फिल्‍म समीक्षा : गब्‍बर इज बैक

-अजय ब्रह्मात्‍मज
 स्‍टार- तीन स्‍टार *** 
अक्षय कुमार की 'गब्बर इज बैक' हिंदी फिल्मों की उस जोनर की फिल्म है, जिसमें हीरो ही सब कुछ होता है। उसकी हीरोगिरी साबित करने के लिए ही सारे विधान रचे जाते हैं। खासकर सलमान खान ने ऐसी फिल्मों की मिसालें पेश कर दी हैं। उन्हें भी यह नुस्खा दक्षिण से मिला है। अक्षय कुमार की 'गब्बर इज बैक' तमिल की मूल 'रमन्ना' की रीमेक है, जिसके लेखक और निर्देशक ए आर मुरूगोदौस थे। यह फिल्म दक्षिण की अन्य भाषाओं में भी बन चुकी है। निर्देशक क्रिश ने नायक का मूल मिजाज वही रखा है। हिंद फिल्मों के दर्शकों का खयाल रखते हुए उन्होंने कुछ प्रासंगिक मुद्दे जोड़ दिए हैं। सभी मुद्दे करप्शन से संबंधित हैं। इस फिल्म में शरीर से अधिक शब्दों का एक्शन है। अक्षय कुमार के लिए संवादों की एक्शन रायटिंग रजत अरोड़ा ने की है। उन्होंने अक्षय को सिग्नेचर संवाद दिया है 'नाम विलेन का,काम हीरो का'। 

बताने की जरूरत नहीं कि गब्बर हिंदी फिल्मों का प्रिय खलनायक रहा है। युवा दर्शकों की जानकारी के लिए गब्बर का किरदार निभा चुके अमजद खान की लोकप्रियता का इससे भी अंदाजा लगा सकते हैं कि एक सस्ते और मशहूर बिस्किट के ऐड के लिए उन्हें चुना गया था। इस फिल्म में नायक अपना छद्म नाम गब्बर चुनता है। उसके कारनामे ऐसे हैं कि इस बार गब्बर का नाम सुनते ही पचास-पचास कोस दूर तक लोग रिश्वत नहीं लेते। एक बिल्डर के करप्शन का सीधा शिकार होने के बाद प्रोफेसर आदित्य समाज के हर कोने से करप्शन हटाने की मुहिम में लग जाते हैं। उनका एक ही तरीका है कि पहले संबंधित विभाग या क्षेत्र के 10 भ्रष्ट व्यक्तियों को पकड़ो और उनमें से 9 को छोड़ कर एक को सजा दो। सजा भी ऐसी कि लोग याद करते ही सिहर जाएं। कभी भ्रष्ट होने की न सोचें। 

 निर्देशक क्रिश की पूरी कोशिश है कि आम दर्शकों के बीच मौजूद अक्षय कुमार की लोकप्रियता का लाभ उठाया जाए। बगैर संकोच के उन्होंने अक्षय कुमार को एक्शन और डायलॉगबाजी के ऐसे सीन दिए हैं कि आम दर्शक तालियां बजाएं और उछल पड़ें। अक्षय कुमार इस जिम्मेदारी को शिद्दत से निभाते हैं। अक्षय कुमार के कौशल से हम परिचित हैं। 'गब्बर इज बैक' में उस कौशल में निखार है। एक्शन दृश्यों में अपनी संलग्नता से अक्षय कुमार विश्वसनीय लगते हैं। वे पॉपुलर सुपर हीरो के रास्ते पर सधे कदमों से आगे बढ़ते नजर आते हैं। लेखक-निर्देशक ने अपने हाथों में कानून लेने पर गब्बर को नहीं बख्शा है। फिल्म में हुई हिंसा और हत्याओं की सजा के लिए गब्बर तैयार है। वह शहीदाना अंदाज में अपनी सजा स्वीकार करता है। फिल्म के क्लाइमेक्स में गब्बर का दिया भाषण सामाजिक कुरीतियों और भ्रष्टाचार में लिप्त समाज को जगाने के उद्देश्य से लिखा गया है।

 फिल्म की नायिका श्रुति हसन आती-जाती और कभी-कभी नायक से इंटरैक्ट करती दिखाई पड़ती हैं। उनके अलावा इस फिल्म में करीना कपूर खान और चित्रांगदा सिंह भी हैं। दोनों को एक-एक गाना मिला है। करीना कपूर खान का रोल छोटा है। 'हजारों ख्वाहिशों ऐसी' से चित्रांगदा सिंह के मुरीद हुए दर्शकों को तकलीफ हो सकती है। उन्हें कभी स्मिता पाटिल का अवतार समझा गया था। इस फिल्म में वह 'कुंडी ना खड़काओ राजा' गाती और बदन उघाड़ती नजर आएंगी। हिंदी फिल्में बाहर से आई प्रतिभाओं का ऐसा ही दुरूपयोग कर उन्हें निचोड़ लेती है। बाकी कलाकारों के बारे में अलग से कुछ कहने और लिखने जैसी बातें नहीं हैं। अपवाद हैं छोटी सी भूमिका में आए सुनील ग्रोवर। 

 अवधि: 130 मिनट

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