फिल्‍म समीक्षा : डैडी



फिल्‍म रिव्‍यू
अरुण गवली की जीवनी
डैडी
-अजय ब्रह्मात्‍मज

विवादों और उनकी वजह से प्रदर्शन के डर से हिंदी में समकालीन घटनाओं और व्‍यक्तियों पर फिल्‍में नहीं बनतीं। इस लिहाज से असीम आहलूवालिया की डैडी साहसिक प्रयास है। असीम ने आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अरुण गवली के जीवन पर यह फिल्‍म बनाई है। इसे बॉयोपिक विधा की श्रेणी में रखा जा सकता है।
मिल मजदूर के बेटे अरुण गवली का जीवन मुंबई के निम्‍न तबके के नौजवानों की प्रतिनिधि कहानी कही जा सकती है। मिलों के बंद होने के बाद ये बेरोजगार नौजवान अपराध की दुनिया में आए। उनमें से हर कोई अरुण गवली की तरह कुख्‍यात अपराधी और बाद में सामाजिक कार्यकर्ता व राजनीतिज्ञ नहीं बना,लेकिन कमोबेश सभी की जिंदगी ऐसे ही तबाह रही। असीम आहलूवालिया और अर्जुन रामपाल ने मौजूद तथ्‍यों और साक्ष्‍यों के आधार पर अरुण गवली की जीवनी लिखी है। फिल्‍म अरुण गवली को ग्‍लैमराइज नहीं करती। अपराध की दुनिया में विचरने के बावजूए यह हिंदी की अंडरवर्ल्‍ड फिल्‍मों से अलग है। डैडी के रूप में अरुण गवली हैं। बाकी वास्‍तविक किरदारों के नाम बदल दिए गए हैं। फिर भी मुंबई के अंडरवर्ल्‍ड से वाकिफ दर्शक उन्‍हें पहचान सकते हैं। यह फिल्‍म एक प्रकार से मुंबई के अंडरवर्ल्‍ड की दास्‍तान भी है,जिसके केंद्र में अरुण गवली हैं।
असीम आहलूवालिया ने क्‍लोज फ्रेम में सभी किरदारों और उनकी गतिविधियों को रखा है। फिल्‍म की थीम के अनुसार गहरी और मद्धिम रोशनी रखी गई है। शूटिंग की शैली रियलिस्टिक और सामान्‍य जीवन के करीब है। फिल्‍म विवरणात्‍मक है। घटनाओं के उल्‍लेख और फोकस से कई बार यह डाक्‍यूमेंट्री के करीब पहुंच जाती है। क्‍या इसे डाक्‍यूमेंट्री फार्मेट में रखा जाता तो फिल्‍म का प्रभाव कम होता? किरदार इतने घीमे स्‍वर में तेजी से मराठी मिश्रित संवाद बोलते हें। मुंबई के बाहर के आम दर्शकों को उनकी बातें समझने में दिक्‍कत हो सकती है। मुंबई के दगड़ी चाल को क्रिएट करने में तकनीकी टीम सफल रही है। क्‍लोज फ्रेम का फार्मेट फिल्‍म के लिए कारगर साबित हुआ है। अधिकांश किरदारों को अपरिचित अभिनेताओं ने निभाया है,इसलिए वास्‍तविकता और बढ़ गई है।
अर्जुन रामपाल ने अरुण गवली के रूप में ढलने की जीतोड़ सफल कोशिश की है। उन्‍होंने उनके लुक के साथ चाल-ढाल भी अपनायी है। जवान और फिर प्रौढ़ होने पर वे अनुकूल बॉडी लैंग्‍वेज अपनाते हैं। निशिकांत कामथ पुलिस अधिकारी विजयकर की उल्‍लेखनीय भूमिका में जंचे हैं। डैडी की बीवी की भूमिका में ऐश्‍वर्या राजेश ने बराबर साथ निभाया है। अन्‍य कलाकारों का चयन उपयुक्‍त है। वे सभी अपने किरदारों में दिखते हैं।
अरुण गवली की इस जीवनी में दो-तीन चीजें उल्‍लेखनीय हैं। अंडरवर्ल्‍ड के वर्चस्‍व की लड़ाई के दिनों में कभी अरूण गवली को हिंदू डॉन के रूप में प्रचारित किया गया था। उन्‍हें मुस्लिम डॉन दाऊद इब्राहिम के मुकाबले में खड़ा किया गया था। यह राज्‍य व्‍यवस्‍था की हार थी। दूसरे इस फिल्‍म में डैडी एक ऊंची बिल्डिंग से नीचे झांकते हुए बताता है कि हम ने चॉल हटवाए। वहां ये ऊंची बिल्डिंगें आई और उनमें अब नेता और बिजनेसमैन रहते हैं। मुंबई शहर के विकास और स्‍वरूप पर संकेत करते डैडी के इस कथन का मर्म सारगर्भित है। विधान सभा में चुनाव जीत कर आने के बाद भी अन्‍य विधायकों के रवैए से दुखी डैडी कहता है कि जनता ने तो मुझे माफ कर दिया,लेकिन आप सभी मुझे गैंगस्‍टर ही मानते हैं। मैं बदल गया,लेकिन तुम लोग बदलने नहीं देते, डैडी के इस संवाद की गहराई में जाएं तो डैछी का मानवीय दर्द का एहसास होता है।
अवधि-135 मिनट
*** तीन स्‍टार 

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