Posts

Showing posts with the label लेखक

लेखकों के सम्‍मान की लड़ाई

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  आजकल जितने टीवी चैनल, लगभग उतने अवार्ड। ये अवार्ड टीवी सीरियल और शो में उल्लेखनीय काम कर रहे कलाकारों, लेखकों, तकनीशियनों और निर्माता-निर्देशकों को दिए जाते हैं। याद करें कि क्या आपने किसी टीवी अवार्ड समारोह में किसी लेखक को पुरस्कार ग्रहण करते देखा है? न तो किसी लेखक का नाम याद आएगा और न ही उनका चेहरा, जबकि टीवी और फिल्म का ब्लू प्रिंट सबसे पहले लेखक तैयार करता है। फिल्मों के अवार्ड समारोह में अवश्य लेखकों को पुरस्कार लेते हुए दिखाया जाता है। टीवी के लेखकों को यह मौका नहीं दिया जाता। क्यों..? टीवी लेखकों का एक समूह मुंबई में यही सवाल पूछ रहा है। उनके संगठन ने सदस्य लेखकों का आवान किया है कि वे अपने सम्मान के लिए पुरस्कार समारोहों का बहिष्कार करें। वे अपने नाम से दिए जाने वाले पुरस्कारों को ठुकरा दें। उनकी अनेक शिकायतें हैं। पुरस्कारों के लिए नामांकित लेखकों को समारोहों में बुला तो लिया जाता है, लेकिन उन्हें पुरस्कार ग्रहण करने के लिए मंचपर नहीं बुलाया जाता। उन्हें रिहर्सल के दौरान ही पुरस्कार देते हुए शूट कर लिया जाता है और आग्रह किया जाता है कि

दरअसल : नहीं करते हम लेखकों का उल्लेख

-अजय  ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों एक लेखक के साथ लंबी बैठक हुई। वे साहित्यिक लेखक नहीं हैं। फिल्में लिखते हैं। उनकी कुछ फिल्में पुरस्कृत और चर्चित हुई हैं। हाल ही में उनकी लिखी फिल्म वेलडन अब्बा की समीक्षकों ने काफी तारीफ की। वे समीक्षकों से बिफरे हुए थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, किसी भी अंग्रेजी समीक्षक ने फिल्म की तारीफ में लेखक का हवाला नहीं दिया। उन्होंने यह जानने और बताने की जरूरत नहीं समझी कि वेलडन अब्बा का लेखक कौन है? बोमन ईरानी की तारीफ करते हुए भी उन्हें खयाल नहीं आया कि जरा पता कर लें कि इस किरदार को किसने रचा? मैं एनएसडी के स्नातक और संवेदनशील लेखक अशोक मिश्र की बात कर रहा हूं। उन्होंने ही श्याम बेनेगल की वेलकम टू सज्जनपुर भी लिखी थी। इन दिनों वे श्याम बेनेगल के लिए एक पॉलिटिकल कॉमेडी फिल्म लिख रहे हैं। यह शिकायत और नाराजगी केवल अशोक मिश्र की नहीं है। वे सीधे व्यक्ति हैं, इसलिए उन्होंने अपना असंतोष जाहिर कर दिया। बाकी चुपचाप खटते (लिखते) रहते हैं। वे समीक्षकों से कोई उम्मीद नहीं रखते। निर्माता-निर्देशक भी उन्हें अधिक महत्व नहीं देते। उनका