प्रगतिशील थे पूर्वज : रितिक रोशन


 ‘बैंग बैंग’ की रिलीज के करीब दो साल बाद रितिक रोशन की फिल्‍म मोहेंजो दारो अगले महीने रिलीज होगी। यह प्रागैतिहासिक काल की प्रेम कहानी है। इसके निर्देशक आशुतोष गोवारीकार ने कहानी में अपनी कल्‍पना के रंग भरे हैं। सिंधु घाटी सभ्‍यता के प्राचीन शहर मोहेंजो दारो के इतिहास को उसमें नहीं दर्शाया गया है। मोहेंजो दारो की शूटिंग के चलते रितिक रोशन ने कोई अन्‍य फिल्‍म नहीं की। उन्‍होंने उसे तसल्‍ली से पूरा किया। उसमें वह सरमन की भूमिका में हैं।

मुश्किलों का डटकर किया सामना
रितिक बताते हैं, ‘अगर मेरा बस चलता तो फिल्‍म की शूटिंग जल्‍दी पूरी हो जाती। मैं भली-भांति अवगत था कि इस फिल्म की शूटिंग कठिन है। मैं आशुतोष की कार्यशैली से बखूबी परिचित हूं। मुझे पता है कि बेहद बारीकी से वे अपने काम को अंजाम देते हैं। उनकी फिल्‍म निर्माण की प्रक्रिया काफी विस्‍तृत होती है। लिहाजा वक्त काफी लगेगा। स्क्रिप्‍ट पढ़ने के दौरान फिल्‍म से पहले मैंने खुद से कई सवाल किए थे। उनका गहराई से मंथन किया था। मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं इस फिल्म के लिए तैयार हूं। क्या इस फिल्म ने मेरे दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ी है? क्‍या गुजरात में भीषण गर्मी में मैं शूटिंग करने में सक्षम रहूंगा? सारे सवालों के जवाब सकारात्मक थे। लिहाजा मैं शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार था। मुझे अहसास था कि इस फिल्म में कुछ अड़चने आएगी। मैं उनके लिए पहले से तैयार था। अच्‍छी बात यही रही कि मुझे कोई घबराहट नहीं हुई। हां, वक्त लगा। हम लोग भुज गए थे। वहां पर हमें साठ दिन की शूटिंग करनी थी। हमें अस्सी दिन लग गए। वहां पर भीषण गर्मी थी। वहां पर नहाने के पानी से लेकर सेट पर एक्शन करना। ऊपर से तपती रेत में लड़ना-गिरना। यह सब करते हुए रेत शरीर में जहां-तहां चिपक जाती थी। इन  मुश्किलों के बावजूद मैंने यह याद रखा कि स्क्रिप्ट में निहित विजन मेरी इन सारी तकलीफों के आगे कुछ भी नहीं है। मैं मुश्किलों को भूलकर अपने काम में तल्‍लीन रहा। यह सब करते-सहते हमने फिल्म की जर्नी पूरी की।

आशुतोष ने की थी गहन रिसर्च
 मोहेंजो दारो की जानकारी इतिहास में नहीं मिलती। इतिहासकारों ने अवशेषों के आधार पर मोहेंजो दारो की कल्‍पना की है। आशुतोष ने उसमें से एक रास्ता चुनकर अपना विजन क्रिएट किया है। जब मैं सेट पर पहुंचा, मुझे किसी किस्‍म की रिसर्च की आवश्‍यकता नहीं थी। आशुतोष ने सेट पर वाकई में मोहेंजो दारो शहर बसाया था। यह सब देखकर मुझे बहुत संतुष्टि हुई। दरअसल, मोहेंजो दारो को लेकर मुझे किसी कल्‍पना की जरूरत नहीं पड़ी। आशुतोष ने सब कुछ क्रिएट कर दिया था। मुझे रेफरेंस के लिए किसी किताब या इतिहास से जानकारी लेने की जरुरत नहीं पड़ी। सभी कलाकारों ने शूटिंग के दौरान  मोहेंजो दारो के दौर को जीया है। 

रोहित जैसा लगा सरमन
सरमन का किरदार के पीछे आशुतोष की सोच-अप्रोच की मुझे जानकारी नहीं है। मेरे लिए यह जर्नी बहुत ही दिलचस्प रही है। मैंने अर्से बाद ऐसा किरदार निभाया है जो मुझे कहो न प्‍यार है के रोहित की याद दिलाता है। रोहित में सादगी थी। मैंने उस सादगी का अनुभव सिल्‍वर स्‍क्रीन पर कई साल बाद किया है। जहां से मैंने शुरुआत की थी,घूमफिर कर दोबारा वहीं पहुंच गया हूं। इस फिल्म में सरमन साधारण इंसान है। वह ईमानदारी में यकीन रखता है। अन्‍याय बर्दाश्‍त नहीं कर पाता है। जब वह मोहेंजो दारो में पहुंचता है तो दुनिया की कड़वी सच्‍चाई से वाकिफ होता है। सरमन उसके खिलाफ लड़ता है।  उसने एक ऐसी दुनिया का सपना संजोया है जहां सीधे-साधे लोग हों। वे मेलजोल और प्‍यार से रहते हों। वह अपने सपने को साकार करने के लिए लड़ता है। उसी के बल पर वह मोहेंजो दारो को बदल पाता है। सरमन का मतलब आशुतोष ने खुशी बताया है। स्क्रिप्‍ट पढ1ने पर मेरे जेहन में आया कि इसका अर्थ सर (माइंड) और मन (हार्ट) है। यह हार्ट और माइंड की जर्नी है। सरमन दिलवाला है,लेकिन दुनिया से लड़ने के लिए उसे दिमाग का इस्‍तेमाल करने की जरुरत है।

अलहदा है एक्‍शन
फिल्म में किया गया एक्शन अलहदा है। मैंने ऐसा एक्‍शन न कभी किया है न दर्शकों ने कभी देखा होगा। यह कहने का मतलब यह नहीं है कि हमने हॉलीवुड की मैट्रिक्‍स की तरह कुछ किया है। हमने मोहेंजो दारो के दौर को ध्‍यान में रखते हुए एक्‍शन किया है। मेरा फोकस पूरी तरह इमोशन पर था। मैंने उसी पर ध्यान दिया है। मैंने एक्शन को भी इमोशन से जीया है। लिहाजा एक्शन में मेरा सहयोग रहा है। उसमें शुरुआत से अंत तक मैं शामिल रहा। इमोशन कई तरह के होते हैं। कोई इमोशन रूला देता है कोई शांति देता है। सरमन को प्यार और रोमांस, धोखे और कड़वी सच्‍चाइयों से रूबरू होना पड़ता है। लिहाजा उसमें सभी प्रकार के इमोशन हैं।
  
इन बातों ने चौंकाया
-रिसर्च के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्‍यों से मैं परिचित हुआ। मोहेंजो दारो में जलनिकासी के बारे में मैंने स्कूल में पढ़ा था। सेट पर जब यही बनावट मैंने देखी तो चकित रह गया। हमें ऐसा लगता है कि प्रागैतिहासिक हैं, लिहाजा उस दौर के लोगों के चलने-फिरने, बोलने-चालने का तौर-तरीका भिन्‍न होगा। हालांकि ऐसा नहीं है। वे लोग हम सब से ज्यादा बुद्धिमान थे। इतिहास के बारे में जरा सोचिए। उस समय तकनीकी और संसाधन कितने मौजूद थे। कैसे उन्‍होंने पिरामिड बनाया। तब क्रेन तो होती नहीं थी। पत्‍थर कितना वजनी होता था। उसके बावजूद शानदार इमारतें खड़ी की। यह महज बानगी है। दरअसल वे हमसे कहीं ज्‍यादा आगे थे। मेरे कहने का अर्थ यह नहीं है कि मोहेंजो दारो में ऐसा था। आम धारणा है कि मोहेंजो दारो में लोग ऐसे समझदारी से कैसे बोल सकते हैं। आपको कैसे पता? अगर वह होशियार न होते तो अपने समय में इतने विकसित काम कैसे करते। लिहाजा आम भ्रांतियां इस फिल्‍म से टूट सकती है। मुझे एक और चीज ने चकित किया कि तब के लोगों का व्‍यापार का तरीका अलग था। वहां भिन्‍न-भिन्‍न जगहों से लोग आते थे। उनकी वेशभूषा और खरीद-फरोख्‍त का आधार अलग होता था। 

खुद से करता हूं सवाल
 मैं अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त कर पाता हूं। शायद इसलिए क्‍योंकि मैं खुद से सवाल पूछने से कभी पीछे नहीं हटता हूं। इन सवालों के जवाब से मुझे शांति और सुकून मिलता है। जब भी जिदंगी में कुछ अच्छा या बुरा होता है, तो हमेशा कुछ तय सवाल खुद से करता हूं। मसलन अब मुझे क्या करना है, जिससे मेरी कहानी ग्रेट बन जाएं। ये सवाल सिर्फ मेरे लिए है। दुनिया के लिए नहीं। जवाब मिलता है अगर अपनी कहानी को महान बनाना है तो यह समस्‍याएं उसके समक्ष कुछ भी नहीं हैं। आपको इनसे उबरना होगा तभी आपकी कहानी महान बन सकेगी। मैं खुद से पूछता हूं कि जिंदगी में मेरे साथ फलां चीज खराब हो रही है। मैं इस बुराई से क्‍या अच्‍छी चीज सीख सकता हूं। मेरे साथ कैसी सी चीजें जुड़ रही हैं जिससे मेरी ग्रोथ हो रही है। जब मुझे इन सवालों के जवाब मिल जाते हैं तो मैं दूसरों के सवालों का बेहतर तरीके से जवाब दे पाता हूं।

बहुत विनम्र हैं आशुतोष 
जोधा अकबर में हम दोस्त बन रहे थे। इस फिल्म में हम दोस्त बन चुके थे। जब यह फिल्म शुरू हुई तो, ऐसे माहौल में दोस्ती हो तो बातचीत में बाधा नहीं आती है। हम एक दूसरे से किसी भी मुद्दें पर खुल कर बात करते थे। मेरी उनसे हमेशा से एक शिकायत रही है कि वह बहुत ही विनम्र हैं। सेट पर किसी को कुछ भी तकलीफ हो वह सबसे पहले पहुंच जाते थे। उन्हें सीन की जरा भी चिंता नहीं होती थी। सूरज बड़जात्‍या साथ भी मैंने काम किया है। वे भी बेहद विनम्र हैं।
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झंकार टीम

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