खुशकिस्मत हूं मैं - फवाद खान


-अजय ब्रह्मात्मज
फवाद खान कुछ ऐसे दुर्लभ सितारों में हैं, जिनके प्रति पहली फिल्म से ही इतनी उत्सुकता बनी है। इसके पहले कपूर खानदान के रणबीर कपूर के प्रति लगभग ऐसी जिज्ञासा रही थी। फवाद के लिए यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि वह पाकिस्तानी मूल के एक्टर हैं। लाहौर में रचे-बसे फवाद ने माडलिंग और गायकी के बाद शोएब मंसूर की फिल्म ‘खुदा के लिए’ से एक्ंिटग की शुरुआत की। चंद साल पहले उन्हें मुंबई से एक फिल्म का आफर मिला था, लेकिन तब दोनों देशों के संबंध बिगडऩे की वजह से फवाद का भारत आ पाना संभव नहीं हो पाया था। ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ मुहावरे के तर्ज पर फवाद 2014 में शशांक घोष की फिल्म ‘खूबसूरत’ में सोनम कपूर के साथ आ रहे हैं। फिल्म की रिलीज के पहले जिदंगी चैनल पर आए उनके टीवी ड्रामा ‘जिंदगी गुलजार है’ ने उनके लिए लोकप्रियता की कालीन बिछा दी है। भारत में फवाद के प्रशंसक बढ़ गए हैं। अपनी इस लोकप्रियता से फवाद भी ताज्जुब में हैं और बड़ी चुनौती महसूस कर रहे हैं।    

-‘खूबसूरत’ आने के पहले आपकी लोकप्रियता का जबरदस्त माहौल बना हुआ है। बतौर पाकिस्तानी एक्टर आप किसे किस रूप में एं'वाय कर रहे हैं?
 0 मेरे लिए बहुत ही फख्र और इज्जत की बात है अपने मुल्क में तो मैंने लोहा मनवा लिया। लोगों ने पसंद किया सराहना की। मुहब्बत दी। अब मैं अपने मुल्क से बाहर ग्लोबल पैमाने पर निकला हूं। इससे इज्जत का एहसास और बढ़ गया है। अपने मुल्के के नुमाइंदे के तौर पर मैं यहां आया हूं। यहां के लोगों के प्यार और मुहब्बत ने मुझे विनम्र बना दिया है। ‘जिंदगी गुलजार है’ मेरे लिए कालिंग कार्ड बन गया। हमारे यहां 20 से 20 एपीसोड के सीरियल बनते हैं,इसलिए क्वालिटी कंट्रोल मुमकिन हो जाता है। पाकिस्तान में फिल्मों में आई फिसलन के बाद म्यूजिक और टीवी ही टैलेंट दिखाने का रास्ता रह गया था। मेरी कोशिश नैचुरल अदायगी पर रहती है।
-अपने बैकग्राउंड के बारे में थोड़ा बताएं।
0 मैं ऐसे परिवार में पला बढ़ा जहां फिल्मों और एक्ंिटग का ख्याल ही नहीं आया। मेरे पिता एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में थे। मेरा बचपन उनके साथ कई देशों में बीता। 12 साल की उम्र में मैं पिता के साथ ही लाहौर आया और फिर हम वहीं रह गए। पूरे खानदान में कभी किसी ने एक्ंिटग की तरफ रुख नहीं किया था। पहले पाकिस्तान और अब भारत में यहां तक आना मेरे लिए बहुत लंबा सफर है। इस सफर में मेरी यह जीत है मंजिल आगे ही बढ़ती जा रही है। पिछले 18 सालों से लाहौर के एक मध्यवर्गीय परिवार में रहता हूं। अभी तक कोई खास तब्दीली नहीं आई है। मेरे वालिद ने भी इसका तसव्वुर नहीं किया था। मेरी शादी हो चुकी है और मेरा एक बेटा है। हम लोग हंसी-खुशी अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। जितना बड़ा आर्टिस्ट मुझे बना दिया गया है,मैं खुद को उससे कम पाता हूं।
-आपकी परवरिश में लाहौर की क्या भूमिका रही है? आजादी के पहले हिंदी फिल्मों के विकास में लाहौर का रोल रहा है। क्या आप कुछ जानते हैं?
0 लाहौर लगातार तरक्की कर रहा है। जानता हूं कि लाहौर कल्चर और लिट्रेचर का बहुत बड़ा सेंटर रहा है। फिल्में अब कम बनती हैं, लेकिन इतिहास के निशान मौजूद हैं। हिंदी फिल्मों के विकास में लाहौर का मकबूल रोल रहा है। यकीनन लाहौर बदल गया है। पहले जैसी बात नहीं रही, लेकिन मुझे लगता है कि पिछले दस सालों में हिंदुस्तान-पाकिस्तान के सभी शहरों का यही हाल हुआ है।
-पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों के प्रति क्या नजरिया है?
0 मैं खुशकिस्मत हूं कि दोनों देशों के बीच सुधरते हालात में यहां आया हूं। पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान के रेगुलर थिएटर में हिंदुस्तान के साथ ही फिल्में रिलीज हो रही हैं। अब तो पाइरेसी का जमाना चला गया है। मुझे याद है पहले हम लोग वीडियो कैसेट्स लाकर समूह में फिल्में देखा करते थे। हम लोग नए दौर में जी रहे हैं। एकदूसरे के हवाले से हम 'यादा जानकार हो गए हैं। गलतफहमियां कम हुई हैं। दोनों तरफ की मुश्किलें लगभग खत्म हो गई हैं। अगर मेरी पर्सनल राय लें तो मुझे एक ही दिक्कत हुई है वह है हिंदी और उर्दू के वाक्य रचना में। यहां बोलने का लहजा थोड़ा अलग है।
-‘खूबसूरत’ के बारे में बताएं। क्या किरदार है आप का?
0 मैंने यह फिल्म देख रखी थी। सामने से ऑफर आया तो ना क्यों करता? हमलोगों की फिल्म पुरानी ‘खूबसूरत’ से अलग है। इस यूनिट के लोग अंदरुनी तौर पर खूबसूरत हैं। उनके साथ काम करने का तर्जुबा भी खूबसूरत रहा। मेरे लिए यह यादगार रहेगा। मेरा किरदार विक्रम बहुत ही एंबीसस और अनुशासित व्यक्ति है। वह अक्खड़ किस्म का है।  इस मायने में भी खुशकिस्मत हूं कि मेरे बचपन के आदर्श ‘मिस्टर इंडिया’ अनिल कपूर के प्रोडक्शन में काम करने का मौका मिला। सच कहूं तो उनके सामने घबरा जाता हूं।





Comments

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम