Posts

Showing posts with the label खेलेंगे हम होली

दरअसल : खेलेंगे हम होली

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍मों की होली में मौज-मस्‍ती,छेड़खानी और हुड़दंग पर जोर रहता है। खासकर नायक-नायिका के बीच अबीर,रंग और पिचकारी का उपयोग ठिठोली के लिए ही होता है। रुठने और मनाने के एक उपक्रम और प्रयोजन के रूप में फिल्‍मकार इसका इस्‍तेमाल करते रहे हें। चूंकि यह सामूहिकता का पर्व है,इसलिए प्रेमियों को झ़ुंड में एकांत का बहाना मिल जाता है। उन्‍हें नैन-मटक्‍का और रंग- गुलाल लगाने के बहाने बदन छूने का बहाना मिल जाता है। चालीस पार कर चुके पाठक अपने किशोरावस्‍था में लौटें तो महसूस करेंगे कि होली की यादों के साथ उन्‍हें गुदगुदी होने लगती है। उन्‍हें कोमल प्रेमी-प्रेमिका का कोमल स्‍पर्श याद आने लगता है। लड़के-लड़कियों के बीच आज की तरह का संसंर्ग नहीं होता था। अब तो सभी एक-दूसरे को अंकवार भरते हैं। पहले होली ही मिलने और छूने का बहाना होता था। हंसी-मजाक में ही दिल की बातें कह देने का छूट मिल जाती थी। कोई शरारत या जबरदस्‍ती नागवार गुजरी तो कह दो-बुरा ना मानो होली है। हिंदी फिल्‍मों में आरंभ से ही रंगो का यह त्‍योहार पूरी चमक के साथ आता रहा है। फिल्‍मों के रंगीन होने के बाद निर्माता-