मां, बहन और बीवी


-अजय ब्रह्मात्‍मज

शीर्षक से यह न समझें कि मैं गाली-गलौच की बात करने जा रहा हूं। मां-बहन का नाम आते ही गालियों का खयाल आ जाता है। मैं मां-बहन और बीवी का उल्लेख महिला दिवस के संदर्भ में कर रहा हूं। एक रूटीन है। महिला दिवस आते ही समाज के अन्य क्षेत्रों की तरह हिंदी फिल्मों में भी महिलाओं की स्थिति पर विचार चलने लगता है।

साल भर महिलाओं यानी अभिनेत्रियों के बारे में गॉसिप छाप-छाप कर अघा चुके पत्रकार भी महिलाओं के अधिकार और महत्व की बातें करने लगते हैं। बताया जाने लगता है कि कैसे महिलाओं को समानता हासिल हो रही है। सच्चाई यह है कि हिंदी फिल्मों में समाज की तरह ही महिलाएं दोयम दर्जे की हैं। उन्हें पारिश्रमिक, सम्मान और बराबर अधिकार नहीं मिलते। दुखद है कि इसके लिए अभिनेत्रियों के मन में कोई दंश नहीं है। उन्होंने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया है।

मां, बहन और बीवी की बात मैंने किसी और बात के लिए शुरू की थी। प्रचलित परंपरा के मुताबिकइस अवसर पर फिल्म स्टारों और अन्य सेलिब्रिटी से उनकी आदर्श महिलाओं के बारे में पूछा जाता है। यह सवाल-जवाब इतना घिस चुका है कि पेशेवर फिल्म पत्रकार और फ्रीलांसर इसके पैकेज तैयार रखते हैं। दो-चार नाम इधर-उधर कर आदर्श महिलाओं के संबंध में उनकी पसंद छप जाती है। मैं पिछले बारह सालों से यह सवाल-जवाब कर रहा हूं। मेरा अनुभव रहा है कि चंद सेलिब्रिटी ही इस सवाल के सीरियस जवाब देते हैं। बाकी टालने के अंदाज में उस समय याद आए तीन-पांच नाम बता देते हैं। उनकी पोल तब खुलती है, जब उनसे पसंद की महिलाओं के बारे में विस्तार से बताने के लिए कहा जाता है। जवाब मिलता है.., आप लिख लेना ना..।

इस साल भी मुझे कुछ स्टार से उनकी पसंद की महिलाओं के बारे में पूछना था। मामला थोड़ी जल्दबाजी का था, इसलिए टेक्स्ट मैसेज और ईमेल का सहारा लेना पड़ा। कुछ दोस्तों और पीआर परिचितों की भी मदद ली। इस बार समान रूप से अनोखे जवाब मिले। दस में से सात स्टार ने मां, बहन और बीवी के नाम लिए। एक-दो ने कहा कि आप तो उन्हें जानते ही हो। उनके बारे में दो-चार लाइनें जोड़ देना। बमुश्किल कुछ ने अपने दायरे से बाहर जाने की कोशिश की।

वर्तमान से बाहर केवल डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी गए। उन्होंने कुछ प्राचीन विदुषियों के नाम बताए। सोचता हूं ऐसा क्यों हुआ? पहले तो स्टार सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक महिलाओं के नाम लेते थे। अभी कोई भी किसी का नाम लेकर उनसे जुड़ना नहीं चाहता। मान लीजिए, आपने सोनिया गांधी का नाम लिया तो मान लिया जाएगा कि आप कांग्रेसी झुकाव के हैं। इन दिनों हर कोई बचना चाह रहा है। ज्यादातर अपनी पसंद, पक्ष और मत जाहिर करने को तैयार नहीं हैं। एक जानकार ने बताया कि वे फिल्मों के बाहर केसमाज के बारे में नहीं जानते।

खासकर भारतीय नाम तो उन्हें याद ही नहीं रहते, क्योंकि उनके बारे में कभी पढ़ा या जाना नहीं। सचमुच हम किस दौर में जी रहे हैं? और ये सेलिब्रिटी ही हमारे लिए फिल्में बना और परोस रहे हैं। उनकी फिल्मों में भारतीयता कैसे और कितनी आएगी? वे मां, बहन और बीवी के बारे में भी कुछ खास नहीं बताते। सीमित जवाब होता है.., मां ने मुझे जन्म दिया और पाला। बीवी ने मेरी जरूरतों को समझा और स्पेस दिया और बहन बेचारी.., फिल्मों की तरह सामान्य सवाल-जवाब में भी त्याग कर रही होती है। मैंने तय कर लिया है कि अगले साल मैं मां, बहन और बीवी से उनके बेटे, पति और भाई सेलिब्रिटी के बारे में पूछूंगा, लेकिन क्या मुझे उनसे भी सही जवाब मिलेगा? या वे भी प्यार, संरक्षा और देखभाल की बात कर टाल देंगी? बहुत मुश्किल दौर है। हमारे सवाल घिस गए हैं और उनके जवाब पिट गए हैं।

Comments

sujit sinha said…
आज लोग आत्म केन्द्रित होते जा रहे हैं | उन्हें अपने सिवाय किसी और के प्रेम , समपर्ण या त्याग की फ़िक्र नही होती है | प्रेक्टिकल होने को ही समझदारी समझी जाती है | जिसका परिणाम (अच्छा या बुरा, मैं नहीं समझ पाया हूँ ) आज देखने को मिल रहा है | किसी विशेष अवसर पर रस्म अदायगी भर कर दी जाती है | आपने बिलकुल सही जज किया है कि लोग माँ, बहन और पत्नी के संदर्भ में भी घिसा-पीटा जवाब देते हैं| इसका कारण है कि कोई आज ठहर कर किसी के बारे में सोचना ही नहीं चाहता | ये ऐड तो आपने भी देखी ही होगी-- "भाग-दौर भरी जिन्दगी ,रूकना मना है|" बस लोग भाग रहे हैं, हम आप दौड़ रहें ताकि कहीं छूट न जाएँ ! लेकिन पहूँचेंगे कहाँ ? आपके लेख ने कई सार्थक सवाल खड़े किये हैं |
Seema Singh said…
माँ,बहन,बीबी और बेटी यह चारो- चेहरे व्यकित के जीवन के सम्पूर्ण विकास या यू कहो कि जीवन के चारो सोपानों (जन्म,बचपन,जवानी और प्रौढ़ावस्था ) के चार मजबूत आधार -बिंदु हैं ,इन्हीं के( अद्रश्य ) मजबूत कंधों के सहारे व्यकित अपने पूरे जीवन की खुशहाली के अध्याय लिखता है ।इनकी भूमिका पर सेलेब्रिटी मुहं खोलने में भले ही कंजूसी बरते पर जातीय जिन्दगी में खड़े रहने के लिए इनके अस्तित्व की स्वीक्रति के बिना -जीवन की कल्पना करना भी दुश्वार है ।

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