युवाओं के सपने और प्रेमकहानी - शशांक खेतान



शशांक खेतान
-अजय ब्रह्मात्‍मज
कोलकाता में जन्‍मे और नासिक में पल-बढ़े शशांक खेतान बड़े होने पर मुंबई आ गए। यहां उन्‍होंने ह्विस्लिंग वूड इंटरनेशनल से अभिनय की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही उनकी समझ में आ गया था कि उन्‍हें लेखन और डायरेक्‍शन पर ध्‍यान देना चाहिए। पढ़ाई खत्‍म होने पर शशांक ने सुभाष घई को ब्‍लैक एंड ह्वाइट और युवराज में असिस्‍ट किया। कुछ समय तक वे नसीरूद्दीन शाह के साथ भी रहे। फिर यशराज की फिल्‍म इश्‍कजादे में ऐ छोटी सी भूमिका निभा ली। हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया कर स्क्रिप्‍ट करण जौहर को भेजी। वह उन्‍हें पसंद आ गई। इस तरह जुलाई,2014 में हंप्‍टी शर्मा की दुल्‍हनिया रिलीज हुई। उसमें वरुण धवन और आलिया भट्ट की जोड़ी थी। लगभीग तीन सालों के बाद फिर से उन दोनों के साथ ही वे धर्मा प्रोडक्‍शन के बैनर तले बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया लेकर आ रहे हैं। इसे वे लव फ्रेंचाइजी कह रहे हैं।
शशांक खेतान को पहली फिल्‍म में ही कामयाबी और शोहरत मिली। उसके बाद के तीन सालों में कुछ तो बदला होगा। शशांक नहीं मानते कि कुछ विशेष बदला है,मैं वही इंसान हूं। उसी पैशन और ईमानदारी से दूसरी फिल्‍म लेकर आ रहा हूं। बदलाव यह है कि इस बार मुझे निर्माता नहीं खोजना पड़ा। अभी मेरे पास करण जौहर जैसे निर्माता हैं। लेकिन इसकी वजह से जिम्‍मेदारी बढ़ गई है। हंप्‍टी... के समय प्रेशर नहीं था। वरुण और आलिया इतने बड़े और पॉपुलर स्‍टार नहीं थे। अभी बहुत कुछ सोचना पड़ता है। खुद को ही निखारना था।
बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया की कहानी उत्‍तर प्रदेश की है। करण जौहर ने भी पहली बार उत्‍तर प्रदेश का रुख किया है। शशांक बताते हैं,इसके कारण मेरी जिम्‍मेदारी थी कि मैं वहां के नुक्‍तों को पकड़ूं। हालांकि मेरी फिल्‍म वहां की भाषा में नहीं है,लेकिन फिल्‍म के संवादों में स्‍थानीय फ्लेवर ले आना था। हर शहर और इलाके में कुछ शब्‍द और मुहावरे प्रचलित होते हैं। उन्‍हें सुनते ही वहां का राग-रंग आ जाता है। दोनों फिल्‍मों के बीच में मैंने खुद को तकनीकी रूप से इम्‍प्रूव किया। मुझे करण की तरफ से छूट मिली थी कि मैं अपने कैनवास को और पुश करूं। शशांक खेतान ने करण जौहर की मनोरंजक शैली अपना ली है। उसके साथ ही वे देसीपन का टच रखते हैं। अपने अनुभवों से उन्‍हें देश के अंदरूनी इलाकों में ले जाते हैं। उनकी कहानी और किरदारों में भारतीयता झलकती है। शशांक बताते हैं, करण जाहिर नहीं करते,लेकिन वे देसी चीजें समझते हैं। तभी तो ऐसी फिल्‍म बनाने में उनकी सहमति रहती है। मेरी कोशिश है कि मैं अपनी एक शैली डेवलप कर सकूं। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे करण का मार्गदर्शन मिल रहा है।
इस फिल्‍म में झांसी और कोटा है। वरुण यानी बद्री झांसी के हैं और आलिया यानी वैदेही कोटा की है। इन किरदारों को इन शहरों में रखने की ठीक वजह बताने से बचते हुए शशांक यहीं कहते हैं, मुझे छोटे शहरों के युवाओं के सपनों की बात करनी थी। है तो यह प्रेमकहानी ही,लेकिन उस प्रेम के पीछे उनके फैसलों का बड़ा महत्‍व है। एक खास वजह यह है कि वहां की भाषा में सुंदरता है। सुनते हुए अच्‍छा लगता है। इश्‍कजादे के समय यूपी में रहा था। तभी मैं वहां की भाषा से मुग्‍ध हो गया था। वहां के लोगों के बात करने में एक लहजा और अंदाज है। मेरा विश्‍वास है कि वह अंदाज इस फिल्‍म को कहीं और लेकर जाएगा। फिल्‍म में झांसी,कोटा और सिंगापुर की मौजूदगी की वजह फिल्‍म से स्‍पष्‍ट हो जाएगी। संक्षेप में बद्री साहूकार का बेटा है। उसने दुनिया नहीं देखी है। उसे परिवार से मिली अपनी समझ सही लगती है। वह खुश रहता है। वैदेही त्रिवेदी के अतीत के कुछ बुरे अनुभव है। उसे नए सपने हैं। वह कुछ करना चाहती है। अपने वर्तमान से वैदेही नाखुश है। बद्री और वैदेही मिलते हैं। उनके मिलने का मिड पाइंट क्‍या हो सकता है? इस तरह कहानी दिलचस्‍प हो जाती है।
शशांक अपने कलाकारों के योगदान का जिक्र करते हैं। बद्रीनाथ की दुल्‍हनिया में वरुण धवन और आलिया भट्ट का बड़ा योगदान है। कैसे? शशांक बताते हैं, दोनों फिल्‍मों के बीच में वरुण और आलिया ने इतनी फिलमें कर ली हैं और वे फिल्‍में पसंद भी की गई हैं। उनका अनुभव संसार बढ़ा है। उन्‍होंने अलग-अलग निर्देशकों से सीखा है। उनके इनपुट से मुझे फायदा हुआ। सिनेमा और एक्टिंग की उनकी समझदारी बढ़ गई है। शशांक मानते हैं कि अभी दोनों ही दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं। उनकी लोकप्रयता का लाभ फिल्‍म को मिलेगा।
क्‍या हंप्‍टी और बद्रीनाथ के बाद यह दुल्‍हनिया किसी और के पास भी जाएगी? क्‍यों नहीं? लव फ्रेंचाइजी है। हम पूरा भारत घूम सकते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम