कुछ बदल तो रहा है...

 
-अजय ब्रह्मात्‍मज 

    सिनेमा के लोकतंत्र में वही पॉपुलर होता है, जिसे दर्शक और समीक्षक पसंद करते हैं। ऑब्जर्वर और उपभोक्ताओं की संयुक्त सराहना से ही सिनेमा के बाजार में प्रतिभाओं की पूछ, मांग और प्रतिष्ठा बढ़ती है। हमेशा से जारी इस प्रक्रिया में केंद्र में मौजूद व्यक्तियों और प्रतिभाओं की स्थिति ज्यादा मजबूत होती है। परिधि से केंद्र की ओर बढ़ रही प्रतिभाओं में से अनेक संघर्ष, धैर्य और साहस की कमी से इस चक्र से बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कुछ अपनी जिद्द और मौलिकता से पहचान और प्रतिष्ठा हासिल करते हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो यहां बाहर से आई प्रतिभाओं ने निरंतर कुछ नया और श्रेष्ठ काम किया है। हिंदी फिल्मों को नया आयाम और विस्तार दिया है। वे परिवत्र्तन लाते हैं। हालांकि यह भी सच है कि नई प्रतिभाएं कालांतर में एक नया केंद्र बनती है। फिर से कुछ नए परिधि से अंदर आने की कोशिश में जूझ रहे होते हैं।
    21वीं सदी के आरंभिक वर्षो से ही हम देख रहे हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देश के सुदूर इलाकों से आई प्रतिभाएं लगातार दस्तक दे रही हैं। उनमें से कुछ के लिए दरवाजे खुले। अब वे सफलता के मुकाम पर पहुंचती नजर आ रही हैं। इधर की तीन खबरों से नई प्रतिभाओं की सार्थक मौजूदगी की पुष्टि होती है। सबसे पहले कान फिल्म समारोह के विभिन्न खंडों में अनुराग कश्यप की तीन फिल्मों का चयन। लगभग सभी जानते हैं कि अनुराग कश्यप की पहली फिल्म ‘पांच’ अभी तक रिलीज नहीं हो पाई है, लेकिन इस दुद्र्धर्ष फिल्मकार ने हार नहीं मानी। ‘गुलाल’ और ‘देव डी’ से मिली पहचान के बाद उनकी स्थिति एक हद तक सुरक्षित और मजबूत हुई। इस बार कान फिल्म समारोह में उनकी निर्देशित ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ (दो खंड) और निर्मित ‘पेडलर्स’ चुनी गई है। यह कोई छोटी खबर नहीं है, फिर भी फिल्म इंडस्ट्री की उदासीनता हैरत में डालती है। फिल्म इंडस्ट्री की छोटी-मोटी इंटरनेशनल उपलब्धियों पर ट्विट और टिप्पणियों की बारिश करने वाले भी खामोश हैं। ऐसा लगता है कि इस खबर से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के कान पर जूं तक नहीं रेंगा है। यह उदासीनता और निरपेक्षता भयावह है, लेकिन युवा प्रतिभाएं डरने और निराश होने के बजाए अपने तई जूझती और लड़ती रहती हैं।
    दूसरी खबर है कि दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘शांघाई’ का सिंगापुर में आयोजित आईफा अवार्ड में प्रीमियर होगा। अभी तक आईफा में स्टारों से लक-दक फिल्में ही प्रीमियर होती रही हैं। कोशिश रहती है कि फिल्म इंडस्ट्री के किसी बड़े निर्देशक, बैनर या स्टार को उपकृत किया जाए। इस बार दिबाकर बनर्जी की ‘शांघाई’ चुन कर आईफा के अधिकारियों ने फिल्म इंडस्ट्री में आ रहे बदलाव को स्वीकार किया है। पहचान की ऐसी मोहरों की अपनी महत्ता होती है।
    तीसरी खबर है कि करीना कपूर युवा निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फिल्म करने के लिए आतुर हैं। पिछले दस सालों से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय तिग्मांशु धूलिया को आखिरकार ‘पान सिंह तोमर’ की कामयाबी से पहचान मिली। अभी उनके सारे प्रोजेक्ट आरंभ हो रहे हैं। कारपोरेट हाउस को उनमें संभावनाएं दिख रही हैं और स्टारों को उनकी प्रतिभा का एहसास हुआ है। सुना है कि उनकी आगामी फिल्मों में से एक ‘बेगम समरू’ को लेकर करीना कपूर बहुत उत्साहित हैं।
    तात्तपर्य यह है कि जड़ीभूत फिल्म इंडस्ट्री में कुछ बदल रहा है। यह बदलाव महत्वपूर्ण है। इस बदलाव से फिल्म इंडस्ट्री में ताजगी आएगी। दर्शकों को भी कुछ नया देखने को मिलेगा। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘शांघाई’ और निर्माणाधीन ‘बेगम समरू’ निश्चित ही इस बदलाव में मील के पत्थर साबित होंगे।
    गहरी और लंबी अंधेरी रात के बाद पौ फट रहा है।

Comments

देश की हर दिशा सिनेमा के आकाश में अपना हिस्सा ढूढ़ रही है..

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

फिल्‍म समीक्षा : आई एम कलाम