मजबूरी टीवी की, फायदा स्टारों का

मजबूरी टीवी की, फायदा स्टारों का-अजय ब्रह्मात्‍मज

हाल ही में शो बिग बॉस खत्म हुआ है। इसके होस्ट सलमान खान ने 10 का दम लटका रखा है। बीच में वे इसकी शूटिंग कर सकते हैं। कौन बनेगा करोड़पति का चौथा सीजन समाप्त हो चुका है। अमिताभ बच्चन के साथ विभिन्न चैनल नए आइडिया पर सोच-विचार करते रहते हैं। खतरों के खिलाड़ी में प्रियंका चोपड़ा जोश दिखा चुकी हैं। इन दिनों दर्शकों का दिल धड़काने वाली माधुरी दीक्षित छोटे पर्दे पर अवतरित हुई हैं। शाहरुख खान भी टीवी पर जोर का झटका देंगे। टीवी चैनल और लोकप्रिय स्टार रियलिटी शो की युक्तियों में लगे रहते हैं।

भारत में प्रचलित टीवी आरंभ से ही दर्शकों के मनोरंजन के लिए फिल्म स्टारों पर निर्भर रहा है। दूरदर्शन की हद से बाहर निकलने के बाद छोटा पर्दा बड़े पर्दे के सितारों का लाभकारी मैदान बना। इसमें टीवी का फायदा था, क्योंकि स्टार को शो में लाते ही उसे स्टार के बने-बनाए प्रशंसक दर्शकों के रूप में मिल जाते थे। उन्हें आधे-एक घंटे अपने प्रिय स्टारों के साथ बिताने का मौका मिलता था। फिल्म स्टारों पर यह निर्भरता इतनी ज्यादा है कि टॉक शो, चैट शो और अब तो पैनल डिस्कशन में भी फिल्म स्टारों को जगह दी जाने लगी है। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारतीय संदर्भ में फिल्मों की यह निर्भरता जल्दी खत्म नहीं होगी। इसकी बड़ी वजह यह है कि अभी तक टीवी अपने साम‌र्थ्य से चहेता पर्सनैल्टी नहीं पैदा कर सका है।

पिछले पचीस सालों में हमें गिन-चुन कर दर्जन भर ऐसे ऐंकर, होस्ट और रिपोर्टर मिले हैं, जिन्होंने लगातार बेहतर काम किया और अपनी पहचान बनाई। इनमें से अधिकांश समाचार चैनलों से जुड़ी हस्तियां हैं। प्रणव राय से लेकर रवीश कुमार तक सभी का संबंध समाचार या सामाजिक विषयों के कार्यक्रमों से रहा है। इनमें से कोई भी ऐसा नहीं है, जो मनोरंजन कार्यक्रमों से निकला हो। टीवी सीरियल कुछ हस्तियों को लोकप्रिय करता है, लेकिन जल्दी ही वे खत्म हो जाते हैं। टीवी अपने कलाकारों को फिल्मी कलाकारों जैसा दीर्घजीवन नहीं देता। सीरियल के पॉपुलर रहने तक ही ये टीवी स्टार पॉपुलर रहते हैं। न्यूज चैनलों पर दिखने वाली कुछ हस्तियां अवश्य पॉपुलर पहचान रखती हैं, लेकिन प्रसारण की समयावधि की वजह से वे भी छोटे पर्दे से बाहर नहीं निकल पातीं। उनमें वह दम भी नहीं दिखता। रियलिटी शो समेत टीवी सीरियल और रेगुलर शो में भी धीरे-धीरे फिल्मी सितारों की बढ़ती मौजूदगी प्रमाण है कि टीवी अपने दम पर दर्शकों को नहीं रिझा पा रहा है। भारतीय टीवी के पास अपना कोई लैरी किंग या ओपरा विनफ्रे नहीं है। उनके जैसा प्रभाव अमिताभ बच्चन और सलमान खान ही रखते हैं। वे इस प्रभाव की भारी कीमत वसूलते हैं। फिल्म सितारों को मुंहमांगी रकम भी मिल जाती है। मजेदार तथ्य यह है कि उन्हें इन शोज के लिए अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती। फिल्मों की तुलना में मेहनत कम और पारिश्रमिक ज्यादा। कोई कैसे बचे इस लालच से? इस लालच में अभी तक आमिर खान नहीं आए हैं। पर कौन जानता है, हो सकता है उनकी भी किसी चैनल के साथ गुप्त वार्ता चल रही हो, वे भी नजर आ जाएं।

टीवी मीडियम के तौर पर बेहद मजबूत है, लेकिन इसकी अपनी खासियत है कि रोज कुंआ खोदो, रोज पानी पियो..। यह इसी नीति पर चलता और बिकता है। टीआरपी के कुचक्र में आने के बाद दूरदर्शन के दिनों की गंभीरता जाती रही। मनोरंजन की निरंतर मांग के कारण उसे फिल्मों का सहारा लेना पड़ता है। फिल्म कलाकार टीवी की इस मजबूरी का फायदा उठाते हैं। उन्हें प्रति एपीसोड करोड़ों की कमाई होती है। वैसे, सभी अमिताभ बच्चन की तरह शानदार होस्ट नहीं हैं, अगर बिग बॉस की प्रस्तुति में बोले गए सलमान खान के संवादों का अध्ययन और विश्लेषण करें, तो उसमें तार्किक, तथ्यात्मक, व्याकरणिक और उच्चारण की अनेक गलतियां नजर आएंगी, लेकिन इमेज की आभा में सारी खामियां ढंक जाता हैं। टीवी पर यह सुविधा नहीं है कि उसे रिवाइंड कर देखा जा सके और गलतियां बार-बार नजर आएं।


Comments

Mohd Shahid said…
आज के समय मैं टी.वी दर्शक केवल बड़े फ़िल्मी सितारों को ही अपने टी.वी पर देखना चाहता है कहीं न कहीं येही विफलताओं का कारण है

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