फिल्म समीक्षा : औरंगजेब

movie review : film Aurangzeb three and half star-अजय ब्रह्मात्मज 
अरसे बाद अनेक किरदारों के साथ रची गई नाटकीय कहानी पर कोई फिल्म आई है। फिल्म में मुख्य रूप से पुरुष किरदार हैं। स्त्रियां भी हैं, लेकिन करवाचौथ करने और मां बनने के लिए हैं। थोड़ी एक्टिव और जानकार महिलाएं निगेटिव शेड लिए हुए हैं। फिल्म में एक मां भी हैं, जो यश चोपड़ा की फिल्मों की मां [निरुपा राया और वहीदा रहमान] की याद दिलाती हैं। सपनों और अपनों के द्वंद्व और दुविधा पर अतुल सभरवाल ने दिल्ली के गुड़गांव के परिप्रेक्ष्य में क्राइम थ्रिलर पेश किया है।
यशराज फिल्म्स हमेशा से सॉफ्ट रोमांटिक फिल्में बनाता रहा है। यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा की देखरेख में इधर कुछ सालों में कॉमेडी या रॉमकॉम भी आए, लेकिन अपराध की पृष्ठभूमि पर बनी यशराज फिल्म्स की यह प्रस्तुति नयी और उल्लेखनीय है। अतुल सभरवाल ने हमशक्ल जुड़वां अजय और विशाल के लिए अर्जुन कपूर को चुना है। दूसरी फिल्म में ही डबल रोल करते अर्जुन कपूर के एक्सप्रेशन की सीमाओं को नजरअंदाज कर दें तो उन्होंने एक्शन और मारधाड़ दृश्यों में अच्छा काम किया है। अजय बिगड़ैल और दुष्ट मिजाज का लड़का है और विशाल सौम्य और सभ्य दिमाग का.. एक उद्देश्य से दोनों की अदला-बदली की जाती है। लंब इमोशनल ड्रामा चलता है। इस ड्रामा में बाप, बेटे, मां,रखैल और अन्य किरदार हैं। लेखक-निर्देशक ने सभी किरदारों पर थोड़ा-थोड़ा ध्यान दिया है।
'औरंगजेब' मुगल बादशाह औरंगजेब की मानसिकता को एक विचार के तौर पर पेश करती है। कहते हैं औरंगजेब ने राजगद्दी के लिए अपने भाइयों को कत्ल किया था और पिता शाहजहां को कारागार में डाल दिया था। यहां गुड़गांव में एक नहीं, अनेक औरंगजेब हैं। सभी अपनी हुकूमत और ताकत चाहते हैं। फिल्म का एक दृश्य मजेदार है, जब छह रिवाल्वर अलग-अलग व्यक्तियों पर एक साथ तनते हैं। ऐसा प्रतीत होता है सभी एक-दूसरे की जान के दुश्मन हैं।
'औरंगजेब' में 'त्रिमूर्ति' और अन्य फिल्मों की झलक मिल सकती है, फिर भी अतुल सभरवाल ने इसे किसी फिल्म के रीमेक बनने से बचाया है। उन्होंने बदले और बादशाहत की भावना को आज के संदर्भ में रखा है। समृद्ध और विकसित हो रहे समाज में अपराध के फैले तार को लेखक-निर्देशक ने दिखाया है। फिल्म में भविष्यवाणी की जाती है कि आने वाले समय में देश पॉलिटिशियन और कारपोरेट ही चलाएंगे। पॉलिटिक्स के अकूत पावर और कारपोरेट के बेहिसाब पैसे के दम पर ही दुनिया चलेगी। हर व्यक्ति चाहेगा कि वह दोनों में से किसी एक में सफल हो ताकि वह रूतबे और रौब के साथ समाज में रह सके।
'औरंगजेब' वास्तव में महानगरों के पास उग रहे उपनगरों की पतनगाथा है। पता चलता है कि कैसे अपराधी, पुलिस और पॉलिटिशियन मिल कर आम नागरिक को बेवकूफ बना रहे हैं। हालांकि फिल्म किसी सामाजिक संदेश का दावा नहीं करती, लेकिन हर फिल्म प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में अपने समय का बयान होती है। 'औरंगजेब' ऐसी ही एक दास्तान है,जिसमें नए समाज के औरंगजेबों का चित्रण है।
यह फिल्म ऋषि कपूर और जैकी श्रॉफ के अभिनय के लिए भी देखी जा सकती है। दोनों प्रौढ़ अभिनेताओं ने एक बार फिर अपना साम‌र्थ्य जाहिर किया है। फिल्म में पृथ्वीराज सरप्राइज करते हैं। वे सूत्रधार भी हैं। वे ही फिल्म की कहानी कहते हैं। उन्होंने आर्या के रूप में एक कॉम्प्लेक्स किरदार को सहज ढंग से निभाया है। अर्जुन कपूर सध रहे हैं। पिछली फिल्म से वे काफी आगे बढ़े हैं। साशेह आगा की यह पहली फिल्म है। चंद दृश्यों में उन्हें केवल किसिंग सीन और हम बिस्तर होने के लिए ही रखा गया है। उनके किरदार को ढंग से विकसित नहीं किया गया है। एक अंतराल के बाद अमृता सिंह को देखना सुखद लगा।
अवधि - 139 मिनट
तीन स्टार

Comments

suraj said…
1सपनों और अपनों के द्वंद्व और दुविधा पर अतुल सभरवाल ने दिल्ली के गुड़गांव के परिप्रेक्ष्य में क्राइम थ्रिलर पेश किया है।
2यहां गुड़गांव में एक नहीं, अनेक औरंगजेब हैं। सभी अपनी हुकूमत और ताकत चाहते हैं।'औरंगजेब' ऐसी ही एक दास्तान है,जिसमें नए समाज के औरंगजेबों का चित्रण है।
3 फिल्म में भविष्यवाणी की जाती है कि आने वाले समय में देश पॉलिटिशियन और कारपोरेट ही चलाएंगे। पॉलिटिक्स के अकूत पावर और कारपोरेट के बेहिसाब पैसे के दम पर ही दुनिया चलेगी।
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