फिल्‍मों की कास्टिंग और मुकेश छाबड़ा

कैमरे के पीछे सक्रिय विभागों में कास्टिंग एक महत्‍वपूर्ण विभाग है। पहले इसे स्‍वतंत्र विभाग का दर्जा और सम्‍मान हासिल नहीं था। पिछले पांच सालों में परिदृश्‍य बदल गया है। कोशिश है कि चवन्‍नी के पाठक इस के बारे में विस्‍तार से जान सकें। 
कास्टिंग परिद्श्‍य
-अजय ब्रह्मात्मज
    फिल्म निर्माण में इस नई जिम्मेदारी को महत्व मिलने लगा है। इधर रिलीज हो रही फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर के नाम को भी बाइज्जत क्रेडिट दिया जाता है। हाल ही में रिलीज हुई ‘काय पो छे’ की कास्टिंग की काफी चर्चा हुई। इसके मुख्य किरदारों की कास्टिंग नई और उपयुक्त रही। सुशांत सिंह राजपूत, अमित साध, अमृता पुरी, राज कुमार यादव और मानव कौल आदि मुख्य किरदारों में दिखे। सहायक किरदारों में भी परिचित चेहरों के न होने से एक ताजगी बनी रही। कास्टिंग डायरेक्टर के महत्व और भूमिका को अब निर्देशक और निर्माता समझने लगे हैं।
    हालांकि अभी भी निर्माता-निर्देशक स्टारों के चुनाव में कास्टिंग डायरेक्टर के सुझाव को नजरअंदाज करते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के स्ट्रक्चर में स्टार के पावरफुल और निर्णायक भूमिका (डिसाइडिंग फैक्टर) में होने की वजह से यह निर्भरता बनी हुई है। कह सकते हैं कि अभी तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्में स्टार नहीं चुनतीं। स्टार ही फिल्में चुनते हैं। फिर भी अब हीरो-हीरोइन के अलावा बाकी किरदारों के लिए कलाकारों के चयन में कास्टिंग डायरेक्टर की सलाह, समझदारी और पसंद को प्राथमिकता दी जा रही है।
    50 की उम्र के आसपास पहुंचे पाठको-दर्शकों को याद होगा कि रिचर्ड अटेनबरो की फिल्म ‘गांधी’ के निर्माण के समय बड़े पैमाने पर भारतीय कलाकारों की छोटी-बड़ी भूमिकाओं के कास्टिंग हुई थी। यहां तक भीड़ के लिए भी खास चेहरों को चुना गया था। श्याम बेनेगल ने ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक के निर्देशन के समय देश भर से आए सैकड़ों कलाकारों में से खुद के धारावाहिक के लिए उपयुक्त कलाकारों का चुनाव किया था। ‘महाभारत’, ‘रामायण’ और ‘चाणक्य’ में भी कलाकारों की विधिवत कास्टिंग की गई थी। ‘चाणक्य’ की कास्टिंग मीनाक्षी ठाकुर ने की थी।
    फिल्मों में शेखर कपूर ने पहली बार कास्टिंग डायरेक्टर का महत्वपूर्ण इस्तेमाल किया। 1994 में आई उनकी फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ की कास्टिंग आज के चर्चित डायरेक्टर तिग्मांशु धुलिया ने की थी। सीमा विश्वास, निर्मल पांडे, मनोज बाजपेयी, गोविंद नामदेव आदि समेत दर्शनों कलाकारों को पहली बार बड़े पर्दे पर आने का मौका मिला था। नए चेहरों से फिल्म की संप्रेषणीयता प्रभावित होती है। फिल्म की विश्वसनीयता बढ़ती है। परिचित कलाकारों के मैनरिज्म से वाकिफ होने के कारण हमें किरदारों में नयापन नहीं दिखता। हम सीधे तौर पर इसे महसूस नहीं करते, लेकिन फिल्म को नापसंद करने में परिचित चेहरे से पैदा ऊब भी शामिल रहती है।

कास्टिंग डायरेक्टर की भूमिका

    कास्टिंग डायरेक्टर फिल्म के सभी किरदारों के लिए उपयुक्त कलाकारों का चुनाव करता है। निर्माता और निर्देशक के साथ उसे काम करना होता है। किसी भी फिल्म की शुरुआत में निर्माता-निर्देशक के बाद उसके पास ही स्क्रिप्ट आती है। स्क्रिप्ट पढऩे के बाद वह चरित्रों की सूची तैयार करता है। फिर उन चरित्रों के लायक कलाकारों के इंटरव्यू और ऑडिशन करने के बाद वह आरंभिक सेलेक्शन करता है। आम तौर पर हर चरित्र के लिए पहले दो-तीन कलाकारों का विकल्प चुना जाता है। फिर डायरेक्टर की मदद से आखिरी फैसला लिया जाता है। कास्टिंग डायरेक्टर के पास मौजूद कलाकारों का पुष्ट डाटा बैंक रहता है। नए कलाकारों की तलाश में वे दूसरे शहरों की यात्रा करते हैं। विभिन्न प्रकार के नाट्य समारोहों और परफार्मिंग इवेंट देखने जाते हैं।
    फिल्म निर्माण के हर क्षेत्र के समान कास्टिंग डायरेक्शन में आने के लिए विशद अनुभव की जरूरत होती है। उसकी नजर और समझ पारखी हो। वह चमक-दमक या धूल से भ्रमित नहीं हो। वह प्रतिभाओं को परख सके और उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें सही भूमिकाएं दे - दिला सके।
    हिंदी फिल्मों में अभी हनी त्रेहन, जोगी, अभिमन्यु रे, शाहिद, अतुल मोंगिया, मुकेश छाबड़ा आदि एक्टिव कास्टिंग डायरेक्टर हैं। फिल्मों में आने को उत्सुक महात्वाकांक्षी युवक-युवती फिल्म निर्माण के इस जरूरी क्षेत्र को भी पेशे के तौर पर चुन सकते हैं।

शूटिंग आरंभ होते ही हमारा काम खत्म हो जाता है-मुकेश छाबड़ा
अभी ‘काय पो छे’  की कास्टिंग की सभी तारीफ कर रहे हैं। ज्यादा लोगों को नहीं मालूम कि इस फिल्म की कास्टिंग मुकेश छाबड़ा ने की है। दिल्ली से आए रंगकर्मी मुकेश छाबड़ा ने सबसे पहले रंजीत कपूर की फिल्म ‘चिंटू जी’ की कास्टिंग की थी। उस फिल्म में उन्हें पूरे मोहल्ले के लिए कलाकारों को चुनना था।  उसके बाद ‘चिल्लर पार्टी’, ‘रॉकस्टार’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘काय पो छे’, ‘तृष्णा’, ‘डी डे’, ‘हाई वे’, ‘पी के’ और ‘बॉम्बे वेलवेट’ जैसी फिल्मों की लंबी कतार है। इनमें से कुछ रिलीज हो चुकी हैं और कुछ अभी फ्लोर पर हैं।
- फिल्मों में कास्टिंग की शुरुआत कब से मानी जा सकती है?
0 कास्टिंग फिल्म निर्माण का जरूरी हिस्सा है। पहले डायरेक्टर और उनके असिस्टेंट अपनी जान पहचान के कलाकारों को विभिन्न भूमिकाओं के लिए चुन लेते थे। पहले फिल्मों में नायक-नायिकाओं के अलावा ज्यादातर भूमिकाओं में हम एक ही कलाकार को देखते थे। आप ने गौर किया होगा कि पुरानी फिल्मों में एक ही एक्टर डॉक्टर या पुलिस इंस्पेक्टर बनता था। यहां तक कि पार्टियों और भीड़ के जूनियर आर्टिस्ट भी पहचान लिए जाते थे। पिछले दस सालों में नए निर्देशकों के आने के बाद पश्चिम के प्रभाव से कास्टिंग पर ध्यान दिया जाने लगा है। मेरे जैसे कुछ तकनीशियनों को काम मिलने लगा है।
- इस फील्ड में आने का ख्याल कैसे आया?
0 मैं दिल्ली रंगमंच से आया हूं। रंगमंच के दिनों में बहुत से कलाकारों को जानता था। यहां आने के बाद कभी-कभार लोगों को सलाह दे दिया करता था। बाद में लगा कि इसे पेशे तौर पर अपनाया जा सकता है। धीरे-धीरे मेरी भी समझदारी बढ़ी है। अब स्क्रिप्ट पढ़ के किरदारों का चेहरा नजर आने लगता है। फिर अपनी याददाश्त और डाटा बैंक के सहारे मैं उन किरदारों के लायक कलाकारों को चुन लेता हूं। एक्टर तो हर जगह हैं। उनमें से कुछ लोग ही मुंबई आ पाते हैं । मेरी कोशिश रहती है कि बाहर के एक्टरों को भी काम मिले।
- कास्टिंग डायरेक्टर का कंसेप्ट कब से चलन में है?
0 मेरी जानकारी में शेखर कपूर ने ‘बैंडिट क्वीन’ में कास्टिंग का काम तिग्मांशु धूलिया को सौंपा था। उसके बाद उन्होंने मणि रत्नम की ‘दिल से’ की भी कास्टिंग की। बाद में वे स्वयं डायरेक्टर बन गए। उनके अलावा कोई और उल्लेखनीय नाम  नहीं दिखता। बाद में यशराज फिल्म्स और नए समय के निर्देशकों ने इस तरफ ध्यान दिया।
- कास्टिंग डायरेक्टर का काम क्या होता है? अपनी कार्य प्रक्रिया के बारे में बताएं?
0 सबसे पहले हमें स्क्रिप्ट दी जाती है। रायटर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के बाद हमलोग ही स्क्रिप्ट को पढ़ते हैं। कुछ डायरेक्टर स्क्रिप्ट देने के साथ ही ब्रीफ कर देते हैं। स्क्रिप्ट पढऩे के बाद हमें सोचना और खंगालना पड़ता है। सबसे पहले हम खुद ही शॉर्ट लिस्ट करते हैं। ऑडिशन और इंटरव्यू से संतुष्ट होने के बाद हम उन्हें डायरेक्टर से मिलवाते हैं। कई बार हमलोग कुछ एक्टर के लिए अड़ भी जाते हैं। शूटिंग आरंभ होने के साथ ही हमारा काम खत्म हो जाता है। डायरेक्टर तक एक्टर को ले जाने के पहले हम खुद ही उसकी जांच-परख कर लेते हैं। अब तो इतना अनुभव हो गया है कि बातचीत और व्यवहार से सामने वाले की समझ हो जाती है। हम जिन्हें छांट देते हैं,उनकी गालियां भी सुननी पड़ती है। हर फिल्म में मैं नई कास्टिंग करता हूं। बहुत कम एक्टर को दोहराता हूं।
- कुछ फिल्मों के उदाहरण से समझाएं?
0 ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की कास्टिंग नौ महीनों में हुई थी। लगभग 15-20 हजार कलाकारों से मिला। विभिन्न शहरों में जाकर कास्टिंग की। पहली कोशिश यही थी कि उनकी भाषा और बोलने का लहजा फिल्म के अनुकूल हो। मुझ से जितने कलाकार मिलने आते हैं उन सभी की वीडियो रिकॉर्डिंग कर लेता हूं। ‘शाहिद’ फिल्म में राजकुमार यादव की मां के रोल के लिए मैंने हिसार की एक अभिनेत्री को बुलाया था। यहां सभी नाराज हो गए थे कि मुझे मुंबई में एक्टर नहीं मिल रहे हैं। इम्तियाज अली की ‘रॉकस्टार’ में कलाकारों के चार झुंड थे। एक तो रणबीर कपूर का जाट परिवार था। दूसरे रणबीर के कॉलेज के दोस्त थे। इसके अलावा नरगिस के दोस्त और परिवार के सदस्य थे। चौथा नरगिस के पति का प्राग का परिवार था। इम्तियाज छोटी से छोटी भूमिकाओं में भी कायदे के कलाकारों को ही रखते हैं। उनकी फिल्म मेरे लिए ज्यादा चैलेंजिंग थी। मैं मिडिल क्लास का लडक़ा हूं। मुझे नरगिस के परिवार के लिए हाई क्लास में खपने लायक कलाकारों को चुनना था। शुरू में इस काम में थोड़ी दिक्कत हुई। ‘काय पो छे’ की बात करूं तो इसकी कास्टिंग बहुत ही इंटरेस्टिंग रही। मुझे बताया गया था कि तीनों नए कलाकार होने चाहिए। जब अंतिम चुनाव के बाद मैंने सुशांत, अमित और राजकुमार के नाम सुझाए तो सभी चौंके कि इतना नया भी क्या चुनना? उन्हें दिक्कत हो रही थी कि सुशांत टीवी का एक्टर है और राजकुमार हीरो जैसा नहीं लगता है। काफी बहस-मुबाहिसा हुआ। फिर जा कर ये नाम फायनल हुए।
- हिंदी फिल्मों के संदर्भ में कास्टिंग काउच की बहुत चर्चा होती है। आप क्या कहेंगे?
0 (हंसते हुए)मेरे ऑफिस में कोई भी काउच नहीं है। मैंने भी इस तरह की बातें सुनी हैं, लेकिन कोई भी प्रोफेशनल कास्टिंग डायरेक्टर ऐसी हरकत नहीं कर सकता। हमारे ऊपर एक्टर और डायरेक्टर विश्वास करते हैं। मैं अपनी बात करूं तो मेरी एक प्रेमिका हैं। मुझे इधर-उधर झांकने की जरूरत नहीं है।



Comments

Anonymous said…
Abhi tak kitne anjaan logo ko kaam diya hai aapne sab aapke ristedari se aatein hain.media k samne bdi bdi baatein
900 chuhe khakar billi chali haz ko..
Sanjay bhadli aur Nishi bhadli ji ka naam suna hai abhi unse casting krna sikhiye

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