दरअसल : ऑन लाइन रिपोर्टिंग की चुनौतियां


दरअसल
 ऑन लाइन रिपोर्टिंग की चुनौतियां
-अजय ब्रह्मात्‍मज
    हिंदी अखबारों के वेब पार्टल पर हिंदी फिल्‍मों से संबंधित खबरें रहती हैं। 8 से 10 शीर्षकों के अंतर्गत इन खबरों को जगह दी जाती है। कुछ फीचर और फिल्‍म रिव्‍यू भी होते हैं। सभी अखबार एक-दूसरे की नकल और होड़ में लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। लगभग सभी अखबारों के पोर्टल पर एक सी खबरें होती हैं। ये खबरें मुख्‍य रूप से एजेंसी और पीआर विज्ञप्तियों से उठा ली जाती हैं। स्‍पष्‍ट है कि कोई विजन नहीं है। अलग होने का धैर्य किसी में नहीं है। तर्क दिया जाता है कि यही चल रहा है। सवाल पूछने पर दूसरे पोर्टल को दिखा दिया जाता है कि वहां भी तो यही हो रहा है। यानी अगर सभी की कमीजें गंदी हैं तो साफ कमीज पहनने की जरूरत क्‍या है ?
          पिछली बार मैंने लिखा था कि अखबारर की सामग्रियों और प्रेस विज्ञप्तियों को ऑन लाइन जारी कर देने मात्र में ही ऑन लाइन जर्नलिज्‍म की इतिश्री मान ली जा रही है। अगर विकसित देशों के अखबारों के पार्टल के एंटरटेनमेंट सेक्‍शन देखें तो भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। फिल्‍म के अनेक पहलू हैं। इन दिनों खबरों के नाम पर कंट्रोवर्सी और चटपटी सूचनाओं को तरजीह दी जा रही है। निस्‍संदेह अधिकोश पाठ‍कों की इसमें रुचि होती है,लेकिन कुछ पाठक गॉसिप के अलावा भी पढ़ना चाहते हें। मेनस्‍ट्रीम ऑन लाइन फिल्‍म जर्नलिज्‍म अभी इसकी सुविधा नहीं दे रहा है। सभी लकीर के फकीर बने हुए हैं। दरअसल,प्रशिक्षण और जानकारी की जरूरत है। रिपोर्टर को बताना होगा कि किस प्रकार की सामग्रियां लिखी जाएं। उनका नेचर क्‍या हो ? भाषा भी बदलने की जरूरत होगी। पुराने गद्य से काम नहीं चलेगा। हमें ऑन लाइन के लिए सरल और तरल हिंदी चाहिए। दोहों और अशआरों की चुस्‍ती चाहिए। कम शब्‍दों में ज्‍यादा बातें कहने का गुर सिखना और सिखाना होगा।
    पत्रकारिता में पांच क का उपयोग होता है। हर खबर में इन पांच क में से किसी एक या उससे ज्‍यादा क की जरूरत होती है। क्‍या,क्‍यों,कौन,कहां और कब... अगर इन दिनों की खबरों का विश्‍लेषण करें तो इनकी कमी दिख जाएगी। हर रिपोर्ट केवल सूचना आगे बढ़ा रहा है। चंद पत्रकार मूल और मौलिक खबरों की तलाश में रहते हैं। बाकी का काम नकल और चोरी से चल जाता है। खबरें लिखने में ऑन लाइन विशिष्‍टता की जानकारी नहीं है,इसलिए वह बोझिल और अरुचिकर लगता है।
    ऑन लाइन में संक्षेपण पर ध्‍यान देने की जरूरत है। रियल टाइम रिपोर्टिंग में पल-पल की रोचक सूचनाएं दी जा सकती हैं। खास कर मनोरंजक इवेंट की रियल टाइम रिपोर्टिंग से यूजर्स को बांधा जा सकता है। हमारे रिपोर्टर आधुनिक गजट से लैस नहीं हैं। वे अपने साधारण मोबाइल से ही नई मांग पूरी करने में असफल हो रहे हैं। इसके साथ मैं यह भी देखता हूं कि कैमरा या स्‍मार्ट फोन होने पर भी रिपोर्टर इवेंट की सटीक कवरेज नहीं कर पाते। कैमरा और स्‍मार्ट फोन के पीछे विजन काम नहीं करे तो वह महज टूल बन कर रह जाएगा। पहले अखबरों के फोटोग्राफर अपनी तस्‍वीरों में पूरी खबर उतार लेते थे। वे खबरों के औचित्‍य के साथ उसके प्रभाव को भी पेश करते थे।
    ऑन लाइन जर्नलिज्‍म समय के साथ बढ़ेगा। हमें इसका लाभ उठाना चाहिए। हमें टेक्‍स्‍ट के साथ हाइपर टेक्‍स्‍ट पर भी ध्‍यान देना चाहिए। ऑन लाइन में अखबरों की तरह स्‍पेस की सीमा नहीं है। यहां एक साथ मल्‍टीमीडिया के इस्‍तेमाल से बहुआयामी प्रभाव पैदा किया जा सकता है। खबर में शब्‍दों के साथ ऑडियो,वीडियो और ग्राफिक्‍स का इस्‍तेमाल किया जा सकता है। हर खबर के साथ उसकी पृष्‍ठभूमि के लिंक दिए जा सकते हैं। और सबसे बड़ी बात की ऑन लाइन की ग्‍लोबल मौजूदगी ने उसका अपार विस्‍तार कर दिया है। पाठक अपनी सुविध से खबरें और फीचर पढ़ सकते हैं।

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