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Showing posts from April, 2015

दरअसल : तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की शूटिंग

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-अजय ब्रह्मात्मज     कुछ सालों पहले तक निर्माता और निर्देशक अपनी फिल्मों की शूटिंग पर बुलाते थे। फुर्सत से बातें होती थीं। हम फिल्म निर्माण की प्रक्रिया की दिक्कतों से परिचित होते थे। कलाकारों और तकनीकी टीम के लोगों से भी बातचाीत और निरीक्षण में अनेक जानकारियां मिलती थीं। इधर कुछ सालों से यह सिलसिला बंद हो गया है। अब निर्माता नहीं बुलाते। उन्हें डर रहता है कि फिल्म का लुक बाहर आ जाएगा। समय से पहले जानकारियां दर्शकों के बीच पहुंच गईं तो फिल्म का नुकसान होगा। सच कहूं तो यह निर्माता और और निर्देशकों का वहम है। जानकारियां पहले मिलें तो दर्शकों की जिज्ञासा और उत्सुकता बढ़ती है। वे अपना मन बनाते हैं। अभी मीडिया के महाजाल में इंस्टैंट पब्लिसिटी का दौर चल रहा है। सभी चाहते हैं कि छोटी से छोटी बातों का भी एकमुश्त चौतरफा असर हो।     इस पृष्ठभूमि में निर्माता कृषिका लुल्ला और निर्देशक आनंद राय ने अपनी ताजा फिल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ के लिए बुला कर हिम्मत का ही काम किया। दरअसल,ऐसे मेलजोल में परस्पर विश्वास बडी चीज है। अगर आप सूंघने वाले पत्रकार हैं तो सभी आशंकित रहते हैं। लोकेशन और सेट पर ऐ

दरअसल : जीवन राजेश खन्ना का

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-अजय ब्रह्मात्मज     राजेश खन्ना की जिंदगी दिलचस्प है। चूंकि उनके करीबी और राजदार में से कोई भी उनकी जिंदगी के तनहा लमहों को शेयर नहीं करना चाहता,इसलिए हमें उनकी जिंदगी की सही जानकारी नहीं मिल पा रही है। उनकी लोकप्रियता और स्टारडम से सभी वाकिफ हैं। पहली किताब आने के पहले से उनके प्रशंसक उनके करिअर का हिसाब-कितपब रखते हैं। उन्हें मालूम है कि काका ने कब और कैसे कामयाबी हासिल की और कब वे नेपथ्य में चले गए। उन्हें अपनी किीकत मालूम थी,लेकिन वे उसके साथ जीने और स्वीकार करने से हिचकते रहे। यही कारण है कि उनके अतीत की परछाइयों ने उनके व्यक्तित्व को अंधेरे से बाहर ही नहीं आने दिया। बस,एक आकृति घूमती-टहलती रही दुनिया में। उसकी सांसें चल रही थीं,लेकिन सांसों की खुश्बू और गर्मी गायब थी। राजेश खन्ना जीते जी ही अपनी मूर्ति बन गए थे। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके जीवनीकारों ने भी इसी निष्पंद व्यक्ति के जीवन चरित अपने साक्ष्यों,अनुभवों और अनुमानों के आधार पर लिखे हैं।     यासिर उस्मान ने उनकी जिंदगी और करिअर को 256 पृष्इों की किताब राजेश खन्ना : कुछ तो लोग कहेंगे में सरल तरीके से समेटने की कोशिश की ह

फिल्‍म समीक्षा : जय हो डेमोक्रेसी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज स्टार: 1.5  ओम पुरी, सतीश कौशिक, अन्नू कपूर, सीमा बिस्वास, आदिल हुसैन और आमिर बशीर जैसे नामचीन कलाकार जब रंजीत कपूर के निर्देशन में काम कर रहे हों तो 'जय हो डेमोक्रेसी' देखने की सहज इच्छा होगी। सिर्फ नामों पर गए तो धोखा होगा। 'जय हो डेमोक्रेसी' साधारण फिल्म है। हालांकि राजनीतिक व्यंग्य के तौर पर इसे पेश करने की कोशिश की गई है, लेकिन फिल्म का लेखन संतोषजनक नहीं है। यही कारण है कि पटकथा ढीली है। उसमें जबरन चुटीले संवाद चिपकाए गए हैं। फिल्म का सिनेमाई अनुभव आधा-अधूरा ही रहता है। अफसोस होता है कि एनएसडी के प्रशिक्षित कलाकार मिल कर क्यों ऐसी फिल्में करते हैं? यह प्रतिभाओं का दुरूपयोग है।  सीमा के आरपार भारत और पाकिस्तान की फौजें तैनात हैं। दोनों देशों के नेताओं की सोच और सरकारी रणनीतियों से अलग सीमा पर तैनात दोनों देशों के फौजियों के बीच तनातनी नहीं दिखती। वे चौकस हैं, लेकिन एक-दूसरे से इतने परिचित हैं कि मजाक भी करते हैं। एक दिन सुबह-सुबह एक फौजी की गफलत से गोलीबारी आरंभ हो जाती है। इस बीच नोमैंस लैंड में एक मुर्गी चली आती है। मुर्गी पकडऩे भारत के

दीपिका और प्रियंका का मुकाबला नृत्य

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-अजय ब्रह्मात्मज याद है, संजय लीला भंसाली की ‘देवदास’ में ‘डोला रे डोला’ गीत विशेष आकर्षण बन गया था। इस गाने में पारो और चंद्रमुखी दोनों ने अपने पांवों में बांध के घुंघरू और पहन के पायल मनोहारी नृत्य किया था। ‘देवदास’ में ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित के युगल नृत्य को बिरजू महाराज ने संजोया था। संजय लीला भंसाली की फिल्मों की भव्यता की एक विशेषता सम्मोहक और शास्त्रीय नृत्य भी होती है। अपनी फिल्मों में उन्होंने सभी अभिनेत्रियों को नृत्य में पारंगता दिखाने के मौके दिए हैं। पिछली फिल्म ‘गोलियों की रासलीला ़ ़ ऱामलीला’ में दीपिका पादुकोण को ‘ढोल बाजे’ गाने में अपना हुनर दिखाने का अवसर मिला तो सिर्फ एक गाने ‘राम जाने’ में आई प्रियंका चोपड़ा भी पीछे नहीं रहीं। अब ‘बाजीराव मस्तानी’ दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा का युगल नृत्य दिखेगा। इसे रेमो फर्नांडिस निर्देशित कर रहे हैं।     ‘बाजीराव मस्तानी’ में दीपिका पादुकोण मस्तानी की भूमिका निभा रही हैं। प्रियंका चोपड़ा बाजीराव की पत्नी काशीबाई की भूमिका में हैं। इन दिनों दोनों इस फिल्म के युगल नृत्य की शूटिंग कर रही हैं। दीपिका और प्रियंका ने

इन दिनों मैं समय बिताने के लिए चलता हूं।

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मुंबई में कई बार एक इवेंट या मुलाकात के बाद दूसरे इवेंट या मुलाकात के बीच इतना समय नहीं रहता कि मैं घर लौट सकूं या ऑफिस जा सकूं। ऐसी स्थिति आने पर मैं चलता हूं। कई बार अगले ठिकाने तक पैदल जाता हूं। समय कट जाता है और कुछ नई चीजें दिखाई पड़ जाती हैं। आज लाइट बॅक्‍स के प्रिव्‍यू शो के बाद मुझे रणवीर सिंह के घर जाना था। खार जिमखाना तक मैं पैदल ही चल पड़ा। बाकी तो मजा आया,लेकित तीन बार पसीने से तरबतर हुआ। रणवीर के अपार्टमेंट में घुसते समय झेंपा और सकुचाया हुआ था। क्‍यों,रणवीर मिलते ही भर पांज भींच लेते हैं। मुझे डर था कि कहीं दरवाजे पर ही मुलाकात हुई तो क्‍या होगा ? पसीने से तरबतर व्‍यक्ति की झप्‍पी ठीक नहीं रहेगीत्र गनीमत है। मुझे वक्‍त मिला। चसीना सूख गया। और फिर रणवीर मिले तो वैसे ही मिलना हुआ। भर पांज की भींच और ढेर सारी बातें....हर अच्‍छी मुलाक़ात की तरह आज की मुलाकात भी अधूरी ही रही।

हिंदी टाकीज 2(8) : यादों के गलियारों से... -वर्षा गोरछिया 'सत्‍या'

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इस बार वर्षा गोरछिया 'सत्‍या' अपनी यादों के गलियारों से सिनेमा के संस्‍मरण लेकर लौटी हैं। फतेहाबाद,हरियाणा में पैदा हुई वर्षा ने पर्यटन प्रबंधन में स्‍नातक किया है। बचपन से सिनेमा की शौकीन वर्षा ने अपनी यादों को पूरी अंतरंगता से संजोया है। फिलहाल वह गुड़गांव में रहती हैं। हरियाणा की वर्षा के सिनेमाई अनुभवों में स्‍थानीय रोचकता है। रविवार का दिन है, शाम के वक़्त बच्चे काफी शोर कर रहे हैं ।   कुछ बच्चे बबूल (कीकर) के पेड़ पर चढ़े हुए हैं ।   कुछ जड़ों को काटने के लिए खोदे गए गड्ढे में कुछ अजीब ढंग के लाल-पीले चश्मा लगाकर, गर्दन हिलाकर चिल्ला रहे हैं “दम मारो दम,मिट जाए गम, बोलो सुबहो शाम..”, तभी एक बच्चा बबूल के पेड़ के किसी ऊंची डाल पर से बोलता है “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना..” ।   एक छोटी सी लड़की ने एक डंडा गिटार की तरह पकड़ रखा है और फ्लिम “यादों की बारात” का गाना “चुरा लिया है तुमने..” गा रही है ।   इसी तरह अलग-अलग बच्चे अपनी-अपनी पसंदीदा फिल्मों या कलाकारों की नक़ल करने में लगे हुए हैं ।   ये सब मैं कोई नाटक का दृश्य बयान नहीं कर रही बल्कि अपनी बचपन

फिल्म समीक्षा : मिस्टर एक्स

स्टार:   डेढ़ स्टार विक्रम भट्ट निर्देशित इमरान हाशमी की 'मिस्टर एक्स' 3डी फिल्म है। साथ ही एक नयापन है कि फिल्म का नायक अदृश्य हो जाता है। यह नायक अदृश्य होने पर भी अपनी प्रेमिका को चूमने से बाज नहीं आता, क्योंकि पर्दे पर इमरान हाशमी हैं। इमरान हाशमी की कोई फिल्म बगैर चुंबनों के समाप्त नहीं होती। विक्रम भट्ट 3डी तकनीक में दक्ष हैं। वे अपनी फिल्में 3डी कैमरे से शूट भी करते हैं, लेकिन इस तकनीकी कुशलता के बावजूद उनकी 'मिस्टर एक्स' में कथ्य और निर्वाह की कोई नवीनता नहीं दिखती। फिल्म पुराने ढर्रे पर चलती है। रघु और सिया एटीडी में काम करते हैं। दोनों अपने विभाग के कर्मठ अधिकारी हैं। एक-दूसरे से प्रेम कर रहे रघु और सिया शादी करने की छट्टी ले चुके हैं। उन्हें बुलाकर एक खास असाइनमेंट दिया जाता है। कर्तव्यनिष्ठ रघु और सिया पीछे नहीं हटते। वे इस असाइनमेंट में एक कुचक्र के शिकार होते हैं। स्थितियां ऐसी बनती हैं कि दोनों एक-दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं। अदृश्य हो सकने वाला नायक अब बदले पर उतारू होता है। वह स्पष्ट है कि कानून उसकी कोई मदद नहीं कर सकता, इसलिए

फिल्म समीक्षा : मार्गरिटा विद ए स्ट्रा

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-अजय ब्रहमात्मज स्टार: 4 शोनाली बोस की निजी जिंदगी संबंधों और भावनाओं की उथल-पुथल से कांपती रही है। इधर कुछ उनसे बिछुड़े और कुछ अलग हो गए। बड़े बेटे ईशान को आकस्मिक तरीके से खोने के बाद वह खुद के अंतस में उतरीं। वहां सहेज कर रखे संबंधों को फिर से झाड़ा-पोंछा। उन्हें अपनी रिश्ते की बहन मालिनी और खुद की कहानी कहनी थी। मालिनी के किरदार को उन्होंने लैला का नाम दिया। अपनी जिंदगी उन्होंने विभिन्न किरदारों में बांट दी। इस फिल्म में शोनाली की मौजूदगी सोच और समझदारी के स्तर पर है। उन्होंने लैला के बहाने संबंधों और भावनाओं की परतदार कहानी रची है। सेरेब्रल पालसी में मनुष्य के अंगो के परिचालन में दिक्कतें होती हैं। दिमागी तौर पर वे आम इंसान की तरह होते हैं। प्रेम और सेक्स की चााहत उनके अंदर भी होती है। समस्या यह है कि हमारा समाज उन्हें मरीज और बोझ मानता है। उनकी सामान्य चाहतों पर भी सवाल करता है। 'मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ' लैला के साथ ही उसकी मां, पाकिस्तानी दोस्त खानुम, गुमसुम व सर्पोटिंग पिता, नटखट भाई और लैला की जिंदगी में आए अनेक किरदारों की सम्मिलित कहानी है, जों संबंधों की अल