छोड़ दी है कंफर्ट जोन : अभिषेक बच्चन


-अजय ब्रह्मात्मज
‘हैप्पी न्यू ईयर’ की शूटिंग, प्रोमोशन और रिलीज की व्यस्तता के बाद मैं कबड्ड़ी और फुटबॉल जैसे खेलों में लीन हो गया था। काफी व्यस्त रहा। खेलों को लेकर कुछ करने का सपना था, वह पूरा हुआ। कबड्डी और फुटबॉल दोनों खेलों के सफल आयोजन से बहुत खुशी मिली। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ भी लोगों को पसंद आई। फिल्म में अपना काम सराहा जाता है तो बहुत अच्छा लगता है। कोई शिकायत नहीं है मुझे। हां, भूख बढ़ गई है।
    भूख एक्टिंग की बढ़ी है। इन दिनों ‘हेरा फेरी 3’ और ‘हाउसफुल 3’ की शूटिंग कर रहा हूं। मेरे लिए दोनों ही फिल्में चुनौतीपूर्ण हैं। दोनों सफल रही हैं। उनकी अपनी एक प्रतिष्ठा है। चुनौती यह है कि मुझे उस प्रतिष्ठा के अनुकूल होना है। ‘हेरा फेरी 3’ में जॉन अब्राहम, परेश रावल और सुनील शेट्टी के साथ हाव-भाव मिलाना है तो ‘हाउसफुल 3’ में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख और बोमन ईरानी के साथ खड़ा होना है। ये सभी कलाकार इन फिल्मों से वाकिफ हैं। दर्शक भी उन्हें देख चुके हैं। मैं दोनों फिल्मों में नया हूं। गौर करें तो दोनों फ्रेंचाइजी फिल्मों के प्रशंसक और दर्शक हैं। मुझे उन्हें संतुष्ट करना है। सचमुच मैं अपने कंफर्ट जोन से बाहर आ गया हूं। रातों की नींद उड़ गई है। मुझे दोनों फिल्मों के सुर में आना है।
    ‘हेरा फेरी 3’ के डायरेक्टर नीरज वोरा हैं। उन्होंने ही ‘हेरा फेरी 2’ की थी। हां, ‘हाउसफुल 3’ के डायरेक्टर बदल गए हैं। इस बार साजिद-फरहाद हैं। मेरे लिए अच्छी बात है कि साजिद-फरहाद की लिखी ‘बोल बच्चन’ कर चुका हूं। उनसे मेरा अच्छा तालमेल है। उन्होंने ‘हाउसफुल 2’ लिखी थी।
    यह कहना ठीक नहीं होगा कि मैं केवल कॉमेडी फिल्में कर रहा हूं। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के पहले मैंने ‘धूम 3’ की थी। वह एक्शन फिल्म है। कुछ दिनों पहले उमेश शुक्ला की फिल्म ‘ऑल इज वेल’ की शूटिंग कर रहा था। अभी की दोनों फिल्में कॉमेडी हैं। कॉमेडी करने में थोड़ी दिक्कत हो रही है, लेकिन मजा आ रहा है। मेहनत करनी पड़ रही है। मुझे लगता है कि अपने करियर में मैं उस मुकाम पर हूं, जहां मुझे हल्की-फुल्की फिल्में करने की जरूरत है। हो सकता है 2016 में मैं कुछ इंटेंस और पॉवरफुल फिल्में करूं। कॉमेडी बहुत ही थकाऊ प्रॉसेस है। पर्दे पर जो एनर्जी लेवल दिखता है, उसे सेट पर भी बनाए रखना पड़ता है। आप जानते हैं कि हिंदी फिल्मों के सेट पर क्या-क्या होता है और कैसे-कैसे लोगों से मुलाकात होती है? शॉट के बीच में नॉर्मल होने के बाद फिर से कैमरा ऑन होते ही उसी एनर्जी के साथ शुरुआत करनी पड़ती है। संयोग ऐसा रहा कि अपनी कॉमेडी फिल्मों में मैंने ज्यादातर हायपर कैरेक्टर प्ले किए हैं। ड्रामा, एक्शन और रोमांस में जरूरी नहीं है कि साथ खड़े कलाकार और आप एक ही पिच पर हों। कॉमेडी फिल्मों में इसकी सख्त जरूरत पड़ती है।
    ऑफस्क्रीन होने पर मैं हमेशा नॉर्मल रहने की कोशिश करता हूं। बाकी कलाकारों के बारे में मुझे नहीं मालूम, लेकिन अपने बारे में कह सकता हूं कि निजी जिंदगी में मैं एक्टर नहीं हूं। वैसे यह भी सच है कि पर्दे पर लगातार किरदार निभाते-निभाते वास्तविक अभिषेक बच्चन कभी-कभी कहीं खो जाता है। मैं खुद अपने किरदारों नंदू, भीड़े या गुरू देसाई को तो जानता हूं, लेकिन अपने बारे में सही-सही नहीं बता सकता कि अभिषेक बच्चन कौन और क्या है? लोगों और प्रशंसकों के सामने मैं परफॉर्म नहीं करता। खुश हूं तो खुश दिखूंगा, उदास हूं तो शायद सामने नहीं आऊंगा। किसी इवेंट पर जाकर उदास और दुखी दिखना तो गलत बात है। कई बार हम अपनी तकलीफें छिपा कर हंसते हैं। अंग्रेजी की कहावत है, ‘पुल अप योर सॉक्स एंड फेस द वल्र्ड’। एक कलाकार मीडिया या इवेंट में कोई दूसरी बात याद नहीं रख सकता। फिल्मों की शूटिंग में भी कई बार न चाहते हुए भी काम करना पड़ता है, क्योंकि कई सारे लोगों की तारीखें जोड़ी गई रहती हैं। मैं सेट पर जाकर डायरेक्टर से यह नहीं कह सकता कि आज यह सीन नहीं, वह सीन शूट करो। किसी प्रकार का बदलाव करना पेशेवर तरीका नहीं होगा। हरेक सीन के पीछे सैकड़ों लोगों की मेहनत लगी रहती है। हर पेशे में तालमेल बिठाकर चलना पड़ता है। हमें यह देखना चाहिए कि हमारे आलस्य या इंकार से कितने लोगों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। किसी भी पेशे में सभी एक-दूसरे से जुड़े होने के साथ एक-दूसरे पर निर्भर भी करते हंै।
    अभी ओवर एक्सपोजर का दौर चल रहा है। मीडिया और स्टार के संबंध व तौर-तरीके बदल गए हैं। मुझे याद है ‘रिफ्यूजी’ रिलीज होने के समय मुझे महीने-महीने इंतजार करना पड़ा था कि फलां मैग्जीन आएगी तो उसमें मेरा इंटरव्यू आएगा। तब फिल्मी खबरों और इंटरव्यू के लिए दूसरा जरिया भी नहीं था। अभी तो तीस सेकेंड के अंदर ट्विटर पर सभी की प्रतिक्रियाएं आने लगती हैं। सब-कुछ झटपट हो गया है। स्थिति यह हो गई है कि सेलेब्रेटी की हर मूवमेंट खबर है। अभी खबरों की खपत बढ़ गई है। उस हिसाब से पत्रकारों को भी खबरें खोजने से ज्यादा ईजाद करनी पड़ती है। पूरा माहौल एक राक्षस के रूप में बदल चुका है, जिसकी भूख खत्म ही नहीं होती। किसी क्रॉसिंग पर मेरी गाड़ी खड़ी है तो कोई भी मेरी तस्वीर खींचकर छाप देगा। वह भी खबर है। सच कहें तो अपनी चर्चा की चाहत के बावजूद एक्टर डर गए हैं। इस डर से एक्टरों ने अपने आस-पास कवच सा बना लिया है। यह अच्छी बात नहीं है, लेकिन यही सच्ची बात है।

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