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मेहनत से मंजिल खुद आयी करीब-दिव्‍या खोसला कुमार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज दिव्‍या खोसला कुमार का एक परिचय यह है कि वह टीसीरिज के सर्वेसर्वा भूषण कुमार की पत्‍नी हैं। यह परिचय उन पर इस कदर हावी है कि उनके व्‍यक्तित्‍व के अन्‍य पहलुओं पर लोगों की नजर नहीं जाती। एक आम धारणा है कि चूंकि वह भूषण कुमार की पत्‍नी हैं,इसलिए उन्‍हें सुविधाएं मिल जाती हैं। और अब नाम भी मिल रहा है। इस धारणा से अलग सचचाई यह है कि दिव्‍या ने पहले अपने म्‍यूजिक वीडियो और फिर अपनी फिल्‍म से साबित किया है कि वह सक्षम फिल्‍मकार हैं। यारियां के बाद उनकी सनम रे आ रही है। -फिल्‍म निर्देशन में आप ने खुद को बहुत जल्दी साध लिया। 0 जी मैं मानती हूं कि हमें जिस मंजिल पर पहुंचना होता है,वह हो ही जाता है। लोगों कुछ भी कहें,मैं आपको बताऊं कि मुझे काम करते हुए सोलह साल हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि सब कुछ तुंरत हो गया। यारियां के समय सबको लगा कि यह लड़की नई है। सच यह है कि उस फिल्म को बनाने में मैंने सालों की मेहनत लगाई है। अपनी फिल्‍म पर मुझे विश्वास था। फिल्म हिट हुई। क्रिएटिव इंसान के तौर पर मेरा विकास हुआ है। पहली फिल्म बनाते समय मेरे सामने काफी अड़चने आयी। स्किप्

फिल्‍म समीक्षा : यारियां

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  -अजय ब्रह्मात्‍मज  कैंपस लाइफ और यूथ इधर की कई फिल्मों के विषय रहे हैं। सभी फिल्मकारों की एक ही कोशिश दिखाई पड़ती है। वे सभी यूथ को तर्क और व्यवहार से सही रास्ते पर लाने के बजाय कोई इमोशनल झटका देते हैं। इस इमोशनल झटके के बाद उनके अंदर फिल्मों से तय किए गए भारतीय सामाजिक और पारिवारिक मूल्य जागते हैं। कभी प्रेम तो कभी स्कूल, कभी कैंपस तो कभी देश, कभी महबूबा तो कभी परिवार... इन सभी के लिए वे जान की बाजी लगा देते हैं। स्टूडेंट लाइफ के मूल काम पढ़ाई से उनका वास्ता नहीं रहता। पढ़ाई के लिए कोई प्रतियोगिता नहीं होती। दिव्या खोसला कुमार ने पहली फिल्म के लिए ऐसे पांच यूथ को चुना है। ऑस्ट्रेलिया के एक बिजनेसमैन से स्कूल को बचाने के लिए जरूरी हो गया है कि उस स्कूल के बच्चे ऑस्ट्रेलिया की टीम के मुकाबले में उतरें। पांच किस्म की प्रतियोगिताओं में जीत के बाद वे अपने स्कूल को बचा सकते हैं। यह मत सोचें कि क्या कहीं कोई ऐसी स्पर्धा होती है, जहां एक स्कूल के छात्रों का मुकाबला किसी देश से हो। यह फिल्म है। फिल्म के आरंभ में सभी को बिगड़ा और भटका हुआ दिखाया गया है। पढ़ाकू मिजाज की ल