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धार्मिक प्रतीकों को दोहन

-अजय ब्रह्मात्मज गणेश भक्त मधुर भंडारकर हमेशा मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर और गणपति पूजा के समय पंडालों में नजर आते हैं। इस बार ‘हीरोइन’ की रिलीज के पहले करीना कपूर के साथ गणपति का आशीर्वाद लेने वे कुछ पंडालों में गए। उन्होंने अपनी फिल्म का म्यूजिक भी सिद्धिविनायक मंदिर में रिलीज किया था। किसी निर्माता-निर्देशक या कलाकार की धार्मिक अभिरुचि से कोई शिकायत नहीं हो सकती, लेकिन जब उसका इस्तेमाल प्रचार और दर्शकों को प्रभावित करने के लिए किया जाने लगे तो कहीं न कहीं इस पूरी प्रक्रिया का पाखंड सामने आ जाता है। सिर्फ मधुर भंडारकर ही नहीं, दूसरे निर्माता-निर्देशक और कलाकार भी आए दिन अपनी निजी धार्मिक भावनाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं। साथ ही उनकी कोशिश रहती है कि ऐसे इवेंट की तस्वीरें मुख्य पत्र-पत्रिकाओं में जरूर छपें। अभी तक किसी ने धार्मिक प्रतीकों और व्यवहार से प्रभावित हुए दर्शकों का आकलन और अध्ययन नहीं किया है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि देश के धर्मभीरू दर्शक ऐसे प्रचार से प्रभावित होते हैं।     फिल्मों के प्रचार-प्रसार और कंटेंट में धार्मिक प्रतीकों का शुरू से ही इस्तेमाल होता र

mahesh bhatt in hindu

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-Anuj Kumar From master of soul curry to purveyor of carnal potpourri, Mahesh Bhatt has come a long way Once upon a time Mahesh Bhatt defined subversion in Hindi film industry but in the last few years the enfant terrible of Bollywood seems to have conformed to the needs of the market. Once he caressed the wounds of soul, found new meaning in man-woman relationships, today he panders to the baser instincts. He might have said good bye to direction but he remains the voice of Vishesh Films. Recently he wrote Jism 2 for his daughter Pooja Bhatt and in a few weeks from now he will be presenting another sequel of Raaz . He still makes a lot of sense on social platforms and his steamy flicks make a lot of money at the box office but it is hard to find a connect between the two Bhatts. One appeals to mind while the other seems to be after the easily-stirred parts of the body. “In 2000, after I gave up direction and Indian economy had opened, all kind of internatio

फिल्‍म समीक्षा : जिस्‍म 2

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  प्रेम में डूबा देहगीत  -अजय ब्रह्मात्‍मज भट्ट कैंप की फिल्मों की एक खासियत सेक्स है। हालंाकि पूजा भट्ट का सीधा ताल्लुक महेश भट्ट से है,लेकिन वह विशेष फिल्म्स के बैनर तले फिल्में नहीं बनातीं। उनकी फिल्मों एक अलग किस्म का सौंदर्य रहता है,जिसे वह स्वयं रचती हैं। जिस्म 2 का सौंदर्य मनमोहक है। सेट,लोकेशन, कलाकारों के परिधान, दृश्य संरचना, चरित्रों के संबंध में सौंदर्य की छटाएं दिखती हैं। जिस्म 2 खूबसूरत फिल्म है। देह दर्शन के बावजूद यह अश्लील नहीं है। देह का संगीत पूरी फिल्म में सुनाई पड़ता है। वयस्क दर्शकों को उत्तेजित करना फिल्म का मकसद नहीं है। इस फिल्म के अंतरंग दृश्यों में सान्निध्य है। हिंदी फिल्मों के अंतरंग दृश्य मुख्य रूप से अभिनेत्रियों की झिझक और असहजता के कारण सुंदर नहीं बन पाते। सनी लियोन देह के प्रति सहज हैं। फिल्म का पहला संवाद है आई एम अ पोर्न स्टार..यह संवाद सनी लियोन की इमेज,दर्शकों की उत्कंठा और फिल्म को लेकर बनी जिज्ञासा को समाप्त कर देती है। पहले ही लंबे दृश्य में निर्देशक अपनी मंशा स्पष्ट कर देती है। शुद्धतावादियों को पूजा भट्ट की स्पष्टता और

तीन तस्‍वीरें :आलिया भट्ट

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आलिया भट्ट फिल्‍मों में आने से पहले   आलिया भट्ट अपने पिता महेश भट्ट के साथ करण जौहर की फिल्‍म स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर में आलिया भट्ट

खुद ही तोड़ दी अपनी इमेज-इमरान हशमी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  इमरान हाशमी पर महेश भट्ट की टिप्पणी     (आजादी के बाद पूरे देश में औपनिवेशिक मानसिकता के कुछ ब्राउन समाज के हर क्षेत्र में एक्टिव हैं। वे हर क्षेत्र में मानक तय करते हैं। उनमें से कुछ हिंदी फिल्मों में भी हैं। वे बताते हैं कि किस तरह का हीरो होना चाहिए या अच्छा होता है? ऐसे ब्राउन साहब को इमरान हाशमी अच्छा नहीं गलता था। वे हमेशा उसकी निंदा करते थे। वह अपनी तरह की फिल्मों से खुश था। दर्शकों के एक तबके में पहले से लोकप्रिय था।     पहली ही फिल्म में डायरेक्टर के साथ काम करते देखते समय मुझे उनमें कुछ खास बात लगी। मैंने उसे सलाह दी कि तुम्हें कैमरे के सामने होना चाहिए। वह बहुत नर्वस था। बाद में उसने ‘मर्डर’, ‘गैंगस्टर’ और ‘जन्नत’ जैसी फिल्में कीं। गिरते-पड़ते उसने सीखा और अपनी एक जगह बनायी। अपनी जगह बनाने के बाद उसने हिम्मत दिखायी और ऑफबीट फिल्मों के लिए राह बदली। तब मैंने उसे रोका था। हिंदी फिल्मों में अधिकांश हीरो अपना चेहरा नहीं बदलना चाहते। अपनी शक्ल बिगाडऩा आसान फैसला नहीं होता। इमरान हाशमी ने पहले ‘वंस अपऑन अ टाइम इन मुंबई’ और फिर ‘शांघाई’ में यह किया। उसने उनकी

सीक्वल एक्सपर्ट संजय मासूम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  अभी पिछले दिनों महेश भट्ट ने जन्नत -2 के गीतकार संजय मासूम के संबंध में ट्वीट किया। उन्होंने उनके गीत के बोल की तारीफ की और उम्मीद भी जताई। भट्ट कैंप की फिल्मों में गीत-संगीत पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हमेशा भावपूर्ण और अर्थपूर्ण गीत चुनना और गीतकारों को ऐसे गीतों के लिए प्रेरित करना महेश भट्ट की खासियत है। बहरहाल, संजय मासूम ने जन्नत -2 में गीत के साथ संवाद भी लिखे हैं। संजय कहते हैं, संवाद तो मैं लंबे अर्से से लिख रहा हूं। शायरी भी करता रहा हूं। लेकिन पहली बार बतौर गीतकार जन्नत -2 में आ रहा हूं। अनोखी अनुभूति हो रही है। संजय मासूम ने लंबे समय तक पत्रकारिता करने के बाद फिल्मों का लेखन आरंभ किया। वे पत्रिका धर्मयुग से संबंधित रहे। धर्मयुग बंद होने के बाद कुछ सालों तक नवभारत टाइम्स मुंबई के साथ जुड़े रहे। जब पत्रकारिता की नौकरी अड़चन बनने लगी, तो उन्होंने आखिरकार फिल्मों को फुलटाइम देने का फैसला किया। इन दिनों वे कृष-3 और राज-3 के भी संवाद लिख रहे हैं। जल्दी ही विक्रम भट्ट की फिल्म 1920 के सीक्वल का काम आरंभ करेंगे। इस फिल्म के लिए संवाद लिखने