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Showing posts from July, 2016

लकी नंबर है 13 - कृति खरबंदा

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  --प्राची दीक्षित फिल्म जगत को भट्ट कैंप से समय –समय पर सितारे मिलते रहे हैं। इमरान हाशमी, जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु इसकी ताकीद करते रहे हैं। इस कड़ी में अगला नाम कृति खरबंदा का जुड़ रहा है। उस कैंप की सफल फ्रेंचाइजी ‘राज’ की तीसरी किश्त ‘ राज रीबूट ’ से कृति हिंदी फिल्मों में डेब्यू कर रही हैं। इससे पहले वे साउथ की फिल्में करती रही हैं। उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो विशेष फिल्म्स ने उनके संग तीन फिल्मों का करार भी किया है। राज ने बनाया जिम्मेदार कृति बताती हैं , ‘ 2009  में मैंने साउथ फिल्म इंडस्ट्री से अपना करियर शुरू किया। मेरा मकसद हिंदी सिनेमा में जुड़ना नहीं था। मैं कुछ साल एक्टिंग कर शादी करना चाहती थी, लेकिन वक्त ने मेरी दिशा बदल दी। मुकेश भट्ट ने साउथ की फिल्मों में मेरा काम देखा था। उन्होंने एक दिन मुझे मिलने के लिए बुलाया। हमारी मुलाकात हुई। हमने जीवन, मुंबई और अध्यात्म की बातें की। एक हफ्ते बाद मुझे इस फिल्म का प्रस्ताव मिल गया। मुझे लगा की ‘ राज रीबूट ’ में मैं पैरलल लीड में हूं। पर उन्होंने कहा कि यह महिला प्रधान फिल्म है। यह बिना

तड़का है मेरे निगेटिव किरदार में-अक्षय खन्‍ना

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-अजय ब्रह्मात्‍मज एक अंतराल के बाद अक्षय खन्‍ना आ रहे हैं। वे रोहित धवन की फिल्‍म ‘ ढिशुम ’ में जॉन अब्राहम और वरुण धवन के साथ दिखेंगे। व्‍यक्तिगत कारणों से अक्षय खन्‍ना ने बीच के सालों में कोई फिल्‍म नहीं की। फिर जब तैयार हुए तो सही स्क्रिप्‍ट चुनने में वक्‍त लगा। वे कहते हैं, ’ कुछ ज्‍यादा ही वक्‍त लग गया। अब मैं बहुत खुश हूं कि मैंने ‘ ढिशुम ’ जैसी फिल्‍म की। इसी साल मेरी एक और फिल्‍म आएगी। दोनों फिल्‍मों को लेकर मैं खुश और संतुष्‍ट हूं। एक इंतजार के बाद मुझे दो ऐसी स्क्रिप्‍ट मिलीं,जिन्‍होंने काम के लिए प्रेरित किया। फिर से काम पर लग गया हूं। ‘ वे खुद ही बात बढ़ाते हैं, ’ काम पर कौन नहीं जाना चाहता ? सही काम नहीं मिलने पर ‍निराशा होती है। कलाकार डिप्रेशन में भी जा सकता है। अभी मुझे अच्‍छा काम मिला है। मेरी दूसरी फिल्‍म नवंबर-दिसंबर तक आ जाएगी। मैं उसमें श्रीदेवी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ हूं। बहुत ही इंटरेस्टिंग स्क्रिप्‍ट है। ‘ अक्षय खन्‍ना स्‍वीकार करते हैं कि सभी कलाकारों के करिअर में ऐसा गैप आता है। उनके साथ दूसरी बार ऐसा हुआ है। ‘ दिल चााहता है ’ के पहले

दरअसल : मिलते हैं जब फिल्‍म स्‍टार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जागरण फिल्‍म फेस्टिवल जारी है। हिंदी प्रदेशों के शहरों में जाने के अवसर मिल रहे हैं। इन शहरों में फिलमें दिखाने के साथ ही जागरण फिल्‍म फेस्टिवल मुंबई से कुछ फिल्‍म स्‍टारों को भी आमंत्रित करता है। इन फिल्‍म स्‍टारों से दोटूक बातचीत होती है। कुछ श्रोताओं को भी सवाल पूछने के मौके मिलते हैं। हर फेस्टिवल की तरह यहां भी फिल्‍मप्रेमी,रंगकर्मी,साहित्‍यप्रेमी और युवा दर्शक होते हैं। उनकी भागीदारी अचंभित करती है। वे पूरे जोश के साथ फेस्टिवल में शामिल होते हैं। अपनी जिज्ञासाएं रखते हैं। अपनी धारणाएं भी जाहिर करते हैं। मैंने गौर किया है कि फिल्‍म स्‍टारों के साथ इन मुलाकातों में दर्शकों में सबसे ज्‍यादा रुचि सेल्‍फी निकालने में होती है। वे दाएं-बाएं हाथें में मोबाइल लिए और बांहें फैलाए सेलिब्रिटी के रास्‍ते में खड़ हो जाते हैं। हर व्‍यक्ति चााहता है कि सेलिब्रिटी उनके कैमरे की तरफ देखे और मुस्‍कराए। चूंकि सेल्‍फी मोड में अपनी छवि दिख रही होती है,इसलिए नजरें नहीं फेरी जा सकती हैं। मजबूरन हर सेलिब्रिटी को मुस्‍कराना पड़ता है। आ खुद ही जोड़ लें कि एक सेल्‍फी में कितना स

भोजपुरी फिल्मों का होगा भाग्योदय - अमित कर्ण

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अनुराग कश्‍यप की दस्तक से सिने तबके में उत्साह अनुराग कश्य्प ने भोजपुरी फिल्म निर्माण में भी उतरने का ऐलान किया है। उनकी फिल्म का नाम ‘मुक्काबाज’ है। ऐसा पहली बार है, जब हिंदी की मुख्यधारा का नामी फिल्मकार भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में कदम रखेगा। जाहिर तौर पर इससे भोजपुरी फिल्म जगत में उत्साह की लहर है। अनुराग कश्यप के आने से वे भोजपुरी फिल्मों के फलक में अप्र याशित इजाफे की उम्मीद कर रहे हैं। खुद अनुराग कश्यप कहते हैं, ‘फिल्मों के राष्ट्री य पुरस्कार में भोजपुरी फिल्मों का नाम भी नहीं लिया जाता। सभी की शिकायत रही है कि भोजपुरी में स्तरीय फिल्म नहीं बन रही है। मैं अभी कोई दावा तो नहीं कर सकता, लेकिन मैं पूरे गर्व के साथ अपनी पहली भोजपुरी फिल्म बना रहा हूं।‘   अब बदलेगी छवि भोजपुरी फिल्में आज तक अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करने में नाकाम रहा है, जबकि मराठी, पंजाबी व अन्य प्रांत की भाषाओं में फिल्में लगातार विस्तार हासिल कर रही हैं। भोजपुरी जगत पर सस्ती, बिकाऊ, उत्तेजक, द्विअर्थी कंटेंट वाली फिल्में बनाने के आरोप लगते रहे हैं। यह लांछन भी सामाजिक सरोकार की फिल्

प्रगतिशील थे पूर्वज : रितिक रोशन

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  ‘बैंग बैंग’ की रिलीज के करीब दो साल बाद रितिक रोशन की फिल्‍म मोहेंजो दारो अगले महीने रिलीज होगी। यह प्रागैतिहासिक काल की प्रेम कहानी है। इसके निर्देशक आशुतोष गोवारीकार ने कहानी में अपनी कल्‍पना के रंग भरे हैं। सिंधु घाटी सभ्‍यता के प्राचीन शहर मोहेंजो दारो के इतिहास को उसमें नहीं दर्शाया गया है। मोहेंजो दारो की शूटिंग के चलते रितिक रोशन ने कोई अन्‍य फिल्‍म नहीं की। उन्‍होंने उसे तसल्‍ली से पूरा किया। उसमें वह सरमन की भूमिका में हैं। मुश्किलों का डटकर किया सामना रितिक बताते हैं, ‘अगर मेरा बस चलता तो फिल्‍म की शूटिंग जल्‍दी पूरी हो जाती। मैं भली-भांति अवगत था कि इस फिल्म की शूटिंग कठिन है। मैं आशुतोष की कार्यशैली से बखूबी परिचित हूं। मुझे पता है कि बेहद बारीकी से वे अपने काम को अंजाम देते हैं। उनकी फिल्‍म निर्माण की प्रक्रिया काफी विस्‍तृत होती है। लिहाजा वक्त काफी लगेगा। स्क्रिप्‍ट पढ़ने के दौरान फिल्‍म से पहले मैंने खुद से कई सवाल किए थे। उनका गहराई से मंथन किया था। मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इस फिल्म के लिए तैयार हूं। क्या इस फिल्म ने मेरे दिलोदिमाग पर गहरी छाप

फिल्‍म समीक्षा : मदारी

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किस की जवाबदेही -अजय ब्रह्मात्‍मज देश में आए दिन हादसे होते रहते हैं। उन हादसों के शिकार देश के आम नागरिकों का ऐसा अनुकूलन कर दिया गया है कि वे इसे नसीब,किस्‍मत और भग्‍य समझ कर चुप बैठ जाते हैं। जिंदगी जीने का दबाव इतना भारी है कि हम हादसों की तह तक नहीं जाते। किसे फुर्सत है ? कौन सवाल करें और जवाब मांगे। आखिर किस की जवाबदेही है ? निशिकांत कामत की ‘ मदारी ’ कुछ ऐसे ही साधारण और सहज सवालों को पूछने की जिद्द करती है। फिल्‍म का नायक एक आम नागरिक है। वह जानना चाहता है कि आखिर क्‍यों उसका बेटा उस दिन हादसे का शिकार हुआ और उसकी जवाबदेही किस पर है ? दिन-रात अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हादसे भुला दिए जाते हैं। ‘ मदारी ’ में ऐसे ही कुछ सवालों से सिस्‍टम को कुरेदा गया है। जो सच सामने आया है,वह बहुत ही भयावह है। और उसके लिए कहीं ना कहीं हम सभी जिम्‍मेदार हैं। हम जो वोटर हैं। ‘ चुपचाप दबा रहके अपनी दुनिया में खोए रहनेनेवाला ’ ... हम जो नेताओं और पार्टियों को चुनते हैं और उन्‍हें सरकार बनाने के अवसर देते हैं। ‘ मदारी ’ में यही वोटर अपनी दुनिया से निकल कर सि

कल्‍पना से गढ़ी है कायनात - राकेश ओमप्रकाश मेहरा

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- अजय ब्रह्मात्मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म ‘मिर्जिया’ है। इसमें उन्होंने दो नए चेहरों को लौंच किया है। हर्षवर्द्धन कपूर और सायमी खेर के रूप में। फिल्म की कहानी व गीत गुलजार ने लिखे हैं। राकेश ओमप्रकाश मेहरा इससे पहले भी नए लोगों के संग काम करते रहे हैं। ‘रंग दे बसंती’ में मौका मिला था। शरमन थे, सिद्धार्थ थे, कुणाल था। सोहा थीं, एलिस थीं। जब ‘दिल्ली-6’ बनाई तो उस वक्त सोनम कपूर भी नई थीं। उनकी ‘सांवरिया’ रिलीज भी नहीं हुई थी, जब हमने काम शुरू कर दिया था। वे भी नवोदित थीं। ‘मिर्जिया’ इस मायने में अलग है कि यहां दोनों चेहरे नए हैं। हर्षवर्द्धन की खासियत उनकी खामोशी में हैं। अच्छी बात यह रही कि हम दोनों को एक-दूसरे को जानने के लिए 18 महीने का वक्त मिला। वह भी सेट पर जाने से पहले। हमने ढेर सारी वर्कशॉप और ट्रेनिंग की। उन्होंने घुड़सवारी भी सीखी। तीरंदाजी भी सीखी उन्होंने, क्योंकि मिर्जा के अवतार में वे दो-दो किरदार प्‍ले कर रहे हैं। लोककथाओं में मिर्जा का किरदार काल्‍पनिक दुनिया में है। मैंने एक प्लग वहां लगा दिया। दूसरी दुनिया आज के दौर की है। वह राजस्‍थान में है।

दरअसल : निजी जिंदगी,फिल्‍म और प्रचार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज सार्वजनिक मंचों पर फिल्‍म स्‍टारों के ऊपर अनेक दबाव रहते होंगे। उन्‍हें पहले से अंदाजा नहीं रहता कि क्‍या सवाल पूछ लिए जाएंगे और झट से दिए जवाब की क्‍या-क्‍या व्‍याख्‍याएं होंगी ? क्‍या सचमुच घर से निकलते समय वे सभी अपने जीवन की नई-पुरानी घटनाओं का आकलन कर उन्‍हें रिफ्रेश कर लेते होंगे ? क्‍या उनके पास संभावित सवालों के जवाब तैयार रहते होंगे ? यह मुश्किल राजनीतिज्ञों और खिलाडि़यों के साथ भी आती होगी। फिर भी फिल्‍म स्‍टारों की निजी जिंदगी पाइकों और दर्शकों के लिए अधिक रोचक होती है। हम पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर उनकी निजी जिंदगी में झांक रहे होती हैं। उनकी प्रायवेसी का हनन कर रहे होते हैं। इस दौर में पत्रकारों के ऊपर भी दबाव है। उनसे अपेक्षा रहती है कि वे कोई ऐसी अंदरूनी और ब्रेकिंग खबर ले आएं,जिनसे टभ्‍आपी और हिट बढ़े। डिजिटल युग में खबरों का प्रभाव मिनटों में होता है। उसे आंका भी जा सकता है। टीवी पर टीआरपी और ऑन लाइन साइट पर हिट से पता चलता है कि उपभोक्‍ता(दर्शक व पाठक) की रुचि किधर है ? जाहिर सी बात है कि अगले अपडेट,पोस्‍ट और न्‍

फिल्‍म समीक्षा : ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती

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फिल्‍म रिव्‍यू न डर,न हंसी और न मस्‍ती ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती -अजय ब्रह्मात्‍मज इंद्र कुमार की ‘ मस्‍ती ’ 2004 में आई थी। सेक्‍स कामेडी के तौर पर आई इस फिल्‍म की अधिक सराहना नहीं हुई थी। अब 2016 में ‘ मस्‍ती ’ के क्रम में तीसरी फिल्‍म ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ देखने के बाद ऐसा लग सकता है कि ‘ मस्‍ती ’ तो फिर भी ठीक फिल्‍म थी। अच्‍छा है कि यह ग्रेट है। अब इसके आगे ‘ मस्‍ती ’ की संभावना खत्‍म हो जानी चाहिए। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में सेक्‍स,कॉमेडी और हॉरर को मिलाने की नाकाम कोशिश है। यह फिल्‍म नाम के अनुसार न तो मस्‍ती देती है और न ही हंसाती या डराती है। फिल्‍म में वियाग्रा,सेक्‍स प्रसंग,स्‍त्री-पुरुष संबंध, कामातुर लालसाओं के रूपक हैं,लेकिन इन सबके बावजूद फिल्‍म वितृष्‍णा से भर देती है। कहते हैं मृत्‍यु के बाद मुक्ति नहीं मिलती तो आत्‍माएं भटकती हैं। भूत बन जाती हैं। अपनी अतृप्‍त इच्‍छाएं पूरी करती हैं। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में भी एक भूत है। इस भूत के रुप में हम रागिनी को देखते हैं। 20 साल की उम्र में उसका देहांत हो गया था,लेकिन देह की इच्‍छाएं अधूरी रह गई थीं

दरअसल : 2016 की पहली छमाही

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-अजय ब्रह्मात्‍मज 2016 की पहली छमाही के कलेक्‍शन में पिछले साल 2015 की तुलना में 2 करोड़ का इजाफा हुआ है। इस साल पहली छमाही में 1 फिल्‍म ज्‍यादा रिलीज भी हुई है। 2016 में जनवरी से जून के बीच कुल 111 फिल्‍में रिलीज हुई हैं। गौर करें तो 2014 के बाद से पहली छमाही में 100 से ज्‍यादा फिल्‍में रिलीज हो रही हैं। पिछले साल रिलीज फिल्‍मों की संख्‍या 110 और उसके पहले 2014 में केवल 102 रही थी। अगर और पीछे जाएं तो 2009 में पहली छमाही में केवल 33 फिल्‍में ही रिलीज हुई थीं। फिल्‍मों के बाजार और बिजनेस के लिहाज से उत्‍तरोत्‍तर प्रगति हो रही है। बाजार और बिजनेस की बात करें तो पहली छमाही का कुल कलेक्‍शन 1025 करोड़ रहा है। यह राशि बहुत अधिक नहीं है,लेकिन निराशाजनक स्थिति भी नहीं है। पहली छमाही में ‘ एयरलिफ्ट ’ और ‘ हाउसफुल 3 ’ ने 100 करोड़ से अधिक का करोबार किया। संयोग से दोनों ही फिल्‍में अक्षय कुमार की हैं। अक्षय कुमार बाक्‍स आफिस के भरोसेमंद स्‍टार हैं। उनकी फिल्‍में ज्‍यादा हल्‍ला-गुल्‍ला नहीं करतीं। निर्माताओं को लाभ होता है। दूसरी छमाही में भी उनकी फिल्‍में आ रही हैं। अक्षय कुमार की दो

सलमान का शिष्‍य था मैं - अनंत विढाट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अली अब्‍बास जफर की फिल्‍म ‘ सुल्‍तान ’ में गोविंद के किरदार में अनंत विढाट को सभी ने नोटिस किया। ऐसा कम होता है कि किसी पॉपुलर स्‍टार की फिल्‍म में कोई कलाकार सहयोगी किरदार में होने पर भी याद रह जाए। अनंत विढाट का आत्‍मविश्‍वास उनके एंट्री सीन से ही दिखता है। दिल्‍ली के अनंत विढाट किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़े हैं। कॉलेज की ही ‘ प्‍लेयर्स ’ सोसायटी में सक्रियता रही। वहीं केवल अरोड़ा के सान्निध्‍य में थिएटर की आरंभिक ट्रेनिंग मिली। उसके पहले एनएसडी से संबंधित ‘ थिएटर इन एडुकेशन ’ में भागीदारी की। 13-14 साल की उम्र से अमित का रुझान थिएटर में बढ़ा। कह सकते हैं कि छोटी उम्र से ही मंच पर कुछ करने का शौक रहा। मां-पिता ने हमेशा सपोर्ट किया। पिता ने ही एनएसडी के वर्कशाप की जानकारी दी थी और भेजा था। थिएटर का लगाव ही अनंत को पोलैंड के ग्रोटोवस्‍की इंस्‍टीट्यूट ले गया। वहां उन्‍होंने थिएटर की एक्टिंग सीखी। लौट कर आए तो कुछ समय तक रंगमंच पर सक्रिय रहने के बाद 2012 में उन्‍हें अली अब्‍बास जफर की ही ‘ गुंडे ’ मिली। ‘ गुडे ’ के बाद उन्‍हें यशराज फिल्‍म्‍स की ‘ मर्दानी