दरअसल : मैड्रिड में हिंदी सिनेमा

-अजय ब्रह्मात्‍मज
पिछले 17 सालों से आइफा वीकएंड के तहत आइफा अवार्ड और अन्‍य इवेंट के आयोजन विदेशों में हो रहे हैं। आइफा सामान्‍य तौर पर भारतीय सिनेमा और विशेष तौर पर हिंदी सिनेमा के  प्रसार में अहम भूमिका निभाता रहा है। अभी तो हिंदी सिनेमा के प्रचारक और प्रसारक के नाम पर कई दावेदार निकल आएंगे,लेकिन इस सच्‍चाई सं इंकार नहीं किया जा सकता कि आइफा ने ही यह पहल की। उन्‍होंने भारतवंशियों और विदेशियों के बीच भारतीय फिल्‍मों और फिल्‍म स्‍टारों ‍को पहुंचाया और उनकी लोकप्रियता को सेलीब्रेट किया। आइफा इस मायने में हिंदी फिल्‍मों के अन्‍य पुरस्‍कारों से अलग और विशेष है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री और दुनिया भर के प्रशंसकों को आइफा का इंतजार रहता है। इंटरनेशनल मीडिया को हिंदी फिल्‍मों के स्‍टारों से मिलने का मौका मिलता है। प्रशंसकों को खुशी मिलती है कि उन्‍होंने अपने देश में उन स्‍टारों को देख लिया,जिन्‍हें वे जिंदगी भर केवल स्‍क्रीन पर देखते रहे।
17 वें आइफा अवार्ड समारोह का आयोजन स्‍पेन की राजधानी मैड्रिड में किया गया। 23 से 27 जुलाई तक मैड्रिड की गलियां और ऐतिहासिक स्‍थल हिंदी फिलमों के सितारों से जगमगाते रहे। स्‍टारों के होटलों के बाहर प्रशंसक घंटों इस उम्‍मीद में चरड़े मिलते थे कि उन्‍हें सितारों की झलक मिल जाए। अगर सेल्‍फी हो जाए तो क्‍या कहना? रेड कार्पेट पर चहलकदमी करते सितारों को जमीन पर अपने सामने देख कर उनका चिल्‍लाना और खुश होना पॉपुलर कल्‍चर का ऐसा पहलू है,जिस पर शोधार्थियों का ध्‍यान कम जाता है। यह एक ऐसा जुनून है,जिसे ढंग से परिभाषित नहीं किया जा सका है। वास्‍तव में यह अध्‍ययन का विषय है कि प्रशंसक क्‍यों और कैसे खिंचे आते हैं।
मैंने महसूस किया है कि भारतीय प्रशंसक और भारतवंशी प्रशंसक के व्‍यवहार में उल्‍लेखनीय फर्क होता है। भारतवंशी भी स्‍टार के स्‍टारडम और लोकप्रियता से प्रभावित होते हैं। जाहिर सी बात है कि वे भी सलमान खान को देख कर उछलने लगते हैं,लेकिन वे टाइगर श्राफ के लिए भी उतावले होते हैं। प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण के लिए आकर्षण ज्‍यादा हो सकता है,लेकिन सयानी गुप्‍ता और अदिति राव हैदरी को भी वे नजरअंदाज नहीं करते। भारतीय प्रशंसक छोटे-मोटे कलाकारों को अधिक तवज्‍जो नहीं देते। भारतवंशी के लिए छोटा भी बड़ा होता है और बड़ा तो बहुत बड़ा होता है। विवादों में फंसे सलमान खान के लिए उनके मन में सवाल नहीं थे। वे तो बस उनकी एक मुस्‍कराहट और ठुमके के लिए घेटों समय के साथ पैसे भी खर्च कर रहे थे।
मैड्रिड का आयेजन सफल रहा। हिंदी फिल्‍मों के सितारों ने परफारमेंस से सभी को रिझाया। देर रात होने पर भी वे बैठे रहे। उन्‍होंने पूरा आनंद लिया और विभोर होकर भोर में घर लौटे। मैंने यह महसूस किया है कि उनकी रुचि इसमें नहीं होती कि किसे क्‍या पुरस्‍कार मिला? उसे मिलना चाहिए था या नहीं, ? वे तो दो पुरस्‍कारों के बीच के परफारमेंस के लिए बेचैन दिख्‍ते हैं। इन दिनों त्रिनेत्र की तरह दोनों आंखों के बीच मोबाइल मौजूद रहता है। ज्‍यादातर लोग लाइव आनंद लेने के बजाए तस्‍वीरें और वीडियो उतारने में मस्‍त रहते हैं।
मैड्रिड के बुरे अनुभव भी रहे। वैसे तो पूरा यारोप ही आर्थिक दबाव से गुजर रहा है। अपराध बढ़े हैं। मैड्रिड में अपराध की घटनाएं औसत से ज्‍यादा रहीं। कई फिल्‍मी हस्तियों या उनके परिजनों के सामानों की चोरी या बटमारी हो गई। स्‍थानीय प्रशासकों और पुलिस को विदेशियों की सुरक्षा का खास ध्‍यान रखना चाहिए था। मैंड्रिड की आम जनता मददगार है,लेकिन किशोर अपराधियों ने भारतीयों को नुकसान पहुंचाने के साथ तकलीफ दी। घूमते समय अगर आधा ध्‍यान अपनी पोटली की सुरक्षा पर रहे तो पर्यटन का आनंद भी आधा हो जाता है।
आइफा के आयोजकों ने असुविधाओं के बावजूद मेहमानों का खयाल रखा। फिल्‍म बिरादरी का तो खास खयाल रखा। उन्‍हें अतिरिक्‍त संभाल-खयाल मिलना भी चाहिए। आखिर वे हमारे देश के प्रतिनिधि और चेहरे होते हैं।

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