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मंडावा में सलमान खान

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सलमान खान इन दिनों कबीर खान की फिल्‍म 'बजरंगी भाईजान' की शूटिंग राजस्‍थान के मंडावा में चल रही है। मंडावा बेहद खूबसूरत कस्‍बाई शहर है। यूरोप के किसी भी छोटे शहर को मात देती इस शहर की खूबसूरती मन मोह लेती है। पिछले साल 2014 में 'पीके' और 'जेड प्‍लस' की शूटिंग यहां हुई। अगर राजस्‍थान के मशहूर शहरों से अलग और विशेष कुछ देखना हो तो तंडावा जरूर जाएं।  चवन्‍नी के लिए ये तस्‍वीरें इंडीसिने के सौजन्‍य से ली जा रही हैं।

खानत्रयी (आमिर,शाह रुख और सलमान) का साथ आना

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अजय ब्रह्मात्मज किसी कार्यक्रम में खानत्रयी (आमिर, शाह रुख और सलमान) का साथ आना निस्संदेह रोचक खबर है। रजत शर्मा के टीवी शो ‘आप की अदालत’ की 21वीं वर्षगांठ पर आमिर, शाह रुख और सलमान तीनों दिल्ली में थे। वे एक साथ मंच पर आए। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं। तीनों के प्रशंसक पहली बार सम्मिलित रूप से खुश हैं और समवेत स्वर में गा रहे हैं। तीनों के साथ आने का यह अवसर महत्वपूर्ण हो गया है। इस खबर को उस कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से अधिक कवरेज मिला है। हमारे दैनंदिन जीवन में मनोरंजन जगत की हस्तियों की बढ़ती दखल का यह लक्षण है। हम उन्हें देख कर खुश होते हैं। अपनी तकलीफें भूल जाते हैं। इस बार तो तीनों एक साथ आए। आमिर, शाह रुख और सलमान के इस सम्मिलन के बारे में कहा जा रहा है कि वे पहली बार एक साथ दिखे। इस खबर में सच्चाई है। शाह रुख-सलमान और आमिर-सलमान की फिल्में भी आ चुकी हैं, लेकिन तीनों एक साथ शायद ही कभी किसी कार्यक्रम में आए हों। ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता।साक्ष्य के लिए कोई तस्वीर नहीं है। दरअसल, पिछले आठ-दस सालों में मीडिया के प्रसार के

दरअसल : ईद ने पूरी की उम्मीद

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-अजय ब्रह्मात्मज     इस साल भी सलमान खान को दर्शकों ने ईदी दी। उनकी फिल्म ‘किक’ को अपेक्षा के मुताबिक पर्याप्त दर्शक मिले। इस फिल्म के साथ सलमान खान सबसे आगे निकल गए हैं। ‘किक’ 100 करोड़ क्लब में आने वाली उनकी सातवीं फिल्म है। ‘दबंग’,‘दबंग 2’,‘एक था टाइगर’,‘बॉडीगार्ड’,‘रेडी’,‘जय हो’ और अब ‘किक’ की कामयाबी ने सलमान खान को अलग और ऊंचे मुकाम पर पहुंचा दिया है। हालांकि सबसे ज्यादा बिजनेस करने का रिकार्ड अब ‘धूम 3’ के साथ है,लेकिन सलमान ने संख्या के लिहाज से बाकी दोनों खानों (आमिर और शाहरुख) को पीछे छोड़ दिया है। शाहरुख खान 4 और आमिर खान 3 100 करोड़ी फिल्मों के साथ उनसे पीछे हैं। सलमान खान ने वफादार प्रशंसकों की वजह से यह बढ़त हासिल की है। माना जाता है कि उनकी ‘जय हो’ फ्लाप फिल्म है,जबकि उसका भी कारोबार 116 करोड़ रहा। वह 100 करोड़ क्लब में 14 वें स्थान पर है। यह लगभग वही स्थिति है,जब अमिताभ बच्चन की फ्लॉप फिल्में भी दूसरे स्टारों की हिट फिल्मों से ज्यादा बिजनेस करती थीं।     पिछले कुछ सालों से सलमान खान की एक फिल्म ईद के मौके पर जरूर रिलीज होती है। ट्रेड पंडित मानते हैं कि सलमान खान के प्

तस्‍वीरों में किक

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फिल्‍म समीक्षा : किक

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  कुछ फिल्में समीक्षाओं के परे होती हैं। सलमान खान की इधर की फिल्में उसी श्रेणी में आती हैं। सलमान खान की लोकप्रियता का यह आलम है कि अगर कल को कोई उनकी एक हफ्ते की गतिविधियों की चुस्त एडीटिंग कर फिल्म या डाक्यूमेंट्री बना दे तो भी उनके फैन उसे देखने जाएंगे। ब्रांड सलमान को ध्यान में रख कर बनाई गई फिल्मों में सारे उपादानों के केंद्र में वही रहते हैं। साजिद नाडियाडवाला ने इसी ब्रांड से जुड़ी कहानियों, किंवदंतियो और कार्यों को फिल्म की कहानी में गुंथा है। मूल तेलुगू में 'किक' देख चुके दर्शक बता सकेगे कि हिंदी की 'किक' कितनी भिन्न है। सलमान खान ने इस 'किक' को भव्यता जरूर दी है। फिल्म में हुआ खर्च हर दृश्य में टपकता है। देवी उच्छृंखल स्वभाव का लड़का है। इन दिनों हिंदी फिल्मों के ज्यादातर नायक उच्छृंखल ही होते हैं। अत्यंत प्रतिभाशाली देवी वही काम करता है, जिसमें उसे किक मिले। इस किक के लिए वह अपनी जान भी जोखिम में डाल सकता है। एक दोस्त की शादी के लिए वह हैरतअंगेज भागदौड़ करता है। इसी भागदौड़ में उसकी मुलाकात शायना से हो जाती है। शा

ताजिंदगी 27 साल का रहूं मैं-सलमान खान

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-अजय ब्रह्मात्मज ऐसा कम होता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सीनियर बाद की पीढ़ी की खुले दिल से तारीफ नहीं करते। सलमान खान इस लिहाज से भिन्न हैं। वे अपनी फिल्मों में नई प्रतिभाओं को मौका देते और दिलवाते हैं। पिछली मुलाकात में उन्होंने शुरुआत ही नए और युवा स्टारों की तारीफ से की। फिल्मों की रिलीज के समय उनके अपार्टमेंट गैलेक्सी के पास स्थित महबूब  स्टूडियो उनका दूसरा घर हो जाता है। एक अस्थायी कैंप बन जाता है। उनके सारे सहयोगी तत्पर मिलते हैं। यहीं वे मीडिया के लोगों से मिलते हैं। पिछले कुछ सालों से यही सिलसिला चल रहा है। ‘किक’ के लिए हुई इस मुलाकात में सलमान खान ने सबसे पहले अर्जुन कपूर ,आलिया भट्टऔर वरुण धवन समेत सभी नए टैलेंट की तारीफ की। उन्होंने अपने अनुभव से कहा कि वे खुले मिजाज के हैं। बातचीत और मेलजोल में किसी प्रकार का संकोच नहीं रखते। मैंने देखा है कि वे आपस में एक-दूसरे की खिंचाई भी करते हैं। खिल्ली उड़ाते हैं। मेरी पीढ़ी में केवल मैं हंसी-मजाक करता हूं। दूसरे तो सीरियस रहते हैं। अपनी पीढ़ी की बातें करते समय उन्होने जाहिर किया कि संजू यानी संजय दत्त के साथ उनकी ऐसी दोस्ती

किक का गाना जुम्‍मे की रात

हम जो कुछ नया करते हैं,वह पुराना ही होता है। अब किक का गाना 'जुममे की रात' ही देख लें। इस गाने का फील अमिताभ बच्‍चन पर फिल्‍माए लोकप्रिय गीत 'जुम्‍मा चुम्‍मा दे दे' जैसा ही है। अमिताभ बच्‍चन और सलमान खान अलग किस्‍म के डांसर और परफार्मर हैं। वह भिन्‍नता यहां दिखती है। सलमान खान अपने अंदाज में हैं। गौर करें तो वे अपनी नायिकाओं को रिझाते समय मदमस्‍त हो जाते हैं। जैक्‍लीन फर्नांडिस को सेक्‍सी रंग और ठसक ढंग से पेश किया गया है। हिमेश रेंश्‍मिया ने सलमान खान को पॉपुलर हो सकने वाले गाने की सौगात दी है। तो क्‍या आप भाई के साथ जुम्‍म्‍ो की रात बिताने के लिए तैयार हैं ?

दरअसल : ...इसलिए नहीं चली ‘जय हो’

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-अजय ब्रह्मात्मज     लोकप्रिय सितारों की हल्की पड़ती चमक के भी कारण कहीं और खोज लिए जाते हैं। बता दिया जाता है कि दर्शकों और सितारों के बीच किसी वजह से धुंध आ गई थी,इसलिए चमक धुधली हुई है। ये वजहें अतार्किक और बचकानी भी हो सकती हैं। दो हफ्ते पहले सलमान खान की फिल्म ‘जय हो’ रिलीज हुई अपेक्षा के मुताबिक इस फिल्म के कलेक्शन नहीं हुए। स्वयं सलमान खान भी हैरान रहे। वे फिल्म चलने की वजह खुद खोजें या बताएं, इसके पहले ही कुछ ट्रेड पंडितों ने उनके स्टारडम के बचाव ढूंढ निकाले। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निमंत्रण पर सैफई महोत्सव में शरीक होना और अहमदाबाद जाकर वहां के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ पतंग उड़ाना ‘जय हो’ के लिए नुकसानदेह साबित हुआ।     कहा जा रहा है कि मुस्लिम संगठनों और नेताओं की अपील पर देश के मुसलमान दर्शकों ने ‘जय हो’ और सलमान खान का बहिष्कार कर दिया। वे फिल्म देखने ही नहीं गए। इस तर्क का एक अव्यक्त पहलू है कि सलमान खान की कामयाब फिल्में कथित मुसलमान दर्शकों की वजह से ही चलीं। देश के दर्शकों का यह विभाजन ट्रेड सर्किल करता रहा है। पहले ये विचार

जयप्रकाश चौकसे के साथ अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्‍मज          जयप्रकाश चौकसे लगातार लिखते रहे हैं और जानकारी देने के अलावा आप दिशा भी देते रहे कि कैसे फिल्मों को देखा जाए और कैसे समझा जाए। एक पीढ़ी नहीं अब तो कई पीढिय़ां हो गई हैं जो उनको पढ़ कर फिल्मों के प्रति समझदार बनी। हम उनका नाम रोजाना पढ़ते हैं , लेकिन बहुत सारे लोग उनके बारे में जानते नहीं हैं। -पहला सवाल यही कि आप अपने बारे में संक्षेप में बताएं। कहां रहते हैं ? कहां रहते थे ? कहां से शुरुआत हुई ? 0 खांडवा से आगे एक छोटा शहर है बुरहानपुर। यह महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश का बॉर्डर टाउन है। मेरा जन्म बुरहानपुर में हुआ है। उस समय वह एकदम छोटा शहर था। दस-पंद्रह हजार आबादी वाला शहर होगा, लेकिन उस छोटे शहर में एजुकेशन की फैसीलिटी थी। कम पॉपुलेशन के बावजूद करीब सात-आठ स्कूल थे। आगे जा कर कुछ समय बाद कॉलेज भी खुल गया था वहां। मेरे पिता व्यापारी थे, पर एजुकेशन प्रति उनका लगाव बहुत गहरा था। हम चार भाई हैं। मैं सबसे छोटा हूं। हमारे परिवार में नौकर इसलिए रखा था हमारे पिता जी ने कि वह साइकिल से लालबाग रेलवे स्टेशन जाता था और अखबार खरीद कर लाता था। बुरहानपुर में रे