाली दुनिया की ज़रुरत और फुर्सत नहीं रह गयी है.फिल्मों
और जीवन में रोज़मर्रा की गतिविधियों के बीच ही प्रेम पनप रहा है.साथ रहने-होने की
रूटीन जिम्मेदारियों के बीच ही उनका रोमांस बढ़ता और मज़बूत होता है.फ़िल्में इनसे
अप्रभावित नहीं हैं.
परदे
की नायिकाओं की निजी जिंदगी में झाँकने पर हम देखते हैं कि पहले की अभिनेत्रियों
की तरह आज की अभिनेत्रियों को कुछ छिपाना या ढकना नहीं पड़ता है.बिंदास युवा
अभिनेत्रियाँ अपने प्रेमियों की पूर्व प्रेमिकाओं से बेधड़क मिलती और दोस्ती करती
हैं और अभिनेता भी प्रेमिकाओं के प्रेमियों से बेहिचक मिलते हैं.पूर्व प्रेमी-प्रेनिकाओं
से अलग होने और संबंध टूटने के बाद भी उन्हें साथ काम करने और परदे पर रोमांस करने
में हिचक नहीं होती.उनके वर्तमान प्रेमी-प्रेमिकाओं को यह डर नहीं रहता कि कहीं
शूटिंग के एकांत में पुराना प्रेम न जाग जाए.सचमुच दुनिया बदल चुकी है.प्रेम के
तौर-तरीके बदल गए हैं और प्रेमी-प्रेमिका तो बदल ही गए हैं.इस बदलाव में उत्प्रेरक
की भूमिका लड़कियों की है.उन्हें अब अपने काम के साथ इश्क करना है या यूँ कहें कि
इश्क के साथ काम करना है. अगर प्रेमी कुछ और चाहता है या इश्क का हवाला देकर काम
छुड़वाना चाहता है तो लड़कियां कई मामलों में प्रेमियों को छोड़ देती हैं.