फिल्‍म समीक्षा : राब्‍ता



फिल्‍म रिव्‍यू
मिल गए बिछुड़े प्रेमी
राब्‍ता
-अजय ब्रह्मात्‍मज

दिनेश विजन की राब्‍ता के साथ सबसे बड़ी दिक्‍क्‍त हिंदी फिल्‍मों का वाजिब-गैरवाजिब असर है। फिल्‍मों के दृश्‍यों,संवादों और प्रसंगों में हिंदी फिल्‍मों के आजमाए सूत्र दोहराए गए हैं। फिल्‍म के अंत में करण अर्जुन का रेफरेंस उसकी अति है। कहीं न कहीं यह करण जौहर स्‍कूल का गलत प्रभाव है। उनकी फिल्‍मों में दक्षता के साथ इस्‍तेमाल होने पर भी वह खटकता है। राब्‍ता में अनेक हिस्‍सों में फिल्‍मी रेफरेंस चिपका दिए गए हैं। फिल्‍म की दूसरी बड़ी दिक्‍कत पिछले जन्‍म की दुनिया है। पिछले जन्‍म की भाषा,संस्‍कार,किरदार  और व्‍यवहार स्‍पष्‍ट नहीं है। मुख्‍य रूप से चार किरदारों पर टिकी यह दुनिया वास्‍तव में समय,प्रतिभा और धन का दुरुपयोग है। निर्माता जब निर्देशक बनते हैं तो फिल्‍म के बजाए करतब दिखाने में उनसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं। निर्माता की ऐसी आसक्ति पर कोई सवाल नहीं करता। पूरी टीम उसकी इच्‍छा पूरी करने में लग जाते हैं। राब्‍ता पिछली दुनिया में लौटने की उबासी से पहले 21 वीं सदी की युवकों की अनोखी प्रेमकहानी है।
फिल्‍म का वर्तमान नया है। हिंदी फिल्‍मों के प्रेमी समय के साथ बदलते रहे हैं। ये मिलेनियल युवा हैं। सदी करवट बदल रही थी तो वे बड़े हो रहे थे। सोशल मीडिया और ग्‍लोबल एक्‍सपोजर ने आज के युवा के लिए रिलेशनशिप और इश्‍क के उनके मायने और संदर्भ बदल दिए हैं। अब प्रेमी एकनिष्‍ठ नहीं होते। और न ही फिजिकल रिलेशन ज्‍यादा महत्‍व रखता है। इसी फिल्‍म में दोनों(शिव और सायरा) पहले से रिलेशनशिप में हैं,लेकिन उन्‍हें नए संबंध बनाने और सहवास में दिक्‍कत नहीं होती। ठीक है कि वे भारत में नहीं हैं,लेकिन जब पर्दे पर हिंदी बोलते परिचित कलाकार ऐसे नए व्‍यवहारों में नजर आते हैं तो देश के गांव-कस्‍बों के दर्शक भी प्रभावित होती है। उनकी सोच बदलती है। इस लिहाज से यह फिल्‍म उल्‍लेखनीय है। इसमें भारत के ग्‍लोबल युवा हैं,जो इमोशन में भले ही फायनली लोकल(फिल्‍मी) हो जाएं लेकिन एक्‍सप्रेशन में वे बदल चुके हैं। यहां कृति सैनन और सुशांत सिंह राजपूत दोनों की तारीफ करनी होगी कि उन्‍होंने बेहिचक सायरा और शिव के किरदारों को निभाया है। उनके बीच की केमिस्‍ट्री पर्दे पर दिखती है। अभी के आर्टिस्‍ट युगल दृश्‍यों में सचमुच करीबी और बेपरवाह दिखते हैं।
दिलफेंक और मनचला मध्‍यवर्गीय शिव पंजाब से बुदापेस्‍ट पहुंच जाता है। वहां उसे बैंक में नौकरी मिली है। विदेश की अपनी पोस्टिंग को वह विदेशी लड़कियों को पटाने,फंसाने और सोने का मौका मानता है।  वह स्त्रियों को मोहने में माहिर है। यहां तक कि यादों की केंचुल में कसमसाती और बाहरी दुनिया से एक दूरी निभाती सायरा भी उसकी चपेट में आ जाती है। उन्‍हें बाद में पता चलता है कि उनके बीच कोई राब्‍ता है। हमें तो पहले से मालूम है कि वे पिछले जन्‍म में बिछुड़ गए थे। इस जन्‍म में उनके मिलन को नाटकीय और रोमांचक बनाया जा सकता था,लेकिन लेखकों के पास हिंदी फिल्‍मों के दिए प्रसंग ही थे। उन्‍होंने वर्तमान के क्‍लाइमेक्‍स पर कुछ नया नहीं किया। यही कारण है कि प्रेम की नवीनता फिल्‍म के दूसरे भाग में आकर पुरानी लकीर पकड़ लेती है। हमारा इंटरेस्‍ट नहीं बना रहता।
इस फिल्‍म के खलनायक जिम सरभ विचित्र कलाकार हैं। उनमें एक आकर्षण तो है लेकिन दोनों हाथों से की गई उनकी एक्टिंग विस्मित करती है। राजकुमार राव पिछले जन्‍म के किरदार के रूप में भारी मेकअप और लुक चेंज के साथ अपनी जिम्‍मेदारी निभा ले जाते हैं। वे अपने संवादों में बार-बार इश्‍क के लिए आग का दरिया की मिसाल देते हैं,लगता है मिर्जा गालिब ने उनसे उधार लेकर ही कहा होगा...
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
दीपिका पादुकोण के दीवाने इस फिल्‍म में उनके डांस आयटम के लिए जा सकते हैं। उन्‍हें मादक रूप और सेक्‍सी स्‍टेप्‍स दिए गए हैं।
अवधि 154 मिनट
**1/2 ढाई स्‍टार     

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