दरअसल : ट्रेलर और गानों के व्‍यूज की असलियत



दरअसल...
ट्रेलर और गानों के व्‍यूज की असलियत
-अजय ब्रह्मात्‍मज

आए दिन रिलीज हो रही फिल्‍म के निर्माता और अन्‍य संबंधित निर्देशक व कलाकार सोशल मीडिया पर बताते रहते हैं कि उनके ट्रेलर और गानों को इतने लाख और करोड़ व्‍यूज मिले। तात्‍पर्य यह रहता है कि उक्‍त ट्रेलर या गाने को संबंधित स्‍ट्रीमिंग चैनल पर उतनी बार देखा गया। ज्‍यादातर स्‍ट्रीमिंग यूट्यूब के जरिए होती है। व्‍यूज यानी दर्शकता बताने का आशय लोकप्रियता से रहता है। यह संकेत दिया जाता है कि रिलीज हो रही फिल्‍म के ट्रेलर और गानों को दर्शक पसंद कर रहे हैं। इससे निर्माता के अहं की तुष्टि होती है। साथ ही फिल्‍म के पक्ष में माहौल बनाया जाता है। दर्शकों को तैयार किया जाता है। लुक,टीजर,ट्रेलरऔर गानों को लकर ऐसे दावे किए जाते हैं। आम दर्शकों पर इसका कितना असर होता है? क्‍या वे इसके दबाव में फिल्‍म देखने का मन बनाते हैं? अभी तक कोई स्‍पष्‍ट अध्‍ययन या शोध उपलब्‍ध नहीं है,जिससे व्‍यूज और दर्शकों का अनुपात तय किया जा सके। सफलता का अनुमान किया जा सके।
टीजर,ट्रेलर या गाने आने के साथ फिल्‍म से जुड़े सभी व्‍यक्ति सोशल मीडिया पर एक्टिव हो जाते हैं। वे ट्वीट और रीट्वीट करने लगते हैं। उनके नुमांइदे मीडियाकर्मियां से आग्रह करते हैं वे उनके बो में ट्वीट करें। साथ ही टीजर,ट्रेलर और गानों के लिंक भी दें। फिल्‍मी हस्तियों के गुडबुक में बने रहने या निकटता पाने की लाासा और भ्रम में अनेक मीडियकर्मी फिल्‍म यूनिट के सदस्‍यों से अधिक सक्रियता दिखाते हैं। ने तरीफ के शब्‍दों के साथ उक्‍त्‍टीजर,ट्रेलर और गाने के लिंक ट्वट कर देते हैं। यह एक ऐसी नादानी है,जिसमें फिल्‍मों और फिल्‍म के निर्माताओं का सीधा फायदा होता है। मीडियाकर्मी अप्रत्‍यक्ष प्रचारक बन जाते हैं। उन्‍हें पता भी नहीं चलता और वे फिल्‍म की कमाई में सहायक हो जाते हैं। अगर आप के ट्वीट की वजह से आपके फॉलोअर उक्‍त वीडियो को देखते हैं तो कहीं न कहीं रूट्रीमिंग नेटवर्क से मिल रही कमाई में आप का योगदान हो जाता है। एक तरीके से मीडियाकर्मी रिटेलर की भूमिका में आ जाते हैं। अब कुछ मीडियकर्मियों की समझ में यह बात आई है तो उनकी सक्रियता कम हुई है। 

उचित तो यह होगा कि जिस फिल्‍म ,फिल्‍मकार या कलाकार के काम में विश्‍वास हो और उसे सपोर्ट करने का मन करे तो हमें अवश्‍य लिंक के साथ ट्वीट या रीट्वीट करना चाहिए। सिर्फ सराहना से काम चल सकता हो तो ज्‍यादा बेहतर।यह भी रोचक तथ्‍य है कि किसी व‍ीडियो को मिली संख्‍यात्‍मक दर्शकता(व्‍यूज) वास्‍तव में दर्शकों में तब्‍दील नहीं होती। पिछले महीनों में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे,जब किसी वीडियो को करोड़ों में दर्शक मिले,लेकिन बाक्‍स आफिस पर फिल्‍म का बुरा हाल रहा। दर्शक उस फिल्‍म को देखने थिएटर नहीं गए। करोड़ो दर्शकता के वीडियो की फिल्‍म की कमाई पहले दिन करोड़ रुपयों तक भी नहीं पहुंच पाई। भारतीय राजनीति से उदाहरण लें तो किसी सभा में आई भीड़ इस बात का कतई संकेत नहीं होती कि उक्‍त उम्‍मीदवार चुनाव में जीत ही जाएगा। भीड़ की वजह उस दिन का वक्‍ता भी हो सकता है। या किसी और वजह से उस दिन की सभा में भीड़ उमड़ सकती है। यह भी ध्‍यान में रखना चाहिए कि किसी भी वीडियो को देखने के प्रत्‍यक्ष पैसे नहीं लगते। इंटरनेट या ब्रॉडबैंड के किराए में हो रहे खर्च सीधे जेब पर भारी नहीं पड़ते। अगर वीडियों के हर व्‍यू के लिए एक पैसा भी देने पड़े तो करोड़ों की दर्शकता लाखों तक भी रेंग कर पहुंचेगी। अभी तक भारत में पैसे देकर हर शो या वीडियो देखने की आदत आम नहीं हुई है।हर निर्माता और उसकी फिल्‍म यूनिट अपने प्रचारात्‍मक वीडियो की दर्शकता बढ़ा-चढ़ा कर दर्शक बटोरना चाहती है। उनकी इसचाहत को देखते हुए वीडियो स्‍ट्रीमिंग कंपनिया पैसे लेकर व्‍यूज बढ़ाने का काम करने लगी हैं। दर्शकों को छलने और झांसा देने की मुहिम जारी है।

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