मदारी का गीत डम डमा डमडमडम

आलोक धन्‍वा कहते हैं कि अगर हिंदी फिल्‍मों के गीतों को सुनने के साथ पढ़ा भी जाए तो उनके नए अर्थ निकलेंगे। मदारी का यह गीत पाठकों और दर्शकों से पढ़ने की मांग करता है। आप निजी भाष्‍य,व्‍याख्‍या और अभिप्रेत के लिए स्‍वतंत्र है। 

फिल्‍म - मदारी
गीतकार - इरशाद कामिल
निर्देशक - निशिकांत कामत
कलाकार - इरफान खान





डमा डमा डमडमडम डमडम
डमा डमा डमडमडम डमडम
डमा डमा डमडमडम डमडम डू

टी वी पे ये ख़बर भी आनी
करके जनहित में क़ुर्बानी
गये मंत्री जंगल पानी रे


डमा डमा डम डमडम डमडम
डमा डमा डम डमडम डमडम
डमा डमा डमडमडम डमडम डू...

फटा फटाफट गुस्सा करके
मिला मिलावट मन में भरके
बना बनावट करके बैरी तू

औसत बन्दा भूखा मर गया
तेरा चमचा खेती चर गया
संसद बैठा खाये चैरी तू

जैसे पहले लगी पड़ी थी
वैसे अब भी लगी पड़ी है
ये राजा भी निरा लोमड़ी है

लाल क़िले का हाल वही है
कोई पैजामा पहन खड़ा या
कोई साड़ी पहन खड़ी है रे...

टी वी पे ये ख़बर भी आनी
करके जनहित में क़ुर्बानी
गये मंत्री जंगल पानी रे

जनता के संग वही झोल है
पिछवाड़े में वही पोल है
बहुमत साला Ass Hole है रे

अनपढ़ बैठा शिक्षा बाँटे
धरम दिलों में बोये कांटे
रोटी माँगो मिलते चाँटे रे

आनी, बानी, दानी, रानी
इन सबने है मिलकर ठानी
बेचके भारत माँ खा जानी रे

बैठ - बैठ संतों की गोदी
बिना तेल के जनता धो दी
दिल्ली बैठा बड़ा विरोधी रे
 

Comments

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-06-2016) को "विहँसती है नवधरा" (चर्चा अंक-2383) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
***Punam*** said…
सही कहा है....आजकल युवा धुन पकड़ते हैं और बोलों को छोड़ देते हैं...इसी लिए ज्यादातर गीत में बोल बेकार और उलजलूल होते हैं...शुक्रिया चवन्नी का मूल्य आज भले खो गया हो लेकिन आज भी 75 में 25 मिलाओ तो 1 रुपया होता है और एक एक रुपया मूल्यवान है
***Punam*** said…
This comment has been removed by the author.
Unknown said…
आजकल के गीतो में सिर्फ कनफोड़ू संगीत सुनने को मिलता है बोलों से शायद ही किसी गीतकार को सरोकार हो ।या बाजार की मांग के अनुसार वे अपना माल तैयार करते हो जो भी हो मदारी का गीत डम-डम आज की व्यवस्था पर चोट करता है और समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।

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