दरअसल : सीरियल किसर की सीरियस राइटिंग



-अजय ब्रह्मात्‍मज

फिल्‍मों और फिल्‍मी हस्तियों के बारे में प्रचलित धारणाओं पर चलें तो ज्‍यादातर मूढ़,आत्‍मलिप्‍त,मतलबी और देश-समाज से कटे व्‍यक्ति होते हैं। मीडिया में उनकी जीवन शैली पर तो पन्‍ने और स्‍पेस भरे जाते हैं,लेकिन क्रभी उनके जीवन दर्शन पर कोई बात नहीं होती। उनकी कामयाबी हमें आधारहीन लगती है। इस देश की भाग्‍यवादी जनता और आम दर्शकों के बीच किस्‍मत,संयोग और ईश कृपा के किस्‍से फैलाए जाते हैं। उनकी मेहनत को नजरअंदाज किया जाता है। पूरी कोशिश यही रहती है कि उनकी सफलता लौकि‍क न लगे। अगर ऐसा अहसास होगा कि लगन और परिश्रम से उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं तो फिल्‍म इंडस्‍ट्री में प्रवेश की कोशिशें बढ़ जाएंगी। जाहिर सी बात है कि हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के स्‍थापित और सुरक्षित सदस्‍यों को बाहरी प्रतिभाओं का आगमन अच्‍छा नहीं लगता। यहां तक कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री से आई प्रतिभाओं की सफलता को भी उनके पूर्वजों और परिवारों से जोड़कर यह बताने की कोशिश की जाती है कि मुश्किल ही अपनी जगह और पहचान बनाना।
इस पृष्‍ठभूमि में चर्चित अभिनेता इमरान हाशमी की किताब द किस ऑफ लाइफ एक अलग अनुभव देती है। सभी जानते हैं कि इमरान हाशमी प्रख्‍यात फिल्‍मकार महेश भट्ट के रिश्‍तेदार हैं। महेश भट्ट ने ही उन्‍हें पहला मौका दिया और बार-बार अपनी फिल्‍मों में दोहरा कर उनकी पहचान बना दी। सीरियल किसर के रूप में मशहूर हुए इमरान हाशमी की जद्दोजहद और बेचैनी से हम वाकिफ भी नहीं होना चाहते। हमें लगता है कि उन्‍हें कामयाबी थाली में परोस कर दी गई थी। उन्‍होंने बिलाल सिद्दीकी की मदद से लिखी इस किताब में में खुद के साथ अपने बेटे अयान के संघर्ष की भी कहानी लिखी है। इस पुस्‍तक में एक पिता के नोट्स हैं,जिन्‍हें उन्‍होंने घोर अवसाद के क्षणों में अनुभव किया है। तमाम कामयाबियों के बीच कैसे एक बीमारी(कैंसर) की जानकारी मिलते ही सब कुछ ताश के पत्‍तों की तरह ढहने लगता है। फिल्‍मों में दर्जनों गुंडों और अनगिनत आपदाओं को हरा कर विजयी होता नायक निजी जिंदगी में कैसे आम इंसान की तरह कमजोर पड़ जाता है। दुआ में यकीन जागता है और दया का पात्र बन जाता है। इमरान हाशमी ने बेलाग और बेलौस तरीके से कैंसर पर अयान की जीत के साथ खुद के एक्‍टर बनने की भी कहानी कही है। महेश भट्ट अपने संपर्क में आए सभी व्‍यक्तियों को नंगा कर देते हैं। वे यह तमीज देते हैा कि इंसान अपनी हथेली में आईना लेकर चले। पांव जमीन पर रहें और फिलमों से मिली कामयाबी को कभी स्‍थायी ना समझे। इस किताब में मुसीबत में करीबियों के लिए एक पांव पर खड़े रहने वाले महेश भट्ट की भी झलक मिलती है। खौफ के दरम्‍यान भी खतरनाक चीख में जीवन का स्‍पंदन महसूस किया जा सकता है।
द किस ऑफ लाइफ में इमरान हाश्‍मी और अयान की पैरेलल कथा चलती है। इमरान ने अपनी शंकाओं और उम्‍मीदों को जाहिर किया है। उन्‍होंने अपनी दादी के बारे में विस्‍तार से बताया है। उनकी दादी पूर्णिमा अपने समय की मशहूर और अमीर अभिनेत्री थीं। उनकी असली नाम मेहर बानो था। वह महेश भट्ट की मां शिरिन की बहन थीं। भट्ट साहब बताते हैं कि वह उनके परिवार की पहली स्‍टार थीं। फिर ऐसा वक्‍त आया कि उन्‍होंने सब कुछ गंवा दिया। गुमनामी में रहीं,लेकिन उन्‍होंने अपने पोते इमरान हाशमी के एक्‍टर बनने की उम्‍मीद नहीं छोड़ी। उन्‍होंने इमरान को प्रेरित किया और उनकी कामयाबी से खुश भी हुईं। पूर्णिमा के बारे में कभी विस्‍तार से लिखूंगा।
फिलहाल,इमरान हाशमी ने इस पुस्‍तक में कैंसर से गंस्‍त अपने बेटे अयान के संघर्ष के बारे में लिखा है। कैसे इमरान ने अपनी पत्‍नी की मदद से संबल बनाए रखा। गम में बिखरने के बजाए बेटे को बचाने का दम बनाए रखा। उन्‍होंने बेटे की बीमारी को सही परिप्रेक्ष्‍य में समझने के लिए शोध किया और मिली जानकरी इस पुस्‍तक में शेयर की है। कैंसर जानलेवा बीमारी है,लेकिन प्रारंभिक अवस्‍था में ही उसकी जानकारी मिल जाए और सही  इलाज हो तो व्‍यक्ति बच सकता है। वह नार्मल जिंदगी जी सकता है। आज देश में अयान के जैसे लाखों कैंसर सरवाइवर हैं। उन्‍होंने अपनी जीजिविषा और जोश के साथ परिजनों के सहयोग से नार्मल लाइफ में वापसी की है।
द किस ऑफ लाइफ सिर्फ दर्द का बयान नहीं है। यह किताब उम्‍मीद देती है। इमरान ने अपने स्‍टारडम को किनारे कर एक व्‍यक्ति और पिता की दास्‍तान लिखी है,जिसे रोचक भाषा और शैली में बिलाल सिद्दीकी ने कलमबद्ध किया है।
पुस्‍तक द किस ऑफ लाइफ
लेखक इमरान हाशमी(सहयोग बिलाल सिद्दीकी)
प्रकाशक ब्‍लू साल्‍ट,पेंगुइन बुक्‍स
मूल्‍य- 399 रुपए   

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