संग-संग : मनोज बाजपेयी-शबाना रज़ा बाजपेयी




-अजय ब्रह्मात्मज

मनोज बाजपेयी और शबाना रजा बाजपेयी पति-पत्नी हैं। लंबे प्रेम के बाद दोनों ने शादी की और अब एक बेटी आवा नायला के माता-पिता हैं। शबाना को हिंदी फिल्मप्रेमी नेहा नाम से जानते हैं। मनोज और शबाना का मौजूदा परिवेश फिल्मी है,लेकिन उनमें दिल्ली और बिहार बरकरार है। दोनों कई मायने में भिन्न हमसफर हैं ...
मुलाकात और प्रेम का संयोग
शबाना - दिल्ली के एक दोस्त डायरेक्टर रजत मुखर्जी हैं। उनसे मिलने मैं उस पार्टी में गई थी। उन्होंने जबरदस्ती मुझे बुला लिया था। मेरी ‘करीब’ रिलीज हो चुकी थी। मनोज की भी ‘सत्या’ रिलीज हो गई थी। मैंने अपनी बहन और बहनोई (तब उनकी शादी नहीं हुई थी) के साथ ‘सत्या’ देख ली थी। मनोज ने ‘करीब’ देख ली थी।
मनोज - मैं ‘कौन’ की शूटिंग से लौटा था। उस फिल्म की शूटिंग केवल रातों में हुई थी। 9 -10 दिनों की रात-रात की शूटिंग से मैं थका हुआ था। मैं ठीक से सो नहीं पा रहा था। घर पहुंचा तो विशाल भारद्वाज का फोन आया कि रेखा (विशाल की पत्नी और गायिका)को पार्टी में जाना है, तू उसे लेकर चला जा। विशाल से दिल्ली की दोस्ती थी। वे कहीं और से पार्टी में आने वाले थे। इस तरह रेखा को लेकर मैं पार्टी में गया था। उस पार्टी में शबाना से मिलना हुआ। मिलते ही मुझे लगा कि ये तो मेरी बीवी हैं।
शबाना - सच कहूं तो मैं पार्टी में ज्यादा देर नहीं रुकने वाली थी और मनोज भी विशाल के आने तक रुकने का सोच कर आए थे,लेकिन हम दोनों ही पार्टी खत्म होने तक रुके रहे। वहां से निकलने के पांच घंटों के बाद मनोज का फोन आ गया और हम मिलने लगे। उस रात उतनी ही देर में ऐसा लगा कि इन्हें और जानना चाहिए।
मनोज - सिर्फ मेरे ही मन में यह खयाल नहीं आया। आप पूछ लें, शबाना के दिल में भी यही खयाल जगा था।
शबाना - उस रात कुछ अच्छा लग रहा था। हम दोनों ने ज्यादा बातें नहीं की थी, पर करीब रहना भा रहा था। कुछ हो गया था।

महसूस हुआ जुड़ाव, फिर भी रहे अलग
शबाना - कुछ घंटों में आप क्या महसूस करेंगे? बहुत मजबूत जुड़ाव फील हुआ। उसके पीछे कोई कारण या पुराना किस्सा नहीं था। कुछ हफ्तों के बाद मैंने खुद से ही सवाल पूछा कि कहीं यह कोई बहाव तो नहीं है? दिमाग ठीक है ना? दीवाने हुए जा रहे हैं।
मनोज - मन में सवाल तो उठ रहे थे कि यह सही है या नहीं है? हम समझ नहीं पा रहे थे। हमें शादी करने का फैसला लेने में पांच-छह साल लगे। हम दोनों एक-दूसरे के करीब हुए, अपनी जरूरतें समझीं और करिअर पर ध्यान दिया, लेकिन शादी के बारे में नहीं सोच सके।
शबाना - हम एक-दूसरे से सहज हो गए थे। साथ रहने पर सुकून महसूस करते थे ।
मनोज - हम दोनों आसपास ही अलग पतों पर रहते थे। आना-जाना रहता था। कभी-कभार मैं इनके यहां रुक जाता था। कभी पार्टियों के बाद शबाना मेरे पास ठहर जाती थीं।
शबाना - हम दोनों करीब थे, लेकिन हमारी परवरिश और सोच में बगैर शादी किए साथ रहने वाली बात नहीं थी। शायद हमारे परिवारों को बात उतनी अच्छी नहीं लगती ... हालांकि उनकी तरफ से ऐसा कोई विरोध नहीं था।
मनोज - हमें अपने माता-पिता की संवेदनाओं का खयाल रखना था। माडर्न लुक और सोच के बावजूद पारिवारिक मूल्यों के साथ संतुलन बिठाना था। शबाना के माता-पिता स्वीकार कर भी लेते, लेकिन मेरे माता-पिता को यह बात अच्छी नहीं लगती। मेरा परिवार थोड़ा रूढि़वादी और पारंपरिक था। मुझे बदलने में सालों लगे। मैं उनसे नहीं कह सकता था कि ट्रेन से दिल्ली या मुंबई में उतरते ही बदल जाएं। हम दोनों ने अपने और उनके पक्ष को जोड़ा और संतुलन बनाए रखा।

समानताएं
शबाना - हमारे राजनीतिक और सामाजिक विचार काफी मिलते-जुलते हैं। हमारे सोचने का ढंग एक जैसा है। नैतिकता के लिहाज से भी हम काफी चीजों को हम समान रूप में देखते हैं। लड़ाइयां हो सकती हैं। कई बार हम बिल्कुल अलग तरीके से भी सोचते हैं। तब मैं कहती हूं कि मैं अभी आप की बात नहीं समझ पा रही हूं। मुझे थोड़ा वक्त दें।
मनोज - ज्यादा जानकारी हासिल करने ... ज्ञान की खोज में हम दोनों समान हैं। शबाना बहुत ज्यादा पढ़ती हैं। मैं उतना नहीं पढ़ता। अच्छी बात है कि शबाना मेरे पैशन को समझती हैं। मेरा जो ‘पैशन फॉर एक्टिंग एंड लाइफ’ है, उसे समझती है। मां-पिता ने मुझे पैदा किया। वे मेरी भावनाओं को समझते हैं और हमें अपने ढंग से जीने देते हैं। लेकिन शबाना मेरे पैशन को समझती हैं। खुद एक्ट्रेस हैं तो उस पागलपन को समझती हैं। मैं जिस उन्मादी और उग्र रंगमंच की पृष्ठभूमि से आया हूं, वह उन्हें मालूम है। एक्टर को जो स्पेस और एकांत चाहिए, वह मुझे मिल जाता है।
शबाना - हां, लेकिन मेरा मन करता है या कोई आलतू-फालतू बात भी करनी है तो मैं उस एकांत को तोड़ देती हूं। ऐसे वक्त मैं मनोज मेरी भावनाओं को समझते हैं। साथ घूमने चलते हैं। बातें करते हैं।
मनोज - शादी के पहले शबाना मेरे व्यक्तित्व में जो चीजें नहीं चाहती थीं उसे हटाने में ...
शबाना - हटाने में नहीं ... मेरे साथ उसका तालमेल बिठाने में कहें ... हम मिलने के साथ ‘जिंदगी के चक्र’ में फंसने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे। शादी करने के साथ जिम्मेदारियां शुरू हो जाती हैं। मनोज भी हड़बड़ी में नहीं थे।
मनोज - हम दोनों अपने कुंवारेपन का पूरा आनंद उठा रहे थे और साथ भी थे। शबाना - शादी करने के दो-तीन साल पहले से मन तो बन गया था, पर किसी न किसी वजह से टाल देते थे। यह तो मालूम था कि शादी के बाद जिम्मेदारी निभानी ही पड़ेगी।

रोमांस और विवाह
मनोज - हमारा प्रेम रोमियो-जूलियट टाइप नहीं था। हम दोनों मैच्योर थे। एक-दूसरे की जरूरत और सान्निध्य समझते थे। विवाह के लिए हम पर दबाव भी नहीं था। रोमांस चल रहा था।
शबाना - हमारे परिवारों ने स्वीकार कर लिया था हमें। अब यह हम पर ही था कि कब शादी करें? सच बताऊं कि शादी क्यों की? हम घर के लिए लोन लेने गए थे। बैंक अधिकारी ने समझाया कि आप दोनों तो शादीशुदा नहीं हैं तो आपको संयुक्त बैंक लोन नहीं मिल सकता। ऐसी ही कुछ और समस्याएं आईं, जिनमें शादी के सर्टिफिकेट की मांग थी। फिर ..;
़मनोज - हमने फैसला लिया कि चलो कर लेते हैं ...
शबाना - शादी तो हम करते ही, ऐसी मांगों ने शादी की जरूरत बढ़ा दी। लगा कि लोग भी क्या-क्या पूछते रहते हैं ...चलो सब को चुप कर दो शादी कर लो ...

चित्त पर चढ़े गुण
मनोज - शबाना बहुत पढ़ती हैं। इतनी समझदारी का मैं कायल हूं। अपने निजी और घरेलू काम खुद करने की आदत इन्होंने मेरे अंदर डाली। इन्होंने अपनी मां और पिता से बहुत कुछ ग्रहण किया है और उसे अपने जीवन में ढाला है। शबाना पारंपरिक होते हुए भी अपारंपरिक हैं। मेरी जद्दोजहद यही रही है कि गांव का कितना अपने पास रखूं और शहर का क्या फेंकूं ... बाकी खूबसूरत हैं। यह सभी जानते हैं। हम दोनों अलग धर्मों के हैं, लेकिन इन्हें पता है कि कहां धर्म को पीछे छोड़ दिया जाए। मैं भगवान में विश्वास करता हूं। पूजा करता हूं। मैंने शबाना से सीखा है कि निजी और पारिवारिक रिश्तों में कैसे धर्म को अलग रखा जाए।
शबाना - मुझे मनोज का पैशन बहुत प्रेरित करता है। शुरू से अभी तक ऐसे ही हैं। इनके हाथ कोई अच्छी स्क्रिप्ट आती है और ये उसकी तैयारी करते हैं तो पूरे घर में क्रिएटिविटी नजर आती है। तब ये अजीब-अजीब हरकतें करने लगते हैं। कई बार स्टारकास्ट वाली फिल्म की स्क्रिप्ट आती है और नापसंद होने पर भी ये हां कहते हैं तो मैं समझ जाती हूं ... मैं कहती हूं, हम कैसे भी घर चला लेंगे, लेकिन यह फिल्म मत करो। कभी कुछ ऐसा किया तो ये नाखुश हो जाते हैं। असहनीय हो जाते हैं। बीमार हो जाते हैं। मनोज नारी स्वतंत्रता और अधिकारों को लेकर संजीदा और आक्रामक हैं। उनके मुद्दों को गहराई से समझते हैं। कई लोग कहने-सुनने के लिए बड़ी बातें करते हैं। लेकिन खुद मर्दवादी होते हैं। इनके जैसे पुरुष कम मिलेंगे। इन्होंने कभी मुझे अधिकार और नियंत्रण में रखने की कोशिश नहीं की। कई बार गाइड करने के नाम पर मेरी ख्वाहिशों को मैनीपुलेट जरूर किया है ़ ़ ़ मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि न समझूं।
मनोज - हम ने परिवार में कुछ मूल्य रखे हैं। हम दोनों उनका पालन करते हैं। उसमें बराबरी का दर्जा है।
शबाना - मेरी एक बहन है। अगर हम दोनों भी साथ रहने लगे तो जरूर लड़ेंगे। खूब लड़ेंगे, लेकिन क्या उस लड़ाई की वजह से अलग हो जाएंगे? वैसा ही पति-पत्नी के साथ क्यों नहीं होता? दो व्यक्तियों के संबंध में सब कुछ गुलाबी नहीं होता। ग्रे को भी जगह मिलनी चाहिए।
मनोज - यह मान कर चलना बेवकूफी होगी कि कभी झगड़ा नहीं होगा। मतभेद और झगड़े होते हैं, लेकिन सहमति भी बहुत मजबूत होती है। एक ही दिन में सब कुछ हो जाता है। हम जब एक-दूसरे की कमजोरियों के आदी हो जाएं। उसे व्यक्तित्व का हिस्सा मान लें तो जिंदगी आसान हो जाती है।
शबाना - कुछ बातों पर तो रोज ही झगड़ा होता है। अब जैसे कि इनसे दरवाजा खुला छूट जाता है और मैं रोज उलाहना देती हूं, लेकिन फिर से वही बात होती है। उन छोटी लड़ाइयों का कोई समाधान नहीं है। मैं अपने माता-पिता को देखती हूं। वे सालों से एक ही बात पर लड़ रहे हैं ... मुझे लगता है कि उस वक्त में वह बहुत चिढ़ पैदा करता है, लेकिन बाद में याद करने पर हंसी आती है।

असुरक्षा और अपेक्षा
शबाना - हम ने बहुत पहले साफ कर लिया था कि हम साथ में इसलिए रहते हैं कि रहना चाहते हैं। किसी का अफेयर होता है या शादी टूटती है तो वह भी होकर रहेगा। उसके बारे में क्या सोचना? अगर कुछ हो रहा है और मुझे नहीं पता है तो नहीं पता। अगर पता चल भी गया तो उस समय क्या करूंगी ... यह अभी नहीं पता। उसके बारे में अभी क्यों सोचूं? आज की रात की नींद क्यों खराब करूं? निस्संदेह मुझे पसंद नहीं होगा कि मनोज का कोई अफेयर हो। इन्हें भी पसंद नहीं होगा कि मैं किसी और के प्रति ज्यादा आकर्षण महसूस करूं।
मनोज - साथ रहने के फैसले के बाद यह सब खयाल आता ही नहीं। भावनात्मक जुड़ाव किसी प्रकार की असुरक्षा पैदा नहीं होने देती।
शबाना - अपेक्षा क्या होगी? साथ रहें, खुशहाल रहें।

अहम फैसले और ना या हां
शबाना - हर फैसला स्थिति पर निर्भर करता है। हम देखते हैं कि अच्छा ख्याल या विकल्प किस का है। छोटी बातों में एक-दूसरे की पसंद और भावनाओं का दोनों ही खयाल रखते हैं। ज्यादातर फैसले सतह पर मनोज लेते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे मैं रहती हूं।
देखते ही लगा यही तो है हमसफर: मनोज बाजपेयी-शबाना रजामनोज - जी ... हा हा हा ... एक दायरे में मुझे आजादी रहती है।
शबाना - कई बार अटक भी जाते हैं। मामूली चीज पर ... कई बार सुबह उठने के बाद से ही अटकने में मूड में रहते हैं। बिला वजह फालतू की लड़ाई में भिड़ गए और फिर याद करते हैं कि उस बार भी तुमने यही किया था। इसके बावजूद शाम तक यह एहसास तारी हो जाता है कि न न मैं गलत थी। तुम बैठो, मैं चाय बना कर ले आती हूं या ले आता हूं। ज्यादातर सॉरी मैं बोलती हूं। मेरी कोशिश रहती है कि लड़ाई के साथ सोना न हो। अगर झगड़ा हुआ है तो निबटा लें ... लेकिन ये ...
मनोज - कुढ़ू हैं ... कुढ़ता रहता हूं यही न?
शबाना - मनोज कई बार समस्याओं को अंदर में पालते-पोसते और चारा डालते हैं। उसे बड़ा करते हैं। आवा के आने के बाद मैंने तय किया है कि इन्हें टेढ़े मूड में देखने पर शुरू से ही शांत कर देती हूं। इनकी हर बात को सही कहने लगती हूं... आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं।
मनोज - फिर बारह बजते-बजते यह लगने लगता है कि कहीं मैं पागल तो नहीं हो गया हूं कि मैं कुछ भी बोले जा रहा हूं और शबाना रिएक्ट ही नहीं कर रही हैं।
शबाना - मैं हमेशा कहती हूं कि आओ बात करें, लेकिन मनोज बहुत प्रायवेट हैं। शेयर नहीं करते ... मैंने किसी और से शेयर किया तो भी इन्हें बुरा लगता है।
मनोज - मैं तो ढेर सारे मामलों पर भाई-बहन या मां-पिता से भी बातें नहीं करता। मुझे लगता है कि आपस में ही बातें कर लेनी चाहिए। हम निजी और सार्वजनिक मुद्दों पर भी बातें करते हैं। शबाना हमेशा सलाह देती हैं ... मैं मानूं या न मानूं।
शबाना - मनोज बड़ी अच्छी तरह कई बार मेरी सलाह नजरअंदाज कर देते हैं। मैं बुरा भी नहीं मानती।

काम और परिवार
शबाना - हम स्पष्ट जानते हैं कि मेरा कुछ चल नहीं रहा है। मैं पहले भी व्यस्त नहीं थी। आज कल कुछ नहीं चल रहा है। समझौते की स्थिति नहीं है। मैं बहुत महत्वाकांक्षी थी, लेकिन इंडस्ट्री का रवैया मेरी समझ में नहीं आया। अभी तो आवा को पाल रही हूं।
मनोज - हम दोनों की बीच कोई ‘अभिमान’ जैसी स्थिति तो बिल्कुल नहीं है। शबाना को मेरे काम की कामयाबी में अपनी कामयाबी दिखाई पड़ती है। यह बहुत कमाल की बात है। मेरे बहुत सारे अच्छे दोस्तों में भी यह क्वालिटी नहीं है। कई बार सोचता हूं कि क्या मैं शबाना की स्थिति में होता तो क्या खुश हो पाता? शायद नहीं हो पाता। शबाना की परवरिश और पर्सपेक्टिव का असर है। शबाना मेरी फिल्मों के प्रीमियर पर अवश्य जाना चाहती हैं।
शबाना - मनोज कभी अव्यवस्थित नहीं रहे। इन्होंने कभी तनाव नहीं दिया। ये बहुत पॉजीटिव हैं। बदनतोड़-दिमागतोड़ मेहनत करने पर खुश होते हैं। प्रतिकूल स्थिति होने पर ये और व्यवस्थित हो जाते हैं। सब कुछ रूटीन से होने लगता है। जल्दी हताश नहीं होते। अपने काम में इन्वॉलव होते हैं। केवल खुद में नहीं रहते। ये आत्मकेंद्रित नहीं हैं।
मनोज - समय और रूटीन के पाबंद होने की कोशिश करता हूं।
शबाना - मनोज बहुत अच्छा सोते हैं। क्रिएटिव लोगों को नींद नहीं आती, लेकिन मनोज अच्छी तरह सोते हैं।

विस्तृत परिवार
शबाना - मनोज का परिवार बहुत बड़ा परिवार है। मनोज की जिंदगी में मेरे आने के पहले मनोज का परिवार इनसे हाथ धो चुका था। उन्होंने समझा लिया था कि से ऐसे ही है - सुधरेंगे नहीं। हमारी मुलाकात को पंद्रह दिन भी नहीं हुए थे और मैं इन्हें लेकर अपने मम्मी-पापा से मिलाने चली गई थी। मैंने इशारा कर दिया था कि वे समझ लें कि हम दोनों काफी सीरियस हैं।
मनोज - मैं इन्हें लेकर अपने गांव गया था। छोटी बहन की शादी थी ... ‘शूल’ की शूटिंग का वक्त था। तभी हमलोग गए थे। सभी से मिलवा दिया।
शबाना - अब चूंकि परिवार के लिए मनोज गए-गुजरे थे, इसलिए उनकी दोस्त या होने वाली बीवी भी गई गुजरी होगी। उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। धर्म को लेकर समस्या रही भी हो तो उन्होंने कभी कहा नहीं।
मनोज - शबाना के दूसरे धर्म के होने की वजह से वे चिंतित जरूर हुए होंगे, लेकिन उन्होंने कभी जाहिर नहीं किया। कोई नाखुशी नहीं जाहिर की।
शबाना - मनोज के बारे में उनकी सोच थी कि कौन इनके मुंह लगेगा।
मनोज - शबाना का परिवार काफी खुला और उदार था। उनका स्पष्ट कहना था कि धर्म से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।
शबाना - मेरे मम्मी-पापा कि एक ही चिंता थी कि लडक़ा अच्छा और तमीजदार हो। मेरी बेटी को ठीक से रखे। उसके आगे-पीछे उनकी चिंता नहीं थी।
मनोज - शबाना की छोटी बहन की शादी पंजाबी परिवार में हुई है। इनका परिवार मॉडर्न है। शहरों में भी पिछड़े लोग रहते हैं, लेकिन इनका परिवार आधुनिक है। सच कहें तो गांव से ज्यादा रूढि़वादी लोग शहरों में रहते हैं। शबाना का परिवार काफी सीमित है। उन्हें किसी को जवाब नहीं देना होता है। अभी मैंने तय किया है कि हर ईद पर मैं दोस्तों को बुलाया करूंगा। दीवाली पर पूजा होती रही है। अब से ईद भी मनेगी।
शबाना - धार्मिक आस्था है, लेकिन हम एक-दूसरे की विधि में कोई हस्तक्षेप नहीं करते।

संदेश
शबाना - नए लडक़े-लडक़ी शादी को बहुत व्यावहारिक रूप में लेते हैं। वे अपने काम और परिवार के साथ तालमेल की संभावनाएं देख कर मम्मी-पापा को बता देते हैं और उनसे ही कहते हैं कि आप खोज दो। मैं देख रही हूं कि रोमांस और प्रेम के लिए उनके पास समय ही नहीं है। वे अपने करिअर पर ध्यान देना चाहते हैं। उन्हें रिश्ता भी रेडीमेड चाहिए। मुझे लगता है कि उन्हें थोड़ा वक्त निकालकर आपसी रिश्ते को मजबूत करना चाहिए।
मनोज - आदमी अच्छा हो ... लडक़ा या लडक़ी कोई भी हो। दूसरे के परिवार के प्रति भी आदर भाव हो। पारंपरिक शादी में पूरा परिवार जुड़ता है। प्रेमविवाह में शादी के साथ खुद चुनने पर बाद में यह संबंध बनाना पड़ता है।

Comments

Amitava said…
Acchha raha. Khabar mili. Bahut shukriya.
Anonymous said…
उत्तप्रेरक और अनुकरणीय हैं...विचार...जीवन...दोनों को शुभकामनायें बिटिया को शुभाआशीष...
एक अच्छे अभिनेता का बेहतर इंसान होना कितना ज़रूरी है, यह बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन इंसानी रिश्तों की समझदारी तो बेशक ज़रूरी है। मनोज-शबाना के रिश्ते की गर्माहट और एक-दूसरे को समझने की कोशिश खूबसूरत है। अच्छा संवाद। बधाई, चवन्नीचैप के सूत्रधार को।
mukti said…
मनोज और शबाना के बारे मे जानकर बहुत अच्छा लगा.

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