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रोज़ाना : आजादी का पखवाड़ा

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रोज़ाना आजादी का पखवाड़ा -अजय ब्रह्मात्‍मज 15 अगस्‍त तक चैनल और समाचार पत्रों में आजादी की धमक मिलती रहेगी। मॉल और बाजार भी इंडपेंडेस सेल के प्रचार से भर जाएंगे। गली,नुक्‍कड़ और चौराहों पर तिरंगा ल‍हराने लगेगा। आजादी का 70 वां साल है,इसलिए उमंग ज्‍यादा रहेगी। जश्‍न होना भी चा‍हिए। आजाद देश के तौर पर हम ने चहुमुखी तरक्‍की की है। अभी और ऊचाइयां हासिल करनी हैं। समृद्ध और विकसित देशों के करीब पहुंचना है। जरूरी है कि हम आजादी का महत्‍व समझें और उसे के भावार्थ को जान-जन तक पहुंचाएं। बिल्‍कुल जरूरी नहीं है कि दुश्‍मनों के होने पर ही देशहित और राष्‍ट्र की बातें की जाएं या उन बातों के लिए एक दुश्‍मन चुन लिया जाए। अभी यह चलन बनता जा रहा है कि हम पड़ोसी देशों की दुश्‍मनी के नाम पर ही राष्‍ट्र की बातें करते हैं। वास्‍तव में अपनी कमियों से मुक्ति और आजादी की लड़ाई हमें लड़नी है। हर फ्रंट पर देश पिछड़ता और फिसलता दिख रहा है। उसे रोकना है। विकास के रास्‍तों को सुगम करना है। परस्‍पर सौहार्द और समझदारी के साथ आगे बढ़ना है। राजनीतिक दांव-पेंच में न फंस कर हमें देश के हित में सोचना और कार्य

रोज़ाना : रिलीज तक व्‍यस्‍त रहते हैं निर्देशक

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रोज़ाना रिलीज तक व्‍यस्‍त रहते हैं निर्देशक -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों रणबीर कपूर के पिता ऋषि कपूर ‘ जग्‍गा जासूस ’ के निर्देशक अनुराग बसु पर भड़के हुए थे। उन्‍होंने अनुराग बसु की लेट-लतीफी की खिंचाई की। बताया कि फिल्‍म की रिलीज के दो दिन पहले तक वे पोस्‍ट प्रोडक्‍शन में लगे हुए थे। उन्‍होंने फिल्‍म किसी को नहीं दिखाई। और फिल्‍म रिलीज हुई तो ऋषि कपूर समेत कई दर्शकों को पसंद नहीं आई। ऋषि कपूर की शिकायत का आशय यह था कि अगर वक्‍त रहते शुभचिंतक फिल्‍म देख लेते तो वे आवश्‍यक सुधार की सलाह देते। तब शायद फिल्‍म की ऐसी आलोचना नहीं होती। कहना मुश्किल है कि क्‍या होता ? अगर रिलीज के पहले दिखा और ठोक-बजा कर रिलीज की सारी फिल्‍में सफल होतीं तो ऋषि कपूर की कोई भी फिल्‍म फ्लॉप नहीं हुई होती। फिल्‍मों की सफलता-असफलता बिल्‍कुल अलग मसला है। उस मसले से इतर यह आज की सच्‍चाई है कि तकनीकी सुविधाओं के चलते निर्देशक और उनकी तकनीकी टीम अंतिक क्षणों तक फिल्‍म में तब्‍दीलियां करती रहती हैं। उनकी यही मंशा रहती है कि कोई कमी या कसर ना रह जाए। मुमकिन है इससे फिल्‍म को संवारने में मदद मिलती हो।

रोज़ाना : पूरी हो गई मंटो की शूटिंग

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22 जुलाई,2017 रोज़ाना पूरी हो गई मंटो की शूटिंग -अजय ब्रह्मात्‍मज नंदिता दास ने ‘ मंटो ’ की शूटिंग पूरी कर ली। अब वह एडीटिंग में जुटेंगी। खुशखबर का यह एक रोचक पड़ाव है। फिल्‍म पूरी होने और रिलीज होने के पहले ऐसे अनेक पड़ावों से गुजरना पड़ता है। ‘ मंटो ’ जैसी फिल्‍म हो तो हर पड़ाव के बाद आगे का मोड अनिश्चित दिशा में होता है। अंदाजा नहीं रहता कि सब कुछ ठीक तरीके से आगे बढ़ रहा है या रास्‍ते में कहीं भटक गए और फिल्‍म रिलीज तक नहीं पहुंच सकी। इन आशंकाओं में समाज और सिनेमा के कथित ठेकेदार भी होते हैं,जो आपत्तियों की लाठी भंजते रहते हैं। उन्‍हें हर प्रकार की क्रिएटिविटी से दिक्‍कत होती है। नंदिता दास संवेदनशील और जागरूक अभिनेत्री व निर्देशक हैं। अभी का समाज जागरुकों से कुछ ज्‍यादा ही खफा है। बहराहाल,शूटिंग पूरी होने की शुभकामनाओं के साथ नंदिता दास को बधाइयां कि वह ऐसे वक्‍त में मंटो को लेकर आ रही हैं,जो भीतरी तौर पर पार्टीशन के मरोड़ से गुजर रहा है। संदेह का धुंआ उठता है और हर छवि धुंधली हो जाती है। आकृतियां लोप होने लगती हैं। केवल शोर सुनाई पड़ता है। एक भीड़ होती है,जो सूज

रोज़ाना : शाह रूख खान की ईद

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रोज़ाना शाह रूख खान की ईद -अजय ब्रह्मात्‍मज ईद के मौके पर शाह रूख खान बुलाते हैं। वे मीडियाकर्मियों को ईद की दावत देते हैं। इस दावत में देर-सबेर वे शामिल होते हैं। मीडियाकर्मियों से जत्‍थे में मिलते हैं। उनसे अनौपचारिक बातें करते हैं। अफसोस कि ये अनौपचारिक बातें भी रिकार्ड होती हैं। अगले दिन सुर्खियां बनती हैं। अब न तो फिल्‍म स्‍टार के पास सब्र है और न पत्रकारों के पास धैर्य...स्‍टार की हर बात खबर होती है। वे खुद भी पीआर के प्रेशर में में हर मौके को खबर बनाने में सहमति देने लगे हैं। या कम से कम तस्‍वीरें तो अगले दिन आ ही जाती हैं। चैनलों पर फटेज चलते हैं। सभी के करोबार को फायदा होता है। हर साल ईद के मौके पर सलमान खान की फिल्‍में रिलीज हो रही हैं और शाह रूख खान से ईद पर उनकी अगली फिल्‍मों की बातें होती हैं,जो दीवाली या क्रिसमस पर रिलीज के लिए तैयार हो रही होती हैं। वक्‍त ऐसा आ गया है कि पत्रकार हर मुलाकात को आर्टिकल बनाने की फिक्र में रहते हैं। उन पर संपादकों और सहयोगी प्रकाशनों का अप्रत्‍यक्ष दबाव रहता है। अघोषि प्रतियोगिता चल रही होती है। सभी दौड़ रहे होते हैं। इस दौ

रोज़ाना : एयरपोर्ट लुक

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रोज़ाना एयरपोर्ट लुक -अजय ब्रह्मात्‍मज मिलीभगत है। ज्‍यादातर बार फोटोग्राफर को मालूम रहता है कि कब कौन सी सेलिब्रिटी कहां मौजूद रहेगी। उनकी पीआर मशीनरी सभी फोटोग्राफर और मीडियाकर्मियों को पूर्वसूचना दे देते हैं। विदेशों की तरह भारत में पापाराजी नहीं हैं। यहां दुर्लभ तस्‍वीरों और खबरों की भी सामान्‍य कीमत होती है। विदेशों में एक दुर्लभ तस्‍वीर के लिए फोटोग्राफर भारी खर्च करते हैं और धैर्य से घात लगाए रते हैं। यह बंसी डाल कर मछली पकड़ने से अधिक अनिश्चित और वक्‍तलेवा काम होता है। मुंबई में फिल्‍मी सितारों की निजी गतिविधियों की जानकारी छठे-छमाही ही तस्‍वीरों में कैद होकर आती है। बाकी सब पूर्वनियोजित है,जो खबरों की तरह परोसा जा रहा है। ऐसी ही पूर्वनियोजित खबरों व तस्‍वीरों में इन दिनों ‘ एयरपोर्ट लुक ’ का चलन बढ़ा है। ‘ एयरपोर्ट लुक ’ उस खास तस्‍वीर के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है,जो मुंबई से बाहर जाते-आते समय एयरपोर्ट के अराइवल और डिपार्चर के बाहर फिल्‍मी सितारों उतारी जाती हैं। गौर करेंगे कि कुछ फिल्‍मी हस्तियों की तस्‍वीरें बार-बार आती हैं। इसका चलन इतना ज्‍यादा बढ़ ग

रोज़ाना : झकास अनिल कपूर

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रोज़ाना झकास अनिल कपू -अजय ब्रह्मात्‍मज अनीस बज्‍मी की ‘ मुबारकां ’ के ट्रेलर लांच के मौके पर अनिल कपूर मौजूद थे। मंच पर उनकी उर्जा देख कर सभी खुश थे। उन्‍हें इस उम्र(61 वर्ष) में भी उर्जावान देख कर हैरानी नहीं होती। वे अपने समकालीनों में सबसे चुस्‍त-दुरुस्‍त हैं। वे लगातार काम कर रहे हैं। उन्‍होंने अभी तक अपने जूते नहीं टांगे हैं। इसकी कोई संीाावना भी नहीं है। इसी ट्रेलर लांच में जब आतिया शेट्टी और इलियाना डिक्रूज उन्‍हें बार-बार ‘ सर ’ संबोधित कर रही थीं तो उन्‍होंने बिफर कर कहा,क्‍या कभी मैंने तुम दोनों को मैथ्‍स या साइंस पढ़ाया है या मुझे ब्रिटेन की महारनी ने ‘ सर ’ का खिताब दिया है। प्‍लीज मुझे ‘ सर ’ न कहो। अनिल कपूर की यही झकास अदा है। वे जवानों के बीच उनसे भी अधिक जवान दिखते हैं। वे नहीं चाहते कि उन्‍हें बुजुर्ग बता कर दरकिनार कर दिया जाए। डेनी डेंजोग्‍पा उनके नियमित कसरत की तारीफ करते हैं। शूटिंग की व्‍यस्‍तता के बीच भी वे वाक और रन के लिए समय निकाल लेते हैं। अड़तीस साल हो गए। सन् 1979 में अनिल कपूर ने उमेश मेहरा की फिल्‍म ‘ हमारे तुम्‍हारे ’ में एक छोटी

रोज़ाना : फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय

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रोज़ाना फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय -अजय ब्रह्मात्‍मज गौर किया होगा...इम्तियाज अली ने अपनी फिल्‍म 'जब हैरी मेट सेजल' के पहले लुक और नाम की घोषणा दो पोस्‍टरों के साथ की थी। बाद में दोनों पोस्‍टर को एक पोस्‍टर में डाल कर पूरा नाम लिखा गया। इस फिल्‍म के नाम की चर्चा अभी तक नहीं थमी है। कुछ इसे इम्तियाज अली की पुरानी फिल्‍म से प्रेरित मानते हैं तो कुछ इसे लेखक-निर्देशक(इम्तियाज स्‍वयं) की सोच और कल्‍पना का दिवालियापन समझ रहे हैं। यह नाम चल तो रहा है,लेकिन गति नहीं पकड़ सका है। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ की संपूर्णता टुकड़ों में ही अपनी प्रेम कथा परोसेगी। हाल ही में ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ के मिनी ट्रेलर जारी किए गए। इस ट्रेलर को जारी करने के दो दिन पहले इम्तियाज अली और शाह रूख खान मीडिया से मिले थे। उन्‍होंने प्रायवेट स्‍क्रीनिंग के दौरान अपनी बातें रखी थं और बताया था कि वे ऐसा क्‍यों कर रहे हैं। दो-तीन छोटी झलकियों के बाद एक गाना जारी किया जाएगा। कोशिश यह है कि दर्शक फिल्‍म के फ्लेवर,फन और ज्‍वॉय के लिए तैयार हो सकें। इम्तियाज अली इसे नए मिजाज की फिल्‍म मानते हैं,इसलिए पारंपरिक

रोज़ाना : क्‍या ‘कन्‍हैया’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से

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रोज़ाना क्‍या ‘ कन्‍हैया ’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से -अजय ब्रह्मात्‍मज चौंके नहीं, कन्‍हैया राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आगामी फिल्‍म ‘ मेरे प्रिय प्रधान मंत्री ’ का बाल नायक है। वह मुंबई के गांधीनगर(कल्पित) चाल में रहता है। अपनी मां के लिए व‍ि चिंतित है। चाल में शौखलय का इंतजाम न होने से उसकी मां को खुले में शौच के लिए जाना होता है। वह अपनी मां के लिए शौचालय बनवाना चाहता ह। इस कोशिश में उसे पता चलता है कि देश के प्रधान मंत्री उसकी मदद कर सकते हैं। वे स्‍वच्‍छ भारत भारत अभियान में शौच पर बहुत जोर देते हैं। यहां तक कि लाल किले के प्राचीर से भी उन्‍होंने देशवासियों का आह्वान किया था। कन्‍हैया उन्‍हें चिट्ठी लिखता है। वह उनसे मिलने की कोशिश करता है,लेकिन... राकेश ओमप्रकाश मेहरा को इस फिल्‍म का आयडिया पसंद आया। लगभग चार साल पहले वाया दिल्‍ली बिहार से मुंबई आए मनोज मैरता ने इस फिल्‍म के आयडिया पर काम किया। उन्‍हें इस फिल्‍म का आयडिया जमुनापार के इलाके में में दिल्‍ली मैट्रो से सफर के दौरान हुआ। उन्‍होने जमुना के किनारे झ़ग्‍गी-झोंपड़ी के औरतों और मर्दो को डब्‍बा उठाए शौच के ल

रोज़ाना : अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार

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रोज़ाना अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म रिलीज होने के पहले या बाद में हम लेखकों से बातें नहीं करते। सभी मानते हें कि किसी जमाने में सलीम-जावेद अत्‍यंत लोकप्रिय और मंहगे लेखक थे। उस जमाने में भी फिल्‍मों की रिलीज के समय उनके इंटरव्‍यू नहीं दपते थे। उन्‍होंने बाद में भी विस्‍तार से नहीं बताया कि ‘ जंजीर ’ के विजय को कैसे सोचा और गढ़ा। कुछ मोटीज जानकारियां आज तक मीडिया में तैर रही हैं। अमिताभ बच्‍चन स्‍वयं अपने किरदारों के बारे में अधिक बातें नहीं करते। वे लेखकों और निर्देशकों को सारा श्रेय देकर खुद छिप जाते हैं। अगर हिंदी फिल्‍मों के किरदारों को लेकर विश्‍लेषणात्‍मक बातें की जाएं तो कई रोचक जानकारियां मिलेंगी। क्‍यों कोई किरदार दर्शकों का चहेता बन जाता है और उसे पर्दे पर जी रहा कलाकार भी उन्‍हें भा जाता है ? इसे खोल पाना या डिकोड कर पाना मुश्किल काम है। अगर फिल्‍म किसी खास चरित्र पर नहीं है या बॉयोपिक नहीं है तो हमेशा प्रमुख चरित्र अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है। जीवन में ऐसे वास्‍तविक चरित्रों का मिलना मुश्किल है। सबसे पहले लेखक

रोज़ाना : चाहिए यूपी की कहानी

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रोज़ाना चाहिए यूपी की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों फिल्‍मों में स्क्रिप्‍ट और संवाद लिख चुके जयपुर,राजस्‍थान के मूल निवासी रामकुमार सिंह ने दो ट्वीट किए। उन्‍होंने ट्वीट में राजस्थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को टै ग किया और लिखा... मैडम , हम राजस्थान की कहानी सिनेमा में कहना चाहते हैं पर निर्माता हमसे यूपी की कहानी मांगते हैं , क्योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। अगले ट्वीट में उन्‍होंने आग्रह किया... बॉलीवुड में राजस्थान और राजस्थानियों के बारे में कुछ सोचिये मैडम प्लीज। रामकुमार सिंह की इस व्‍यथा के दो पहलू स्‍पष्‍ट हैं। एक तो राजस्‍थान में कोई ठोस फिल्‍म नीति नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक तौर पर राजे-रजवाड़ों के किलों की शूटिंग के लिए हिंदी फिल्‍मकार राजस्‍थान जाते रहे हैं। हाल ही में राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि की ‘ पद्मावती ’ की शूटिंग में संजय लीला भंसाली की शूटिंग में विध्‍न पड़ा और उन्‍हें उन दृश्‍यों की शूटिंग के लिए नासिक जाना पड़ा और मुंबई आना पड़ा। राजस्‍थान में सुविधाएं मिल जाती हैं,लेकिन किसी प्रकार की रियायत या सब्सिडी की व्‍यवस्‍था नहीं है। र

रोज़ाना : ‘बोर्डर के 20 साल

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रोज़ाना ‘ बोर्डर के 20 साल -अजय ब्रह्मात्‍मज 20 सालों पहले 13 जून 1997 को जेपी दत्‍ता निर्देशित ‘ बोर्डर ’ रिलीज हुई थी। 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के समय बीकानेर के पास लोंगोवाल सीमांत पर हुई मुठभेड़ में भारतीय सैनिकों की इस शौर्यगाथा को देश के दर्शकों ने खूब सराहा था। 1997 में बाक्‍स आफिस पर सबसे ज्‍यादा कलेक्‍शन करने वाली राष्‍ट्रीय भावना की इस फिल्‍म के साथ देश के दर्शकों का भावनात्‍मक रिश्‍ता है। हम इसे भारत के विजय प्रयाण के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। पिछले साल रक्षा मंत्रालय और फिल्‍म समारोह निदेशालय ने आजादी की 70 वीं सालगरिह की शुरुआत के मौके पर पिछले साल ‘ बोर्डर ’ का विशेष प्रदर्शन किया था। ‘ बोर्डर ’ को कुल 62 पुरस्‍कार मिले थे। पिछले रविार को जेपी दत्‍ता ने ‘ बोर्डर ’ के 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में यूनिट और मीडिया के सदस्‍यों को याद किया। उन्‍होंने इस मौके पर ट्राफी बांटी। फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार सनी देओल शहर से बाहर होने की वजह से नहीं पहुंच सके। सुनील शेट्टी,जैकी श्राफ,पूजा भट्ट ने इस मौके पर ‘ बोर्डर ’ के निर्माण के दिनों को याद किया

रोज़ाना : नाम और पोस्‍टर

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रोज़ाना नाम और पोस्‍टर -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज अली की शाह रूख खान और अनुष्‍का शर्मा की फिल्‍म का टायटल फायनल हो गया। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ नाम से फिल्‍म के पोस्‍टर एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित किए गए है। गौर करें तो यह दो पोस्‍टर का सेट है,जिसमें पहले पोस्‍टर पर ‘ जब हैरी ’ और दूसरे पोस्‍टर पर ‘ मेट सेजल ’ लिखा बया है। दोनों किरदारों के नाम लाल रंग में लिखे गए हैं। पोस्‍टर में टैग लाइन है... ’ ह्वाट यू सीक इज सीकिंग यू ’ । जलालुद्दीन रुमी की यह पक्ति इम्तियाज अली को बेहद पसंद है। उन्‍होंने इस पंक्ति को फिल्‍म में संवाद के तौर पर रखा है। हिंदी साहित्‍य से परिचित पाठक लगभग इसी भाव पर लिखी रामनरेश त्रिपाठी की ‘ अन्‍वेषण ’ शीर्षक कविता याद कर सकते हैं... ’ मैं ढूँढता तुझे था , जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था , तब दीन के सदन में। सारे संबंध पारस्‍परिक होते हैं। हम जिसकी तलाश में रहते है,वह खुद हमारी तलाश में रहता है। भारतीय दर्शन में ‘ तत् त्‍वम असि ’ भी कहा गया है। इम्तियाज अली भी अपनी फिल्‍मों में संबंधों और भावों की तलाश में रहते हैं। ऊपरी तौर पर उनकी फ

रोज़ाना : मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म

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रोज़ाना मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज किसी राजनीतिक व्‍यक्ति की जिंदगी फिल्‍म का रोचक हिस्‍सा हो सकती है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री की चुप्‍पी के इतने किस्‍से हैं। विरोधी पार्टियों और आलोचकों ने उन पर फब्तियां कसीं। उन्‍हें ‘ मौनमोहन ’ जैसे नाम दिए गए। मीडिया में उनका मखौल उड़ाया गया,फिर भी एक अर्थशास्‍त्री के रूप में उनके योगदार को भारत नहीं भुला सकता। आर्थिक उदारीकरण से लेकर विश्‍वव्‍यापी मंदी के दिनों में भी उन्‍होंने अपनी अर्थ नीतियों से विकासशील देश को बचाया। आर्थिक प्रगति की राह दिखाई। 2004 से 2008 तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजॉय बारू ने मनामोहन के व्‍यक्तित्‍व पर संस्‍मरणात्‍मक पुस्‍तक लिखी थी। 2014 में प्रकाशित इस पुस्‍तक का नाम ‘ द एक्‍सीडेटल प्राइममिनिस्‍टर - द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमाहन सिंह ’ है। इस पुस्‍तक के प्रकाशन के समय ही विवाद हुआ था। दरअसल,दृष्टिकोण और व्‍याख्‍या से तथ्‍यों की धारणाएं बदल जाती हैं। कई बार ऐसी किताबों की व्‍याख्‍या से प्रचलित धारणाओं की पुष्टि कर देती है। अब इसी पुस्‍तक पर एक फिल्‍म बनने जा रही है। इस फिल्‍म में अ

रोज़ाना : रानी की आएगी फिल्‍म

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रोज़ाना रानी की आएगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज दो महीने पहले 4 अर्पैल को रानी मुखर्जी की नई फिल्‍म ‘ हिचकी ’ की शूटिंग आरंभ हुई थी। दो महीनों के अंदर इसकी शूटिंग पूरी हो गई। 5 जून को यशराज फिल्‍म्‍स ने फिल्‍म की समाप्ति की तस्‍वीर भेजी। रानी मुखर्जी की ‘ हिचकी ’ फटाफट पूरी की गई है। उन्‍होंने अपने करिअर में सबसे ज्‍यादा फिल्‍में यशराज फिल्‍म्‍स के साथ ही की हैं। यशराज के साथ 2002 में ‘ साथिया ’ से आरंभ हुई उनकी यात्रा ‘ मर्दानी ’ तक पहुंची है। ‘ हिचकी ’ उनकी अगली फिल्‍म होगी। यशराज बैनर के तहत ‘ हिचकी ’ के निर्माता मनीष शर्मा हैं। इस व्‍यवस्‍था के अंतर्गत मनीष शर्मा की यह तीसरी फिल्‍म होगी। इसके पहले वे ’ दम लगा के हईसा ’ और ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ कर निर्माण कर चुके हैं। इनमें से पहली चली और प्रशंसित हुई थी,दूसरी फिसली और निंदित हुई है। रानी मुखर्जी का फिल्‍मी करिअर हिंदी में ‘ राजा की आएगी बारात ’ से आरंभ हुआ। बीस साल पहले 1997 में आई इस फिल्‍म से रानी मुखर्जी को पहचान मिल गई थी। आमिर खान के साथ ‘ गुलाम ’ में ‘ आती क्‍या खंडाला ’ गाती हुई वह दर्शकों की प्रिय

रोज़ाना : पर्दे पर भी सगे भाई

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रोज़ाना पर्दे पर भी सगे भाई -अजय ब्रह्मात्‍मज कबीर खान की ‘ ट्यूबलाइट ’ में सहोदर सलमान खान और सोहेल खान सगे भाइयों के रोल में नजर आएंगे। कबीर खान ने पर्देपर उन्‍हें लक्ष्‍मण और भरत का नाम दिया है। भरत और लक्ष्‍मण भारतीय मानस में भाईचारे के मिसाल रहे हैं। कहीं न कहीं कबीर उस मिथक का लाभ उठाना चाहते होंगे। ‘ ट्यूबलाइट ’ दो भाइयों की कहानी है। उनमें अटूट प्रेम और भाईचारा है। लक्ष्‍मण मतिमंद है,इसलिए सभी उसे ट्यूबलाइट कहते हैं। भारत-चीन युद्ध के उस दौर में एक भाई लड़ने के लिए सीमा पर चला जाता है और नहीं लौटता। दूसरे ट्यूबलाइट भाई को यकीन है कि युद्ध बंद होगा उसका भाई जरूर लौटेगा। अपने उस यकीन से वह कोशिश भी करता है। कबीर खान ने सगे भाइयों की भूमिका के नलए सलमान खान के साथ सोहेल खान को चुना। उनका मानना है कि पर्दे पर एक-दो सीन के साथ ही दर्शक उन्‍हें सगे भाइयों के तौर पर मान लेंगे। गानों और नाटकीय दृश्‍यों मेंद दोनों भाइयों का सगापन आसानी से जाहिर होगा। सलमान खान के अपने भाइयों से मधुर रिश्‍ते हैं। सलमान खान ने भी अपनी बातचीत में कहा कि भाई के रोल में किसी पॉपुलर और बड़