दरअसल : हो सकता है एक और विवाद

-अजय ब्रह्मात्‍मज

अभिषेक चौबे की उड़ता पंजाब पर हाई कोर्ट की सुनवाई से आई खबरों को सही मानें तो केवल एक कट के साथ फिल्‍म रिलीज करने का आदेश मिल जाएगा। पिछले दिनों यह फिल्‍म भयंकर विवाद में रही। फिल्‍म के निर्माताओं में से एक अनुराग कश्‍यप ने सीबीएफसी की आरंभिक आपत्ति के बाद से ही मोर्चा खोल लिया था। सीबीएफसी के पुराने अनुभवों और गुत्थियों की जानकारी होने की वजह से उनके पार्टनर ने अनुराग कश्‍यप को सामने कर दिया था। उन्‍होंने सलीके से अपना विरोध जाहिर किया। और सीबीएफसी के खिलाफ फिल्‍म इंडस्‍ट्री को लामबंद किया। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के कुछ संगठन साने आए। सभी फिल्‍मों को अनुराग कश्‍यप जैसा जुझारू और जानकार निर्माता नहीं मिलता। ज्‍यादातर लोग सिस्‍टम से टकराने या उसके आगे खड़े होने के बजाए झुक जाना पसंद करते हैं। उड़ता पंजाब ने निर्माताओं का राह दिखाई है कि अगर उन्‍हें अपनी क्रिएटिविटी और फिल्‍म पर यकीन है तो तो वे इसी सिस्‍टम में अपनी लड़ाई लड़ कर विजय भी हा‍सिल कर सकते हैं।
दरअसल,ज्‍यादातर निर्माता पर्याप्‍त तैयारी और समय के साथ फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड नहीं आते। फिल्‍म की रिलीज तारीख तय करने के बाद वे पंद्रह से बीस दिनों के अंदर फिल्‍में जमा कर प्रमाण पत्र पा लेना चाहते हैं। फिल्‍म सामान्‍य और यू कैटेगरी की हुई तो दिक्‍कत नहीं होती। कई बार प्रभावशाली निर्माता या स्‍टार हों तो भी काम जल्‍दी हो जाता है। अगर परीक्षण समिति पे प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया तो प्रक्रिया लंबी हो जाती है। फिर पुनरीक्षण समिति,ट्रिब्‍यूनल और अंत में कोट्र का सहारा लेना पड़ता है। आरक्षण के समय प्रकाश झा ने सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया था। फिर भी उत्‍त्‍र प्रदेश की सरकार ने उत्‍तर प्रदेश में फिल्‍म के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी। ऐसा उड़ता पंजाब के साथ भी हो सकता है। मुमकिन है कि पंजाब की सरकार प्रदेश में कानून व व्‍यवस्‍था के बहाने फिल्‍म के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दे।
उड़ता पंजाब का विवाद नेशनल न्‍यूज बना। बाकी फिल्‍में सुर्खियों में नहीं आ पातीं। बताया जा रहा है कि पहलाज निहलानी के अध्‍यक्ष बनने के बाद सबसे ज्‍यादा फिल्‍में पुनरीक्षण समिति और ट्रिब्‍यूनल में जा रही हैं। पहलाज निहलानी के नेतृत्‍व में सीबीएफसी ने नैतिकता की अतिरिक्‍त जिम्‍मेदारी ले ली है। परीक्षण समिति कट और पाबंदी को ध्‍यान में रख कर फिल्‍म देखती है,जबकि उसका मुक्ष्‍य काम फिल्‍म देखने के बाद प्रमाणन की श्रेणी बताना है। हां,अगर कोई निर्माता ए श्रेणी की फिल्‍म के लिए यूए या यू श्रेणी चाहता है तो फिर उसे आपत्जिनक दृश्‍य और संवाद बताए जाते हैं। उनके कट पर राजी होने के बाद श्रेणी बदली जा सकती है। सीबीएफसी का काम सेंसर करना नहीं है। अब तो मंत्री से लेकर बाकी सारे लोग भी यही दोहरा रहे हैं।
पिछले हफ्ते सीबीएफसी की पुनरीक्षण समिति ने मोहल्‍ला अस्‍सी देखी। सदस्‍यों में सहमति न होने की वजह से अब निर्णय अध्‍यक्ष यानी पहलाज निहलानी के विचाराधीन है। अप्रैल में परीक्षण समिति ने मोहल्‍ला अस्‍सी को प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया था। कारण बताए गए थे कि इसमें गालियां हैं। एक स्‍थानीय इलाके यानी अस्‍सी की भावनाओं को आहत करने वाले संवाद,उत्‍तेजक भाषण,राजनीतिक लिंक अप आदि वजह बता कर सीबीएफसी ने प्रमाण पत्र नहीं दिया। इस फिल्‍म के निर्माता विनय तिवारी हैं। फिल्‍म के निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं। मोहल्‍ला अस्‍सी बनारस के मशहूर साहित्‍यकार काशीनाथ सिंह के रचना काशी का अस्‍सी पर आधारित फिल्‍म है। इस फिल्‍म की शूटिंग सालों पहले हो चुकी है,लेकिन निर्माता के आलस्‍य की वजह से फिल्‍म अभी तक रिलीज नहीं हो सकी है। निर्माता और निर्देशक के बीच का विवाद भी एक कारण बताया जाता है। बता दें कि डॉ. च्रद्रप्रकाश द्विवेदी वर्तमान सीबीएफसी के सदस्‍य हैं। वे स्‍वयं किसी भी प्रकार की सेसरशिप के खिलाफ हैं। वर्तमान अध्‍यक्ष के विचारों और फैसलों से उनकी असहमतियां रही हैं।
उड़ता पंजाब की मिसाल लें तो मोहल्‍ला अस्‍सी को भी प्रमाण पत्र की दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए। 

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