दरअसल : टीवी पर आ रहे फिल्‍म कलाकार



-अजय ब्रह्मात्‍मज
देश-विदेश फिल्‍म कलाकार टीवी पर आ रहे हैं। वे टीवी के रिएलिटी,फिक्‍शन,टॉक और गेम शोज का हिस्‍सा बनते हैं। यह उनकी कमाई और क्रिएटिविटी का कारगर जरिया है। इससे उनकी दृश्‍यता(विजीबिलिटी) बनी रहती है। काम करने के पैसे मिलते हैं सो अलग। भारत में टीवी के पॉपुलर होने और सैटेलाइट चैनलों के आने के बाद टीवी शोज में फिल्‍म कलाकारों को लाने का चलन बढ़ा। कौन बनेगा करोड़पति के साथ अमिताभ बच्‍चन का टीवी पर आना सबसे उल्‍लेखनीय रहा। उसके बाद से तो तांता लग गया। सभी टीवी शोज करने लगे। फिर भी फिक्‍शन शोज में उनकी मौजूदगी कम रही। गौर करें तो भारत में फिल्‍म कलाकार अपनी पॉपुलैरिटी के दौरान टीवी का रुख नहीं करते हैं।
भारत में हाशिए पर आ चुके फिल्‍म कलाकार ही टीवी के फिक्‍शन शोज में आते हैं। पिछले दशकों में किरण कुमार हों या अभी शबाना आजमी। इन सभी को टीवी पर देखना अच्‍छा लगता है। बात तब गले से नीचे नहीं उतरती,जब वे टीवी पर अपनी मौजूदगी के लिए बेतुके तर्क देने लगते हैं। उन्‍हें अचानक टीवी सशक्‍त माध्‍यम लगने लगता है। उन्‍हें क्रिएटिविटी के लिए यह मीडियम जरूरी जान पड़ता है। सभी के अपने पक्ष और तर्क होते होते हैं। कोई भी यह नहीं कहता कि वे खाली थे,इसलिए टीवी पर काम कर रहे हैं। शबाना आजमी आजकल कुछ ऐसी ही बातें कर रही हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि अपने उत्‍कर्ष के दिनों में क्रिएटिविटी के इस सशक्‍त माध्‍यम को क्‍यों नहीं अपनाया? तब भी तो टीवी शोज बन रहे थे। कंटेंट के लिहाज से वे आज से बेहतर ही थे। अनिल कपूर का 24 भी ऐसा ही एक उदाहरण है।
हां,न्रियंका चोपड़ा,निमरत कौर और इरफान खान अपने प्राइम और पॉपुलैरिटी के दाक्‍रान ही टीवी में भी काम कर रहे हैं,लेकिन ये सभी विदेशी टीवी शो को समय दे रहे हें। प्रियंका चोपड़ा क्‍वांटिको की वजह से देश-विदेश में मशहूर हो गई हैं। अगर इस कद और श्रेणी के कलाकार टीवी के चुनिंदा फिक्‍शन शोज में आएं तो भारतीय टीवी का स्‍वरूप बदले। भारतीय टीवी को अगले चरण में ले जाने के लिए ऐसी पहलकदमी की सख्‍त जरूरत है। अभी भारतीय टीवी सांप,नागिन,राक्षस आदि के जादू-टोटकों में उलझ कर रह गया है। हां,इसके साथ ही 24 जैसे स्‍लीक और बेहतरीन शो भी आ रहे हैं। जल्‍दी ही निखिल आडवाणी युद्ध के बंदी जेसा टीवी शो लेकर आएंगे। ऐसा नहीं है कि भारत में टैलेंट की कमी है। कमी है तो सोच की...हम संभावनाओं की तलाश में नहीं रहते। हर चैनल यथास्थिति बनाए रखना चाहता है।
भारतीय टीवी और फिल्‍म कलाकारों का एक नया रिश्‍ता कायम हुआ है। पिछले कुछ सालों में यह मजबूत और पॉपुलर हो गया है। आप देखते होंगे कि इन दिनों फिल्‍मों की रिलीज के समय उसके कलाकार टीवी शोज में दिखाई पड़ने लगते हैं। इसकी शुरूआत एकता कपूर ने की थी। धीरे-धीरे अब इसकी आदत बन गई है। फिल्‍म के निर्माता और उनके कलाकार परेशान रहते हैं कि रिलीज के समय सभी पाॅपुलर शोज में वे दिख जाएं। मालूम नहीं इससे उनके दर्शक बढ़ते हैं या नहीं? टीवी शोज को अवश्‍य फायदा होता है। उन्‍हें दर्शक मिलते हैं। विशेषज्ञ माने हैं कि परस्‍पर लाभ की वजह से यह रिश्‍ता दोनों पक्षों से निभाया जा रहा है। लेकिन कपिल शर्मा के शो में नामचीन कलाकारों को हास्‍यास्‍पद हरकतें करते देख कर दुख होता है कि फिल्‍मों के प्रमोशन के लिए उन्‍हें किस हद तक नीचे उतरना पड़ता है।
भारतीय संदर्भ में फिल्‍म स्‍टारों की लोकप्रियता का इस्‍तेमाल टीवी को करना चाहिए। उस पर चिंतन-मनन हो और कुछ नए फार्मेट पर विचार हो। अपने देश में फिल्‍मस्‍टारों की लोकप्रियता यूनिक है। उस यूनिकनेस को बचाते हुए शोज और प्रोग्राम सोचे जा सकते हैं।

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