शुक्रिया दर्शकों का...लौट आया हूं मैं-सलमान खान

-अजय ब्रह्मात्मज
सलमान खान की छवि लापरवाह, मनमौजी और बिगड़ैल स्टार की है। सोचा भी नहीं जा सकता था कि वे नियत समय पर इंटरव्यू के लिए हाजिर हो जाएंगे। पिछले कई मौकों पर उन्होंने लंबा इंतजार करवाया है। लिहाजा, जब उनके सहायक ने पूछा कि आप कहां हैं... सलमान खान आ चुके हैं तो मेरे चौंकने की बारी थी। पहुंचा तो देखा कि सलमान खान ताबड़तोड़ समोसे खाए जा रहे हैं। आश्चर्य हुआ और सहसा सवाल किया मैंने ... ‘समोसे तो सेहत के लिए और खास कर फिल्म स्टार के सेहत के लिए ठीक नहीं माने जाते हैं और आप ...’ मुंह का कौर खत्म करते-करते सलमान को सीधा सा जवाब आया, ‘सर, भूख लगी हो तो आदमी कुछ भी खा ले और उससे कोई नुकसान नहीं होता। मैं तो सब कुछ खाता हूं।’ पता चला कि उन्होंने एक खास फूड चेन का बर्गर मंगवा रखा था। वह आने में देर हुई तो वे खुद को रोक नहीं सके ...
इस बीच बर्गर आया और बातें आरंभ हुई। ‘वांटेड’ और ‘दबंग’ के बाद सलमान खान अलहदा जोश में हैं। दर्शकों से उनका सीधा कनेक्ट बन चुका है। कहा जा रहा है कि सिनेमाघरों से विस्थापित हो चुके दर्शकों का ‘दबंग’ ने पुनर्वास किया। उन्हें फिर से सिनेमाघरों की सीटें दीं। यहां तक कि भोजपुरी सिनेमा को भेद कर सलमान खान दर्शक उठा ले गए। सलमान पूरी बात सुन कर मुस्कराते हैं और अपने अंदाज में बताते हैं, ‘आडिएंस को ही नहीं, मुझे भी सिनेमाघरों से बाहर कर दिया गया था। अपने दर्शकों के साथ मैं भी लौटा हूं। हिंदी फिल्मों का हीरो खो गया था। मैं भी आडिएंस की तरह फिल्में देखता हूं। थिएटर तो नहीं जा पाता ... डीवीडी पर देखता हूं। सबसे पहले देखता हूं कि कवर पर कौन सा स्टार है? और किस टाइप की पिक्चर है। हालीवुड की पिक्चर हैं तो स्टैलोन की या आर्नल्ड की है या नहीं ... मैं रोमांटिक पिक्चर तो नहीं देखूंगा न? मैं देखूंगा उसके इमेज के हिसाब से ... तो हिंदी फिल्मों का हीरो वापस आया। हीरोइज्म खत्म हो गया था। एक्टर के तौर पर मैं भी मिस कर रहा था ...मुझे लगता है कि मेरी तरह ही पूरा हिंदुस्तान मिस कर रहा होगा। कहीं न कही ...सभी को एक हीरो चाहिए।’
क्या ऐसा किसी प्लानिंग के तहत हुआ ... पहले ‘वांटेड’, फिर ‘दबंग’ और ‘रेडी’... अब ‘बाडीगार्ड ’ ? सलमान इसे संयोग कहते हैं। उनके शब्दों में, ‘ऊपरवाले की मेहरबानी है। वह मुझ पर हमेशा मेहरबान रहता है। सब कुछ चल गया। आप देखें तो इस जॉनर की फिल्में मैं करता रहा हूं ... ‘गर्व’, ‘वीरगति’ यहां तक कि ‘वीर’ भी ऐसी ही फिल्म थी। ये सारी फिल्में हीरोइज्म की थी। ऐसी फिल्में करने में मजा आता है। प्रशंसकों को भी लगता है कि अपना हीरो कुछ कर रहा है। आपको बता दूं कि यह सब बड़ा डिफिकल्ट होता है। रिस्क फैक्टर भी रहता है। सारा ताम-झाम ... और उसके साथ सैफ्टी रहती है, लेकिन कुछ भी हो सकता है। आडिएंस को जब वह रिस्क दिखता है तो मजा आता है। हमलोग हर फिल्म में मेहनत करते हैं ... जब मेहनत के साथ स्क्रिप्ट का मेल बैठा जाता है तो सोने पर सुहागा हो जाता है।’
आपकी मौजूदगी में एक जादू है। स्क्रीन पर दिखते ही आप का सम्मोहन सिनेमाघरों में असर करता है ...इस सच्चाई से तो आप वाकिफ होंगे? सलमान पलकें झपकाकर स्वीकार करते हैं और बताते हैं, ‘इसमें मेरा कोई जादू नहीं है। यह दर्शकों और प्रशंसकों की नजर का असर है। मुझे नहीं मालूम कि वे मुझ में क्या देखते हैं? मैं तो अपने आप को रोज देखता हूं। मुझे खुद में ऐसी कोई क्वालिटी नहीं दिखाई देती। मेरे खयाल में हर फिल्म में यूनिट के 50-100 लोगों की मेहनत होती है। उनकी वजह से मैं इस मकाम पर पहुंचा हूं। वे यहां ले आए हैं। मैं मेहनत करना हूं और कोशिश रहती है कि मेहनत राइट डायरेक्शन में हो। दर्शक जब देखते हैं तो आप के सामने बैठा यह सलमान खान ही वहां नहीं होता। उसके साथ प्रेम, राधे, राधे मोहन और चुलबुल पांडे भी उनके दिमाग में आता है ़ ़ ़ सारी इमेज मिलकर सम्मोहन पैदा करती है।’ इमेज और स्टारडम का अध्ययन करने वाले नोट करें कि कैसे और क्यों कोई स्टार पॉपुलर होता है? सलमान आगे कहते हैं, ‘हमारी पिछली फिल्में, हमारी निजी जिंदगी, मीडिया के द्वारा बनी हमारी इमेज ... सब एक साथ दर्शकों पर असर करती हैं। मैं अलग से नहीं समझा पाऊंगा कि दर्शकों से यह रिश्ता क्या, कैसे और क्यों है? वे मेरे प्रशंसक मात्र हैं या परिवार के सदस्य की तरह हैं ... लोग मुझे जानते नहीं, कभी मिले नहीं ... फिर भी इतनी मोहब्बत ...मेरे पास कोई जवाब नहीं। कुछ लोगों ने मुझ से ज्यादा अचीव किया, काम किया, लेकिन उन्हें मेरे जैसी फैन फॉलोइंग नहीं मिली ... फिर भी नहीं बता सकता। ठीक है कि मैं स्टार की तरह रहना पसंद नहीं करता। नार्मल इंसान बना रहता हूं ... लेकिन ऐसे तो और भी स्टार रह चुके हैं ... इसका मुझे इल्म नहीं है। सच कहूं तो मैं जानना भी नहीं चाहता ... जिस दिन पता चल गया कि अच्छा यह कनेक्ट है, उसी दिन से मैं फ्रॉड हो जाऊंगा। फिर वह दिखाई देगा कि यह झूठ हो गया। सलमान ईमानदार नहीं रहा। इसलिए मुझे जानना भी नहीं है। अगर आप ऊपरवाले से पूछ सको तो पूछ कर बताना ... लेकिन अभी मत पूछना। अभी तो आप भी जिंदगी के मजे लो ... नहीं चाहूंगा कि आप अभी पूछने जाओ उनसे।’
ईद के मौके पर सलमान खान की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ रिलीज हो रही है। इसके निर्माता उनके बहन-बहनोई अलवीरा और अतुल अग्निहोत्री हैं। फिल्म की हीरोइन करीना कपूर हैं और निर्देशक हैं सिद्दिकी। कहते हैं कि सिद्दिकी ने इस बार फिल्म के अधिकार देने की शर्त रखी थी कि वे ही फिल्म का निर्देशन करेंगे। पूछने पर सलमान हां या ना कहने के बजाए बताने लगते हैं, ‘किसी और डायरेक्टर के आने पर वह अपना टेक देता। इसे सिद्दिकी ने लिखा भी है, इसलिए उनको लेना ठीक था। फिल्म की मासूमियत बनाए रखी है उन्होंने। हिंदी के हिसाब से बदलाव आया है ़ ़ ़ प्लाट तो वही है, लेकिन स्क्रीनप्ले, डायलॉग, कैनवास सब बदल गया है। कोशिश थी कि हर चीज पिछली पिक्चर से थोड़ी बेटर और बड़ी होनी चाहिए। वही कोशिश है कि एक डिफरेंट लेवल पर क्या लेकर आएं कि आडिएंस थिएटर में एंजॉय करे। अभी इंटेंशन है कि आप आओ, एंज्वॉय करो, हंसो, चीखो, चिल्लाओ, रोओ ़ ़ ़ आप बिजी रहो फिल्म के अंदर। लोग मुझ से पूछते हैं कि फिल्म में मैसेज नहीं देना चाहते? मेरा जवाब होता है कि मैं टेक्स्ट मैसेज भेज दूंगा। ढाई धंटे की फिल्म में ऐसा ब्लास्ट करो कि दर्शक बार-बार देखने आएं। चीखे चिल्लाएं, तालियां बजाएं ़ ़ ़ यह सब करने में बहुत एनर्जी लगती है भैया। और हीरोइज्म से बड़ा मैसेज क्या होगा?’
किस मायने में पिछली फिल्म से एक लेवल आगे है ‘बाडीगार्ड’? सलमान खान सवालिया नजरों से घूरते हैं और फिर हंस देते हैं, ‘इसमें एक्शन एक लेवल आगे है। लवली सिंह मासूम, वफादार और इरादे का पक्का है। उसमें एक बचपना है। वह ईमानदार और भोला है। जैसे अर्जुन को केवल मछली की आंख दिखती थी। वैसे ही लवली सिंह को केवल दिव्या मैडम दिखती है। उसे उनकी जिंदगी बचानी है। वह अपने भोलेपन से कामेडी पैदा करता है। ‘बॉडीगार्ड’ देखते समय आप के चेहरे पर स्माइल आएगी।’
इधर सलमान खान ने किसी खास डायरेक्टर या एक्ट्रेस के साथ कई फिल्मों में काम करना बंद कर दिया है। कभी डेविड धवन ने उनके साथ 7-8 फिल्में बनाई थीं। क्या सलमान नहीं चाहते कि उनकी जोड़ी बने और वह हिट हो? सलमान स्पष्ट कहते हैं, ‘जरूर चाहता हूं, लेकिन कोई दोस्त साधारण स्क्रिप्ट लाएगा तो नहीं करूंगा। कोई नया डायरेक्टर अच्छी स्क्रिप्ट लाएगा तो कर लूंगा ... नए लोगों में नया जोश रहता है। फिल्में बनाने के लिए मैं लोगों को चुनता हूं ... कभी अरबाज, अभी अतुल या कभी कोई और ... अभी आदित्य चोपढ़ा के लिए भी फिल्म कर रहा हूं। ‘बीइंग हयूमन’ के जरिए ‘चिल्लर पार्टी’ पेश कर दी। बच्चों की फिल्म थी, मुझे अच्छी लगी।’ मैं उन्हें बताता हूं कि गेट के बाहर 40-50 बच्चे खड़े हैं कि आप निकलेंगे तो एक एक झलक देख लेंगे। बच्चों के बीच आप की लोकप्रियता अलग किस्म की है ... सलमान बच्चों के अपने रिश्ते के मनोविज्ञान के बारे में बनाते हैं, ‘मां-बाप टीवी देख रहे होते हैं। बच्चा बिस्तर पर लेटा या खेलता अनमने तरीके से मेरी फिल्म देख रहा होता है। उसे कोई एक झलक या चीज अच्छी मिल जाती है। वह दीवाना बन जाता है। इस तरह हर 30 सेकेंड,एक मिनट में एक बच्चा मेरा या किसी और स्टार का फैन बनता है। वह मुझे या आमिर खान को नाम से नहीं जानता। उसे फिल्म का नाम भी मालूम नहीं रहता। कोई गाना, कोई अदा, कोई मोमेंट देख कर वह कनेक्ट हो जाता है। दूसरी तरफ 40-50 की उम्र के लोग भी मुझे देखकर एनर्जी हासिल करते हैं। उन्हें लगता है कि देखो मेरी उम्र का सलमान कैसे मौज-मस्ती कर रहा है। मैं बुजुर्गों को उनकी जवानी में ले आता हूं।’
इधर सलमान खान की फिल्में खूब चल रही हैं। उनका बिजनेश बढ़ा है। लग सकता है कि पैसों के इस कारोबार को वे समझते होंगे, लेकिन पूछने पर वे साफ इंकार कर देते हैं, ‘मुझे तो यह भी पता नहीं कि कितनी टेरिटरी है। डैड सारा काम संभाल लेते हैं। पैसे गिन कर क्या करना है? फिल्में चलें और फिल्में मिलती रहें बस...मुझे बिजनेश में घुसना ही नहीं है। ऐसे ही मेरा दिमाग बहुत बंटता और भटकता रहता है। यह नहीं करना है मुझे। मेरा काम शूटिंग, एडीटिंग और रिलीज तक रहता है। इंडस्ट्री मे लोग पहले कहते थे कि सबकी फिल्म चले, मेरी थोड़ी ज्यादा चले। अभी लोग कहते हैं कि किसी की नचले, केवल मेरी चले। मैं कहता हूं कि आपकी चले और खूब चले ताकि मुझे भी अपना लेवल बढ़ाने का मौका मिले। अगर किसी को मारना है तो काम से ही मारना है।’
एक रहस्य की बात बताऊं? सलमान खान खुद को छोटे शहर की पैदाईश मानते हैं? उनका जन्म इंदौर में हुआ ... वे खुद बताते हैं, ‘16 साल की उम्र तक हर साल 4 महीने इंदौर में ही रहता था। छोटे शहर का प्यार, रोमांस और आदतें हैं मु़झ में ...आप मेरी जबान देख लें ...मैं अरबाज और सोहेल की तरह नहीं बोलता हूं। मेरा लहजा छोटे शहरों का है। अभी छोटे शहरों में आना-जाना कम हो गया है, लेकिन शूटिंग के समय तो रहता हूं। लोगों को आब्जर्व करता हूं। किसी बड़े स्टार की नकल करने से बेहतर किसी अनोखी पर्सनैलिटी की नकल करना है। हर जगह दो-चार ऐसे अनोखे लोग मिल जाते हैं। उसका कैरेक्टर लेकर अपनी तरफ से थोड़ा मिक्स कर नया कैरेक्टर बनता है तो वह अलग हो जाता है। ‘बॉडीगार्ड’ के अंदर अलग चलता हूं। यह मैंने किसी को देखा, आब्जर्व किया और अपने कैरेक्टर में डाल दिया है।’
सलमान खान से और भी बातें हुई ...लेकिन वह कभी किसी और मौके पर आप से शेयर करेंगे। बाहर अभी तक बच्चे खड़े हैं। उन्हें मोबाइल पर सलमान की तस्वीर दिखाता हूं। उनकी आवाज भी सुना देता हूं। बच्चे मुझे घेर लेते हैं। सिर्फ तस्रीर और आवाज पर यह हाल है। स्वयं सलमान होते तो क्या होता? सच्ची सलमान का सीधा कनेक्शन है दर्शकों से।

Comments

Anonymous said…
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