बेशकीमतीहैं बच्चियां-आमिर खान

दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्‍ठ पर आमिर खान का यह लेख प्रकाशित हुआ है। सत्‍यतेव जयते' की हर कड़ी के बाद वे उसमें उठाए गए विषय प‍र निखेंगे। चवन्‍नी की कोशिश है कि हर लेख यहां उसके पाठकों को अपनी सुविधा से पढ़ने के लिए मिलें।
लड़कों अथवा पुरुषों में ऐसा क्या है जो हमें इतना अधिक आकर्षित करता है कि हम एक समाज के रूप में सामूहिक तौर पर कन्याओं को गर्भ में ही मिटा देने पर आमादा हो गए हैं। क्या लड़के वाकई इतने खास हैं या इतना अधिक अलग हैं कि उनके सामने लड़कियों की कोई गिनती नहीं। हमने जब यह पता लगाने के लिए अपने शोध की शुरुआत की कि क्यों वे अपनी संतान के रूप में लड़की के बजाय लड़का चाहते हैं तो मुझे जितने भी कारण बताए गए उनमें से एक भी मेरे गले नहीं उतरा। उदाहरण के लिए किसी ने कहा कि यदि हमारे लड़की होगी तो हमें उसकी शादी के समय दहेज देना होगा, किसी की दलील थी कि एक लड़की अपने माता-पिता अथवा अन्य परिजनों का अंतिम संस्कार नहीं कर सकती। किसी ने कहा कि लड़की वंश अथवा परिवार को आगे नहीं ले जा सकती आदि-आदि। ये सभी हमारे अपने बनाए हुए कारण हैं। हमने खुद दहेज की प्रथा रची और अब यह इस तरह लड़कियों को मार रहे हैं जैसे इसके लिए वही जिम्मेदार हैं। हमने खुद ही तय किया कि लड़कियां अंतिम संस्कार नहीं कर सकतीं और अब कहते हैं कि हमें लड़कियां इसलिए नहीं चाहिए, क्योंकि वे अपने माता-पिता का क्रिया-कर्म नहीं कर सकतीं। वास्तव में वंश आगे कैसे चलेगा का तर्क सबसे अधिक खोखला और मूर्खतापूर्ण है, क्योंकि ये महिलाएं ही हैं जो मानव जाति को आगे ले जाती हैं। पुरुष गर्भधारण नहीं कर सकते। परिवार को आगे ले जाना वाला यदि कोई है तो वह एक महिला ही है। फिर इतने विकृत विचार आ कहां से रहे हैं? हमें इस मसले पर बैठकर गंभीरता से सोचने की जरूरत है-न केवल इस बीमारी के बारे में, बल्कि इस पर भी कि लड़कियां कितनी खास होती हैं। एक लड़की हमारे जीवन में खुशी और सुगंध लाती है। उसके पास जैसी संवेदनशीलता होती है वैसी शायद लड़के प्रदर्शित नहीं कर सकते। लड़कियां इतनी देखभाल करने वाली होती हैं कि जिस घर में उनकी मौजूदगी हो उसमें अपने आप जान आ जाती है। मेरे घर में मेरी बेटी इरा हमारे जीवन में जो मिठास, कोमलता, गरिमा, सुंदरता और चमक लाती है वह मेरा बेटा जुनैद कभी नहीं ला सकता। जुनैद के अपने गुण हैं, जो उसे खास बनाते हैं और हम सब उसे उतना ही प्यार करते हैं, लेकिन इरा की बात निराली है। एक लड़की हमारे जीवन में जो खुशियां लाती हैं वह एक लड़का कभी नहीं ला सकता और इसी तरह लड़के से मिलने वाली खुशियों की तुलना लड़कियों से नहीं की जा सकती। सच यह है कि लड़के और लड़की, दोनों ही अनोखे हैं। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक दूसरों की परवाह करने वाली होती हैं। उनमें पुरुषों की अपेक्षा लचीलापन भी अधिक होता है। सच तो यह है कि महिलाओं और पुरुषों में जो अंतर है उसे न केवल सराहने की, बल्कि संजोने-सहेजने की भी जरूरत है। रीति-रिवाज, परंपराएं, रस्में हमारी अपनी बनाई हुई हैं। हम उन्हें बदल सकते हैं, बदलना भी चाहिए। जब मैं पूरे देश की उन अनगिनत महिलाओं के बारे में सोचता हूं जो अपनी कोख से एक बेटी को जन्म देने के लिए खुद को अपर्याप्त-साधारण मानने के लिए विवश हैं और जिन्हें इस अहसास के साथ जीना पड़ता है कि किन्हीं कारणों से वे अन्य लोगों से कमतर हैं तो मेरा दिल कचोटने लगता है। ऐसा लगता है कि उन्हें एक काम करने के लिए दिया गया था और वे उसे नहीं कर सकीं। इसलिए नहीं कर सकीं, क्योंकि वे उस काम को करने में अक्षम थीं। एक बच्चे का जन्म अथवा एक महिला द्वारा अपनी कोख में नौ माह तक एक नन्हीं जान का पालना प्रकृति का चमत्कार ही है। गर्भधारण की इस अवधि में औरत को अपने विशेष होने का अहसास कराने की जरूरत है-ठीक उसी तरह जैसे कोई महारानी खुद को खास मानती है। उस समय महिला ईश्वर के, प्रकृति के सबसे अधिक नजदीक होती है-एक ऐसे स्थान पर जहां कोई व्यक्ति कभी नहीं पहुंच सकता। अगर हममें तनिक भी समझ है तो उस समय हमें प्रकृति की सबसे खास चीज के रूप में औरत की कद्र करनी चाहिए। वह एक नए जीवन को जन्म देने वाली है, जो किसी पुरुष के वश की बात नहीं। उसे खास होने का अहसास कराने के बजाय हम उसे छोटा महसूस करने के लिए विवश कर देते हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि एक महिला को उसके लिए दंडित किया जाता है जिस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं। हम सभी जानते हैं कि सच्चाई यह है कि बच्चे के लिंग का निर्धारण पुरुष के शुक्राणु के आधार पर होता है। फिर बेटी के जन्म लेने पर आखिर महिलाओं को दोषी को क्यों ठहराया जाता है। विज्ञान और दवाओं का इस्तेमाल कम से कम होना चाहिए। केवल तभी इसकी मदद ली जानी चाहिए जब कोई आपात स्थिति उभरने पर जीवन बचाने का प्रश्न हो। अपने बच्चे का लिंग जानने के लिए विज्ञान का दुरुपयोग न केवल भारतीय कानून के लिहाज से एक अपराध है, बल्कि समाज पर पड़ने वाले प्रभाव की दृष्टि से बहुत बड़ी मूर्खता भी है। इस सबसे अधिक भ्रूण हत्या करके आप उस जादू भरे क्षण से वंचित हो जाते हैं जब एक नया जीवन आपकी दुनिया में आने वाला होता है। मेरे तीनों बच्चों के जन्म से पहले जब डॉक्टर ने हमसे कहा कि बधाई हो, आप एक स्वस्थ संतान के माता-पिता बनने वाले हैं तो वह हमारे लिए इतना खास क्षण था जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। हमारे लिए वह खुशी का सबसे बड़ा क्षण था। कन्या भू्रण हत्या हर हाल में रुकनी चाहिए। मेरा सुझाव यह है कि एक समाज के रूप में हमें लड़कियों के स्वाभिमानी माता-पिता के प्रति उच्चतम सम्मान, प्रेम और सराहना का भाव प्रदर्शित करना चाहिए। हमें उन परंपराओं से छुटकारा पा लेना ही बेहतर है जो लड़कियों की गरिमा घटाने वाली हैं। हर बार जब आपके घर में, पड़ोस में, दोस्तों के यहां कोई बच्ची जन्म ले तो आप उसके माता-पिता के प्रति आपके प्यार और सम्मान की भावना इतनी मजबूत होनी चाहिए कि कन्याओं को हेयदृष्टि से देखने वाली बीमारी का असर कम हो सके। मुझे पूरा विश्वास है कि हम इस बीमारी को जड़ से मिटाने में कामयाब होंगे। हमारे सामने एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए-2021 की जनगणना। 

Comments

आपसे सहमत हूँ, संतुलन प्रकृति का नियम है।
Ramakant Singh said…
मन वचन और कर्म से हमारी निष्ठा दिखनी
और वास्तव में हो केवल लेखन और दिखावा में नहीं .तब ही
कह पायेंगे सत्यमेव जयते .
वास्तव में हमें अपनी परंपराओ मे जरूरी परिवर्तन करने होगे और अपनी सोच मे भी

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